कुपोषण की परिभाषा क्या है ? कुपोषण के कारण रोग या विकार malnutrition nutritional deficiency and disorders

malnutrition nutritional deficiency and disorders meaning in hindi , कुपोषण की परिभाषा क्या है ? कुपोषण के कारण रोग या विकार ? जीव विज्ञान में कुपोषण किसे कहते है ?

nutritional deficiency and disorders (पोषण की न्यूनता और इससे सम्बंधित रोग) : भोजन और पोषण को अनुचित ग्रहण करने के कारण स्वास्थ्य में गडबडी कुपोषण के रूप में पहचानी जाती है।

कुपोषण (malnutrition) एक शब्द है जो कि अल्प पोषण या अत्यधिक पोषण की समस्याओं को बताता है।

एक व्यक्ति या व्यक्तिगत समूह भोजन की अनुपलब्धता के कारण अल्पपोषित या कुपोषित हो सकता है। तथा हालाँकि भोजन और पोषण की न्यूनतम जरूरत के कारण भी कुपोषित हो सकता है।

माल कुपोषण की स्थिति में , भोजन ग्रहण की इतनी अपर्याप्तता होती है कि उपापचयी ऊर्जा की आवश्यकता पूरी नहीं होती।

फलस्वरूप व्यक्ति के स्वयं के शरीर के अणुओं के उपापचय की दर अपेक्षा से कम होती जाती है। अत्यधिक पोषण बढे हुए शरीर द्रव्यमान के रूप में संग्रहित हो जाते है। ऐसी स्थिति अतिपोषण के लिए उत्तरदायी होती है।

संतृप्त वसा जैसे बटर , घी , वेजिटेबल तेल , लाल मांस , अंडा आदि का अत्यधिक उपयोग हाइपरकोलेस्ट्रोरोलेमिआ उत्पन्न करता है।

हाइपरकोलेस्ट्रोरोलेमिआ एक स्थिति है जिसमे रक्त में कोलेस्टोल का स्तर असामान्य रूप से अधिक हो जाता है। अंततः कार्डियक असामान्यत उत्पन्न करता है। रक्त वाहिनियों की दीवारों पर कोलेस्ट्रोल का जमाव रक्त वाहिनियो को कठोर बनाता है। और रक्त दाब बढ़ा देता है।

इसके अतिरिक्त कैलोरी (चीनी , शहद , घी आदि) का अत्यधिक मात्रा में ग्रहण करना अतिवजन और मोटापा उत्पन्न करता है। (उत्तको में वसा का अधिक जमाव) जो कि अतिपोषण का सामान्य रूप है।

मिनरल और वसा घुलनशील विटामिन का बहुत अधिक उपयोग टोक्सिक हो सकता है। यह इसलिए होता है क्योंकि ये शरीर में संगृहीत होते है , अपवाद फोलिक एसिड।

लोग जिनका अच्छा संतुलित भोजन होता है उन्हें पर्याप्त ऊर्जा की आपूर्ति होती है। इन्हें पूरक भोजन लेने की आवश्यकता नहीं होती लेकिन यदि ये पूरक पोषण (सप्लीमेंट) लेने का निश्चय करते है तब इन्हें ओवर डोज के खतरे को कम करने के लिए लेबल पर अंकित सलाह माननी चाहिए।

पाचन तंत्र से सम्बंधित असामान्यतायें और सम्बंधित शब्दावली

1. डकार या उबकाई (belching ) : यह सामान्यतया तब उत्पन्न होता है जब आमाशय over dilated हो जाता है अर्थात अमाशय अत्यधिक फ़ैल जाता है। वायु बढ़ जाती है और burping ध्वनी उत्पन्न करते हुए मुंह से निकलती है।

