islets of langerhans in hindi , लैंगरहैंस के द्वीप समूह क्या है कहाँ पाया जाता है , लैंगर हैन्स दीपिका पाई जाती है

जाने islets of langerhans in hindi , लैंगरहैंस के द्वीप समूह क्या है कहाँ पाया जाता है , लैंगर हैन्स दीपिका पाई जाती है ?

लैंगर हैन्स के द्वीप समूह ( Islets of langerhans)

अग्नाशय (Pancreas) — एक संयुक्त प्रकार की ग्रन्थि है अर्थात् यह ग्रन्थित अंग जो कि कशेरुकी जंतुओं की आहार नाल का भाग है, आमाशय तथा ग्रहणी (duodenum) के मध्य स्थित होता है। यह बाह्य स्रावी ( exorine) तथा अन्त: स्रावी (endocrine ) ग्रन्थि के रूप में क्रियाशील होता है। बाह्य स्रावी स्रवण, पाचक रस ( digestive juice) किण्वकों (enzymes) के रूप में स्रावित होते है तथा अग्नाशयी नलिका (pancreatic duct) द्वारा ग्रहणी में लाये जाते हैं।

अन्तःस्रावी ग्रन्थि कार्य विशिष्ट स्रावी कोशिकाओं के समूह करते हैं जो ग्रन्थि में दूर-दूर छितरे पिण्डकों के रूप में उपस्थित रहते हैं इन्हें लैंगर हैन्स के द्वीप समूह ( Islets of langerhans) कहते हैं। ये द्विपिकाएँ अपने स्रवण रक्त के द्वारा लक्ष्य अंगों तक पहुँचाती है। इस ग्रन्थि द्वारा स्रावित हॉरमोन्स इन्सुलिन (insulin) एवं ग्लूकागोन (glucagon) है जो रक्त प्रवाह में शर्करा – ग्लूकोस की मात्रा का नियमन करते हैं। इन अन्तःस्रावी कोशिकाओं की खोज का श्रेय लैंगरहैन्स (Langerhas) को जाता है अत: इन्हें लैंगर हैन्स के द्वीप समूह के नाम से जाना जाता है।

परिवर्तन (Development) इस ग्रन्थि के उद्भव एवं विकास का अध्ययन हाउजे (Houssay; 1559), बैरिंगटन (Barington; 1962) तथा ग्रोबमेन एवं बर्न (Gorbman and Bern; 1962) ने सभी जंतुओं में किया। इसके अनुसार निम्न कशेरुकी साइक्लेस्टोमेटा के एमोसीट डिम्भक (ammocoete larva) के अग्र आन्त्र की श्लेष्मिक उपकला में धँसे लैंगर हेन्स के द्वीप समूह पाये जाते हैं। जबकि उच्च कशेरुकियों में ये कोशिकाएँ अग्नाशय की संतह पर तथा विशिष्ट समूहों में रूप में उस्थित रहती है। टीलीओस्ट मछलियों में यह ग्रन्थि कुछ गोलाकार पिण्डकों के रूप में फैली रहती है। उभयचारियों में विशेषतः कोशिकाएँ अनुपस्थित रहती है। सरीसृपों में भी यह ग्रन्थि टीलीओस्ट मछलियों की भाँति ही पायी जाती है।

अन्तःस्रावी अग्नाशय का भाग विभिन्न विशिष्टीकृत कोशिकाओं से उत्पन्न होता है। विशिष्टीकृत कोशिकाएँ आहार नाल अन्तचर्म द्वारा बने ऊद्वधं (outgrouth) से विकसित होती है तथा शेष अग्नाशय ऊत्तक की कोशिकाओं से औत्तकीय भिन्नता रखती है। भ्रूणीय अवस्था में बने ये दो ऊद्वर्ध समेकित (fuse) होकर मिश्रित ग्रन्थि को जन्म देते हैं।

संरचना (Structrue) स्तनियों के अग्नाशय हल्के पीले अथवा गुलाबी रंग की मिश्रिण के रूप में आमाशय के पीछे स्थित U आकार की ग्रहणी की दोनों भुजाओं के मध्य विकसित रहती है। बाह्य स्रावी ग्रन्थि अर्थात् इसमें पाचक ग्रन्थि की कोशिकाएँ अनेक खोखले पिण्डकों (loboules or acini) के रूप में संयोजी ऊत्तक के मध्य उपस्थित होती है। यह भाग सम्पूर्ण ग्रन्थि का 98-99% भाग होता है। इस भाग में ही कहीं-कहीं अन्तःस्रावी कोशिकाओं के छोटे-छोटे समूह जिन्हें लैंगरहेन्स की द्वीपिकाएँ कहते हैं पायी जाती है।

