राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच संबंध | राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री में कौन बड़ा है अंतर क्या है prime minister and president of india difference in hindi

prime minister and president of india difference in hindi राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच संबंध | राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री में कौन बड़ा है अंतर क्या है ?

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री
अनुच्छेद 78 प्रधानमंत्री के कर्तव्य परिकलित करता है। प्रधानमंत्री से अपेक्षा होती है: (क) संघीय मामलों के प्रबंध तथा विधान हेतु प्रस्तावों से संबंधित मंत्रिपरिषद् के सभी निर्णयों से राष्ट्रपति को अवगत करानाय (ख) संघीय मामलों के प्रबंध तथा विधान हेतु प्रस्तावों से संबंधित ऐसी सूचना राष्ट्रपति के पास लाना जो अपेक्षित होय और (ग) यदि राष्ट्रपति ऐसा चाहता है, ऐसे किसी मामले को मंत्रिपरिषद् के विचारार्थ प्रस्तुत करना जिस पर किसी मंत्री द्वारा निर्णय लिया गया है परंतु वह परिषद द्वारा नहीं माना गया है। प्रधानमंत्री के ये कर्तव्य यह जताते लगते हैं कि राष्ट्रपति ही अपार शक्तियों के साथ वास्तविक कार्यकारी है। परंतु जैसा हमने देखा, राष्ट्रपति अपनी शक्तियाँ सिर्फ मंत्रिपरिषद् की मदद और सलाह से ही प्रयोग कर सकता है। प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद् का नायक, इसीलिए वास्तविक कार्यकारी है। राष्ट्रपति औपचारिक भूमिका निभाता एक संवैधानिक प्रमुख ही है। तथापि, ऐसे अवसर आए हैं जब राष्ट्रपति के सरकार की नीतियों पर प्रधानमंत्री के साथ मतभेद रहे।

भारत के प्रथम राष्ट्रपति, राजेंद्र प्रसाद, ने ब्रिटिश परंपरा से यह बताने का प्रयास किया कि राज्य-प्रमुख प्रधानमंत्री तथा मंत्रिमंडल की सलाह द्वारा मानने को हमेशा बाध्य नहीं है। उदाहरण के लिए, हिन्दू पर्सनल लॉ में सुधार करने के नेहरू सरकार के प्रयास से वह प्रसन्न नहीं थे। पुनः 1959 में, उन्होंने केरल में राजकीय आपास्थिति को अपनी सहमति देने से इंकार कर दिया। इन मामलों में, भारतीय परिस्थितियों में भी वह उस परंपरा को अंत में स्वीकार करने को सहमत थे। एक अवसर पर (28 नवंबर 1960, भारत विधि संस्थान, नई दिल्ली के संबोधन में) उन्होंने टिप्पणी की, “संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो इतने सारे शब्दों में यह बात रखता हो कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह के अनुसार ही काम करने को बाध्य है।‘‘ कुछ दिनों पश्चात् प्रधानमंत्री नेहरू ने एक संवाददाता सम्मेलन में यह उत्तर दिया, “राष्ट्रपति ने हमेशा एक संवैधानिक प्रमुख के रूप में काम किया है। हमने अपना संविधान संसदीय प्रणाली पर प्रतिरूपित किया है न कि एक अध्यक्षीय प्रणाली पर, यद्यपि हमने संयुक्त राज्य के प्रावधानों की नकल की अथवा उन्हें अपनाया है, क्योंकि प्रणाली संघीय है। अनिवार्यतः हमारा संविधान यू.के. संसदीय प्रतिरूप पर आधारित है। यही मूल बात है। वास्तव में, यह कहा जाता है कि जब कभी यह कुछ भी स्पष्टतया नहीं कहती है, हमें यू.के. में हाउस ऑव कॉमन्स की प्रथा का अनुसरण करना चाहिए।‘‘

साठ के दशक में, स्वतंत्र राष्ट्रपति पद की परिकल्पना को कुछ आधार मिला। के.एम. मुन्शी जिन्होंने यह परिकल्पना विकसित की, का तर्क था कि भारतीय संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो स्पष्टतः यह व्यवस्था देता हो कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह द्वारा बाध्य है। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रपति संसद के साथ-साथ राज्य विधान-मंडलों द्वारा भी चुना जाता है। अतः उससे राज्यों के हितों की रक्षा की अपेक्षा की जाती है। वह संविधान की रक्षा करने, सुरक्षित रखने और संरक्षण देने की शपथ भी लेता है। अन्य शब्दों में, वह सरकार समेत किसी संभाग से उल्लंघन तथा अतिक्रमण से संविधान के प्रावधानों की हिफाजत करता है। ऐसे ही विचारों को आधार प्राप्त करने से बचाने के लिए ही शायद 42वीं संशोधन अधिनियम पारित किया गया जिसने अनुबद्ध किया कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह मानने को बाध्य होगा। इस प्रकार स्वतंत्र राष्ट्रपति पद के बारे में सभी आशंकाओं का अंत हो गया। तथापि, जनता सरकार के दौरान पारित किए गए 44वें संशोधन अधिनियम ने पूर्वस्थिति पुनर्संचित की। इसके अलावा, इसमें यह भी कहा गया कि राष्ट्रपति किसी मसले पर मंत्रिपरिषद् की सलाह पर उसे पुनर्विचार करने हेतु कहने का अधिकारी है।

