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Categories: Biology

Greater Initial Capital hypothesis in hindi , वृहद् प्रारम्भिक पूँजी परिकल्पना क्या है जीव विज्ञान

वृहद् प्रारम्भिक पूँजी परिकल्पना क्या है जीव विज्ञान Greater Initial Capital hypothesis in hindi ?

संकर ओज एवं अंतःप्रजनन अवनमन के कारण (Causes of Hybrid Vigour and Inbreeding depression)

दो अलग-अलग जनकों में क्रॉस करवाने से संतति पीढ़ी में विकसित संकर ओज की उत्पत्ति के, एवं स्वरागण द्वारा संपादित अंत:प्रजनन से संतति पीढ़ी में ओज एवं गुणवत्ता के हास के क्या कारण हैं ? इन कारणों को समझाने एवं इनका सुव्यवस्थित अध्ययन करने के लिए विभिन्न वैज्ञानिकों ने अलग-अलग अवधारणाएँ प्रक्रियाएँ हैं, एक की वृद्धि का ऋणात्मक प्रभाव दूसरी प्रक्रिया पर देखा जा सकता है। वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत प्रस्तुत की हैं। उपरोक्त विचारधाराओं के अनुसार संकर ओज, एवं अंतःप्रजनन अवनमन एक दूसरे से सम्बन्धित अवधारणाओं के अनुसार पौधों में संकर ओज के विकास को (A) आनुवंशिक एवं (B) कार्यिकी दोनों स्तरों पर समझाया जा सकता है। इसकी व्याख्या करने के लिए प्रस्तुत सिद्धान्त एवं विचारधाराएँ निम्न प्रकार से हैं : (1) प्रभाविता परिकल्पना ( Dominance hypothesis ) : यह विचारधारा सर्वप्रथम डेवनपोर्ट (Davenport 1908) द्वारा प्रस्तुत की गई थी, इसका समर्थन एवं विस्तार ब्रूस (Bruce, 1910), एवं कीबल तथा पेलीयू (Keeble and Pelleu) द्वारा किया गया। इस परिकल्पना के अनुसार-

(A) प्रभावी एवं अप्रभावी विकल्पी जीन अलग-अलग बिन्दुओं (Loci) पर अवस्थित होते हैं ।

(B) प्रभावी जीन आने वाली पीढ़ी में उत्तम गुणवत्ता उत्पन्न करते हैं, जबकि अप्रभावी युग्म-विकल्पियों के द्वारा हानिकारक प्रभाव परिलक्षित होते हैं।

(C) विषमयुग्मजी अवस्था में प्रभावी युग्मविकल्पी जीन के लाभदायक प्रभाव के कारक, हानिकारक प्रभाव छिप (Masked) जाते हैं।

उपरोक्त तथ्यों के अनुसार F, संकर पीढ़ी में समाहित या एकत्र होते हैं, तभी संकर ओज (Hybrid vigour) परिलक्षित होता है। यदि जनक पीढ़ी के दोनों अलग-अलग सहभागियों अर्थात् माता एवं पिता में अलग-अलग प्रभावी जीन हों तो ये सभी या इनमें से अधिकांश जीन संकर संतति पीढ़ी में आ जाते हैं। यही कारण है कि संकर संतति पीढ़ी में किसी भी जनक की तुलना में अत्यधिक प्रभावी जीन उपस्थित होते हैं। उदाहरण के तौर पर किसी पौधे में प्रभावी जीन के कारण लम्बाई 5 cm एवं अप्रभावी जीन के कारण 2 cm की वृद्धि होती है, तो संकर संतति पौधे मे अग्रांकित अवस्था प्रदर्शित होगी-

(यहाँ अप्रभावी जीन, प्रभावी जीन्स की उपस्थिति के कारण अभिव्यक्त नहीं हो पात, एव प्रभावी जीनों के एकत्र होने से संकर की लम्बाई अधिक होती है ।)

