JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: BiologyBiology

खरगोश का वर्गीकरण और लक्षण क्या है ?  शशक की शरीर-गुहा की इंद्रियां पेशियां, कंकाल और तंत्रिका तंत्र

rabbit classification in hindi खरगोश का वर्गीकरण और लक्षण क्या है ?  शशक की शरीर-गुहा की इंद्रियां पेशियां, कंकाल और तंत्रिका तंत्र ?

स्तनधारी वर्ग
शशक की जीवन-प्रणाली और बाह्य लक्षण
जंगली शशक : जंगली शशक दक्षिणी यूरोप के मुखे पहाड़ी हिम्मों में रहते हैं। शगक झाड़ी-झुन्मुटों से ढंकी हुई पहाड़ियों में अपनी वस्तियां बनाकर रहते हैं (रंगीन चित्र १३)। यहां वे जमीन में मांद बनाते हैं। मांदों में रहकर शत्रुओं से अपना बचाव करते हैं और वहीं बच्चे देकर उनकी परवरिश करते हैं। शशक अपनी मांदों के इर्द-गिर्द उगनेवाली वनस्पतियां खाकर रहते हैं। वे शाम के झुटपुटे में भोजन के लिए मांदों से बाहर निकलते हैं।
जंगली शशक शश (बड़ा खरगोश) जैसा ही दीखता है पर आकार में उससे छोटा होता है। उसकी फर का रंग भूरा-कत्थई होने के कारण उसे झुटपुटे में पहचानना मुश्किल होता है। शशक के अपेक्षतया छोटा धड़ तथा छोटा सिर होता है और दो जोड़े अंग (हाथ-पैर) तथा एक छोटी-सी पूंछ। वह उछलता-कूदता हुआ चलता है। अपने अधिक विकसित पश्चांगों के सहारे वह जमीन पर से छलांग मारता है। प्रत्येक पश्चांग या टांग में ऊरु , पिंडली और पाद होते हैं और अग्रांग में बाहु, अग्रवाहु तथा हाथ।
शशक की नस्लें जंगली शशक से मनुष्य ने पालतू शशक का परिवर्द्धन किया है। अपने पुरखों की तरह यह भी तरह तरह की वनस्पतियां
खाकर रहता है। शशक-उद्यानों में रखने पर ये जमीन में मांदें बना लेते हैं। पिंजड़ों में रखने पर वे पिंजड़े के सायादार हिस्से में घोंसले बना लेते हैं।
पालतू शशक जंगली शशकों से बड़े होते हैं और उनके रोगों के विविध रंगों तथा गुणों के कारण अलग से पहचाने जा सकते हैं। मांस के लिए पाले जानेवाले शशक उनके आकार के लिए विशेष मूल्यवान् माने जाते हैं, तो फरदार नस्लें उनकी फर के लिए। कुछ और शशक उनके मुलायम रोगों के लिए पाले जाते हैं। सभी नस्लों के मांस का उपयोग भोजन के रूप में किया जाता है (आकृति १३४)।
मांसवाली नस्ल का एक उदाहरण है सफेद विशाल शशक। इसका वजन सात किलोग्राम तक हो सकता है।
फरदार नस्लों में से हम रूसी एरमाइन नस्ल का नाम गिन सकते हैं। सोवियत संघ में नये से परिवर्दि्धत की गयी रुपहला चूंघटधारी, काली-भूरी इत्यादि नस्लें विशेष मूल्यवान् हैं। उनकी खालें कीमती फरों जैसी होती हैं।
मुलायम रोएंदार नस्लों में से सबसे अधिक प्रसार अनगोस्र्क शशक का है। इसके लंबे सफेद रोएं होते हैं।
त्वचा-यावरण शशक के पूरे शरीर को ढंकनेवाले बाल शीत से उसकी रक्षा करते हैं। पर सभी बाल एक से नहीं होते। इनमें से जो लंबे और सख्त होते हैं वे फर कहलाते हैं और फर के बीच उगनेवाले छोटे छोटे मुलायम बालों को कागर कहते हैं। उरगों के शल्कों और पक्षियों के परों की तरह ये बाल भी एक शृंगीय पदार्थ के बने होते हैं। बाल , स्तनधारियों का एक विशेष लक्षण है।
