प्रकार्यात्मक का अर्थ क्या है ? प्रकार्यवाद विश्लेषण के आधार तत्व (postulates of functional analysis )

(postulates of functional analysis in hindi) प्रकार्यात्मक का अर्थ क्या है ? प्रकार्यवाद विश्लेषण के आधार तत्व का मतलब किसे कहते है परिभाषा बताइए ?

प्रकार्यात्मक विश्लेषण के आधार तत्व (postulates of functional analysis )
प्रकार्यात्मक विश्लेषण के क्षेत्र में रॉबर्ट मर्टन का योगदान एक विशेष महत्व रखता है। परम्परागत प्रकार्यवादियों की तुलना में उसकी नयी दृष्टि ने उसे पारंपरिक प्रकार्यात्मक विश्लेषण तक सीमित नहीं रखा है बल्कि प्रकार्यवाद को नयी सीमा तक पहुंचाया है। इसलिए, यह जानना जरूरी है कि मर्टन ने पारंपरिक प्रकार्यात्मक विश्लेषण के किन आधार तत्वों का खंडन किया। ये आधार तत्व हैं – i) प्रकार्यात्मक एकता का आधार तत्व, ii) सार्विकीय प्रकार्यवाद का आधार तत्व और iii) अपरिहार्यता का आधार तत्व । मर्टन ने अनेक नई बातें बताई और इनके आधार पर समझाया कि हर प्रकार्य सकारात्मक नहीं होता। समाज अनेक वर्गों तथा उपवर्गों में बंटा है और किसी के लिए जो सकारात्मक कार्य है वही दूसरे वर्ग के लिए नकारात्मक हो सकता है। इसके अलावा कोई भी प्रकार्य अपरिहार्य नहीं है, विभिन्न प्रकार्यों के विकल्प भी हो सकते हैं। आइए इन तत्वों की क्रमशरू चर्चा करें।

 प्रकार्यात्मक एकता का आधार तत्व (postulate of functional unity)
मर्टन ने रैडक्लिफ-ब्राउन को प्रकार्यात्मक एकता के आधार तत्व का प्रमुख प्रणेता माना है। रैडक्लिफ-ब्राउन का कहना है ‘‘समस्त सामाजिक प्रणाली को चलाने के लिए, उसके अनुरक्षण (उंपदजमदंदबम) के लिए किया गया योगदान ही सामाजिक गतिविधि का प्रकार्य होता है‘‘ इस आधार तत्व में यह बात निहित है कि हर सामाजिक प्रकार्य में एक तरह की एकरूपता होती है और सामाजिक प्रणाली के सभी अंग पूरे तालमेल और आंतरिक नियमितता के साथ मिल कर काम करते हैं। संभवतः अपेक्षाकृत समरूपकीय (ीवउवहमदमवने) असाक्षर सभ्यता में यह आधार तत्व सार्थक और सही हो। पर आज के जटिल आधुनिक समाज में, मर्टन के अनुसार प्रकार्यात्मक एकता के आधार तत्व को फिर से परिभाषित करना जरूरी है। सबसे पहले तो मर्टन इसी बात पर शंका करता है कि सभी समाज पूर्णतः समन्वित हैं, जिसमें हर सांस्कृतिक दृष्टि से मान्य कार्यकलाप या विश्वास पूरे समाज के लिए सकारात्मक भूमिका निभाता है। मर्टन हमें यह याद दिलाना चाहता है कि सामाजिक परंपराएं या विश्वास एक ही समाज के कुछ समूहों के लिए सकारात्मक और कुछ के लिए नकारात्मक भूमिका निभाने वाले हो सकते हैं।

मर्टन ने इस आधार तत्व की बड़े रोचक तरीके से समालोचना की है। इसमें निहित अर्थ को समझने के लिए अपने ही समाज की किसी सामाजिक गतिविधि को लें। उदाहरण के लिए, धर्म को ही लें। धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा प्रचारित किए जाने वाले धर्म से कौन सा कार्य सिद्ध होता है? दर्खाइम का यह कथन सही है कि असाक्षर सभ्यता में धर्म की प्रकार्यात्मक भूमिका एकता लाने की हो सकती है। पर हमारे बहु-प्रजातीय तथा बहुधर्मी समाज में कट्टरपंथियों द्वारा प्रचारित धर्म के अन्य अल्पसंख्य समुदायों के लिए बहुत बुरे परिणाम हो सकते हैं। भले ही कट्टपंथी धर्म के प्रभुत्व को अनिवार्य माने। लेकिन जरूरी नही कि यह पूरे समाज के लिए अनिवार्य और सकारात्मक कार्य हो। कट्टरपंथियों के राजनैतिक हितों को देखते हुए यह सकारात्मक कार्य हो सकता है पर अन्य लोगों के लिए तो यह नकारात्मक ही होगा।

