प्लेटिनम क्या है (platinum in hindi) प्लैटिनम किसे कहते है ,रासायनिक सूत्र , इलेक्ट्रॉनिक विन्यास , उपयोग , गुण

(platinum in hindi) प्लेटिनम , प्लैटिनम धातु किसे कहते है , रासायनिक सूत्र क्या होता है , इलेक्ट्रॉनिक विन्यास , उपयोग , गुण लिखिए। पहचान , इतनी अधिक कीमत क्यों होती है , कीमत का कारण ?

प्लेटिनम का परमाण्वीय संख्या = 78

परमाण्वीय भार = 195.08

यह तृतीय संक्रमण श्रेणी में वर्ग 10 अथवा VIIIB का सदस्य है। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्नलिखित होता है –

Pt(78) = 1S2 , 2s2 2p6 , 3s2 3p6 3d10 , 4s2 4p6 4d10 4f14 , 5s2 5p6 5d9 , 6s1

प्लैटिनम का इतिहास और प्राप्ति (history and occurrence of platinum)

प्लेटिनम बहुत प्राचीन समय से ज्ञात धातु है। सर्वप्रथम सन 1741 में चार्ल्स वुड यूरोप में प्लेटिनम लाये। इसके गुणों का विस्तृत अध्ययन ब्राउनरिज द्वारा किया गया तथा उन्होंने 1750 में इस धातु के बारे में पूर्ण विवरण प्रकाशित करवाया। सन 1819 में यूरेल पहाडियों में जमे हुए प्लेटिनम धातु की उपस्थिति ज्ञात हुई जिसने इस समूह की अन्य धातुओं के अध्ययन का रास्ता भी खोल लिया। 1876 में इस चमकीले रंग की धातु को एक कीमती धातु के रूप में मान्यता मिली।

प्लेटिनम अधिकांशत: मुक्त अवस्था में पाया जाता है , यद्यपि इसका एक खनिज स्पेरीलाइट PtAs2 होता है जिसमें यह आर्सेनिक के साथ संयुक्त अवस्था में पाया जाता है। प्रकृति में प्लेटिनम मुक्त अवस्था में तो होता है , लेकिन कभी भी शुद्ध अवस्था में नहीं होता।

मुख्य रूप से यह रूस , कोलम्बिया और दक्षिणी अफ्रीका में पायी जाती है। क्यूप्रोनिकल अयस्कों में भी सूक्ष्म मात्रा में प्लेटिनम पाया जाता है जो इन धातुओं के निष्कर्षण के दौरान एक महत्वपूर्ण उपवाद के रूप में पाया जाता है। चूँकि निकल और कॉपर काफी मात्रा वाली धातुएँ है अत: इनके साथ प्लेटिनम की भी काफी मात्रा उत्पाद के रूप में प्राप्त हो जाती है।

धातुकर्म : प्लैटिनम का धातुकर्म मुख्य रूप से दो पदों में संपन्न होता है –

(i) सांद्रण द्वारा प्लेटिनम धातुओं के मिश्रण को प्राप्त करना और (ii) सांद्रित मिश्रण से प्लेटिनम धातु को पृथक करना।

(i) सान्द्रित मिश्रण बनाना : सांद्रित मिश्रण तीन स्रोतों से प्राप्त किया जाता है।

(a) मुक्त धातु मिश्रण से (b) निकल निष्कर्षण के मांड प्रक्रम से प्राप्त अवशेष , (c) निकल निष्कर्षण के ऑरफोर्ड प्रक्रम से प्राप्त अवशेष से।

इनका संक्षिप्त अध्ययन निम्नलिखित अनुसार है –

(a) मुक्त धातु मिश्रण से : नदी किनारों की मिट्टी कंकड़ आदि को एकत्रित करके उन्हें विल्फ्ले टेबलों पर धोया जाता है। हल्की हल्की रेत मिट्टी आदि धुलकर निकलते जाते है , जबकि भारी धातुओं के कण टेबलों पर एकत्रित होते रहते है। इस प्रकार प्राप्त सांद्रित में लगभग 50-85% तक प्लैटिनम होता है , जबकि शेष ऑस्मियम , इरिडियम , पैलेडियम , गोल्ड , सिल्वर , कॉपर , आयरन होते है। इस सांद्रित में दो प्रकार के कण होते है – (i) क्रूड प्लेटिनम कण जिनमें प्लेटिनम के साथ कॉपर , गोल्ड , प्लेडियम और इरिडियम होते है , (ii) ऑस्मिरिडियम कण जिनमें मुख्य रूप से ऑस्मियम होता है साथ में इरिडियम और सूक्ष्म मात्रा में प्लेटिनम और पैलेडियम आदि होते है। दोनों प्रकार के कण अम्लराज में घुल जाते है।