इसी प्रकार क्रास – II में, जैसा नीचे प्रदर्शित है-

उपरोक्त व्याख्या से यह भी स्पष्ट होता है कि संकर पीढ़ी में एक जनक सहभागी में उपस्थित हानिकारक अप्रभावी जीन्स, दूसरे जनक के प्रभावी जीन्स की उपस्थिति में दब या छिप जाते हैं, अर्थात् अभिव्यक्त नहीं हो पाते। यह भी देखा गया है कि एकसमान जीन प्ररूप ( जीनोटाइप) के क्रॉस द्वारा उत्पन्न संकर पौधों में संकर ओज बहुत कम या नहीं के बराबर होता है, जबकि अलग-अलग जीन प्ररूप (जीनोटाइप) के क्रॉस द्वारा उत्पन्न संकर पौधों में संकर ओज की मात्रा अधिक होती है, क्योंकि ये अंतःप्रजात, दूसरों की तुलना में एक-दूसरे के अच्छे सम्पूरक (Complementary) साबित होते हैं।

प्रभाविता परिकल्पना की दो प्रमुख कमियाँ मानी गई हैं-

(1) यदि इस अवधारणा की सच्चाई को मान लिया जावे, तो इसके अनुसार सभी इच्छित प्रभावी जीनों के समयुग्मजी पौधे प्राप्त करना सम्भव हो सकता है। ऐसे पौधों मे F, पीढ़ी के समान या इससे भी अधिक ओज (Vigour) होना चाहिए परन्तु ऐसा परिणाम आज तक भी उपलब्ध नहीं है।

(2) यदि संकर पौधों में ओज की अभिव्यक्ति केवल प्रभावी जीनों की उपस्थिति के कारण ही सम्भव होती है, तो इसके बाद F, पीढ़ी में ओज की उपस्थिति स्क्यूड वितरण (Skewed Distribution) के अनुरूप होनी चाहिए, क्योंकि F, पीढ़ी में प्रभावी एवं अप्रभावी लक्षण – प्ररूपों की अवस्था संभावित है (यहाँ n = जीनों की संख्या है ) ।

उपरोक्त प्रतिकारों के संशोधन हेतु जोन्स (Jones, 1917) के द्वारा इस अवधारणा का अन्य प्रारूप प्रस्तुत किया गया। इसे प्रभावी वृद्धि कारकों की सहलग्नता (Linkage of dominant growth factors) की अवधारणा कहते हैं। इसके अनुसार एक क्रोमोसोम पर वृद्धि के लिए उपस्थित अनेक वांछित लक्षणों हेतु उत्तरदायी प्रभावी जीन्स के साथ अनेक हानिकारक अप्रभावी जीन्स भी सलग्न (Linked) स्थिति में पाये जाते हैं, जिनका पृथक्करण (Seggregation) संभव नहीं होता। यही कारण है कि संकरण की प्रक्रिया मे हमेशा संकर ओज प्रदर्शित नहीं हो सकता है।

(2) अतिप्रभाविता परिकल्पना (Over dominance hypothesis) : यह अवधारणा शल (Shull की 1903) एवं ईस्ट (East 1908) द्वारा अलग-अलग प्रस्तुत की गई थी। इस विचारधारा के अनुसार विषमयुग्मजी जीन रूप (Genotype), समयुग्मजी से बेहतर होते हैं तथा जैसे-जैसे विषमयुग्मजता (Heterozygosity) मात्रा बढ़ती है तो इसके साथ ही संकर ओज की बढ़ोत्तरी भी होती है। इसके अनुसार यदि देखा जावे तो समयुग्मजी जीन प्ररूपों B, B, व B, B, की तुलना में विषमयुग्मजी प्ररूप B, B, बेहतर होते हैं। यहाँ जान B B, अलग-अलग लक्षणों को नियंत्रित करते हैं, इसीलिये अंत:प्रजातों (Inbreds) की तुलना में विषमयुग्मजी अधिक ओज युक्त होते हैं। ईस्ट (East 1936) ने इस अवधारणा का एक अन्य संशोधित प्रारूप “वृद्धि कारकों की अंतर्विकल्पी श्रृंखला की परिकल्पना” (Interallelic series of growth factors) के नाम से प्रस्तुत किया था। इसके अनुसार A, A2A, एवं A इत्यादि यदि बढ़ती हुई अपसारिता (Increasing divergence) वाले युग्मविकल्पी हैं तो विषमयुग्मजी प्रारूपों की बेहतर गुणवत्ता में वृद्धि, इसमें भाग ले रहे युग्मविकल्पियों की अपसारिता के साथ ही अग्रसर होती है, जैसे A, AA, AAA अर्थात् A, A विषमयुग्मजी प्ररूप सर्वाधिक संकर ओज युक्त होगा।

