जाने liquid ammonia as solvent in hindi द्रव अमोनिया विलायक के रूप में अजलीय विलायक Non aqueous solvents ?
द्रव अमोनिया विलायक के रूप में
द्रव अमोनिया पहला अजलीय विलायक है जिसकी लगभग एक शताब्दी पूर्व, फ्रेंकलिन, क्राउन तथा कँडी द्वारा सुव्यवस्थित ढंग से छानबीन की गई थी। इसकी सुगमता से उपलब्धि, आसानी से काम में लिये जा सकने, तथा “जल जैसे ” गुणों के कारण बहुत से कार्बनिक तथा अकार्बनिक संश्लेषणों (Syntheses) में इसे विलायक रूप में काम में लिया जाता है।
द्रव अमोनिया के भौतिक गुण
अमोनिया अणु का नाइट्रोजन परमाणु sp3 संकरित होता है इस प्रकार से प्राप्त चार संकर कक्षकों में से तीन sp3 संकर कक्षक तो हाइड्रोजन परमाणुओं के साथ बन्ध बनाने में काम आ जाते हैं तथा चौथा sp 3 संकर कक्षक दो इलैक्ट्रॉनों से भरा होता है, जैसे कि चित्र 1 में दिखाया गया है। इस प्रकार अमोनिया अणु की पिरेमिडीय संरचना होती है जिसमें इलेक्ट्रॉन का एक एकल युग्म ऊपर की ओर लक्षित होता है । अमोनिया में H-N-H बन्ध कोण (107° 28′) चतुष्फलकीय ज्यामिति के लिए अपेक्षित बन्ध कोण (109°20) से कुछ कम होता है । यह इलेक्ट्रॉनों के एकल युग्म तथा बन्धी युग्मों के मध्य प्रतिकर्षण का परिणाम है। N की विद्युतऋणता H से अधिक होने के कारण यह N : H इलेक्ट्रॉन युग्म को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है जिससे N पर आंशिक ऋणावेश तथा प्रत्येक H पर आंशिक धनावेश आ जाता है। तीनों H परमाणुओं से बने त्रिभुज को केन्द्र को अणु में धनावेश का केन्द्र माना जा सकता है । N के ऊपर एकल युग्म ऋणावेश का क्षेत्र है । अतः ऋणावेश का केन्द्र N से ऊपर की तरफ होगा। NH3 में धन तथा ऋणावेश अलग-अलग बिन्दुओं पर केन्द्रित होने के कारण अमोनिया अणु में काफी ध्रुवता आ जाती है ।
अमोनिया के मुख्य भौतिक गुण सारणी 7.1 में दिये गये हैं । तुलना के लिए यहां जल के मानों को भी दिया गया है। कुछ मुख्य भौतिक गुणों की निम्न प्रकार व्याख्या की जा सकती है-
1.द्विध्रुव आघूर्ण : अमोनिया के उच्च द्विध्रुव आघूर्ण का मान यह प्रदर्शित करता है कि पृथक अणुओं में आवेशों के मध्य काफी दूरी होती है। अतः अमोनिया में, जल की तरह, अणु काफी हद तक हाइड्रोजन बंन्ध द्वारा बन्धित होते हैं।
- गलनांक तथा क्वथनांक -अमोनिया तथा जल अणु इलेक्ट्रॉन युग्म की उपस्थिति के कारण, ध्रुवीय होते हैं। ध्रुवीय प्रकृति के कारण NH3 अणु आण्विक हाइड्रोजन बंध बनाने में सफल होते हैं जिसके फलस्वरूप इनके गलनांक तथा क्वथनांक अध्रुवीय यौगिकों, जैसे मेथेन (गलनांक – 164°C) की तुलना में उच्च होते हैं। परन्तु जल की तुलना में अमोनिया में हाइड्रोजन बन्ध दुर्बल होने के कारण अमोनिया में अणु परस्पर अपेक्षाकृत कम दृढ़ता से जुड़े होते हैं और इसलिये इसके गलनांक तथा क्वथनांक दोनों ही जल से कम होते हैं। कक्षीय ताप की अपेक्षा अमोनिया का ताप परिसर (-78°C से −33°C) बहुत कम होता है। अतः इस विलायक में अभिक्रियाओं के अध्ययन के लिए निम्न ताप बनाये रखना पड़ता है जो काफी असुविधाजनक है।
