राज्यसभा किसे कहते हैं | भारत के संविधान में राज्यसभा की परिभाषा क्या है शक्तियां rajya sabha in hindi

rajya sabha in hindi राज्यसभा किसे कहते हैं | भारत के संविधान में राज्यसभा की परिभाषा क्या है शक्तियां लिखिए ?

संसद: राज्य सभा
राज्य सभा अथवा राज्य परिषद् में अधिक-से-अधिक 250 सदस्य होते हैं जिनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा उन व्यक्तियों के बीच से नामांकित किए जाते हैं जो ‘साहित्य, विज्ञान, कला, व समाज-सेवा में विशेष ज्ञान अथवा व्यावहारिक अनुभव‘ रखते हैं। शेष सदस्य एकल हस्तांतरणीय वोट के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली के अनुसार राज्य विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं। इस प्रकार, लोक सभा से भिन्न, राज्य सभा परोक्ष निर्वाचन की विधि अपनाती है। इस चुनाव के उद्देश्य से प्रत्येक राज्य की सीटों की संख्या आबंटित की जाती है, मुख्यतः उनकी आबादी के आधार पर। राज्य सभा, इस प्रकार राज्यों अथवा संघ की इकाइयों के प्रतिनिधित्व द्वारा संघीय अभिलक्षण दर्शाता है। तथापि, वह सैकंड चैंबर, में राज्य प्रतिनिधित्व की समानता के अमरीकी सिद्धांत का अनुसरण नहीं करती है। जहाँ संयुक्त राज्य (अमेरिका) का प्रत्येक राज्य सेनिट में दो प्रतिनिधि भेजता है, भारत में राज्य सभा में राज्य-प्रतिनिधियों की संख्या एक (नागालैंड) से 34 (उत्तर प्रदेश) तक भिन्न-भिन्न है, जो. राज्य-विशेष की जनसंख्या पर निर्भर होती है।

 राज्य सभा की विशेष शक्तियाँ
राज्य सभा का उन मंत्रियों पर मुश्किल से ही कोई नियंत्रण होता है जो वैयक्तिक अथवा संयुक्त रूप से लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होते हैं। यद्यपि उसको उन सभी मामलों पर सूचना प्राप्त करने का पूरा अधिकार है जो अनन्य रूप से लोक सभा के अधिकार-क्षेत्र में आते हैं, उसको कोई अधिकार नहीं है जो कि मंत्रिपरिषद् में अविश्वास मत पारित करे। इसके अतिरिक्त, राज्य सभा का धन-विधेयकों के मामलों में कुछ अधिक बोलने का अधिकार नहीं है।

तथापि, संविधान राज्य सभा को कुछ विशेष अधिकार प्रदान करता है। राज्यों के अनन्य प्रतिनिधि के रूप में राज्य सभा के पास दो अनन्य शक्तियाँ हैं जो विशेष महत्त्व की हैं। प्रथम, अनुच्छेद 249 के तहत्, राज्य सभा को यह घोषणा करने का अधिकार है कि, राष्ट्रीय हित में, संसद को राज्य सूची में उल्लिखित किसी विषय के संबंध में कानून बनाने चाहिए। यदि एक दो-तिहाई बहुमत से राज्य सभा इस आशय का एक प्रस्ताव पारित कर देती है, संघीय संसद एक वर्ष की अवधि के लिए पूरे भारत अथवा उसके किसी भाग के लिए कानून बना सकती है।

राज्य सभा की दूसरी अनन्य शक्ति अखिल भारतीय सेवाओं को संचालित करने के संबंध में है। यदि राज्य सभा उपस्थित तथा मतदान करते कम-से-कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा कोई प्रस्ताव पारित करती है, संसद को अधिकार है कि वह संघ और राज्यों को सर्वमान्य एक अथवा अधिक अखिल भारतीय सेवाओं के सृजन हेतु कानून बनाए।