चित्र 8.36 – अग्नाशय का अनुप्रस्थ काट

प्रत्येक द्वीपिका असंख्य कोशिकाओं, रुधिर कोशिकाओं तथा रक्त पात्रों द्वारा रचित होती है।

अन्तःस्रावी कोशिकाएँ मुख्यत: तीन प्रकार की होती है –

(i) एल्फा कोशिकाएँ (a-cells) 75%

(ii) बीटा कोशिकाएँ (B-cells) 20%

(iii) डेल्टा कोशिकाएँ (S-cells) 5%

या गामा कोशिकाएँ (y-cells)

α कोशिकाएँ बड़े आमाप की δ या γ कोशिकाएँ छोटे आमाप की तथा β कोशिकाएँ दोनों के माध्यम आमाप की होती है।

लैंगरहेन्स के द्वीप समूह द्वारा स्रावित हारमोन्स (Hormones secreted by islets of langerhans)

इस ग्रन्थि की a कोशिकाओं द्वारा ग्लूकागोन (glucagon) एवं B कोशिकाओं द्वारा इसुलिन (insulin) हार्मोन का स्रवण किया जाता है। कुछ वैज्ञानिकों की मान्यता है कि 8 या y कोशिकाएँ वृद्धि हॉरमोन संदमक हॉरमोन (Growth Hormone Inhibitory Hormone) GHIH या सोमेटोस्टेटिन (Somatostation) का स्रावण करती है।

  1. इन्सुलिन (Insulin) — ग्रन्थि की B कोशिकाओं से स्रावित यह हारमोन प्रकृति में प्रोटीन होता है इसका आण्विक भार 5734 होता है। सैंगर (Sanger; 1953) ने इस अणु का अध्ययन कर यह निष्कर्ष स्थापित किया है कि इस अणु की रचना में दो समानान्तर पॉलीपेटाइड श्रृंखलाएँ A व B भाग लेती है जो 21 तथा 30 अमीनों अम्लों से रचित होती है। इस हॉरमोन के साथ जिंक की सूक्ष्म मात्रा भी अधिकतर पायी जाती है।

चित्र 8.37 : लैंगरहेन्स के एक समूह में हारमोन्स कोशिकाओं का वितरण

कुछ वैज्ञानिकों की मान्यता है कि हारमोन इन्सुलिन आरम्भ में प्रोइन्सुलिन (proinvlin) के रूप में स्रावित होता है। इसका अणुभार 9000 के लगभग होता है यह अक्रिय प्रकार का पदार्थ है जो अग्नाशय द्वारा स्रावित इन्सुलिन भाग का केवल 5% के लगभग होता है। यह संश्लेषणी क्रियाओं के दौरान विखण्डित होकर सक्रिय इन्सुलिन हारमोन बनाता है।

बेन्टिंग (Banting; 1921 ) ने सर्वप्रथम इस ग्रन्थि द्वारा स्रावित इन्सुलिन हॉरमोन के कार्यों का अध्ययन किया। बेस्ट (1959) ने भी इस हॉरमोन का कोशिकी स्तर पर अध्ययन किया। इन वैज्ञानिकों के द्वारा निम्न मत प्रस्तुत किये गये हैं –

(i) परिवहन परिकल्पना (Transport hypothesis) इस मतानुसार इन्सुलिन मुख्यतः पोषक पदार्थों (nutrients) विशेषतः ग्लूकोस को कोशिकीय झिल्लीयों के परिवहन करने की क्रियाओं की प्रभावित करता है।

(ii) आन्तरकोशिकीय किण्वक परिकल्पना (Intracellular hypothesis) इस मत के अनुसार इन्सुलिन हारमोन किसी प्रकार कोशिकाओं में उपस्थित हेक्सोज काइनेएन्जाइम अथवा ऑक्सीकारी फॉस्फीलीकरण (oxidative phosphoryfaction) के पास क्रियाओं को प्रभावित करता हुआ अपना प्रभाव उत्पन्न करता है।

