सहसंयोजक बंध का अणु कक्षक सिद्धांत , परमाण्विक कक्षकों को रेखीय संयोजन की विधि

(molecular orbital theory of covalent bonding) सहसंयोजक बंध का अणु कक्षक सिद्धांत : इस सिद्धान्त का प्रतिपादन हुण्ड , मोलिकन , जॉन्स ने किया था।
V.B.T तथा M.O.T में मूलभूत अंतर यह है कि V.B.T के अनुसार अणु या आयन में उपस्थित परमाणु रासायनिक बन्ध के पश्चात् भी अपनी पहचान रखते है।  एवं सभी bonding electron परमाण्वीय कक्षकों के अतिव्यापन से बने क्षेत्र में ही पूर्ण रूप से localised (स्थानीकृत) हो जाते है। जबकि अणु कक्षक सिद्धांत के अनुसार अणुकक्षकों में उपस्थित electron एक से अधिक परमाणुओं के नाभिक से संबंधित होते है।
अणु कक्षक सिद्धान्त के मुख्य बिन्दु निम्न है –
1. लगभग समान ऊर्जा के परमाण्वीय कक्षक रेखीय संयोग द्वारा आण्विक कक्षक बनाते है।
2. अणुकक्षकों में उपस्थित सभी electron delocalised (विस्थानिकृत) होते है।  इस प्रकार आण्विक कक्षक बहु केन्द्रीय एवं परमाण्वीय कक्षक एक केन्द्रिय होते है।
3. आण्विक कक्षकों में उपस्थित प्रत्येक इलेक्ट्रान को एक तरंगफलन Ψ द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।  प्रत्येक Ψ की परिभाषित करने के लिए निश्चित क्वांटम संख्याएं होती है जिससे इनकी ऊर्जा तथा आकृति आदि के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
4. एक अणु के प्रत्येक आण्विक तरंगफलन Ψ की निश्चित ऊर्जा होती है तथा अणु की कुल ऊर्जा का मान श्रोडिन्गर समीकरण द्वारा प्राप्त किया जाता है।
5. परमाण्विक कक्षकों के समान ही आण्विक कक्षकों में electron आफबो सिद्धांत , पाउली अपवर्जन नियम हुण्ड के अधिकतम बहकता नियम के आधार पर भरे जाते है।
6. MOT के अनुसार परमाण्विक कक्षक आपस में संयोग करके अणुकक्षकों का निर्माण करते है।
आण्विक कक्षकों के लिए सन्निकट तरंगफलन निकालने के लिए निम्न विधियाँ काम में ली जाती है –

परमाण्विक कक्षकों को रेखीय संयोजन की विधि (linear combination of atomic orbital )(LCAO method)

दो परमाणु अन्नत दूरी से एक दूसरे के निकट आते है तथा साम्य अवस्था दूरी तक समीप आने पर उनके परमाण्विक कक्षक अतिव्यापन करके आण्विक कक्षकों का निर्माण करते है अत: जब दो परमाण्विय कक्षक संयोग करते है तो बने हुए आण्विक कक्षकों का तरंग फलन परमाण्विय कक्षकों का तरंगफलन के योग अथवा अंतर के बराबर होता है।
यदि दो परमाणु A तथा B जिनके तरंग फलन ΨA तथा ΨB है , अन्नत दूरी से एक दूसरे के समीप आते है तो एक निश्चित दूरी जिसे साम्य अवस्था दूरी r0 कहते है  , पर ये परमाण्वीय कक्षक मिलकर आण्विक कक्षक बनाते है जिसका तरंगफलन Ψ निम्न है।
Ψ = ΨA + ΨB
उक्त समीकरण से स्पष्ट है की ΨA तथा ΨB के रेखीय संयोग से दो प्रकार के आण्विक कक्षक बनते है।
1. बंधी आण्विक कक्षक (B.M.O) : इन अणु कक्षकों का तरंग फलन ΨbΨA तथा ΨB के योग के बराबर होता है अर्थात समान चिन्ह वाले तरंग फलनों के अतिव्यापन से  बंधी आण्विक कक्षक बनते है।
ΨΨA + ΨB
2 .  विपरीत बंधी आण्विक कक्षक (A.B.M.O) : इन अणु कक्षकों का तरंग फलन Ψ*,ΨA तथा Ψके अंतर के बराबर होता है।
अर्थात विपरीत चिन्ह वाले तरंग फलनों के अतिव्यापन से विपरीत बंधी आण्विक कक्षक बनते है।
ΨΨA – ΨB
बंधी आण्विक कक्षकों की ऊर्जा अतिव्यापन में भाग लेने वाले परमाण्वीय कक्षकों की तुलना में कम होती है।  अत: ये अणु को स्थायित्व प्रदान करते है।
विपरीत बंधी आण्विक कक्षक (A.B.M.O) की ऊर्जा परमाण्वीय कक्षकों की तुलना में अधिक होती है अत: ये अणु को अस्थायी कर देते है।