अन्य स्तनधारियों की तरह शशक में भी निर्मोचन-क्रिया होती है य यानी निश्चित समय पर उसके पुराने बाल झड़ जाते हैं और उनकी जगह नये बाल उगते हैं। फर का आवरण जाड़ों के समय सबसे मोटा होता है।
त्वचा की मेद-ग्रंथियों से चूनेवाली चरबी से बाल पुते रहते हैं। इससे बाल जलरोधक और लचीले बन जाते हैं (मुश्किल से टूट सकते हैं)।
स्तनधारियों की त्वचा में मेद-ग्रंथियों के अलावा स्वेद-ग्रंथियां भी होती हैं। शशक में ये ग्रंथियां अल्पविकसित होती हैं। पसीने के वाष्पीकरण से शरीर को ठंडक मिलती है और ज्यादा गरम हो जाने से शरीर का बचाव होता है।
शशक के शरीर में एक और शृंगीय रचना उसके नखर हैं जो उसकी अंगुलियों के सिरों पर होते हैं।
प्रश्न – जंगली और पालतू शशकों के बीच क्या साम्य-भेद हैं ? २. शशक की नस्लें बतलायो। ३. प्राणी के बालों का क्या महत्त्व है ?
 शशक की पेशियां, कंकाल और तंत्रिका तंत्र
कंकाल और पेषिया प्रधान लक्षणों की दृष्टि से शशक का कंकाल अन्य स्थलचर रीढ़धारियों के जैसा ही होता है पर उसमें कुछ फर्क भी है (आकृति १३५)।
रीढ़-दंड पांच हिस्सों में बंटा होता है – ग्रेव, वक्षीय, कटीय, त्रिक और पुच्छीय। ग्रैव या गर्दन के कशेरुक चल रूप में जुड़े होते हैं। स्तनधारियों में उनकी संख्या आम तौर पर सात होती है। वक्षीय या सीने के कशेरुक पसलियों से जुड़े होते हैं। इन्हें और वक्षास्थि को लेकर वक्ष बनता है जो हृदय और फुफ्फुसों की रक्षा करता है। कटीय या कमर के कशेरुकों के पसलियां नहीं होतीं। त्रिक कशेरुकों का एक हड्डी में समेकन होता है। यह अस्थि त्रिक-हड्डी या सैक्रम कहलाती है। सैक्रम के पीछे की ओर पुच्छीय या पूंछ के छोटे कशेरुक होते हैं।
शशक की खोपड़ी में सुविकसित कपाल होता है और जबड़े। कपाल में मस्तिष्क होता है और जबड़ों में दांत।
अंस-मेखला में स्कंधास्थियां और अक्षक की पतली हड्डियां होती हैं। पक्षियों में सुविकसित कोराकोयड हड्डी शशक में नहीं होती। शशक के भ्रूण में तो वह दिखाई देती है, पर बाद में स्कंधास्थि में उसका समेकन हो जाता है। अग्रांग की हड्डियों में बाहु, अग्रबाहु की बहिःप्रकोष्ठिका और अंतःप्रकोष्ठिका और हाथ की, अनेकानेक हड्डियां शामिल हैं। हाथ की हड्डियों के एक हिस्से से पांच अंगुलियों का कंकाल बनता है।
श्रोणि-मेखला की हड्डियां समेकृत होती हैं और सैक्रम के साथ मिलकर श्रोणि बनाती हैं। पश्चांग में ऊरु में स्थित ऊरु की हड्डी, पिंडली में स्थित बहिर्जघिका और अंतर्जंघिका की हड्डियां और पाद की अनेकानेक हड्डियां होती हैं। पाद की हड्डियों के हिस्से से चार पादांगुलियों का कंकाल बनता है।
पेशियां कंकाल से जुड़ी रहती हैं। पेशियों के समन्वित संकुचन से शशक की विभिन्न इंद्रियां और वैसे सारा शरीर गतिशील हो जाता है। पश्चांगों की और धड़ तथा गर्दन के पृष्ठीय हिस्से की पेशियां विशेष सुविकसित होती हैं।
तंत्रिका तंत्र अन्य स्तनधारियों की तरह शशक का तंत्रिका तंत्र मस्तिष्क के ऊंचे विकास के लिए मशहूर है (आकृति १३६) । अग्रमस्तिष्क विशेष विकसित होता है। इसके बड़े गोलार्द्ध मस्तिष्क के अन्य सभी हिस्सों से अधिक बड़े होते हैं (प्राकृति १३७)। गोलार्डों की सतह पर तंत्रिकाकोशिकाएं होती हैं जिनसे प्रमस्तिष्कीय कोरटेक्स बनता है।
