दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम , दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम , विद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश के कारण चुम्बकीय क्षेत्र 

(right hand rule in hindi) दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम 

किसी चालक से विधुत धारा को प्रवाहित करने पर उसमे चुम्बकीय क्षेत्र बनता है अत: किसी विद्युत धारावाही चालक से संबद्ध चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम के उपयोग से आसानी से बताया जा सकता है।

दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम 

दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम के अनुसार “यदि किसी विद्युत धारावाही चालक को दाहिने हाथ में कुछ इस प्रकार से पकडा जाये की अंगूठा विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करता है तो उँगलियाँ चालक के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाओं की दिशा लो बताती है।

इसे मैक्सवेल का कॉर्कस्क्रू नियम भी कहते हैं। यदि हम किसी कॉर्क स्कू को विद्युत धारा की दिशा में आगे बढ़ा रहे हैं तो कॉर्क स्क्रू के घूर्णन की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा होती है।

विद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश के कारण चुम्बकीय क्षेत्र 

किसी एक वृत्ताकार (लूप) चालक से विद्युत धारा को प्रवाहित किया जाता है तो इस विद्युत धारावाही पाश के प्रत्येक बिन्दु पर उसके चारों ओर संकेन्द्री वृत्ताकार पैटर्न के रूप में चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। विद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश का हर एक बिंदु पर संकेन्द्री वृत्ताकार पैटर्न के रूप में चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है अत: चालक का प्रत्येक बिन्दु एक विद्युत धारावाही सीधा चालक की तरह व्यवहार करता है।

किसी विद्युत धारावाही चालक में विधुत धारा प्रवाहित होती है तो उस चालक में उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र उस चालक से दूरी के व्युत्क्रम पर निर्भर करता है। अत: किसी विद्युत धारावाही पाश के प्रत्येक बिन्दु पर उसके चारों ओर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र को निरूपित करने वाले संकेन्द्री वृत्तों का साइज चालक से दूर जाने पर निरंतर बड़ा होता जाता है। वृत्ताकार पाश के केन्द्र में वृत्तों के चाप सरल रेखा जैसे प्रतीत होने लगते हैं। इस प्रकार विद्युत धारावाही तार के प्रत्येक बिन्दु से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ लूप के केन्द्र पर सरल रेखा जैसी प्रतीत होने लगती हैं।

विद्युत धारावाही पाश के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ

          धारावाही वृत्ताकार कुंडली द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र 

विधुत धारावाही पाश का प्रत्येक बिन्दु चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं में योगदान देता है तथा लूप के भीतर सभी चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ एक ही दिशा में होती हैं।

संक्षिप्त रूप में 

1.विद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश का प्रत्येक बिन्दु पर संकेन्द्री वृत्ताकार पैटर्न के रूप में चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है अत: विद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश का प्रत्येक बिन्दु एक विद्युत धारावाही सीधे चालक की तरह व्यवहार या कार्य करता है।

2.विद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश के प्रत्येक बिन्दु पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र संकेन्द्री वृत्ताकार होते हैं

3. किसी विद्युत धारावाही चालक में उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र उस चालक से दूरी के व्युत्क्रम पर निर्भर करता है अत: किसी विद्युत धारावाही पाश के प्रत्येक बिन्दु पर उसके चारों ओर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र को निरूपित करने वाले संकेन्द्री वृत्तों का साइज चालक से दूर जाने पर निरंतर बड़ा होता जाता है।

4.वृत्ताकार पाश के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र को निरूपित करने वाले संकेन्द्री वृत्त सरल रेखा जैसे प्रतीत होते हैं।

एक से ज्यादा फेरों वाली कुंडली द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र 

जब किसी विद्युत धारावाही तार में विधुत धारा प्रवाहित होती है तो तार के किसी बिंदु पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र उसमे प्रवाहित विधुत धारा पर निर्भर करता है।

यदि किसी तार पर दो फेरों वाली कुंडली हो तो उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र एक फेरे वाली कुंडली द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तुलना में दो गुना अधिक प्रबल होगा।

उसी प्रकार यदि किसी तार पर तीन फेरों वाली कुंडली हो तो उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र एक फेरे वाली कुंडली द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तुलना में तीन गुना अधिक प्रबल होगा।

यदि किसी तार पर n फेरों वाली कुंडली हो तो उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र एक फेरे वाली कुंडली द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तुलना में n गुना अधिक प्रबल होगा।

इसका कारण यह है कि प्रत्येक फेरे वाली कुंडली में विद्युत धारा के प्रवाह की दिशा समान होती है अत: प्रत्येक अतिरिक्त फेरे के कारण पहले वाले चुम्बकीय क्षेत्र में अतिरिक्त फेरे के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र इसमें संयोजित हो जाते हैं। अर्थात कुंडली के फेरों की संख्यां जितनी अधिक होगी तो इसमें विद्युत धारा प्रवाहित करने पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र उतना ही अधिक प्रबल होगा।

परिनालिका में प्रवाहित विधुत धारा के कारण चुंबकीय क्षेत्र 

बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली जो की पास-पास लिपटे विद्युतरोधी ताँबे के तार से बनी होती है परिनालिका कहलाती हैं। जब किसी परिनालिका में विधुत धारा प्रवाहित की जाती है तो उस परिनालिका के चारो और चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। परिनालिका का एक सिरा उत्तर ध्रुव तथा दूसरा सिरा दक्षिण ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है। परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ समांतर सरल रेखाओं की भाँति होती हैं और परिनालिका के भीतर सभी बिंदुओं पर चुंबकीय क्षेत्र समान होता है। परिनालिका के भीतर एकसमान चुंबकीय क्षेत्र होता है।

परिनालिका कई फेरो वाली कुंडली होती है जिसके कारण किसी परिनालिका के भीतर प्रबल चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। किसी परिनालिका के भीतर उत्पन्न प्रबल चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग किसी चुंबकीय पदार्थ जैसे नर्म लोहे को परिनालिका के भीतर रखकर चुंबक बनाने में किया जा सकता है इस प्रकार बने चुंबक को विधुत चुंबक कहते है।

          परिनालिका के भीतर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