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Categories: BiologyBiology

बतख के बारे में जानकारी हिंदी में बत्तख के अंडे से बच्चे कितने दिन में निकलते हैं Duck in hindi definition

Duck in hindi definition information बतख के बारे में जानकारी हिंदी में बत्तख के अंडे से बच्चे कितने दिन में निकलते हैं ? 

कलहंस , बत्तख और टर्को
कलहंस कलहंसों का संवर्द्धन बड़ा लाभदायी है क्योंकि वे वन में लेकर शरद तक घास-मैदानों और चरागाहों में घास बग्ने हैं। उस समय कलहंसों के लिए व्यवहारतः किनी अतिरिक्त भोजन की आवश्यकता नहीं होती। शरद में अनाजों की फसल कटाई के बाद कलहम खेतों में चर सकते हैं।
पालतू कलहंसों की पैदाइश जंगली भूरे कलहंसों से ही हुई है। पर मनुप्य ने उनमें बहुत परिवर्तन कर दिये हैं। पालतू कलहंस जंगली कलहंमों से बहुत बड़े और मोटे-ताजे होते हैं और उड़ना लगभग नहीं जानते। मनुप्य से तैयार भोजन पाने के आदी होने के कारण उनमें प्रवासी सहज प्रवृत्ति विल्कुल लुप्त हो गयी है।
सोवियत संघ में खोल्मोगोर्क नस्ल के कलहंस सबसे मशहूर हैं (आकृति १३०)। ये बड़े और सफेद पक्षी हैं जिनकी चोंच के मूल में एक गुमटा-सा होता है।
बत्तखें पालतू बत्तखों के पुरखे जंगली वत्तखें हैं। यद्यपि उनमें उनके जंगली पुरखों की बहुत-सी विशेषताएं बची हुई हैं फिर भी दोनों में भिन्नता भी काफी है। मनुष्य ने मुर्गियों और कलहंसों की तरह इन्हें भी बदल डाला है। पालतू बत्तखें जंगली बत्तखों से बड़ी और ज्यादा चरबीदार हो गयी हैं, प्रवासी सहज प्रवृत्ति । खो बैठी हैं और उनकी अंडे देने की क्षमता बढ़ गयी है।
इनकी सर्वोत्तम नस्लें हैं बड़ी पीकिङ बत्तख (प्राकृति १३१) और मास्को सफेद। इन नस्लों के बच्चे बहुत जल्दी बड़े होते हैं और दो ही महीनों की उम्र में उनका वजन २ किलोग्राम तक हो जाता है।
बत्तख जल-पक्षी है और उसका पालन नदियों या तालतलैयों के आसपास किया जाता है। वह तालावों की सतह पर उगनेवाली वनस्पतियां खाती है। ये वनस्पतियां प्रकाश को पानी में पैठने से रोकती हैं। अपनी बीट से बत्तखें तालाव के तल को उपजाऊ बनाती हैं जिससे छोटे ऋस्टेशियनों और जल-कीटों की मात्रा बढ़ने में सहायता मिलती है। इस तरह मछलियों के लिए भोजन तैयार हो जाता है। अतः बत्तख-पालन और मछली-पालन का मिलाप करना बड़ा लाभदायी है। मछलियों वाले चराई-जलाशय में वत्तखें पालने से कार्य-मछलियों की संख्या काफी वडे पैमाने पर बढ़ जाती है।
टर्की टर्कियां उनके रसदार , जायकेदार और नरम सफेद मांस के लिए बड़ी कीमती मानी जाती हैं। ये बड़े आकार के पक्षी हैं। मुर्गियों की तरह इनके भी मजबूत टांगें और छोटे पंख होते हैं।
टर्की के सिर पर और गले के हिस्से पर पर नहीं होते। इनपर मम्मेदार त्वचा का आवरण होता है। चोंच के ऊपर एक मांसल गुमटा होता है। मादाओं की अपेक्षा नर में यह अधिक बड़ा होता है। जब यह पक्षी उत्तेजित हो उठता है तो यह गुमटा और त्वचा रक्तवर्ण हो जाती है।
पालतू टर्कियों के पुरखे जंगली पक्षी हैं। ये आज भी उत्तरी अमेरिका के दक्षिणी हिस्से में पाये जाते हैं। यूरोपीयों द्वारा अमेरिका के आविष्कार के बाद ये पक्षी यूरोप लाये गये। टर्कियों की शरीर-रचना से आज भी देखा जा. सकता है कि ये गरम देशवासी कुल के पक्षी हैं और यूरोप में उनका आगमन अपेक्षतया नया ही है। टर्की के चूजों पर शीत और नमी का बुरा असर पड़ता है, उन्हें यों ही ठंड लग जाती है।
सोवियत संघ में स्तावरोपोल टर्की की एक नस्ल का परिवर्द्धन किया। गया है (इसके नर का वजन १२ किलोग्राम तक होता है)। ये टर्कियां स्थानीय मौसम की आदी हो चुकी हैं और चरागाहों में ही उनका संवर्द्धन किया जाता है (आकृति १३२)।
प्रश्न – १. मनुष्य के प्रभाव में कलहंसों में कैसे परिवर्तन आये ? २. कलहंसों और बत्तखों का पालन क्यों लाभदायी है ? ३. सोवियत संघ में टर्की की कौनसी नस्ल का परिवर्द्धन किया गया है और उससे क्या फायदे होते हैं ?
व्यावहारिक अभ्यास – देख लो कि तुम्हारे इलाके में कलहंसों, बत्तखों और टर्कियों की कौनसी नस्लें पाली जाती हैं और हर नस्ल किस लिए कीमती मानी जाती है।