- विलेयता : आयनिक लवण जल की तुलना में अमोनिया में कम विलेय हैं। यह जल की अपेक्षा अमोनिया के कम डाइइलेक्ट्रिक स्थिरांक के कारण है। लवणों में जैसे-जैसे आयनिक गुण कम होते हैं, अमोनिया में उनकी विलेयता बढ़ती जाती है। यही कारण है कि आयोडाइड, थायोसायनेट जैसे बड़े तथा ध्रुवणशील आयन द्रव अमोनिया में अधिक विलेय होते हैं। हेलाइडों में आयनिक आकार बढ़ने पर आयन की ध्रुवणशीलता बढ़ती है तथा ध्रुवणशीलता बढ़ने पर सहसंयोजक गुण बढ़ते हैं, जिससे उनकी अमोनिया में विलेयता भी बढ़ती जाती है :
इसी प्रकार बड़े आकार तथा न्यूनतम ऋणावेश वाले अन्य ऋणायन जैसे थायोसायनेट परक्लोरेट नाइट्रेट तथा सायनाइड लवण अमोनिया में विलेय होते हैं जबकि अधिक आवेश वाले ऋणायनों के लवण जैसे सल्फेट, सल्फाइट, कार्बोनेट, फॉस्फेट, सल्फाइड आदि अविलेय रहते हैं। जैसा कि पूर्व में बताया गया है. अमोनिया में सभी अमोनियम लवण अम्ल के रूप में तथा ऐमाइड क्षारक के रूप में आचरण करते हैं। लगभग सभी अमोनियम लवण तथा अधिकांश क्षार धातु ऐमाइंड द्रव अमोनिया में विलेय होते हैं।
हम जानते हैं कि अधिकांश कार्बनिक यौगिक अध्रुवीय या अति न्यून धुवीय होते हैं। अतः ये जल की अपेक्षा अमोनिया में अधिक विलेयशील होते हैं। इस प्रकार, द्रव अमोनिया में ऐल्कोहॉल, कीटोन, ऐस्टर, कुछ ईथर, फीनॉल तथा उनके व्युत्पन्न विलेय होते हैं ऐरोमैटिक यौगिक सामान्यतः अमोनिया में अल्पविलेय होते हैं जबकि जल में लगभग अविलेय रहते हैं।
- प्रोटॉन बंधुकता जल की अपेक्षा अमोनिया की अधिक प्रोटॉन बन्धुकता से स्पष्ट है कि अमोनिया अणु के इलेक्ट्रॉनों का एकल युग्म, जल के एकल युग्मों की तुलना में प्रोटॉन से अधिक अच्छी तरह उपसहसंयोजन बन्ध बना सकता है। इसके अतिरिक्त नाइट्रोजन की कम विद्युतॠणता (O की अपेक्षा) भी इसे जल की अपेक्षा एक उत्तम इलेक्ट्रॉन दाता बना देती है।
- श्यानता अमोनिया की श्यानता कम होने के कारण इसमें जल की अपेक्षा आयनिक गतिशीलता अधिक होती है। उदाहरण के लिए 20°C पर अमोनिया में पोटैशियम आयन की गतिशीलता जल की अपेक्षा 2.63 गुणा अधिक होती है।
- स्वतः आयनन : ‘जल की अपेक्षा अमोनिया का स्वतः आयनन कम होता है। यह इसके कम विद्युत चालकता के मान (जल की तुलना में) से भी स्पष्ट है।
2NH3 — NH4+ + NH2
