कोरकुओं में विवाह संस्कार क्या है (Marriage Rites Among the Korkus in hindi) कोरकु जनजाति में संस्कार

(Marriage Rites Among the Korkus in hindi tribe) कोरकुओं में विवाह संस्कार क्या है कोरकु जनजाति में संस्कार कैसे होते है वर्णन कीजिये विस्तार से बताइए ?

कोरकुओं में विवाह संस्कार (Marriage Rites Among the Korkus)
स्टीफन फक्स (फक्स,1988ः 237-281) के अनुसार कोरकू लोगों में गाँव से बाहर और गोत्र से बाहर विवाह की परंपरा है। विवाह परिचित गोत्रों में भी नहीं हो सकता। एक ही कुटुम्ब के रिश्ते के भाई-बहनों में भी विवाह वर्जित है। अधिकांश विवाह परिवारजनों के तय किए हुए होते हैं। वैसे प्रेम विवाह की भी संभावना रहती है।

विवाह तय करते समय आर्थिक पृष्ठभूमि और समान सामाजिक स्तर का अवश्य ध्यान रखा जाता है।

कोरकू लोग संयुक्त परिवारों में रहते हैं और इसका यह अर्थ होता है कि विवाह से इस संस्था पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। विवाह के पहले वर्ष में नव विवाहिता अपना समय मुख्य रूप से अपनी सास और ननद के साथ बिताती है। विवाह तय करने की पहल लड़के के माता-पिता करते हैं। जब हर दृष्टि से उपयुक्त लड़की मिल जाती है तो उसके माता-पिता से संपर्क किया जाता है। आमतौर पर इस मामले में लड़के और लड़की की सलाह नहीं ली जाती। सारे प्रेम संबंधों और तनाव के खुले प्रदर्शन को शर्मनाक माना जाता है। इस तरह के मामलों में वधू की कीमत में भारी कमी हो जाती है और घर के सयाने इस तरह के विवाह में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं लेते। इस तरह से लड़का और लड़की तलाशने का काम मुख्य रूप से माता-पिता का ही होता है। लेकिन आजकल कोई भी लड़का अपनी इच्छा के विरूद्ध शायद ही विवाह करता होगा। सभी कोरकुओं में एक जैसे संस्कार नहीं होते। तोडा और अंडमान द्वीपवासी इसका उदाहरण हैं। इसी तरह नीमड़ के कोरकुओं और मेलघाट और मध्य भारत के कोरकुओं में भी अंतर होता है। नीमड़ के कोरकुओं में सगाई का दिन शुक्रवार होता है। लड़के का पिता और कोई ग्रामवासी वधू की कीमत लेता है। इन सभी को हम पूर्वसाक्रातिक रिवाज मान सकते हैं।

एक बैल या बछड़े की कीमत देनी होती है। लड़की के पिता को दिया गया बैल वर की मृत्यु हो जाने की स्थिति में लौटा देना होता है। बैल के दान का प्रतीकात्मक महत्व होता है। इससे दोनों परिवारों की मित्रता पर मुहर लग जाती है। विवाह के संस्कार कई दिन तक चलते हैं।

विवाह मंडप (The Wedding Shed): विवाह मंडप वर के गाँव में सोमवार को और वधू के गाँव में मंगलवार को बनाया जाता हैं। युवक लोग 12 सलाई वृक्ष कटाते हैं। उन्हें वधू या वर की माँ को दिया जाता है। उसके हाथों में एक थाली होती हैं जिसमें कच्चे चावल, ‘‘कुमकुम‘‘ और तेल होता है। वह आरती की मुद्रा में थाली को घुमाती है और एक पंक्ति में खड़े युवकों के माथे पर इनका तिलक लगाती है। उसके बाद विवाह मंडप बनाया जाता है। यह स्पष्ट रूप से एक पूर्वसांक्रांतिक प्रथा होती है जो विच्छेद की अवस्था के महत्व को रेखांकित करती है। जैसा कि हम देखेंगे, ये संस्कार कोरकुओं में अत्यधिक विस्तृत होते हैं।

