problem solving method in hindi in teaching समस्या समाधान विधि क्या है , समस्या समाधान की परिभाषा किसे कहते हैं ?
समस्या समाधान विधि क्या है ? इसमें कौन-से पद होते हैं ? इसके गुण-दोष लिखिये।
What is problem solving method ? What are the steps involved in it ? Write its merits and demerits.
उत्तर- रसायन विज्ञान-शिक्षण में समस्या-समाधान विधि (Problem Solving Method in Chemistry Teaching) – इस प्रणाली का जन्म प्रयोजनवाद के फलस्वरूप हुआ। इसका आधार ह्यरिस्टिक विधि की तरह है। सबसे पहले अध्यापक कक्ष में बालकों के सामने कोई समस्या समाधान के लिए रखता है। यह समस्या उनके पाठ से सम्बन्धित होती है। इसके बाद विद्यार्थी मिलकर वाद-विवाद के द्वारा उस समस्या का हल ढूढने की कोशिश करते हैं। वे एक वैज्ञानिक की भाँति तरह-तरह के प्रयास करते हैं और जब तक उसका समाधान नहीं खोज लेते हैं, तब तक कोशिश करते रहते हैं।
वुडवर्थ (Woodworth) – “समस्या समाधान उस समय प्रकट होता है जब उद्देश्य की प्राप्ति में किसी प्रकार की बाधा पड़ती है। यदि लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग सीधा और आसान हो तो समस्या आती ही नहीं।”
जार्ज जॉनसन (George Johnson) – “मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने का सर्वोत्तम ढंग वह है जिसके द्वारा मस्तिष्क के समक्ष वास्तविक समस्याएँ उत्पन्न की जाती हैं और उसको उनका समाधान निकालने के लिए अवसर तथा स्वतंत्रता प्रदान की जाती है।”
गेट्स तथा अन्य (Gates and others) – “समस्या समाधान, शिक्षण का एक रूप है जिसमें उचित स्तर की खोज की जाती है।‘‘
स्किनर (Skinner) – “समस्या समाधान एक ऐसी रूपरेखा है जिसमें सृजनात्मक चिंतन तथा तर्क होते हैं।‘‘
समस्या समाधान विधि के सोपान या चरण-अध्यापक को समस्या समाधान विधि में कुछ विशेष क्रमबद्ध प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। ये निम्न हैं-
(प) सपस्या का चयन करना (Selection of Problem) – सर्वप्रथम शिक्षक को विज्ञान के विषय में से उन प्रकरणों का चयन करना पड़ेगा जो समस्या विधि की सहायता से पढ़ाये जा सकते हैं, क्योंकि सभी प्रकरण (Topic) समस्या समाधान विधि से नहीं पढ़ाये जा सकते।
(पप) समस्या से सम्बन्धि तरयों का एकत्रीकरण एवं व्यवस्था (Collection & Organisation of Facts Regarding Problem) — समस्या से सम्बन्धित तथ्यों को एकत्रित करना भी अति आवश्यक है। यदि साधन ही अस्पष्ट होंगे तो हम इस विधि से जितना लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, वह प्राप्त नहीं कर सकेंगे।
(पपप) समस्या का महत्व स्पष्ट करना (Classifying the Importance of the Problem) — यदि विद्यार्थियों को समस्या के महत्व का पता नहीं होगा तो वे समस्या में कभी भी रुचि नहीं लेंगे। विद्यार्थियों का समस्या में रुचि न लेने से समस्या का कभी भी सही हल नहीं निकल सकता।
(पअ) तथ्यों की जाँच तथा संभावित हलों का निर्णय (Evaluation of Facts and Decision about Possible Solutions) – अब समस्या से सम्बन्धित तथ्यों की जाँच की जाती है और यह पता लगाया जाता है कि उनमें से कौन से तथ्य समस्या के अनुरुप हैं और किन तथ्यों को अस्वीकृत किया जा सकता है। तथ्यों की जाँच के उपरान्त ही समस्या का हल निकालने का प्रयत्न किया जाता है। यदि किसी समस्या का हल कई प्रकार से निकलता है तो शिक्षक और विद्यार्थी दोनों मिलकर सबसे सही हल ढूंढने का प्रयत्न करेंगे। तथ्यों का आलोचनात्मक विश्लेषण, समालोचन तथा विचार-विमर्श किया जायेगा और तत्पश्चात् निष्कर्ष पर पहुंचा जायेगा।
