hirudinaria granulosa in hindi , हिरूडिनेरिया ग्रैनुल्स का संघ , वर्ग , वंश , जाति हिरुडिनेरिया ग्रैनुलोसा क्या होती है ?
हिरुडिनेरिया ग्रैनुलोसा (Hirudinaria granulosa)
वर्गीकरण
संघ – ऐनीलिडा
वर्ग – हिरूडीनिया
गण – ग्लैथोब्डेलिडा
कुल – हिरूडाइनी
वंश – हिरुडिनेरिआ
जाति – ग्रैनुलोसा
स्वभाव और आवास : हिरुडीनिया वर्ग में जोंकों को स्थान दिया गया है। हिरुडिनेरिया ग्रैनुलोसा सामान्यतया तालाबों , झीलों , दलदलों और गीली मिट्टी में पाया जाता है।
यह सामान्यतया अपने चुषकों द्वारा पशुओं के शरीर पर बाह्य परजीवी की तरह चिपकी मिलती है। यह भी अन्य बाह्यपरजीवियों की भाँती रुधिराहारी होती है।
इसका शरीर कोमल , कृमिरूपी , लम्बा और पृष्ठ अधरी चपटा होता है। इसके शरीर के पश्च सिरे पर एक बड़ा पश्च चूषक और इसके ठीक आगे , मध्यपृष्ठ रेखा में गुदा उपस्थित होते है।
इसके शीर्ष अविकसित होता है एवं शीर्ष के अधरतल पर एक माँसल अग्र चूषक होता है।
इस चूषक में एक त्रिअरीय मुख उपस्थित होता है। जिसकी सहायता से यह “y” के आकार का निशान पशुओं और मनुष्य के शरीर पर बनाकर रक्त चूसता है।
इसके शरीर में प्राय: 33 देहखण्ड या मेटामियर्स पाए जाते है।
पहले के दो और अंतिम के सात खंडो को छोड़कर शेष खण्डो में से प्रत्येक खंड फिर से खांचो द्वारा वलयों या छल्लो में उपविभाजित होता प्रतीत होता है। एक खण्ड में सामान्यतया पांच छल्ले पाए जाते है। वे खंड जिनमे पांच से कम छल्ले उपस्थित होते है अपूर्ण खंड कहलाते है।
जनन के समय नौवे , दसवें और ग्याहरवें खंड आपस में मिलकर क्लाइटेलम का निर्माण करते है। इसकी आहारनाल पूर्णतया तीन भागों – स्टोमोडियम , मीसेन्ट्रान और प्रोक्टोडियम में बंटी होती है।
हिरूडिनेरिया में विशिष्ट श्वसनांग नहीं होते।
इसके उत्सर्जी तंत्र में 17 जोड़ी सूक्ष्म कुंडलित नलियाँ होती है जिन्हें वृक्क कहते है।
ये वृक्क छठे खण्ड से 22 वें खण्ड तक प्रत्येक खण्ड में होते है।
सामान्यतया वृक्क दो प्रकार – वृषण वृक्क और वृषण-पूर्वी वृक्क , के होते है।
तंत्रिका तन्त्र पूर्ण विकसित और केन्द्रीय , परिधीय तथा अनुकम्पी प्रकार का होता है।
हिरूडिनेरिया में सामान्यत: चार प्रकार के संवेदी अंग या ग्राही अंग तंत्रिका छोर , वलयस्थ ग्राही , खण्डग्राही और नेत्र पाए जाते है। ये सभी एपीडर्मिस की रूपांतरित कोशिकाएं होती है।
इन जन्तुओं में अलैंगिक जनन नहीं पाया जाता। ये उभयलिंगी होते है लेकिन इनमे स्वनिषेचन नहीं पाया जाता। नर जननांग 12 वें खंड से लेकर 22 वें खण्ड तक वृषण कोष (जो कि 11 जोड़ी होते है। ) के रूप में और मादा जननांग 11 वें खण्ड में स्थित एक जोड़ी अंडाशय कोष के रूप में विद्यमान होते है।