बॉक्स 28.02
कोरकू जनजाति के लोग मध्य भारत में सतपुड़ा की पहाड़ियों में मिलते हैं विशेषकर वे उसके आसपास की महादेव पहाड़ी में रहते हैं। ये पहाड़ियाँ कोई 2000 फुट ऊँची हैं ओर पठारों में फैली हैं। कोरक सतपुड़ा की पहाड़ियों के मध्य भाग में, महादेव की पहाड़ी में ओर पूर्वी हिस्सों में रहते हैं। वे खेतिहर होते हैं। इस क्षेत्र पर विभिन्न राजनीतिक शक्तियों का राज्य रहा है और फिर कोरकुओं का हिंदूकरण हो गया । यहाँ हिन्दुकरण से हमारा आशय उस प्रक्रिया से है, जिसके तहत हिन्दुओं की धार्मिक रीतियों और संस्कारों को कोरकू लोगों ने अपनाया।

विवाह मंडप बनाए जाने के बाद वाली शाम को वर को स्नान कराया जाता है और पितरों को भेंट चढ़ाई जाती है। भेंट में विभिन्न किस्म के अनाज और मुर्गे को लिया जाता है। ये भेंटें पितरों के ‘‘मध्य स्तंभ‘‘ पर चढ़ाई जाती हैं । यह स्तंभ गाँव के बीच में होता है। वर केवल इस पर निगाह डालता है। स्त्रियाँ एक घेरे में बैठकर विवाह के गीत गाती हैं। इसके बाद स्त्रियाँ वर को हल्दी लगाती हैं। गाँव का ओझा एक मुर्गे की भेंट चढ़ाता है और देवता से युवा जोड़े के लिए प्रार्थना करता है। बारात फिर वधू के गाँव जाने को तैयार होती है। बारात में वर के साथ उसके रिश्तेदार स्त्री-पुरुष होते हैं। लेकिन वर की माँ को गाँव में ही रहना होता है। बारात शाम को पाँच बजे के आसपास वधू के गाँव में पहुँचती है।

वधू के गाँव में संपन्न होने वाले संस्कार (Ceremonies of the Bride’s village)ः वर की वैवाहिक पोशाक धोती, कमीज और नई पगड़ी होती है। उसे खंजर भी दिया जाता है जिसके नोक में एक नीबू टँगा होता है यह खंजर दुष्टात्माओं से रक्षा का प्रतीक होता है। फिर टनटनाती घंटियों के साथ बारात आगे बढ़ती है। रवाना होने से कुछ ही पहले आँगन में एक कंबल फैला दिया जाता है। वर अपनी भाभी को सात बार गले लगाता है। शायद यह पुराने समय में कई भाइयों के बीच एक पत्नी की प्रथा के अवशेष का प्रतीक है।

विवाह मंडप पर कपड़ा तान दिया जाता है। घर के प्रवेश द्वार के सामने दो जादुई चैक बनाए जाते हैं। इनमें से एक चैक में वर बैठता है। इसमें हमें संस्कार के साक्रांतिक पक्ष के दर्शन होते हैं। अब सजी-संवरी वधू को विवाह संस्कार संपन्न कराने के स्थान पर लाया जाता है। उसे उसका मामा अपनी पीठ पर बच्चों की तरह लादकर लाता है। वर को भी इसी प्रकार उसका मामा ही लेकर आता है। इस तरह दोनों को लेकर आँगन के तीन चक्कर लगाए जाते है। इस दौरान वर और वधू दोनों एक-दूसरे पर चावल और बाजरा फेंकते हैं। वे हल्दी भी फेंकते हैं। दोनों को मंडप के सामने बने चैक पर बिठा दिया जाता है। दोनों पर एक चादर डाल दी जाती है और उन पर पानी डाला जाता है। वर एक मोतियों की माला वधू को पहनाता है। वधू के लहंगे के छोर को वर की धोती या उसके कंधे पर पड़े गमछे से गाँठ लगा कर बाँध दिया जाता है। उसके बाद वर-वधू दोनों उठ कर मुतुआ देव की प्रतिमा तक जाते हैं। वहाँ पुरोहित भेंट चढ़ाता है।