शशक के गोलार्द्ध चिकने होते हैं। अन्य स्तनधारियों में, उदाहरणार्थ कुत्ते में , उनकी सतहों में चुनटें होती हैं जिससे प्रमस्तिष्कीय कोरटेक्स की सतह बढ़ती है। गोलार्डों और उनके कोरटेक्सों के ऊंचे विकास के कारण स्तनधारियों के बरताव में काफी जटिलता आती है। इन प्राणियों में नियमित प्रतिवर्ती क्रियाएं आसानी से विकसित हो सकती हैं। इस प्रकार यदि शशकों को निश्चित समय पर खिलाया जाये तो उनमें समय की प्रतिवर्ती क्रिया उत्पन्न होती है और जब खाने का समय होता है तो वे भोजन-पात्र के पास इकट्ठे हो जाते हैं।
शशक की ज्ञानेंद्रियों में से घ्राणेंद्रियां और श्रवणेंद्रियां सर्वाधिक विकसित होती हैं।
घ्राणेंद्रियां भोजन की खोज में मुख्य भूमिका अदा करती हैं। ये इंद्रियां नासिकागुहा में स्थित होती हैं। यहां मस्तिष्क से आनेवाली ब्राण-तंत्रिकाएं शाखाओं में विभक्त होती हैं। यदि हम शशक का निरीक्षण करें तो वह हमेशा अपनी नम नाक सिकोड़ता हुआ नजर आयेगा।
शशक की कर्णं-पालियां होती हैं। उरगों और पक्षियों में ये नहीं होतीं। अपने कानों को हिलाते हुए शशक विभिन्न दिशाओं से आनेवाली ध्वनियां सुनता है। ध्वनि-तरंगें अंतःकर्ण में चली जाती हैं।
शशक की आंखों पर सुविकसित पलकें और बरौनियां होती हैं जो आंखों को धूल और गंदगी से बचाये रखती हैं।
स्पर्शेन्द्रियां त्वचा में स्थित तंत्रिकाओं के सिरों के रूप में होती हैं। ये ऊपरवाले होंठ पर स्थित ‘गलमुच्छों‘ और ‘भौंहों‘ के बालों की जड़ों के इर्द-गिर्द विशेष ‘विकसित होती हैं। रसनेंद्रियां जीभ में होती हैं।
प्रश्न – १. शशक के कंकाल की रचना कैसी होती है ? २. कौनसे रचनात्मक लक्षण स्तनधारियों के मस्तिष्क की जटिलता दिखाते हैं ? ३. शशक में कौनसी ज्ञानेन्द्रियां सबसे अधिक विकसित होती हैं ?
व्यावहारिक अभ्यास – शशक का निरीक्षण करो और देखो कि वह किस तरह चलता है और गंध , ध्वनि तथा अन्य उद्दीपनों का जवाब किस. प्रकार देता है। अपने निरीक्षण का ब्यौरा दो।
 शशक की शरीर-गुहा की इंद्रियां
शरीर-गुहा अन्य स्तनधारियों की तरह शशक की शरीर-गुहा के भी दो भाग होते हैं – वक्षीय और औदरिक। वक्षीय गुहा में फुफ्फुस और हृदय होते हैं और औदरिक गुहा में जठर, प्रांतें और अन्य इंद्रियां। इन दो गुहाओं को अलग करनेवाले पेशीय परदे को डायफ्राम कहते हैं (रंगीन चित्र १४)।
पचनेंद्रियां शशक की पचनेंद्रियां शाकाहारी भोजन के अनुकूल होती हैं। मुख-द्वार मांसल ओंठों से घिरा रहता है। ऊपरवाला ओंठ दोहरा होता है इससे सख्त भोजन कुतरते समय कोई चोट नहीं पाती।
मुख-गुहा के अंदर दांत होते हैं। दांतों पर बहुत ही सख्त इनैमल का आवरण होता है। ऊपरवाले और नीचेवाले जबड़ों में आगे की ओर दो दो लंबे और तेज सम्मुख दंत होते हैं। सम्मुख दंत झुके हुए और जबड़े में मजबूती से गड़े हुए होते हैं। इससे वे ढीले नहीं पड़ते (आकृति १३८)। सम्मुख दंतों पर इनैमल की परत एक-सी नहीं होती। आगे की ओर वह मोटी होती है और पीछे की ओर पतली। सम्मुख दंत आगे की अपेक्षा पीछे की ओर अधिक जल्दी से घिस जाते हैं और इसलिए हमेशा उनकी तेजी बनी रहती है। ये दांत बराबर बढ़ते रहते हैं, अतः कभी छोटे नहीं होते। सम्मुख दंत की मदद से शशक लकड़ी तक को कुतर सकता है।