(अ) सामान्यीकरण एवं निष्कर्ष निकालना (Generalçation and Conclusion) – सामान्यीकरण से निष्कर्षों के सत्यापन में सहायता मिलती है। इसके साथ ही यह जानने के लिए प्रेरणा मिलती है कि ये निष्कर्ष प्रयोग में लाये जा सकते हैं या नहीं।
(अप) निष्कर्षों का मूल्यांकन एवं समस्या का लेखा-जोखा बनाना (Evaluation of Result & Preparing Records of the Problem) – अन्त में समस्या के समाधान हेतु विद्यार्थी व शिक्षक जिस निष्कर्ष या परिणाम पर पहुंचते हैं उसका मूल्यांकन किया जाता है।
समस्या समाधान विधि की विशेषताएँ-
(प) सूझबूझ या अन्तर्दृष्टिपूर्ण (Insightful) – यह विधि सूझबूझपूर्ण वाली विधि है क्योंकि इसमें चयनात्मक और उचित अनुभवों का पुनर्गठन सम्पूर्ण हल में किया जाता है।
(पप) सृजनात्मक (Creative) – इस विधि में विचारों आदि को पुनर्गठित किया जाता है, इसलिए इस विधि को सृजनात्मक माना जाता है।
(पपप) चयनात्मक (Selective) – इस विधि की प्रक्रिया इस दृष्टि से चयनात्मक है कि सही हल ढूंढने के लिए चयन तथा उपयुक्त अनुभवों को स्मरण किया जाता है।
(पअ) आलोचनात्मक (Critical) – यह विधि आलोचनात्मक है क्योंकि यह अनुपात या प्रयोगात्मक हल का पर्याप्त मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक है।
(अ) लक्ष्य-केन्द्रित विधि (Goal – oriented Method) – इस विधि का एक विशिष्ट लक्ष्य होता है । लक्ष्य ही बाधा को दूर करना होता है।
समस्या समाधान विधि के गुण-
(प) वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास (Development of Scientific Attitude) – विधि से विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है। वे मुद्रित पाठों का प्रधानकरण नहीं करते और पुस्तकीय ज्ञान पर आश्रित नहीं रहते।
(पप) जीवन की समस्याओं को सुलझाने में सहायक (Helpful in Solving the Dattlems of Life) – प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पडता है। विद्यालय में समस्याओं के समाधान के प्रशिक्षण प्राप्त करने से विद्यार्थियों में ऐसे सोशल व अनुभव आ जाते हैं जिससे वे जीवन की समस्याओं का समाधान करना सीखते हैं।
(पपप) तथ्यों का संग्रह और व्यवस्थित करना (Collection and Organisation of Data) – इस विधि से विद्यार्थी तों को एकत्रित करना सीखते हैं तथा इन एकत्रित तथ्यों को एकत्रित करने के पश्चात् उन्हें व्यवस्थित करना भी सीखते हैं।
(पअ) अनुशासन को बढ़ावा (Collection and Organisation of Data) – इस विधि से अनुशासन-प्रियता को बढ़ावा मिलता है। प्रत्येक विद्यार्थी समस्या का हल निकालने में ही जुटा रहता है। अतः उसके पास अनुशासन भंग करने का अवसर ही नहीं होता।
(अ) स्वाध्याय की आदत का निर्माण (Formation of Habit of Self-Study) – इस विधि से बालकों में स्वाध्याय की आदत का निर्माण होता है जो आगे जीवन में बहुत लाभकारी सिद्ध होता है।
(अप) स्थायी ज्ञान (Permanent Knowledge) – इस विधि द्वारा अर्जित ज्ञान विद्यार्थियों के पास स्थायी रूप से रहता है, क्योंकि विद्यार्थियों ने स्वयं समस्या का समाधान ढूंढकर इस ज्ञान को अर्जित किया होता है।
(अपप) पथ-प्रदर्शन (Guidance) – इस विधि से शिक्षक और शिक्षार्थी को एक-दूसरे के निकट आने का अवसर मिलता है। इस विधि में शिक्षक के पथ-प्रदर्शन का महत्वपूर्ण स्थान है। समस्या का समाधान ढूंढने के लिए विद्यार्थी समय-समय पर शिक्षक की सहायता लेता है।
(अपपप) विभिन्न गुणों का विकास (Development of Various Qualities) – समस्या समाधान विधि बालकों में सहनशीलता (च्ंबजपमदबम), उत्तरदायित्व को भावना (Sense of Responsibility), व्यवहारिकता (Practicability), व्यापकता (Broad Mindedness), गंभीरता (Seriousness), दूरदर्शिता (Farsightedness) आदि अनेक गुणों को जन्म देती है।