नीमड़ के कोरकुओं में वधू अपने दाहिने हाथ की कनिष्ठका (सबसे छोटी अंगुली) से वर की कनिष्ठका को पकड़ती है। वे दोनों चारों और मध्य स्तंभ के पाँच फेरे लगाते हैं। अब वे औपचारिक रूप से विवाहित होते हैं। इसके बाद दोनों को अलग-अलग कर दिया जाता है और उन्हें दो चैकों पर अगल-बगल बिठा दिया जाता है। एक बार फिर वर की धोती को वधू के लहंगे से बाँध दिया जाता है। इसके बाद के संस्कार होंगे कि अब संक्रांति के चरण को पार किया जा चुका है। हम देखते हैं कि नीमड़ के कोरकुओं की प्रथाओं और संस्कारों में समाजीकरण, अमौखिक संवाद और उपचार के संस्कार शामिल रहते हैं। वास्तव में उनके विवाह संस्कार में भोज और नाटकीयता की प्रचुरता होती है। वैसे हिन्दुओं के विवाह के औपचारिक वातावरण, सीरियाई ईसाइयों के विवाह की भव्यता और सिक्खों के विवाह की सुंदरता और सुरुचिसंपन्नता के विपरीत कोरकुओं के विवाह में भोज, रंग और संगीत की विविधता होती है। लेकिन इससे उसकी गंभीर प्रकृति नष्ट नहीं होती।

सारांश
इस इकाई में हमने विभिन्न समुदायों में जन्म और विवाह के संस्कारों का विवरण और व्याख्या दी है। ये समुदाय हैंः हिन्दू, सीरियाई ईसाई, सिक्ख और कोरकू । इस तरह हमने इस विषय पर पर्याप्त चर्चा की है।

 कुछ उपयोगी पुस्तकें
कोल, डब्ल्यू, ओ.,और सांभी, पी. एस., 1978, ‘‘दि सिक्खसः देयर रिलीजियस बिलीफ्स एंड प्रैक्टिसिस‘‘, विकास पब्लिशिंग हाउस प्रा. लि. नई दिल्ली
पोथान, एस. जी., 1963, “द सीरियाई क्रिश्चियन्स ऑफ केरला‘‘, एशिया पब्लिशिंग हाउसः दिल्ली
सरस्वती, बी. एन., 1977, ‘‘ब्राहमनिक रिचुअल ट्रेडीशंसः इन द क्रूसिबिल आफ टाइम्स‘‘, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीः शिमला
सरस्वती, बी एन., 1984, दि स्पेक्ट्रम ऑफ द सेक्रेड‘‘, (रांची एंथ्रोपोलॉजी सीरीज 6, संपादकः एल. पी. विद्यार्थी) कंसेप्ट पब्लिशिंग कंपनी, नई दिल्ली

 शब्दावली
गोपनीय (Esoteric) ः वे क्रिया (ए) या प्रतीक जो विशेषीकृत या ‘‘गुप्त‘‘ होते हैं और केवल कुछ विशेष व्यक्यिों को ही इनका पता होता है।
लोक प्रचलित (Exoteric) ः वे क्रियाएं या प्रतीक जो आम आदमी को ज्ञात होते हैं और जिन्हें वह समझता है।
समावेशन (Incorporation) ः वे संस्कार जो व्यक्ति का समाज में विलय करते हैं जैसे- जन्म के संस्कार।
अभिज्ञान (Identification) ः ऐसे संस्कार जो व्यक्ति को एक नई पहचान देते हैं, जैसे कान छेदना।
विच्छेद (Sepration) ः ऐसे संस्कार जो जीवितों और मृतकों के बीच संबंध समाप्त करने के उद्देश्य से किए जाते हैं। जैसे-अंतिम संस्कार।
संस्कार (Ritual) ः संस्कार धर्म का सार तत्व होता है। इसके नियम मौखिक रूप से या शास्त्रों के माध्यम से दिए जाते हैं।
संक्रांति (Transition) ः ये संस्कार गर्भावस्था और दीक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

बोध प्रश्न 3
1) हिन्दुओं में विवाह के कुछ मुख्य संस्कार कौन से हैं? उनके नाम की सूची बनाइए।
2) सिक्खों के विवाह संस्कारों का विवरण लगभग पाँच पंक्तियों में कीजिए।

 बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 3
प) क) गणेश पूजा
ख) पितरों और देवी की पूजा
ग) कन्यादान
घ) सप्तपदी
पप) सिक्खों में श्री गुरु ग्रंथ साहिब का सर्वोच्च स्थान होता है। वर-वधू को अपनी सहमति व्यक्त करने के लिए इनके समक्ष शीश नवाना होता है। बाद में वे गुरु रामदास के छंदों के गाए जाने के साथ इसके चार फेरे लगाते हैं। इसके बाद ही विवाह को विधिवत संपन्न माना जाता है।