संकर ओज के लिए प्रस्तुत उपरोक्त दोनों आनुवंशिक अवधारणाओं (प्रभाविता एवं अतिप्रभाविता परिकल्पना) में अनेक बिंदुओं जैसे – (1) अंत:प्रजनन द्वारा अंत:प्रजनन अवनमन की बढ़ोत्तरी (2) पर-परागण द्वारा संकर ओज एवं जनन क्षमता वृद्धि, एवं (3) अधिकाधिक आनुवंशिक भिन्नताओं के कारण संकर ओज में वृद्धि इत्यादि तथ्यों की समानता है। परन्तु दोनों में सबसे बड़ा अन्तर यह है कि प्रभाविता परिकल्पना के अनुसार विषमयुग्मजी प्ररूप समयुग्मजी प्ररूपों (Dominant Homozygotes) के समान होते हैं, जबकि अतिप्रभाविता परिकल्पना के अनुसार विषमयुग्मजी प्ररूप सदैव ही समयुग्मजी प्ररूपों की तुलना में श्रेष्ठ होते हैं।

प्राय: यह समझा जाता है कि संकर, ओज, प्रभावी जीन की अभिव्यक्ति का परिणाम है । परन्तु इसमें समय-समय पर जीनों की अन्योन्यक्रिया (Gene interaction) जैसे प्रबलता (Epistasis) का भी योगदान रहता है।

(B) संकर ओज सम्बन्धी कार्यिकी अवधारणाएँ (Physiological concepts about Hybrid Vigour)

(I) संतुलित उपापचयं परिकल्पना (Balanced metabolism hypothesis)

इस अवधारणा के अनुसार संकर पौधों में ओज की वृद्धि, इनमें वृद्धिकारी हारमोन्स, विटामिन्स एवं एन्जाइम्स की संतुलित मात्रा के कारण संभव होती है। इस तथ्य की पुष्टि हेतु रॉबिन्स (Robins 1952) द्वारा संकरण प्रयोगों के अंतर्गत दोनों जनक प्ररूपों का अध्ययन किया गया। इसके लिए उसने वृद्धिकारी हारमोन्स, एन्जाइम्स एवं विटामिन का विश्लेषण दोनों जनक प्ररूपों में किया तथा यह बताया कि संकरण क्रिया में सहभागी दोनों जनकों में एक या दो वृद्धिकारी हारमोन कम थे, परन्तु संकरण या क्रॉस के पश्चात् प्राप्त संतति पीढ़ी में इनकी मात्रा सामान्य थी। इसका अर्थ यह हुआ है कि यदि नर जनक में हारमोन A उपस्थित एवं B अनुपस्थित था और मादा जनक में हारमोन B उपस्थित एवं A अनुपस्थित था, तो संकरण के बाद उत्पन्न संतति में AB दोनों ही हारमोन उपस्थित थे। A के लिए, जीन, नर जनक, एवं B के लिए मादा जनक से प्राप्त होगी।

(2) वृहद् प्रारम्भिक पूँजी परिकल्पना (Greater Initial Capital hypothesis)