इस प्रकार, ये विशेष प्रावधान राज्य सभा को भारतीय विधायिका का एक महत्त्वपूर्ण घटक बनाते हैं, न कि इंग्लैंड के हाउस ऑव लॉर्ड्स की भाँति एक अलंकारिक द्वितीय सभा-गृह । संविधान-निर्माताओं ने इसे मात्र किसी उतावले विधान पर नियंत्रण रखने के लिए ही नहीं रचा है, बल्कि एक महत्त्वपूर्ण प्रभावशाली सलाहकार की भूमिका अदा करने की भी इससे अपेक्षा की जाती है। इसका सुसंबद्ध संयोजन तथा स्थायी अभिलक्षण इसे सातत्य और स्थिरता प्रदान करते हैं। चूंकि इसके अनेक सदस्य ‘‘ज्येष्ठ राजनेता‘‘ होते हैं राज्य सभा आदरणीयता की अधिकारिणी है।

राज्य विधायिका
कई लिहाज से राज्य विधायिकाएँ भारतीय संसद की भाँति ही होती हैं। तथापि, एक सदनीयता अथवा द्विसदनीयता की पसंद राज्यों पर छोड़ दी गई थी, इस बात निर्भर करते हुए कि सभा-गृह को चलाने में आने वाली लागत की तुलना में वे किस प्रकार उसके प्रकार्यों को आंकते हैं। किंचित मात्र राज्यों ने ही विधान सभा (लैजिस्लेटिव असेंबली) और विधान परिषद् (लैजिस्लेटिव कौन्सिल) वाली द्विसदनी विधायिका का विकल्प चुना है।

प्रत्येक राज्य की विधान सभा में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से वयस्क मताधिकार के आधार पर सीधे मतदान द्वारा चुने गए सदस्य होते हैं। सभा का आकार कम-से-कम 40 और अधिक-सेअधिक 500 संख्या के बीच भिन्न-भिन्न होता है। विधान सभा का कार्यकाल पाँच वर्ष होता है।

विधान परिषद् की सदस्यता 40 से कम नहीं परंतु सभा की कुल सदस्यता के एक-तिहाई से अधिक नहीं होगी। सदन में अंशतः निर्वाचित तथा अंशतः नामांकित सदस्य होते हैं । सामान्यतः कुल सदस्यों के 1/6 राज्यपाल द्वारा नामांकित होते हैं और शेष स्नातकों, शिक्षकों तथा सभा-सदस्यों वाले पेचीदा फार्मूले पर परोक्ष रूप से चुने जाते हैं।

परिषद् की स्थिति सभा से निम्नतर होती है – इतनी निम्न कि इसको अनावश्यकप्राय ही समझा जाता है। (क) विधान परिषद् की नितांत प्रकृति ही इसकी स्थिति को कमजोर बनाती हैय यह अंशतः निर्वाचित होती है और अंशतः नामांकित, और विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करती है। (ख) इसका जीवनकाल सभा की इच्छा पर ही निर्भर होता है, क्योंकि सभा को एक प्रस्ताव पारित कर द्वितीय सभा-गृह को समाप्त करने का अधिकार है। (ग) मंत्रिपरिषद् केवल सभा के प्रति उत्तरदायी होती है और परिषद् के प्रति नहीं। (घ) सभा में उठने वाले किसी साधारण विधेयक के संबंध में, परिषद् की स्थिति बहुत कमजोर है क्योंकि वह इस पर स्वीकृति एक सीमित समय तक ही स्थगित कर सकती है। इस प्रकार राज्य विधायिका का द्वितीय सभा-गृह कोई सुधारकारी निकाय नहीं, बल्कि मात्र एक विलंबकारी निकाय है।