यद्यपि परिवहन परिकल्पना को अनेक वैज्ञानिकों के अपना समर्थन दिया है किन्तु इसे अभी तक पूर्ण रूप से समझाया नहीं गया है। हाल ही में जे. इ. मेनरी (J. E. Mamre) ने अपने अध्ययनों के दौरान पाया कि अनेक कशेरूकियों एवं स्तनियों ये दोनों की परिकल्पनाएँ पूर्णतया संतोषजनक रूप में इनकी कार्यप्रणाली को नहीं समझ पायी है किन्तु इस हॉरमोन द्वारा कोशिकीय स्तर पर प्रभावों का विस्तृत अध्ययन किया जा चुका है। यह कोशिकीय झिल्ली द्वारा अवशोषित होकर निम्न कार्य करता है-

चित्र 8.38 – इन्सुलिन अणु की संरचना

(ii) कोशिका झिल्ली की पारगम्यता को कुछ, पोषक पदार्थों विशेषतः ग्लूकोस हेतु बढ़ा देता है। यह ऊत्तकों व अंगों में ग्लाइकोजन कणों के संचय की उत्तेजित करता है अतः रक्त में ग्लूकोस की मात्रा को घटाता है। (ii) यह प्रोटीन्स संश्लेषण में वृद्धि करता है।

(iv) यह एडिनाइल साइक्लेज को संदमित करता है अतः चक्रीय (cyclic) AMP की मात्रा को घटाता है जो कि अमीनों अम्लों एवं वसीय अम्लों से ग्लूकोस के संश्लेषण हेतु आवश्यक एंजाइम को प्रभावित करते हैं अर्थात् ग्लूकोनिओजेनिसस (gluconeogenesis) को प्रभावित करता है। इस कारण भी रक्त में ग्लूकोस की मात्रा में कमी होती है।

(v) ग्लूकोस से ग्लाइकोजन बनने की क्रिया ग्लाइकोजेनिसस (glycogenesis) के संश्लेषण की उत्तेजित करता है।

(vi) यह अधिवृक्क ग्रन्थि द्वारा स्रावित हारमोन ग्लूकोर्टिकॉइड्स के साथ एवं अन्य अन्तः स्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्रावित हारमोन के सहयोग से ऊत्तकों में कोशिकीय विभोदनकारी क्रियाओं में भाग लेता है।

मनुष्य के रक्त में ग्लूकोस की एक निश्चित मात्रा रक्त प्लाज्मा भाग में ऊर्जा के तात्कालिक उपयोग हेतु रक्त परिवहन में सर्वदा उपस्थित रहती है। यह मात्रा 90-100 मि.ग्रा./ 100 कि.ग्रा. प्लाज्मा के लगभग होती है।

इन्सुलिन के अपर्याप्त परिमाण में स्रावित होने से ग्लूकोस का संग्रह एवं उपयोग अर्थात् पूर्ण कार्बोहाइड्रेट उपापचय प्रभावित होता है। इन दोनों की क्रियाओं में संदमन होता है। भोजन के पाचन द्वारा उत्पन्न ग्लूकोस रक्त में एकत्रित हो जाता है तथा इसके स्तर को बढ़ाकर अतिग्लूकोस रक्ता (hyperglycemia) को उत्पन्न करता है। इस स्तर के वृक्कीय देहली (renal threshold) स्तर से बढ़ने पर ग्लूकोस मूत्र के साथ उत्सर्जित क्रिया जाने लगता है, यह अवस्था ग्लूकोसूरिया (glycosuria) कहलाती है। इसकी कमी से ही वसाओं का अपचय (catabolism of fats) बढ़ जाता है और वसाएँ ग्लूकोस में परिवर्तित होकर रक्त में ग्लूकोस की मात्रा को ओर अधिक बढ़ा देती है जो 300-120 मि.ग्रा. 100 मि.ली. प्लाज्मा तक पहुँच जाता है और अनेक रोगों को जन्म देती । रक्त में कोटीन-काय (kotone bodies) एकत्रित होने लगती है। जो रक्त का (pH) बदलकर रोगी को काल का ग्रास बना देती है इन्सुलिन के प्रभाव से प्रोटीन उपापचय (protein metabolism) में भी अनेक परिवर्तन होते हैं इन्सुलिन की अधिक मात्रा से उत्तकों में प्रोटीन्स की कमी होने लगती है।

जंतु की वृद्धि (growth) पर इस हार्मोन का प्रभाव अपरोक्ष रूप से होता है। प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट उपापचय के असंतुलित होने पर जन्तु की वृद्धि रूक जाती है। यह हार्मोन वृद्धि (growth hormone) के साथ मिलकर जंतु की वृद्धि को प्रभावित करता है। इसकी कमी होने पर अकेला (GH) जंतु की वृद्धि को बनाये नहीं रख पाता है।

