सांझी क्या है | सांझी पर्व अथवा त्योहार कैसे बनाई जाती है what is Sanjhi in hindi meaning definition

what is Sanjhi in hindi meaning definition सांझी क्या है | सांझी पर्व अथवा त्योहार कैसे बनाई जाती है किसे कहते है परिभाषा अर्थ बताइए ? कहाँ मनाई जाती है ?

सांझी (Sanjhi)
पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों (मालवा और नीमार) में सांझी का पर्व श्देवी की पूजा से जुड़ा है। उसे देवी दुर्गा, शंकुवरी नामों से जाना ग्रह पर्व पितृपक्ष (अक्तूबर के महीने में) हर वर्ष 15 दिन चलने वाली पितरों या पुरखों की पूजा के ठीक बाद में मनाया जाता है। यह नवरात्र के साथ पड़ता है। नवरात्र का सप्ताह सर्वव्यापी आदि शक्ति की पूजा को समर्पित होता है। इस शक्ति का प्रतीक सामान्यता देवी दुर्गा को माना जाता है। सांझी शक्त पंथ (शक्ति पूजा) की क्षेत्रीय स्तर पर अभिव्यक्ति के रूप में सामने आती है। इसका प्रारंभ भारत के प्रागैतिहासिक काल में कभी हुआ था। शक्त पंथ किसी न किसी रूप में भारत में हर कहीं मिलता है और यह भारतीयों के धार्मिक अनुभव की एक सशक्त सारगत धारा रहा है। इसमें साधारण परंपरा से एक महान परंपरा की निरंतरता का आभास मिलता है। साधारण परंपरा और महान परंपरा की अवधारणाओं के लिए खंड ई.एस.ओ.-12 की इकाई 3 के पृष्ठ 38-40 देखिए।

सांझी का उत्सव वस्तुतः स्त्रियों और मिट्टी की वस्तुएं बनाने की कला से संबंध रखता है। इसमें देवी सांझी की प्रतिमा बनाकर उसे सुखाया, रंगा और दीवार पर गोबर लीप कर वहाँ स्थापित कर दिया जाता है। प्रतिमा को लहंगा, चोली और चुनरी पहनाई जाती है। स्थानीय गहनों में सजी धजी सांझी देवी स्थानीय देहाती स्त्री की ही प्रतिमूर्ति लगती है।

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होली उत्तर भारत का एक लोकप्रिय पर्व है। यह मार्च-अप्रैल के चंद्रमास (चैत्र) में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसके उत्सव कुछ दिन पहले या कुछ दिन बाद भी हो सकते हैं। सबसे पहले एक खंभे के चारों और लकड़ी जमा करके होलिकाग्नि तैयार की जाती है। इसे चंद्रमा के उगने पर जलाया जाता है। स्त्री और पुरुष दोनों ही इस अग्नि के फेरे लगाते हैं। इसमें नारियल डाला जाता है और ताजी जौ की बालों को भूना जाता है। अग्नि की लपटें किस दिशा में जा रही हैं यह देखकर इस बात का पूर्वानुमान किया जाता है कि अगली फसल कैसी होगी। कहीं कहीं लोग होली की अग्नि से अंगारे निकाल कर उससे अपने घरों में आग जलाते हैं।

होलिकाग्नि की राख भी इकट्ठा की जाती है और उससे रोगों से रक्षा की जाती है। होलिकाग्नि को राक्षसी होलिका को भस्म करने वाली पवित्र चिता भी माना जाता है। होलिका को यह वरदान मिला हुआ था कि उसे आगे कभी नहीं जला पाएगी। वह अपने भाई हिरण्यकश्यप के बेटे और विष्णु के अनन्य भक्त प्रहलाद को लेकर आग में बैठे गई। प्रहलाद तो विष्णु के प्रति अपनी भक्ति के कारण बच गए लेकिन दुष्ट होलिका आग में जल मरी।

होली खेलते समय सभी जातियों के लोग एक दूसरे पर रंग डालते हैं और गुलाल मलते हैं। स्त्रियाँ पुरुषों को लाठी भी मारती हैं। मैकिम मैरियट ने होली को प्रीति भोज भी कहा है।