एक महत्त्वपूर्ण अपवाद के साथ, राज्य विधानसभा में विधायी प्रक्रिया संसद की ही भाँति होती है। राज्यपाल राष्ट्रपति के विचारार्थ राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी भी विधेयक को रोक रख सकता है। विशेषतः एक मामले में विधेयक को रोक रखना राज्यपाल के लिए बाध्यकर है, यथा जब विधेयक उच्च न्यायालय की शक्तियों के प्रति अनादरपूर्ण हो । यदि राष्ट्रपति राज्यपाल को पुनर्विचार हेतु विधेयक वापस भेजने का निर्देश देता है, विधायिका को छः माह के भीतर विधेयक पर पुनर्विचार करना होता है और यदि यह फिर पारित हो जाता है, विधेयक राष्ट्रपति को पुनः प्रस्तुत किया जाता है। परंतु राष्ट्रपति के लिए यह बाध्यकर नहीं है कि वह अपनी स्वीकृति दे ही। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि एक बार राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के लिए कोई विधेयक रोक रखने के बाद राज्यपाल की उसमें कोई भूमिका नहीं होती है। चूंकि संविधान राष्ट्रपति हेतु कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं करता है कि वह अपनी सहमति घोषित करे अथवा रोके रखे, राष्ट्रपति अपने इरादे को व्यक्त किए बगैर एक अनिश्चित काल तक विधेयक को ठंडे बस्ते में डाले रख सकता है।

 पीठासीन अधिकारी
संसद के प्रतीक संदन में उसके अपने पीठासीन अधिकारी होते हैं। लोक सभा में उसके मुख्य पीठासीन अधिकारी के रूप में एक अध्ययन और उसकी मदद के लिए एक उपाध्यक्ष होता है जो उसकी अनुपस्थिति में पीठासीन अधिकारी के रूप में कार्य निभाता है। राज्य सभा का पीठासीन अधिकारी भी एक अध्यक्ष होता है, जिसकी मदद एक उपाध्यक्ष करता है। वह भी अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उसके कर्तव्यों तथा प्रकार्यों का निर्वहन करता है। पूर्ववर्ती ‘लोक सभा अध्यक्ष/ उपाध्यक्ष‘ और परवर्ती ‘राज्य सभा अध्यक्ष/उपाध्यक्ष‘ कहलाते हैं।

बोध प्रश्न 2
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए गए रिक्त स्थान का प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तरों की जाँच इकाई के अंत में दिए गए आदर्श उत्तरों से करें।
1) भारतीय संसद के एक सदस्य के लिए अहर्ताएँ एवं अनहर्ताएँ क्या हैं?
2) लोक सभा अध्यक्ष की शक्तियाँ लिखिए।

बोध प्रश्न 2 उत्तर
1) सदस्य बनने के लिए, व्यक्ति 25 वर्ष (लोक सभा के लिए) अथवा 30 वर्ष (राज्यसभा के लिए) का हो तथा संसद द्वारा निर्धारित अन्य अर्हताएँ रखता हो। यदि कोई सदस्य 60 दिन से अधिक बिना अनुमति सभाओं से अनुपस्थित रहे, यदि वह भारत सरकार के तहत कोई लाभ का पद ग्रहण किए हो, यदि वह अस्वस्थ मस्तिष्क वाला है, यदि दिवालिया घोषित है अथवा किसी अन्य देश का नागरिकता ग्रहण कर लेता है अथवा किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा रखने की स्वीकृतिअधीन है, वह अयोग्य घोषित हो जाता है। राज्य विधानसभा हेतु चुना गया सदस्य, यदि वह एक निर्दिष्ट अवधि के भीतर राज्य विधानसभा से त्याग-पत्र नहीं देता है, संसद से अपनी सदस्यता खो देता है।
2) उसके पास व्यापक और विस्तीर्ण शक्तियाँ हैं – लोकसभा की बैठक की अध्यक्षता करना, कानूनी कार्यवाहियाँ संचालित करना, सदन में व्यवस्था बनाए रखना और सदन में कार्यवाहियों का क्रम निर्धारित करना – सदन के प्रवक्ता के रूप में काम करना – सदन के नियमों की व्याख्या करना और लागू करना – विधेयकों को अधिप्रमाणित करना – धन-विधेयक को प्रमाणित करना – आदि।