(b) मांड प्रक्रम अवशेष से : मांड प्रक्रम द्वारा निकल के निष्कर्षण में कुछ अवाष्पशील अवशेष बच जाते है जिसमें कॉपर और निकल के साथ प्लेटिनम धातु होता है। भंजक अवशेष को सान्द्र H2SO4 के साथ उपचारित कराने पर उसमें कॉपर और निकल घुल कर निकल जाते है। बचे हुए अघुलनशील अवशेष को लेड के साथ गलाया जाता है जिससे कीमती धातुएं लेड के साथ मिश्रधातु बना लेती है। इस लेड मिश्र धातु का खर्परण करवाने पर लेड तो लितार्थ के रूप में पृथक हो जाता है , जबकि बचे हुए सांद्रित में प्लेटिनम धातुएं रह जाती है।

(c) ऑरफोर्ड प्रक्रम कीचड़ से : निकल धातु का विद्युतीय शोधन कराने के दौरान एनोड के निचे मड के रूप में सान्द्रित अवस्था में गोल्ड और सिल्वर के साथ प्लेटिनम एकत्रित हो जाता है।

(iii) सांद्रित मिश्रण से प्लेटिनम का पृथक्करण : उपरोक्त में से किसी भी विधि द्वारा प्राप्त सांद्रित मिश्रण को अम्लराज के साथ गर्म किया जाता है। इस प्रक्रम में प्लेटिनम , पैलेडियम , गोल्ड और कुछ मात्रा में इरिडियम और रोडियम तो क्लोरो संकुल [उदाहरण : H2PtCl6 , H2PdCl6 , HAuCl4 आदि ] बनाने के कारण घुल जाते है , जबकि ऑस्मियम , रुथिनियम , रोडियम और सिल्वर अविलेय अवशेष के रूप में ही रहते है जिन्हें छानकर पृथक कर लिया जाता है। प्राप्त विलयन का फेरस सल्फेट के साथ अपचयन कराया जाता है , इससे गोल्ड संकुल तो धातु में अपचरित हो जाता है , H2[PdCl6] का H2[PdCl4] में अपचयन हो जाता है , जबकि H2PtCl6 , H2IrCl6 अप्रभावित रहते है।

Fe2+ → Fe3+ + e ] x 3

AuCl4  + 3e → 4Cl + Au0

AuCl4 + 3Fe2+ → 3Fe3+ + 4Cl + Au0

PdCl62- + 2Fe2+ → PdCl42- + 2Cl + 2Fe3+

गोल्ड को छानकर पृथक कर लिया जाता है , जबकि विलयन में H2[PtCl6] , H2[PdCl4] और थोड़ी मात्रा में H2[IrCl6] होते है। इस विलयन की अमोनिया क्लोराइड के साथ अभिक्रिया करवाई जाती है। जिससे विलयशील H2[PtCl6] , अमोनिया क्लोरोप्लैटिनेट (NH4)2[PtCl6] के रूप में अवक्षेपित हो जाता है जबकि H2[IrCl6] का परिवर्तन विलयशील (NH4)2[IrCl6] में हो जाता है तथा H2[PdCl4] अप्रभावित होने के कारण विलयन में ही रह जाता है जिन्हें छानकर पृथक कर लिया जाता है।

H2[PtCl6] + 2NH4Cl → (NH4)2[PtCl6] + 2HCl

H2[IrCl6] + 2NH4Cl → (NH4)2[IrCl6] + 2HCl

H2[PdCl4] = कोई क्रिया नहीं (विलयन में ही विद्यमान)

अमोनियम क्लोरोप्लैटिनेट के अवक्षेप को सुखाकर तीव्र गर्म किया जाता है जिससे स्पंजी प्लेटिनम की प्राप्ति होती है।