यह अवधारणा एश्बी (Ashby 1930-1940) द्वारा प्रस्तुत की गई थी। इसके अनुसार संकरण के पश्चात् प्राप्त संतति पौधे में प्रारम्भिक भ्रूण के बड़े आकार के कारण ही संकर ओज की मात्रा अधिक होती है। दूसरे शब्दों में भ्रूण के बड़े आकार के प्रारम्भिक लाभ (Greater Initial Capital) के कारण ही संकर ओज की मात्रा संत पौधों में अधिकाधिक संभव होती है । एश्बी ने अपनी विचारधारा के समर्थन में मक्का एवं टमाटर के बीजों का उदाहरण दिया. जिनके बीज में भ्रूण का आकार यदि बड़ा होता है तो उनसे उत्पन्न पौधों में संकर ओज भी ज्यादा होती है । परन्तु अनेक वैज्ञानिकों ने इस विचारधारा से असहमति प्रकट की है। ईस्ट (East 1936) ने यह बताया कि कभी-कभी संकर पौधों में बीज का आकार, जनक पौधों में बीज के आकार से भी छोटा होता है।

( 3 ) कोशिकाद्रव्यक-केन्द्रकीय अन्योन्यक्रिया परिकल्पना (Cytoplasm Nucleus Interaction Hypothesis):

अनेक सुविख्यात पादप प्रजनन विज्ञानियों, जैसे लेविस (Lewis ), शल (Shull) एवं माइकेलिस (Michaelis) के अनुसार वस्तुतः पौधों में संकर ओज (Hybrid vigour) की उत्पत्ति एवं विकास इनकी कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य एवं केन्द्रकीय प्रणालियों के बीच अन्योन्यक्रिया (Interaction) के कारण संभव होता है। यहाँ विशेष तथ्य यह है कि मादा जनक के कोशिका द्रव्य में प्रायः आर. एन. ए. एवं माइटोकॉन्ड्रिया की मात्रा अधिक होती. है, तथा ये संरचनाएँ संतति पौधों में मादा जनक से आती हैं, अतः केन्द्रकीय गुणसूत्री जीन्स एवं कोशिकाद्रव्यी घटकों की परस्पर अभिक्रिया संकर ओज को विकसित करती है। इस क्षेत्र में और अधिक विस्तृत अध्ययन धवन एवं पालीवाल (Dhawan and Paliwal) द्वारा मक्का की फसल में संकर ओज को समझाने के लिए किये गये

संकर ओज के व्यवहारिक अनुप्रयोग एवं सीमाएँ (Practical Applications and Limitations of Hybrid Vigour)

  1. संकर ओज एवं स्वपरागित फसलें (Hybrid vigour and Self pollinated crops) : हालाँकि संकर ओज के महत्त्व को देखते हुए, व्यावसायिक स्तर पर संकर बीजों को तैयार करवाया जाता है, परन्तु स्वपरागित फसलों में संकर ओज की महत्ता परपरागित फसलों की तुलना में कम है, क्योंकि इनमें हस्तविपुंसन एवं हस्तपरागण जैसी प्रक्रियाएँ अत्यन्त खर्चीली एवं श्रमसाध्य हैं। परन्तु पॉल एवं सिक्का द्वारा विपुंसन की रासायनिक एवं आनुवंशिक विधियों के अनुप्रयोग द्वारा इस कठिनाई को हल कर लिया गया है।
  2. संकर ओज एवं परपरागित फसलें (Hybrid vigour and Cross pollinated crops) : हालाँकि संकर ओज का सर्वाधिक व्यवहारिक अनुप्रयोग पर – परागित फसलों में होता है, फिर भी पर- परागण एवं मेण्डलीय पृथक्करण के कारण आने वाली पीढ़ियों में संकर ओज का निष्पादन समान स्तर पर करना कठिन होता है । इस बाधा को दूर करने के लिए अंतःप्रजात जनक पौधों का निष्पादन करना एवं किसानों द्वारा प्रतिवर्ष फसल प्राप्ति के लिए ताजा बीजों की बुवाई ही एकमात्र हल है।

III. संकर ओज एवं कायिक प्रवर्धित फसलें (Hybrid vigour and vegetatively propagated crops) : विपुंसन एवं सकरण जैसी कठिनाइयों का सामना कायिक प्रवर्धित फसलों में नहीं करना पड़ता, क्योंकि ऐसे पौधों में इच्छित लक्षणों का समावेश हो जाने के बाद इनका गुणन कायिक जनन द्वारा किया जाता है। यहाँ अवांछित लक्षणों का समावेश केवल कायिक उत्परिवर्तन (Somatic Mutation) द्वारा ही हो सकता है।