ग्लूकागोन (Glucagen) इस अन्तःस्रावि ग्रन्थि की & कोशिकाओं द्वारा यह हार्मोन स्रावित किया जाता है। यह हाइपरग्लाइसेमिक, ग्लाइकोजिनोलाइटिक कारक (hyperglycemic glycogenolytic factor) HGF के नाम से भी जाना जाता है। इस हार्मोन द्वारा अतिग्लूकोस रक्ता पर प्रभाव का अध्ययन सर्वप्रथम किम्बैल एवं मर्लिन (Kimbell and Murlin; 1923) द्वारा किया गया। यह पॉलीपेप्टाइङ प्रकृति का हार्मोन है जिसका अणुभार 3485 होता है । इस अणु की रचना में 29 अमीनों अम्ल एक सीधी श्रृंखला में व्यवस्थित रहत हैं। जठरान्त्र एवं ग्रहणी भाग के श्लेष्मिक उपकला की कुछ कोशिकाएँ भी इसी प्रकार के पदार्थ का स्रवण करती है। इस हार्मोन की संरचना सिक्रिटिन (secertin) से अधिक समानता रखती है। शर्करा युक्त भोजन के अन्तग्रहण पर आन्त्रीय ग्लूकागोन हार्मोन का स्रावण उपरोक्त कोशिकाएँ। उत्तेजित होकर करती है। यह हार्मोन अग्नाशय की कोशिकाओं को उत्तेजित का इन्सुलिन हार्मोन का स्रवण कराता है। मुक्त ग्लूकागोन हार्मोन जो रक्त में प्रवाहित होता है, यकृत द्वारा संश्लेषण किण्टक ग्लूकागोजेन (glucagonase) द्वारा निष्क्रिय कर दिया जाता है। रक्त में ग्लूकोस की सान्द्रता के निश्चित मात्रा से कम होने पर अग्नाशय की कोशिकाएँ उत्तेजित होकर इस हार्मोन का स्रवण आरम्भ कर देती है।

चित्र 38 (A) : ग्लूकेगोन की आणविक संरचना

(i) ग्लूकागोन हार्मोन यकृती एडीनाइल साइक्लेज किण्टक के उत्पादन का उत्तेजित करता है, अतः चक्रीय AMP की मात्रा अन्तरागों में बढ़ जाती है। यह D फॉस्फोराइलेज किण्वक को उत्तेजित कर फॉस्फोराइलेज किण्वक को सक्रिय कर देता है अतः यकृती ग्लाइकोजन का विखण्डन तेजी से शुरू होता है और रक्त में ग्लूकोस की मात्रा में वृद्धि होती है। यह अवस्था अतिग्लूकोसरक्ता (hyperglycemia) कहलाती है।

(i) यह अमीनो अम्ल से प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया को यकृत में सम्पन्न कराने में संदमनकारी

प्रभाव उत्पन्न होता है। इसी प्रकार एसीटेट से वसीय अम्लों एवं कालेस्टरॉल के संश्लेषण में संदमन प्रभाव उत्पन्न किया जाता है। अमीनों अम्लों का उपयोग ग्लूकोस संश्लेषणकारी क्रियाओं (gluconcogensis) में किया जाता है। यकृत लाइपोलाइसिस एवं कीटोन – काय (ketone bodies) के बनने की क्रियाओं में वृद्धि होती है ।

(ii) यह ऊत्तकों को ऊर्जा उत्पन्न करने हेतु देह की आवश्यकतानुसार शीघ्र एवं अविरल ऊर्जा स्रोत ग्लूकोज उपलब्ध कराने हेतु आवश्यक होता है।

(iv) यह वृक्कों में गुच्छकीय निस्पन्दन दर (glonmerular filteration) GFR को बढ़ाया है तथा Na+, CI, K+, Po4 के उत्सर्जन को बढ़ाता है।

(v) यह वसीय ऊत्तकों मे भी लाइपोलाइसिस (lipolysis) की क्रियाओं में वृद्धि करता है। (vi) यह हार्मोन रक्त में Ca++ की सान्द्रता कम तथा मूत्र में अधिक बढ़ाने का कार्य करता है। (vii) यह हृदय की स्पन्दन दर एवं हृदयी संकुचन के दाब को बढ़ाया है।

(vii) इसके प्रभाव से आमाशयी स्रवण में कमी होती है। आंत्रीय क्रमाकूंचनी क्रियाओं में भी कमी का प्रभाव इसके द्वारा देखा गया है।