1987 में, एक राजनीतिक कोलाहल पैदा हुआ जब राष्ट्रपति जैलसिंह ने भारतीय डाक (संशोधन) अधिनियम पर अपनी सहमति, इसे संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित होने के बावजूद रोके रखी। राष्ट्रपति महोदय ने एक ऐसे विधेयक पर अप्रसन्नता के खुले इजहार द्वारा स्वयं और अपने पद हेतु जनसमर्थन पा लिया जो निजी पत्र-व्यवहार में हस्तक्षेप करने के लिए सरकार की शक्ति को अत्यधिक रूप से बढ़ा देता। यह विधेयक राष्ट्रपति के पुनर्विचार हेतु फिर कभी लौटकर नहीं आया।

इस तनाव हेतु कारणों में अंशतः एक था – खराब व्यक्तिगत संबंधों का प्रकरन । जबकि सभी प्रधानमंत्रियों ने राष्ट्रपति के प्रति औपचारिक रूप से सम्मानयुक्त रहकर नयाचार निभाने में बड़ी सतर्कता बरती, उदाहरण के लिए सरकारी मामलों की उसे नियमित सूचना दे कर राजीव गाँधी इस प्रकार का संप्रेषण बनाए रखने में चूक गए और राष्ट्रपति को ठेस पहुँचायी। जबकि प्रधानमंत्री महोदय ने राज्यसभा में निश्चयपूर्वक कहा कि वह राज्य के सभी महत्त्वपूर्ण मामले राष्ट्रपति को सूचित कर चुके हैं, राष्ट्रपति सिंह ने दावा किया कि उन्हें राजीव गाँधी द्वारा उपेक्षित और तिरस्कृत किया गया है और स्थापित संवैधानिक परंपराओं के उल्लंघन में अनेक महत्त्वपूर्ण राज्य मामलों के विषय में अँधेरे में रखा गया है। मार्च 1987 में जब लोकसभा अध्यक्ष ने सभा में इस विवाद की चर्चा की अनुमति देने से इंकार कर दिया, विपक्षी दलों ने एक हड़ताल का स्वांग किया। यद्यपि राजीव गाँधी ने जैलसिंह के साथ अपने संबंध सुधार लिए और विवाद समाप्त कर दिया, इस प्रकार का सार्वजनिक संवैधानिक संकट राष्ट्रपति पद व प्रधानमंत्री पद की भूमिकाओं व अधिकार-क्षेत्र को परिभाषित करने के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद तथा पंडित नेहरू के विच्छिन्न प्रयासों से प्रस्थान ही था।

यद्यपि राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री के बीच मतभेद रहे हैं, किसी संवैधानिक संकट में पराकाष्ठा पर पहुँचकर इन्होंने कोई गंभीर आयाम ग्रहण नहीं किए। जब कभी ऐसे मतभेद पैदा हुए उन्हें अनौपचारिक रूप से अथवा पार्टी कार्यकर्ताओं के माध्यम से दूर करने के प्रयास किए गए। कुल मिलाकर, राष्ट्रपति ने हमेशा सिर्फ संवैधानिक प्रभाव के रूप में कार्य किया है। ब्रिटेन की भाँति भारत में भी कुछ संवैधानिक परिपाटियाँ तथा प्रथाएँ केवल सरकार के विभिन्न हिस्सों के बीच लड़ाई के फलस्वरूप ही परिभाषित की गई हैं।

बोध प्रश्न 3
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए गए रिक्त स्थान का प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तर की जाँच इकाई के अंत में दिए गए आदर्श उत्तर से करें।
1) स्वतंत्र राष्ट्रपति का मत स्पष्ट करें।

 बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 3
1) यह मत के.एम. मुन्शी द्वारा अभिव्यक्त किया गया। उनका तर्क था कि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो यह व्यवस्था देता हो कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह द्वारा बाध्य है। इसके अलावा, चूँकि संसद के साथ-साथ राज्य विधानमंडल भी राष्ट्रपति को चुनते हैं, उससे अपेक्षा की जाती है कि वह राज्यों के हितों की रक्षा करे। और, राष्ट्रपति संविधान की रक्षा करने, सुरक्षित रखने और संरक्षण देने की शपथ भी लेता है।