समस्या समाधान विधि के दोष
(प) संदर्भ सामग्री का अभाव (Lack of Reference Materials)- इस विधि में विद्यार्थी को बहुत अधिक संदर्भ सामग्री की आवश्यकता पड़ती है जो आसानी से उपलब्ध नहीं होती। कई ऐसी पुस्तकें समस्या का समाधान ढूंढने में आवश्यक होती हैं जो प्रायः विद्यालय के पुस्तकालय में नहीं होती।
(पप) चयनित अंशों का अध्ययन (Study of Selected Portions) – विद्यार्थी सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का अध्ययन न कर केवल उन्हीं अंगों का अध्ययन करते हैं जो उनकी चुनी हुई समस्या से सम्बन्धित है।
(पपप) नीरस शैक्षणिक वातावरण (Dull Educational Environment) – इस विधि का कक्षा में अधिक प्रयोग होने से सम्पूर्ण शैक्षणिक वातावरण में नीरसता आ जाती है। जब विद्यार्थी किसी एक समस्या पर कई दिन या कई सप्ताह कार्य करते है तो उस समस्या से उनकी रुचि समाप्त हो जाती है क्योंकि बालक स्वभाव से ही विभिन प्रकार के कार्यों में भाग लेना चाहते हैं।
(पअ) निर्मित समस्याओं का वास्तविक जीवन की समस्याओं से तालमेल का अभाव (Lack of Co-ordination between Created Problems and Actual Problems) – कई बार कक्षा में निर्मित समस्यायें वास्तविक जीवन की समस्याओं से नहीं खाती जिसके परिणामस्वरूप विद्यार्थी व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ रहने ।
(अ) प्राथमिक कक्षाओं के लिए अनुपयुक्त (Not Fit for Primary Classes) – यह विधि प्राथमिक कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है, क्योंकि इन कक्षाओं के विद्यार्थियों का मानसिक स्तर इतना ऊंचा नहीं होता कि वह समस्या का चुनाव कर सकें तथा समस्याओं का हल निकाल सकें।
(अप) समस्या का चुनाव एक कठिन कार्य-रसायन विज्ञान-शिक्षण में समस्या समाधान विधि का उपयोग इसलिए भी दोषपूर्ण या सीमित है क्योंकि समस्या का चुनाव करना बहुत ही कठिन कार्य होता है। प्रत्येक विद्यार्थी या शिक्षक समस्या का चुनाव नहीं कर सकता।
(अपप) संतोषजनक परिणामों का अभाव (Lack of Satisfactory Results) – इस विधि से प्रायः संतोषजनक परिणाम भी प्राप्त नहीं होते। कई बार विद्यार्थियों के मन में ऐसी बात आती है कि वह व्यर्थ ही समय नष्ट कर रहा है या जो परिणाम निकाला गया है उसका समस्या के साथ ठीक तरह से तालमेल नहीं बैठता।
(अपपप) अधिक समय खर्च होना (Requires More Time) – इस विधि द्वारा समस्या के समाधान ढूंढने में विद्यार्थी का समय बहुत अधिक खर्च हो जाता है। इससे हमेशा यह भय बना रहता है कि पाठ्यक्रम पूरा होगा भी या नहीं।
(पग) अनुभवी शिक्षकों की आवश्यकता (Experienced Teachers are Required) – रसायन विज्ञान शिक्षण में समस्या-समाधान विधि के प्रयोग के लिए कुशल, योग्य एवं अनुभवी शिक्षकों की आवश्यकता होती है जो कि समस्या का सावधानी से चुनाव कर सकें। लेकिन वास्तव में ऐसे गुणी शिक्षकों का अभाव ही रहता है।
समस्या समाधान विधि के लिए सुझाव-
1. समस्या देने से पूर्व इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि समस्या बालको के मानसिक स्तर की हो तथा उनके अनुभवों पर आधारित हो।
2. पहले बालकों को सरल, फिर कठिन समस्या देनी चाहिए ताकि वे धीरे-धार सफलता प्राप्त करते हुए कार्य करें।
3. समस्या उनकी रुचि के अनुसार होनी चाहिए जो उनके पाठयक्रम के अन्तगत आती हो।
4. समस्या समाधान विधि का प्रयोग बड़ी कक्षाओं में ही ठीक प्रकार से हो सकता है। यदि हम समस्या को ठीक ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयत्न करें तो इससे मानसिक कुशलताओं, अभिवृत्तियों व आदेशों के विकास में सहायता मिलती है।