 पोल्ट्री पालन
कृत्रिम सेहाई पक्षी के भ्रूण के परिवर्द्धन के लिए कुछ विशेष परिस्थिति आवश्यक है। अंडों के सेने के समय यह परिस्थिति उपलब्ध होती है। अंडों पर बैठने हुए मुर्गी उन्हें अपने शरीर की गरमी पहुंचाती है। समय समय पर वह अंडों को उलटती-पुलटती है और घोंसले के अधिक गरम बिचले हिस्से में किनारों पर और फिर वापस लाती-ले जाती है। इसमे अंडों के सभी हिस्सों में एक-सी गरमी पहुंचती है। मुर्गी के पेट के नीचे नम हवा होती है और इससे अंडे सूखते नहीं। मुर्गी समय समय पर अंडों पर से उठकर न्वाना चुगने जाती है और तव अंडों को ताजी हवा भी मिलती है।
इन्हीं स्थितियों – गरमी , काफी नमी , अंडों की उलट-पुलट , हवा की खुली आवाजाही – का प्रबंध , अंडे मेने के एक विशेष साधन में किया गया है। यह साधन इनक्यूबेटर (मेहाई-घर) कहलाता है।
कृत्रिम मेहाई का तरीका हजारों वर्ष पहले मिस्र और चीन में ज्ञात था। यूरोप में यह तरीका १६ वीं सदी में जाकर अपनाया गया। मध्य युग में कैथोलिक चर्च के प्रभाव के कारण विज्ञान के विकास में देर तक रुकावट बनी रही। जब उस समय के एक इटालवी वैज्ञानिक ने इनक्यूबेटर ईजाद किया तो उसे इसकी कीमत लगभग अपनी जिंदगी से हाथ धोकर चुकानी पड़ी और उसका उपकरण धार्मिक न्यायालय ने जला डाला।
रूस में कृत्रिम सहाई का विकास महान् अक्तूबर समाजवादी क्रांति के बाद ही होने लगा। इस समय सोवियत संघ में भिन्न भिन्न प्रकार के इनक्यूबेटर उपलब्ध हैं।
बड़े पोल्ट्री-फार्मों में बड़े बड़े इनक्यूबेटर होते हैं। इन्हें कमरा-इनक्यूबेटर कहते हैं। इनमें एकसाथ दसियों हजार अंडे रखे जा सकते हैं। इनक्यूबेटर में हवा का तापमान भ्रूण के परिवर्द्धन के लिए आवश्यक मात्रा तक रखा जाता है। कमरे की दीवारों में लगाये गये अनेकानेक ताकों पर अंडे रखे जाते हैं। स्थिर तापमान और नमी के रख-रखाव , हवा के संचार और अंडों की उलट-पुलट का काम स्वचालित उपकरणों की सहायता से अपने आप होता है।
इनक्युबेटरों का उपयोग न केवल मुर्गियों के बल्कि बत्तखों, कलहंसों और टर्कियों के अंडों की सेहाई के लिए भी किया जाता है।
चूजों की परवरिश इनक्यूबेटर में परिवद्वित चूजो के लिए विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। उनके लिए वही स्थितियां उपलब्ध करायी जानी चाहिए जो प्राकृतिक नहाई के समय हानी है। सबसे पहले आवश्यक है गरमी। बड़े पोल्ट्री-फार्मों में ग्वान इमान्ने होता है जिनके चूल्हों में आड़ी चिनियां (गरम पौध-घरों की तरह) लगायी जाती हैं। कभी कभी इन इमारतों में उप्णतावाही नल लगाकर सेंट्रल हीटिंग का बंदोवस्त किया जाता है। चूजे इन चिमनियों या नलों के नीचे इकट्ठे हो जाते हैं।