– 50°C पर अमोनिया का आयनिक गुणनफल का मान बहुत ही कम है, [NH2+] [NH2– ]=1.9 × 10-33, जबकि जल के लिए यह मान 1 × 10-14 है (25°C पर)।
ऊपर दिये गये विवेचन से हमें अमोनिया को विलायक के रूप में समझने में सहायता मिलती है। B. द्रव अमोनिया में अभिक्रियाएँ (Reactions in liquid ammonia ) :- द्रव अमोनिया में अभिक्रियाओं को मुख्य रूप से निम्न सात भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(1) अमोनिया प्रोटॉन ग्राही के रूप में, (2) अमोनिया इलेक्ट्रॉन दाता के रूप में, (3) अम्ल-क्षारक अभिक्रियाएँ, (4) विनिमय अभिक्रियाएँ, (5) अमोनोअपघटन, (6) रिडॉक्स अभिक्रियाएँ, तथा (7) अमोनिया में धातु के विलयनों की अभिक्रियाएँ ।
- अमोनिया प्रोटॉन ग्राही के रूप में (Ammonia as a proton acceptor) – अमोनिया एक शक्तिशाली प्रोटॉन ग्राही है ।
NH3 + H+ = NH4+
इसमें प्रोटॉन लेने की बहुत अधिक प्रवृत्ति पाई जाती है- यहां तक कि यह उदासीन या दुर्बल क्षारीय पदार्थों से भी प्रोटॉन ले लेता है। उदाहरण के लिए जल से प्रोटॉन ले लेने की अभिक्रिया को नीचे दिखाया गया है।
इस अभिक्रिया के कारण अमोनिया की जल में या जल की अमोनिया में बहुत अधिक विलेयता पाई जाती है। जलीय विलयन में ऐसीटिक अम्ल एक दुर्बल अम्ल है, लेकिन अमोनिया में इसका आचरण प्रबल अम्ल जैसा होता है। इसका कारण यह है कि शक्तिशाली प्रोटॉन ग्राही होने के कारण NH3 अणु ऐसीटिक अम्ल के सभी अणुओं से प्रोटॉन ले लेते हैं जिससे ऐसीटिक अम्ल लगभग पूर्ण रूप से आयनित हो जाता है। दूसरी ओर, H2O एक दुर्बल प्रोटॉन ग्राही होने के कारण बहुत कम ऐसीटिक अम्ल अणुओं से प्रोटॉन ले पाता है जिससे अधिकांश ऐसीटिक अम्ल अणु अवियोजित ही रहते हैं ।
CH3CO.OH + NH3 CH3COO + NH4+
ऐसीटेमाइड तथा यूरिया जलीय विलयन में दुर्बल क्षारीय होते हैं, लेकिन द्रव अमोनिया में अम्लीय गुण दर्शाते हैं-
CH3CO.NH2+ NH3 = CH3.CO.NH– + NH4+
NH2.CO.NH2+ NH3 = NH2 CO.NH ̄+ NH4+
इसी प्रकार से, सिल्वर ऐमाइड, जो जलीय विलयन में एक दुर्बल क्षारक है, द्रव अमोनिया में एक अम्ल की तरह आचरण करता है-
AgNH2 + 2NH3 = [Ag(NH2)2]+ NH4+
उपर्युक्त सभी उदाहरणों में द्रव अमोनिया में NH4+ आयनों की सांद्रता बढ़ जाती है । अतः कैडी तथा ऐल्से के अनुसार ये सभी पदार्थ अम्लों की तरह आचरण करते हैं।
- अमोनिया इलेक्ट्रॉन दाता के रूप में- अमोनीकरण (Ammonia as electron donor- ammonation) :- जैसा कि पहले बताया जा चुका है अमोनिया की संरचना इस प्रकार की है कि वह एक अति उत्तम लूइस क्षारक का काम कर सकती है। इसका एकल युग्म अपने ऋण आवेश को ग्राही के खाली कक्षकों में केन्द्रित कर सकता है। ऐसी कुछ अभिक्रियाएँ नीचे दी गई हैं-