2. constipation (कब्ज़) : यह एक स्थिति है जब मल अत्यधिक शुष्क हो जाता है और मलत्याग बहुत कठिन हो जाता है। यह तब उत्पन्न होता है जब अपचित भोजन कोलोन से धीरे धीरे गुजरता है और बड़ी आंत में पानी की अधिक मात्रा अवशोषित हो जाती है।
3. diarrhoea (दस्त) : यह वह स्थिति है जब मल तरल जैसा पतला हो जाता है और बार बार मल उत्सर्जन होता है। यह कोलोन की दीवारों के क्षुब्ध होने और क्रमाकुंचन गति बढ़ने के कारण होता है। बड़ी आंत में मल की तेज गति होती है और पानी का अवशोषण बहुत धीरे धीरे होता है। प्रोटोजोआ , बैक्टीरिया के संक्रमण या तंत्रिका तनाव द्वारा भी उत्पन्न हो सकता है।
4. obesity (मोटापा) : यह वह स्थिति है जब शरीर में वसा संग्रहण बढ़ जाता है और सबक्यूटेनियस परत में असामान्य जमाव उत्पन्न हो।  यह तब उत्पन्न होता है जब शरीर द्वारा ली गयी ऊर्जा खर्च की गयी ऊर्जा से अधिक होती है। अतिरिक्त भोजन से ऊर्जा की 9.3 कैलोरी मात्रा शरीर में 1 ग्राम वसा जमाव बढाती है जो कि मोटापा उत्पन्न करता है।
5. flatus  (अधोवायु या पाद या गैस) : यह जठर आन्त्रिय प्रणाली में गैस का एकत्रित होना है जो कि गुदा द्वारा लाक्षणिक ध्वनि उत्पन्न करने के साथ बाहर निकाल दी जाती है।
6. hepatitis (हेपेटाइटिस)  : यह यकृत में सुजन की अवस्था है जो कि वायरस , बैक्टीरिया और प्रोटोजोअन्स संक्रमण द्वारा उत्पन्न होती है। इसमें सिरोसिस भी हो जाता है।
7. colitis (कोलाइटिस) : यह एक असामान्यतया है जिसमे मलाशय और कोलोन में सुजन आ जाती है। जिसमे दस्त रक्त युक्त मल और डीहाइड्रेशन हो जाता है। यह एन्टअमीबा जैसे प्रोटोजोअन के संक्रमण के कारण होता है।
8. Appendicitis (पथरी) : कृमिरुपी परिशेषिका की दिवार क्षतिग्रस्त हो जाती है और सिलोमिक गुहा में बैक्टीरिया मुक्त हो जाते है। तीव्र संक्रमण से मृत्यु भी हो सकती है। सर्जरी द्वारा एपेंडिक्स बाहर निकाल दिया जाता है।
9. hernia (हरनिया) : यह inguinal canal में आंत का बाहर निकलना है और आंत वृषणकोश में फ़ैल जाती है। हार्निया विभिन्न प्रकार का हो सकता है। अन्य अंगो की गुहा में एक अंग का बहि:सरण प्रभावी होता है।
10. jaundice (पीलिया) : इस रोग में पित्त वर्णक जैसे बिलीरुबिन का रक्त में स्तर बढ़ जाता है और उत्सर्जित नहीं होता है जिससे इसकी सांद्रता रक्त में बढती है और त्वचा व नेत्र में पीलापन उत्पन्न होता है।
11. mumps (कण्ठमाला का रोग) : यह पैरोटिड ग्रंथियों में वायरस संक्रमण है। इसमें गले में सुजन आ जाती है और बुखार हो जाता है।
12. nausea (जी मिचलाना या जी मचलना) : यह बैचेनी से सम्बंधित है जो कि उल्टी उत्पन्न करता है। यह आमाशय या जठर आन्त्रिय प्रणाली के विस्तार के कारण होता है।
13. vomiting (उल्टी आना) : यह व्युत्क्रम क्रमाकुंचन द्वारा उत्पन्न एक स्थिति है जो कि आमाशय में हानिकारक पदार्थ या ग्रसनी में अवरोध और अर्द्धचंद्राकार नलिका में बाधा उत्पन्न होने के कारण होता है। इसमें भोज्य पदार्थ मुंह से होते हुए बाहर आ जाता है। वोमेटिंग केंद्र मेड्युल ऑब्लागेटा में स्थित होता है।
14. tonsilitis (टौंसिल या गलसुओ की सूजन) : ग्रसनी टोंसिल सूक्ष्मजीवो द्वारा संक्रमित हो जाते है। यह गले में दर्द उत्पन्न करता है जिससे बुखार हो जाता है।

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

  • assimilation : कोशिका द्वारा अवशोषित पदार्थो का उपभोग।
  • भूख का केंद्र हाइपोथैलेमस में होता है।
  • satiety केंद्र भी हाइपोथेलेमस में होता है।
  • ह्रदय जलन में ह्रदय के साथ सम्बन्ध नहीं होता है , यह आमाशय से ग्रासनल में एसिड के प्रतिक्षेपण के कारण होता है।
  • splanchnology आंतरांगो का अध्ययन है।
  • NIN : national institute of nutrition , Hyderabad
  • Anorexia : भूख न लगना।
  • sweet clover melilotus indica का spoilt hay में एक पदार्थ होता है जिसे dicumarol कहते है। dicumarol विटामिन K की क्रिया को रोकता है।
  • विटामिन्स को कौन नष्ट करता है ? : अत्यधिक पकाना , ज्यादा उबालना , दवाएँ , एस्प्रिन , एंटासीड , डाइयुरेटिक और एस्टोजन , अधिक एल्कोहल , तम्बाकू और काफी। चाय और कॉफ़ी , भोजन से आयरन के अवशोषण को कम करती है। भोजन के बाद चाय , काफी का लम्बे समय तक उपभोग आयरन अभाव एनीमिया उत्पन्न करता है।
  • ग्रासनाल के ऊपरी 1/3 भाग में केवल कंकालीय पेशियाँ पायी जाती है।
  • जल अवशोषण का प्रमुख स्थल छोटी आंत है।
  • यकृत , एल्बुमिन , फ्राइबिनोजन , प्रोथ्रोम्बिन , जैसे प्रोटीन उत्पन्न करता है।
  • सर्प की विष ग्रंथि रूपांतरित लेबियल ग्रंथि है जो कि पैरोटिड लार ग्रंथि के समजात है।
  • मानव के मलाशय में सामान्यतया क्रमाकुंचन गति नहीं होती।
  • मेंढक के वोमेराइन दांत शिकार को मार देते है।
  • व्हेल की जीभ गतिशील नहीं होती।
  • व्यस्क लैम्प रे , दाने खाने वाले पक्षी , चूहा , व्हेल में पित्ताशय नहीं होता , पेरिसोडेकटाइल (विषम अन्गुलास्थी स्तनी , उदाहरण घोडा) और कुछ आर्टियोडेक्टाइल (सम अंगुलास्थी)
  • एल्कोहोलिक्स में विटामिन C की कमी होती है।
  •  C आकार की ग्रहणी मानव का लक्षण है।
  • उच्च बुखार के दौरान , कोई भोजन लेना पसंद नहीं करता क्योंकि उच्च तापमान भूख केंद्र को संदमित या बंद कर देता है।
  • पित्त मानव में क्षारीय , किन्तु कुत्ते , बिल्ली में अम्लीय होता है।