ऊपरवाले जबड़े के बड़े सम्मुख दंतों के पीछे एक जोड़ा छोटे सम्मुख दंत होते हैं।
मुख-गुहा में पीछे की ओर चर्वण-दंत होते हैं। इनकी चैड़ी सतहों के बीच खाना चबाया जाता है। ये दांत खाने की सख्त चीजों को चक्की की तरह पीस डालते हैं। जबड़ों मे चर्वण-दंतों और सम्मुख दंतों के बीच कोई दांत नहीं होते । अन्य स्तनधारियों में इस जगह में सुआ-दांत होते हैं। शिकारभक्षी प्राणियों में ये विशेष विकसित होते हैं।
भोजन का चर्वण और दांतों का सम्मुख दंतों, चर्वण-दंतों और सुप्रा-दांतों में विभाजन स्तनधारियों के विशेष लक्षण हैं। बाकी रीढ़धारी प्राणियों में सभी दांत एक-से होते हैं और वे शिकार को पकड़ रखने का काम करते हैं।
भोजन चबाया जाते समय लार से नम हो जाता है। लार-ग्रंथियों से लार रसती है। लार एक पाचक रस है। गरज यह कि स्तनधारियों में भोजन का पाचन मुख-गुहा से ही शुरू होता है।
चबाया और लार से नम किया जाने के बाद भोजन मांसल जबान के सहारे निगला जाता है। गले और ग्रसिका के जरिये भोजन जठर में चला जाता है और इसके बाद पतली तथा मोटी प्रांतों में। पतली प्रांत के प्रारंभिक हिस्से में अग्न्याशय और यकृत् की वाहिनियां खुलती हैं। पतली और मोटी प्रांत के बीच की सीमा से वर्मीफार्म अपेंडिक्स सहित बड़ा सीकम निकलता है।
अधिकांश भोजन का पाचन जठर और पतली प्रांत में होता है। पाचन के लिए अत्यंत कठिन पदार्थ सीकम में रुक जाते हैं और बैक्टीरिया के प्रभाव से विघटित होते हैं।
आंत की कुल लंबाई शरीर की लंबाई से १५ गुनी होती है। लंबी आंत और बड़ा सीकम शाकाहारी स्तनधारियों की विशिष्टता है। इसका कारण यह है कि शाक-भोजन मांस की तुलना में कम पोषक होता है और उसका पाचन उतनी आसानी से नहीं होता। प्राणियों को खानेवाले मांसाहारी प्राणियों में प्रांत काफी छोटी और सीकम कम विकसित होता है।
श्वसनेंद्रियां शशक के सुविकसित फुफ्फुस उसकी वक्षीय गुहा (रंगीन चित्र १४) में होते हैं। इनमें हवा नासा-द्वारों या नथुनों, नासा-गुहा, गले , स्वर-यंत्र और लंबी श्वास-नली तथा श्वास-नलिकाओं से होकर पहुंचती है। श्वास-नली तथा श्वास-नलिकाओं की दीवारों में उपास्थियां होती हैं जिससे ये अंदर धंसती नहीं।
डायफ्राम और पसलियों के बीचवाली पेशियों के संकुचन से वक्षीय गुहा फैलती है और इसके साथ हवा अंदर ली जाती है। पेशियों में ढील आने के साथ वक्षीय गुहा सिमटती है और हवा बाहर फेंकी जाती है।
स्वर-यंत्र उपास्थियों का बना रहता है। स्वर-यंत्र में स्वर-तार होते हैं। ये उपास्थियों के बीच तने रहते हैं। इन तारों के कंपन से शशक की आवाज उत्पन्न होती है।

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

2 days ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

2 days ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

3 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

3 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now