हमारे अपने समाज का यह उदाहरण आपको दर्शाता है कि मर्टन ने प्रकार्यात्मक एकता के आधार तत्व का खंडन क्यों किया। मर्टन के अनुसार आज के जटिल समाज में प्रकार्यात्मक एकता का यह आधार तत्व लागू नहीं किया जा सकता है। प्रकार्यात्मक विश्लेषण करने से पहले समाजविज्ञानी के लिए यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि किस इकाई विशेष के लिए कोई सामाजिक या सांस्कृतिक तथ्य सकारात्मक है। समाजविज्ञान को यह भी स्पष्ट रूप से समझ लेना है कि किसी प्रक्रिया या संस्था का कार्य कुछ लोगों या उपसमूह के लिए सकारात्मक हो सकता है, जबकि अन्य के लिए नकारात्मक । जैसा कि कट्टरपंथियों वाले उदाहरण से स्पष्ट है।

 सार्विकीय प्रकार्यवाद का आधार तत्व (postulate of universal functionalism)
इस आधार तत्व के अनुसार सभी सामाजिक अथवा सांस्कृतिक स्वरूपों के प्रकार्य सकारात्मक होते हैं। मलिनॉस्की किसी भी स्थिति में इस आधार तत्व को सही मानता है, उसका कहना है “हर सभ्यता में हर रिवाज, भौतिक वस्तु, विचार और विश्वास कोई न कोई महत्वपूर्ण कार्य पूरा करते हैं।‘‘

इस मान्यता के अनुसार हर सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रिया के प्रकार्य अनिवार्यतरू सकारात्मक होते हैं। थोड़ा सा सोचने पर ही आपको स्पष्ट हो जाएगा कि यह धारणा पूर्णतरू मान्य नहीं है। आपको, यह पहले ही बताया जा चुका है कि सामाजिक विश्वास और सांस्कृतिक गतिविधि विशेष के प्रकार्य नकारात्मक भी हो सकते हैं। यह भी हो सकता है कि ऐसे विश्वास या गतिविधि विशेष के प्रकार्यों के संपूर्ण आकलन में नकारात्मक ज्यादा हों। इसी प्रकार के अन्य उदाहरण लेकर, मर्टन की तरह, इस आधार तत्व की समालोचना की जा सकती है। हो सकता है कि आप क्रिकेट के शौकीन हों, आप कहें कि यह प्यारा खेल है, और खेल की खूबसूरती और कला आपको आनन्द लेने में सहायक हों। निश्चय ही इससे कुछ भी नुकसान नहीं है। इससे राष्ट्रीय भावना भी मजबूत होती है और यह आप में देशभक्ति की भावना भरता है, ये सभी क्रिकेट के सकारात्मक प्रकार्य कहे जा सकते हैं। लेकिन इसके साथ ही क्रिकेट के नकारात्मक प्रकार्यों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। क्रिकेट ने फुटबाल और हॉकी जैसे अन्य खेलों को नुकसान पहुंचाया है और जिस तरह क्रिकेट खिलाड़ियों के चलते ऐश आराम और विलासिता का सूचना माध्यमों (खबरों, विज्ञापनों आदि में) द्वारा प्रचार होता है, उससे सच्ची खेल संस्कृति पनपने में इसका नकारात्मक योगदान ही होता है। इस तरह परिणामों के दोनों पक्षों को देखने के बाद ही यह फैसला किया जा सकता है कि किसी सामाजिक संस्था के प्रकार्य सकारात्मक हैं या नकारात्मक।

स्पष्ट है कि मर्टन प्रकार्यों की हर स्थिति में सकारात्मकता के आधार तत्व से सहमत नहीं है। उसका कहना है कि प्रकार्यात्मक विश्लेषण करते समय सकारात्मक और नकारात्मक प्रकार्यों के कुल संतुलन का आकलन होना चाहिए, मात्र सकारात्मक प्रकार्यों का नहीं।

अपरिहार्यता का आधार तत्व (postulate of indispensability)
इस आंधार तत्व में यह विश्वास निहित है कि जिस किसी रिवाज या सांस्कृतिक गतिविधि से कोई कार्य पूरा होता है, वह रीति-रिवाज या सांस्कृतिक गतिविधि उस समाज में अपरिहार्य है। . मलिनॉस्की की भी यही मान्यता है। दूसरे शब्दों में, समाज की हर रीति-रिवाज, हर सांस्कृतिक गतिविधि अपरिहार्य है, और ऐसा लगता है कि किसी में भी बदलाव संभव नहीं है।