(NH4)2[PtCl6]  → 2NH4Cl + 2Cl2 + Pt

इसके शोधन के लिए इसे पुनः अम्लराज में घोलकर उपरोक्त प्रक्रम को दो से तीन बार दोहराया जाता है।

गुण :

प्लेटिनम एक भारी , मुलायम , तन्य , आघातवर्धनीय , चाँदी जैसी सफ़ेद चमक वाली धातु होती है , सोने और चाँदी के बाद यह सर्वाधिक आघातवर्धनीय धातु है अत: आजकल महंगे गहने बनाने में भी इसे प्रयुक्त किया जाता है। प्रसार गुणांक के लगभग समान मान होने के कारण यह कांच के साथ आसानी से मिश्रित हो जाता है।

यह एक उत्कृष्ट धातु है तथा गर्म सान्द्र H2SO4 से भी प्रभावित नहीं होती लेकिन अम्लराज में यह घुल जाती है तथा क्लोरो प्लेटिनम संकुल बनाती है।

3HCl + HNO3 → 2H2O + NOCl + 2Cl

Pt + 4Cl → PtCl4

PtCl4 + 2Cl → [PtCl6]2-

लैड के साथ इसकी मिश्रधातु सान्द्र HNO3 में घुल जाती है तथा प्लेटिनम नाइट्रेट बनता है। गलित धातु में ऑक्सीजन घुल जाती है एवं ठण्डा होने पर वह अचानक बाहर निकल जाती है , इसे उद्वमन कहते है।

फ्लुओरीन और क्लोरिन के साथ यह टेट्राहैलाइड बनाती है। यह कई धातुओं (Pb , Sn आदि) और C , P और As के साथ मिश्रधातु बनाती है , इसी कारण प्लेटिनम क्रुसिबल आदि को कभी भी इन धातुओं के सम्पर्क में गर्म नहीं करते .इनके अतिरिक्त गलित अवस्था में कुछ यौगिक (उदाहरण क्षारीय हाइड्रोक्साइड , नाइट्रेट और बाइसल्फेट) और CS2 की वाष्प भी प्लेटिनम को क्षतिग्रस्त करती है , इसलिए इन यौगिकों को भी प्लेटिनम क्रुसिबल में गर्म नहीं करना चाहिए तथा कोल गैस की ज्वाला , जिसमें CS2 की कुछ वाष्प होती है , पर भी प्लेटिनम क्रुसीबल को गर्म नहीं करना चाहिए।

प्लेटिनम के प्रकार (types of platinum)

भिन्न भिन्न उद्योगों में भिन्न भिन्न कार्य के लिए प्लैटिनम के भिन्न भिन्न प्रकार का उपयोग किया जाता है। जिसका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है –

  1. स्पंजी प्लेटिनम (spongy platinum):  यह प्लैटिनम का मुलायम और स्पंजी रूप होता है जो देखने में सलेटी रंग का होता है तथा उत्प्रेरक के रूप में व्यापक रूप से प्रयोग में लाया जाता है। इसकी उपस्थिति में विस्फोट के साथ ऑक्सीजन और हाइड्रोजन संयुक्त हो जाते है। कोल गैस को स्पंजी प्लेटिनम से जलाया जा सकता है अत: इससे स्वत: जलने वाले बुन्सन बर्नर बनाये जाते है।

इसे बनाने के लिए अमोनियम क्लोरोप्लैटीनेट का ज्वलन कराया जाता है :

(NH4)2PtCl6 → Pt + 2NH3 + 2HCl + 2Cl2

  1. प्लेटिनम काला (platinum black): यह मखमली काला पाउडर रूप में होता है तथा इसे बनाने के लिए टेट्राहैलाइड के विलयन से सोडियम फोर्मेट , ग्लूकोस आदि जैसे अपचायकों द्वारा अवक्षेपित कराया जाता है :