चूजे शीघ्र ही भोजन-पात्रों से खाना चुगने के आदी हो जाते हैं। कुछ समय वाद तो दरवाजे पर मुर्गी-पालिका के दिखाई देते ही वे भोजन-पात्रों की ओर दौड़ने लग जाते हैं। मुर्गी-पालिका का दिखाई देना उनके मस्तिष्क में चुगाई के साथ संबद्ध हो जाता है। इस प्रकार नियमित प्रतिवर्ती क्रियाएं विकसित होती हैं और इससे चूजों के पालन में सरलता आती है।
यदि अच्छी गरमी , योग्य चुगाई और उचित देखभाल का प्रबंध हो तो इनक्यूबेटर के चूजे मुर्गी द्वारा प्राकृतिक रूप से सेये गये चूजों से किसी भी तरह बुरे नहीं होते।
सोवियत संघ में पोल्ट्री-पालन सोवियत संघ में पोल्ट्री-पालन प्राणि-संवर्द्धन की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण शाखा है।
कोलखोजों के अपने पोल्ट्री फार्म हैं। दसियों और गतियों हजार बढ़िया नस्ली मुर्गियों वाले बड़े बड़े राजकीय पोल्ट्री-फार्म नंगठित किये गये हैं। ऐसे फार्मों ने प्रतिवर्ष करोड़ों अंडे मिलते हैं।
इनक्यूबेटर-फार्म कोलखोजों और निजी मुर्गी-पालकों के लिए उत्तम नस्ल की मुर्गियों और बत्तखों के बच्चों का संवर्द्धन करते हैं।
पोल्ट्री-प्लांट बारहों मास ताजे अंडों और मुर्गी-बत्तखों के मांस की सपलाई करते हैं। यहां बड़ी बड़ी इमारतों में स्थित बहुमंजिला पिंजड़ों (बैटरियों) में (प्राकृति १३३) लाखों-लाख मुर्गियां रहती हैं। उचित तापमान , योग्य चुगाई और कृत्रिम रोशनी के बंदोबस्त की बदौलत ये मुर्गियां बारहों मांस अंडे देती हैं और इनक्यूबेटर बराबर उनको सेते रहते हैं। इससे सतत नये चूजे पैदा होते रहते हैं।
नस्ली-फार्म भी कायम किये गये हैं जो कोलखोजों को बरावर उत्कृष्ट नस्ल की मुर्गी-बत्तखों की सपलाई करते रहते हैं।
प्रश्न – १. पक्षी के भ्रूण के परिवर्द्धन के लिए कौनसी स्थितियां आवश्यक हैं और इनक्यूबेटर में उनका प्रबंध कैसे किया जाता है ? २. सेनेवाली मुर्गी की तुलना में इनक्यूबेटर किस माने में अधिक सुविधाजनक है ? ३. कृत्रिम रीति से सेये गये चूजों की परवरिश कैसे की जाती है ?
व्यावहारिक अभ्यास – इनक्यूबेटर-केंद्र से कुछ चूजे ले आओ और उनकी परवरिश करो।

Sbistudy

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