इस आधार तत्व की रॉबर्ट मर्टन द्वारा दी गई समालोचना को समझने से पहले आप एक उदाहरण पर विचार करें। शिक्षा अपरिहार्य कार्य है और इसकी पूर्ति के बिना समाज टिक नहीं सकता। क्योंकि शिक्षा के बिना समाज में ज्ञान, बुद्धिमता, कौशल और प्रशिक्षित कार्यकर्ता विकसित नहीं हो सकते। प्रश्न यह है कि इस अपरिहार्य प्रकार्य की पूर्ति के तरीके क्या हैं? आज की शैक्षिक प्रणाली देखें। इस प्रणाली में विद्यार्थी और शिक्षक के बीच परस्पर संवाद और समझ तो है ही नहीं। विद्यार्थी निष्क्रिय ग्रहणकर्ता बना रहता है और अध्यापक उसे ज्ञान, कौशल और सूचना से भर देता है। ऐसी मानवीय संबंधों से रहित प्रणाली के समर्थक इसे अपरिहार्य बताते हुए कह सकते हैं कि यह विद्यार्थी के मस्तिष्क को अनुशासित करती है, उसे आज्ञाकारी बनाती है और इस तरह व्यवस्था को बनाए रखने में सहायक है।

लेकिन पावलो फ्रेयर (च्ंनसव थ्तमपतम) ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘‘द पेडागोजी ऑफ द औप्रेस्ड‘‘ में बड़े अच्छे तरीके से समझाया है कि शिक्षा का वैकल्पिक तरीका भी है। परस्पर संवाद वाली शिक्षा में विद्यार्थी और शिक्षक दोनों ही सक्रिय होते हैं और निष्क्रिय ग्रहणकर्ता न रहकर सीखने की प्रक्रिया में विद्यार्थियों के अपने विचार होते हैं और भागीदारी होती है। फेयर की राय में यह ज्यादा रचनात्मक और मानवीय तरीका है। इस तरह, शिक्षा का कार्य अनिवार्य है पर इसे पूरा किए जाने के अलग-अलग तरीके हैं। दूसरे शब्दों में हर सांस्कृतिक स्वरूप अपरिहार्य नहीं है। वैकल्पिक सांस्कृतिक स्वरूप से इसके प्रकार्य का ज्यादा बेहतर तरीके से पूरा किया जा सकता है। निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि प्रकार्य के आधार पर किसी भी सांस्कृतिक तत्व की अपरिहार्यता की मान्यता पर प्रश्न चिन्ह लगाना जरूरी है। प्रकार्यात्मक विकल्प की इस अवधारणा को मर्टन ने पहली बार हमारे सामने रखा।

मर्टन का कहना है कि प्रकार्यात्मक विश्लेषण करने वाले को किसी भी चीज को अपरिहार्य नहीं मानना है। सामाजिक तथ्यों की जगह ले सकने वाले प्रकार्यात्मक विकल्प होते हैं। सामाजिक तथ्य विशेष द्वारा किया जा सकने वाला प्रकार्य बदली परिस्थितियों में किन्हीं दूसरे तथ्यों द्वारा भी संपन्न किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, ऐसे आधुनिक समाजों में जहां महिलाएं घर के काम के अतिरिक्त अन्य काम करती हैं वहां परिवार के कुछ प्रकार्य अन्य संस्थाएं जैसे बालवाड़ी और दिन में बच्चों की देखभाग करने वाले केंद्र (ड केयर सेंटर) करते हैं।

इस महत्वपूर्ण चर्चा के बाद, आइए बोध प्रश्न 2 को पूरा करें ताकि अभी तक की प्रगति की जाँच हो जाए।

बोध प्रश्न 2
प) प्रकार्यात्मक एकता के आधार तत्व का प्रमुख प्रवक्ता कौन था?.
पप) मर्टन ने सार्विकीय प्रकार्यवाद के आधार तत्व का क्यों खंडन किया? लगभग छः पंक्तियां में स्पष्ट कीजिए।
पपप) प्रकार्यात्मक विकल्प की मर्टन की अवधारणा क्या है? लगभग चार पंक्तियों में लिखिए।

बोध प्रश्न 2 उत्तर
प) रैडक्लिफ-ब्राउन
पप) सार्विकीय प्रकार्यवाद के आधार तत्व का मतलब है कि सभी सामाजिक और सांस्कृतिक तथ्यों, संस्थाओं और प्रक्रियाओं के प्रकार्य सकारात्मक होते हैं। मर्टन ने इसका खंडन किया। अपने विश्लेषण से उसने स्पष्ट किया कि सामाजिक और सांस्कृतिक इकाइयों के नकारात्मक प्रकार्य भी होते हैं। इसीलिए मर्टन ने कहा कि सकारात्मक और नकारात्मक परिणामों का समग्र आकलन किया जाना चाहिए, केवल सकारात्मक परिणामों का नहीं।
पपप) मर्टन का कहना है कि कोई भी सांस्कृतिक प्रक्रिया अपरिहार्य नहीं है क्योंकि इसका प्रकार्य किसी वैकल्पिक सांस्कृतिक प्रक्रिया द्वारा भी संभव है। एक ही कार्य दूसरी प्रक्रिया या संस्था द्वारा भी किया जा सकता है। यही मर्टन की प्रकार्यात्मक विकल्प की अवधारणा है।