PtCl4 + HCOONa → Pt + HCl + NaCl + Cl2 + CO2

उत्प्रेरक के रूप में इसका व्यापक उपयोग किया जाता है।

  1. कॉलाइडी प्लेटिनम (colloidal platinum): ब्रेडिंग विधि द्वारा प्लेटिनम के कोलाइडी विलयन को प्राप्त किया जा सकता है।
  2. प्लेटिनिकृत एस्बेटॉस (platinized asbestos): इसे बनाने के लिए ऐस्बेस्टॉस की चद्दर को क्लोरो प्लैटिनिक अम्ल के विलयन में भिगोकर उसे 770K पर गर्म किया जाता है। क्लोरोप्लैटीनिक अम्ल विघटित होकर पूरी एस्बेस्टोस चद्दर पर सूक्ष्म रूप से फ़ैल जाता है। इस प्लैटीनिकृत ऐस्बेस्टॉस का उपयोग H2SO4के निर्माण की सम्पर्क विधि में उत्प्रेरक के रूप में किया जाता है।

स्पंजी प्लेटिनम , प्लेटिनम काला और प्लेटिनीकृत ऐस्बेस्टॉस  अपने से 100 गुना आयतन ऑक्सीजन को अवशोषित कर सकते है , तथा ऑक्सीकारक के रूप में प्रयुक्त किये जाते है।

प्लेटिनम के उपयोग (uses of platinum)

प्लेटिनम अत्यंत महंगा परन्तु एक उपयोगी धातु है। इसके कुछ प्रमुख उपयोग निम्नलिखित है –

  1. उत्प्रेरक के रूप में: कई कार्बनिक और अकार्बनिक संश्लेष्ण में प्लेटिनम के विभिन्न रूपों का उपयोग किया जाता है।

उदाहरण : (i) नाइट्रिक अम्ल के निर्माण की ओस्टवाल्ड विधि में प्लेटिनम की जाली का उपयोग उत्प्रेरक के रूप में किया जाता है। (ii) सल्फ्यूरिक अम्ल के निर्माण की सम्पर्क विधि में उत्प्रेरक के रूप में प्लेटिनीकृत एस्बेस्टोस का उपयोग होता है। (iii) मैथिल एल्कोहल के ऑक्सीकरण द्वारा फार्मेल्डिहाइड बनाने की विधि में प्लेटिनम तार को उत्प्रेरक के रूप में प्रयुक्त करते है। (iv) ऑटोमेटिक गैस लाइटर में प्लेटिनम ब्लैक का उपयोग किया जाता है। यह तेल गैस के वायु द्वारा ऑक्सीकरण को उत्प्रेरित करता है , इस प्रक्रम में ऊष्मा मुक्त होती है जिससे तार चमक उठता है तथा चमते तार से गैस जल पड़ती है।

  1. प्रयोगशाला उपकरणों के निर्माण में: इसकी रसायनों के प्रति अत्यधिक अक्रियता के कारण इसका उपयोग मात्रात्मक विश्लेषण में प्रयुक्त किये जाने वाले विभिन्न क्रुसीबल , तश्तरी आदि बनाने में किया जाता है।
  2. गुणात्मक विश्लेषण के शुष्क परिक्षण में: गुणात्मक विश्लेषण के किये जाने वाले शुष्क परिक्षण जैसे ज्वाला परिक्षण और बोरेक्स मनका परिक्षण करने के लिए प्लेटिनम के तार का उपयोग किया जाता है।
  3. विद्युत उपकरणों में: यह धातु अवाष्पशील है , वायुमंडलीय ऑक्सीजन के प्रति उदासीन है तथा इसे कांच में आसानी से शील किया जा सकता है। इन गुणों के कारण इसका उपयोग इलेक्ट्रोड , विद्युत के सेल आदि बनाने में किया जाता है।
  4. आभूषण बनाने में: प्लेटिनम और इसके इरिडियम , रोडियम आदि के साथ मिश्रधातुओं का व्यापक उपयोग आभूषण , विशेष रूप से हीरे के आभूषण बनाने में किया जाने लगा है। इस धातु की सफेद रंगत में सफ़ेद हीरे के आभूषण चमक उठते है तथा ये वायु से मैले अथवा डल भी नहीं होते।
  5. दंत चिकित्सा में: लेड के साथ प्लेटिनम के मिश्रधातु का उपयोग दांतों / दाढो के छिद्रों को भरने में किया जाता है। टेढ़े अथवा नकली दांतों को पकड़कर स्थिति में बनाये रखने के लिए प्रयुक्त पिनों और दन्त पट्टियों को बनाने में भी प्लेटिनम का उपयोग किया जाता है।