nickel electron configuration in hindi , निकल ni का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास , cu का कॉपर (copper)

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निकल (Nickel), Z = 28, (152 252 p° 3s p6d8 452 )

निकल के मुख्यतः दो प्रकार के अयस्क होते हैं। ऑक्साइड / सिलिकेट रूप में निकल गार्निऐराइ (garnucrite). (Ni, Mg)gS1,010 (OH), तथा लिमोनाइट ( Limonite), (Fe, NiO (OH).nH2 O में पाय जाता है। पैन्टलेन्डाइड (pentlandite). (Ni. Fe)9 S8 सल्फाइड अयस्क हैं। सल्फाइड अयस्क का सान्द्रा कर भर्जन द्वारा उसे NIO में परिवर्तित कर लेते हैं तथा कार्बन द्वारा अपचयन से निकल प्राप्त कर लिया जाता है। अशुद्ध निकल को मॉन्ड प्रक्रम द्वारा शुद्ध किया जाता है जिसमें धातु की 50°C पर CO के स अनिक्रिया द्वारा वाष्पशील Ni(CO)4 बना लिया जाता है। यह कार्बोनिल 230°C पर वापिस Ni में अपघटित हो जाता है।

आवर्त में यहां से घनत्व तथा गलनांक कम होना आरम्भ हो जाते हैं। अतः निकल में ये तुलना गुण कोबाल में कम होता है। यह धातु क्रियाशील नहीं है। गर्म करने पर यह B. Si. P. S तथा हैलोजन के साथ अभिक्रिया करता है, यद्यपि इसकी F2 के साथ अभिक्रिया अन्य धातुओं की तुलना में धीमे होती है। ऑक्सीजन के साथ NiO तथा हैलोजनों के साथ NiX2 बनाता है। तनु खनिज अम्लों में यह धीरे- धीरे विलेय हो जाता है- तनु HNO3 में अपेक्षाकृत अधिक तेजी से विलेय होता है, शुष्क हाइड्रोजन हेलाइडों में लगभग अक्रिय रहता है तथा सान्द्र HNO3 में निष्क्रिय हो जाता है। जलीय कास्टिक क्षारों (caustic alkali) के साथ अभिक्रिया का यह प्रतिरोधी पाया जाता है यह आण्विक हाइड्रोजन को विलेय – कर लेता है।

प्रथम संक्रमण श्रृंखला में Ni का रसायन सबसे सरल है। इसकी मात्र + 2 ऑक्सीकरण अवस्था महत्वपूर्ण है। इस अवस्था में इसका विन्यास ‘ होता है। यह मुख्यतः समतलीय वर्गाकार संकुल बनाता है, यद्यपि इसके चतुष्फलकीय (हैलाइडों के साथ) तथा अष्टफलकीय यौगिक भी ज्ञात हैं। NiCl2 + KCI के फ्लुओरीनीकरण से K2NiF6  बनाता है जो प्रबल ऑक्सीकारक है। Ni(II) के अतिरिक्त अन्य ऑक्सीकरण अवस्थाओं का स्थायित्व नगण्य होने के कारण Ni(II) यौगिकों में ऑक्सीकृत या अपचयित होने की प्रवृत्ति भी नगण्य पाई जाती है। जलीय विलयन में [Ni(H2O)6 ] 2 + आयन पाया जाता है ।

[Ni(CN)4]2- तथा बिस (डाइमेथिलग्लायोक्सीमेटो) निकल (II) संकुल, जो इस धातु के भारात्मक आकलन में उपयोगी है (चित्र 1. 4), की संरचनायें वर्गाकार समतलीय होती हैं। ये यौगिक प्रतिचुम्बकीय होते हैं तथा इनका रंग लाल से पीला होता है जबकि अष्टफलकीय तथा चतुष्फलकीय यौगिक दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों के साथ अनुचुम्बकीय होते हैं तथा सामान्यतः हरे से नीले रंग के होते हैं ।

[NiCl4]2- प्रकार के यौगिक चतुष्फलकीय हैं | Ni (II) के कुछ 5- उपसहसंयोजित संकुल भी ज्ञात हैं जिनकी वर्गाकार पिरेमिड या त्रिभुजीय द्विपिरेमिड संरचना पाई जाती हैं ।

कॉपर (copper), Z = 29 (1s2 2s 2 p6 3s 2 p6 d10 4s1 )