इसके साथ ही सूरज, चांद, सितारे हरी डाल पर बैठे तोते, कंघी, पंखा बाजे वाले, सांझी का भाई और एक चोर भी बनाया जाता है जिसे उलटा लटका दिया जाता है। दैनिक जीवन में मिलने वाली अन्य चीजों के नमूने भी मिट्टी से बनाए जाते हैं और उन्हें साझी के दोनों ओर सजा दिया जाता है। इन चीजों के नमूने बनाना स्थानीय कलाकारों के कौशल और दक्षता पर निर्भर करता है। सांझी का नमूना बनाने और सजाने का काम अधिकतर स्त्रियाँ, विशेषकर युवा स्त्रियाँ करती हैं।

सांझी के नीचे एक बर्तन में मिट्टी भरकर रखी जाती है जिसमें जौ बोया होता है। हर शाम स्त्रियाँ देवी की पूजा करती हैं और इकट्ठी होकर उसकी स्तुति में गीत गाती हैं और उसकी आत्मा का आवाहन करती हैं। पूजा और गाने के साथ आमोद-प्रमोद भी चलता है। यह ग्रामीण स्त्रियों के अन्यथा व्यस्त जीवन में मनोरंजन का अवसर होता है।

पूजा की परिणति दुर्गा अष्टमी में होती है, वैसे यह पूजा विजयदशमी तक चलती रहती है जब दशहरा मनाया जाता है उस समय तक जौ के अंकुर फूट चुके होते हैं। दशहरे के दिन सुबह इन हरे अंकुरों के छोटे-छोटे गुच्छे बनाकर उन्हें घर के पुरुष सदस्यों के कानों में खोसा जाता है। फिर अंतिम पूजा के बाद सांझी को हटा लिया जाता है और पूरे संस्कार के साथ पास की किसी नदी, तालाब या नहर में विसर्जित कर दिया जाता है।

सांझी के पर्व में सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन की अनेक धाराएं मिलती दिखाई देती हैं। यह पर्व भारतीय दर्शन में व्याप्त आदि प्रकृति (शाश्वत नारी) से जुड़ा है जो आदि पुरुष (शाश्वत नर) से मिल कर जीवन की शाश्वत एकता की रचना करती है और प्रजनन और निरंतरता का स्रोत होती है। जौ का बोना और उसके अंकुरों का पुरुषों के कान में खोंसना दैवीय शक्ति की मदद से कृषि की संपन्नता प्राप्त करने के प्रयास का प्रतीक है। इस तरह इसका संबंध उर्वरता पंथ से लगता है जिसका किसान वर्ग में व्यापक प्रचलन है। यह एक रोचक पहलू है कि यह इस क्षेत्र की खेतिहर जातियों में अधिक लोकप्रिय है।

कुछ स्त्रियों का यह भी मानना है कि सुहागन स्त्री की प्रतिमा के रूप में सांझी की पूजा का उद्देश्य स्त्री के सुहागन जीवन की लंबी आयु प्राप्त करना भी है क्योंकि समाज में उसकी सुहागन की छवि का होना उसके सौभाग्य की निशानी होती है। डाल पर बैठे तोते संपन्नता का प्रतीक बताए जाते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि तोते उन आने वाली विपत्तियों को टाल देते हैं जिनका पता मनुष्य को नहीं चलता।

सांझी के भाई की प्रतिमा की पूजा करने, इसे करने वाली स्त्री के भाई/भाइयों की लंबी आयु के लिए होती है। उलटे लटके चोर के बारे में यह मान्यता है कि वह जादू के बल पर चोरों को फटकने नहीं देता। बाजे वाले, चाट बेचने वाले, मिठाई बेचने वाले और हुक्का जैसे प्रतीक कलात्मक सृजन से प्राप्त होने वाले आनंद से संबंध रखते हैं।

 कुछ धार्मिक पर्व (Some Religious Festivals)
धार्मिक पर्व ऐसे अवसर होते हैं जब संस्कार अपने चरम पर और सबसे रंगीन रूप में दिखाई देते हैं। नीचे हम कुछ धार्मिक पर्र्वोें के विषय में बता रहे हैंः