संकर ओज की उपलब्धियाँ (Achievements of Hybrid vigour)

आजकल अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए पौधों एवं जन्तुओं में बड़े पैमाने पर संकर ओज का उपयोग किया जा रहा है। परन्तु पौधों में इसका व्यावहारिक अनुप्रयोग बड़ी मात्रा में हो रहा है, कुछ उदाहरण निम्न प्रकार से हैं

(A) फसलोत्पादक पौधों में उपलब्धियाँ (Achievements in crop plants)

(1 ) बाजरा (Pennisetum) में संकर किस्म नं. 1 HB – 1, MBH – 110, व PHB-101

( 2 ) कपास (Gossypium) – में वरलक्ष्मी एवं H-4 किस्म ।

( 3 ) ज्वार ( Sorghum vulgare) – में CSH-1 व CSH-2 ।

( 4 ) आलू (Solanum tuberosum) — की सभी संकर किस्में ।

( 5 ) बैंगन (Solanum melongena) – में विजय ।

( 6 ) मिर्च (Capsicum annum)— में चमत्कार किस्म।

(7) मक्का (Zea mays) में जवाहर, गंगा, एवं विकास किस्में ।

( 8 ) आम (Mangifera indica) में आम्रपाली एवं मल्लिका।

उपरोक्त सभी उदाहरण पौधों में संकर ओज की उपयोगिता को परिलक्षित करते है, इसके अतिरिक्त चारा उत्पादक घासों जैसे (Pusa Napier, Giant Grass एवं NB-21) आदि को भी ओज की उपलब्धि के अन्तर्गत रखा जा सकता है।

(B) पशुओं में उपलब्धियाँ (Cattle achievements) :

गायों की जर्सी, आयरशायर साहीवाल, स्विस – साहीवाल, सिंधी इत्यादि संकर ओज द्वारा सुधारी गयी नस्लें हैं। इसके अतिरिक्त रेशम के कीड़े (Silkworm), मुर्गियाँ, सुअर, घोड़ों इत्यादि की नस्लों को भी संकर ओज द्वारा सुधारा गया है।

अभ्यास-प्रश्न

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न :

(Very short answer questions / Fill in the blanks) :

  1. किसने हेटेरोसिस शब्द को किसने प्रतिपादित किया था ?
  2. जब किसी पादप में आनुवंशिक कारकों के अतिरिक्त अन्य किसी कारण से अस्थायी ओज के गुण पाये जावें तो इसे क्या कहा जाता है ?

3.संकर ओज हेतु प्रभाविता परिकल्पना विचारधारा किसने दी थी ?

  1. संकर ओज की कृष्य पौधों में कोई दो उपलब्धियाँ बताइये ।
  2. अतिप्रभाविता परिकल्पना को परिभाषित कीजिये ।
  3. शल द्वारा, संकर ओज को समझाने के लिये किये गये प्रयोग को बताइये ।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Questions ) :

  1. अंत प्रजनन अवनमन की व्याख्या कीजिये ।
  2. संकर ओज के कार्यिकी कारण की विवेचना कीजिये ।
  3. संकर ओज की उपयोगिता एवं सीमाएं बताइये ।
  4. प्रभाविता परिकल्पना को समझाइये ।
  5. – हेटेरोसिस पर टिप्पणी लिखिये ।
  6. हेटेरोसिस की पादप प्रजनन में उपयोगिता पर प्रकाश डालिये।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay type Questions) :

1.संकर ओज को परिभाषित करते हुए इसके कारण एवं उपलब्धियों की चर्चा कीजिये ।

2.संकर ओज की व्याख्या हेतु प्रस्तुत विभिन्न अवधारणाओं का वर्णन कीजिये।

  1. अत: प्रजनन अवनमन को परिभाषित करते हुए इसका विस्तृत विवरण दीजिये।

उत्तरमाला (Answers)

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न :

  1. जी. एच. शल
  2. कूट हेटरोसिस
  3. डेवनपोर्ट ने
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