कॉपर मुख्यतः सल्फाइड अयस्कों से निष्कर्षित किया जाता है। कॉपर पायराइट (कैल्कोपायराइट, chalcopyrite),CuFeS2 तथा कॉपर ग्लान्स (कैल्कोसाइट, chalcocite), Cu2 S इसके मुख्य अयस्क हैं। धातु के निष्कषर्ण में सान्द्रण के पश्चात् भर्जन द्वारा अयस्क को ऑक्साइड में परिवर्तित कर लिया जाता है। धातु में अपचयन के पश्चात् विद्युत अपघटन द्वारा परिशोधन कर लिया जाता है।

यह लाल भूरे रंग की धातु है जो ऊष्मा तथा विद्युत का बहुत अच्छा सुचालक है। आवर्त में घनत्व तथा गलनांक घटने का जो क्रम पूर्ववर्ती तत्वों से आरम्भ हुआ था वह यहां भी जारी रहता है, अर्थात् कॉपर के लिए ये गुण पूर्ववर्ती तत्व निकल से कम हैं। यह मुलायम तथा अत्यधिक तन्य (ductile ) तथा ‘आघातवर्ध्य (melleable) है ।

कॉपर के दो ऑक्साइड Cu2O (पीला या लाल) तथा CuO (काला) बनते हैं जिन्हें कॉपर को वायु या ऑक्सीजन में गर्म करके बनाया जा सकता है- Cu2O उच्चतर तापक्रम पर बनता है। हेलाइडों में CuF तथा Cul2  अस्थाई हैं- शेष सभी Cux2  तथा CuX प्रकार के हेलाइड ज्ञात हैं।

कॉपर आसानी से 4s3  इलेक्ट्रॉन खोकर स्थाई विन्यास 3d10  प्राप्त कर लेता है। प्रथम तथा द्वितीय आयनन ऊर्जा में अधिक अन्तर न होने के कारण +2 अवस्था भी स्थाई है लेकिन और अधिक इलेक्ट्रॉन निकालने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा का व्यय करना होता है अतः उच्चतर ऑक्सीकरण अवस्थ अस्थाई हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि यह तत्व भी अन्य संक्रमण तत्वों की भांति परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्थायें प्रदर्शित तो करता है लेकिन श्रृंखला के अन्त में आते-आते इनका परिसर बहुत छोटा हो जाता है ।

जलीय विलयन में +2 अवस्था मुख्य आक्सीकरण अवस्था है तथा एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन के साथ यौगिक अनुचुम्बकीय होते हैं। जलीय विलयन में आयन को सूत्र [Cu(H2O6 )]2+ द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है यद्यपि Cu2+ से सभी जल अणु समान दूरी नहीं होते हैं- 4 लिगन्ड वर्गाकार होते हैं तथा दो जल अणु लम्बवत् अधिक दूरी पर स्थित होते हैं। संरचना में ऐसी विकृति Cu(II) यौगिकों के लिए सामान्यतः पाई जाती है। छः जल अणुओं में से चार अणुओं का अन्य लिगन्डों द्वारा आसानी से प्रतिस्थापन हो जाता है। इस प्रकार [Cu(NH3)4 (H2O)2]2+, [Cu(H2O)2 en2]2+ आसानी से बनाये जा सकते हैं लेकिन सभी H2O कठिनता से ही निकल पाते हैं। ये द्विऐक्वा संकुल सामान्यतः गहरे नीले रंग के होते हैं।

हैलाइड संकुल, उदाहरणार्थ [CuCI4 ] 2-, विकृत चतुष्फलकीय होते है कॉपर के 5 समन्वय संख्या वाले भी कुछ यौगिक ज्ञात हैं जिनकी संरचना वर्गाकार पिरैमिड या त्रिभुजीय द्विपिरेमिड होती है।

जल में Cu(I) अस्थाई हैं लेकिन ठोस अवस्था में स्थाई है । यही कारण है कि कॉपर को भारात्मक विश्लेषण हेतु CuSCN के रूप में अवक्षेपित किया जाता है। इसी प्रकार Cu+ के आयोडाइड व क्लोराइड ठोस रूप में पाये जाते हैं । ये यौगिक सफेद होते हैं क्योंकि d10  विन्यास के कारण इलेक्ट्रॉनों का d-dस्थानान्तरण सम्भव नहीं हो पाता है।