अंतर्राकाशी यौगिक :
संक्रमण तत्व अंतर्राकाशी यौगिक बनाते है।
व्याख्या :
संक्रमण तत्व जब एक दूसरे के नजदीक आते है तो उनके मध्य कुछ रिक्त स्थान शेष रह जाता है इसे अंतर्राकाशी स्थान कहते है।
अंतर्राकाशी स्थान में छोटे आकार के परमाणु जैसे H , B , C , N आदि के समा जाने से जो यौगिक बनते है उसे अंतर्राकाशी यौगिक कहते है।
अंतर्राकाशी यौगिको के गुण :
- कठोरता बढ़ जाती है।
- गलनांक अधिक हो जाता है।
- घनत्व अधिक हो जाता है।
- क्रियाशीलता कम हो जाती है।
- चालकता में परिवर्तन नहीं होता।
उत्प्रेरक :
अधिकांश संक्रमण तत्व उत्प्रेरक के रूप में काम आते है।
व्याख्या :
- इनमे आंशिक भरे हुए d कक्षक होते है।
- ये परिवर्तित संयोजकता प्रदर्शित करते है।
मिश्र धातु :
दो या दो से अधिक धातुओं के विलयन को मिश्र धातु कहते है।
जैसे : पीतल (कॉपर + Zn) , कांसा (Cu + Sn )
अधिकतर संक्रमण तत्व मिश्र धातु बनाते है।
व्याख्या :
संक्रमण तत्वों के आकार लगभग समान होने के कारण इनके क्रिस्टल जालको में से परमाणु एक दूसरे को प्रतिस्थापित कर देते है।
आयनन एन्थैल्पी :
किसी गैसीय उदासीन परमाणु की आखिरी कक्षा से इलेक्ट्रॉन को बाहर निकालने के लिए आवश्यक ऊर्जा को आयनन एन्थैल्पी कहते है।
किसी तत्व की प्रथम , द्वितीय , तृतीय , आयनन एन्थैल्पी में से तृतीय आयनन एन्थैल्पी सबसे अधिक होती है (आकार छोटा होने के कारण)
प्रश्न 1 : Cu की द्वितीय आयनन एन्थैल्पी Zn की द्वितीय आयनन एन्थैल्पी से अधिक होती है।
उत्तर : Cu = [Ar] 3d10 4S1
Cu+ = [Ar] 3d10 4S0
Zn = [Ar] 3d10 4S2
Zn+ = [Ar] 3d10 4S1
Cu में 3d10 के कारण द्वितीय आयनन एन्थैल्पी अधिक होती है।
प्रश्न 2 : Mn की तृतीय आयनन एन्थैल्पी Fe की तृतीय आयनन एन्थैल्पी से अधिक होती है।
उत्तर : Mn = [Ar] 3d5 4S2
Mn2+ = [Ar] 3d5 4S0
Fe = [Ar] 3d6 4S2
Fe2+ = [Ar] 3d6 4S0
Mn2+ में 3d5 कक्षक अर्द्धपूर्ण होने के कारण अधिक स्थायी होता है अतः Mn की तृतीय आयनन एन्थैल्पी अधिक होती है।
कणन एन्थैल्पी :
धातु को परमाणुओं में विभक्त करने के लिए आवश्यक ऊर्जा को कणन एन्थैल्पी कहते है , बाएं से दाएं जाने पर पहले अयुग्मित इलेक्ट्रॉन की संख्या बढ़ती है , प्रति परमाणु बँधो की संख्या बढ़ती जाती है परमाणु अधिक नजदीक आते जाते है अतः कणन एन्थैल्पी तथा गलनांक बढ़ते जाते है।
Mn के पश्चात् अयुग्मित इलेक्ट्रॉन की संख्या कम होती जाती है प्रति परमाणु बंधो की संख्या कम होती जाती है अतः गलनांक व कणन एन्थैल्पी कम होती जाती है।