अमोनिया जल की अपेक्षा एक उत्तम लूइस क्षारक है। ऑक्सीजन का छोटा परमाणु आकार, अधिक विद्युतऋणता तथा इस पर एक से अधिक एकल युग्म होने के कारण जल अणु ग्राही परमाणुओं के साथ अमोनिया की जितनी दृढ़ता से बन्ध नहीं बना सकते। अतः अमोनिया द्वारा जल अणु विस्थापित हो जाते हैं।
- अम्ल-क्षारक अभिक्रियाएँ- जल की तरह अमोनिया भी स्वतः आयनित होता है-
2NH3 → NH4+ + NH2–
कँडी तथा ऐल्से की परिभाषा के अनुसार द्रव अमोनिया में NH- आयन देने वाले पदार्थ अम्ल तथा NH4+ आयन देने वाले पदार्थ क्षारक होंगे। इस प्रकार, द्रव अमोनिया में सभी अमोनियम लवण अम्ल है तथा विलेय ऐमाइड क्षारक होंगे। उदाहरण के लिए, अमोनियम क्लोराइड तथा पोटैशियम ऐमाइड के नव्य अभिक्रिया एक विशिष्ट अम्ल-क्षारक अभिक्रिया है, जिसका अन्त्य बिन्दु (end point) निर्धारण चालकतामूलक (conductometric) से या फिनोलफ्थेलिन सूचक द्वारा ज्ञात किया जा सकता है। जलीय विलयन में भी प्रबल अम्लों तथा प्रबल क्षारकों के मध्य इसी प्रकार से चालकतामूलक अनुमापन तथा फिनोलफ्येलीन सूचक से अन्तिम बिन्दु का निर्धारण किया जा सकता है। इस प्रकार की अभिक्रियाएँ जिनमें अम्ल तथा क्षार के संयोग से लवण तथा विलयन अणुओं का निर्माण होता है, उदासीनीकरण अभिक्रियाएँ कहा जाता है। द्रव अमोनिया में होने वाली कुछ अभिक्रियाएँ नीचे दी गई हैं। तुलना की दृष्टि से इसी प्रकार की जलीय विलयन में होने वाली अभिक्रियाएँ भी शामिल की गई हैं:
आयनिक रूप में उपर्युक्त अभिक्रियाएँ निम्न प्रकार लिखी जा सकती हैं-
NH4+ + NH2 =2NH3
अन्य उदाहरण इस प्रकार हैं-
2NH4 I + PNH → PbI2 + 3NH3
3NH4I + I + BiN → Bil3 + 4NH3
द्रव अमोनिया में अमोनियम लवणों का अम्लीय आचरण इस बात से स्पष्ट है कि (i) ये क्षारीय प्रकृति के धातु ऑक्साइड तथा हाइड्रॉक्साइडों को घोल लेते हैं, (ii) कुछ धातुओं के साथ हाइड्रोजन निकालते हुए अभिक्रिया करते हैं तथा (iii) दुर्बल अम्लों के लवणों को अपघटित करते हुए विलेय कर लेते हैं : बहुत से ऑक्सीजन यौगिक तथा अनुरूपी नाइट्रोजन युक्त यौगिक सारणी 10.2 में दिये गये हैं। इनमें इलेक्ट्रॉनों की संख्या व नाभिकीय आवेश समान हैं तथा ये एक से गुण प्रदर्शित करते हैं
अमोनिया में विलेय ऐमाइड बिल्कुल उसी प्रकार से प्रबल क्षारकों के गुण प्रदर्शित करते हैं जिस प्रकार से जल में विलेय हाइड्रॉक्साइड । ये धातु ऐमाइड, इमाइड तथा नाइट्राइडों को उसी प्रकार से अवक्षेपित कर देते हैं जिस प्रकार से जलीय तन्त्र में हाइड्रॉक्साइड तथा ऑक्साइड अवक्षेपित हो जाते हैं-
हम जानते हैं कि कुछ धातुओं के हाइड्रॉक्साइड तथा ऑक्साइड क्षारों की अधिकता में जल में घुलकर “हाइड्रॉक्सो” संकुल देते हैं। इसी प्रकार, बहुत से ऐमाइड, इमाइड तथा नाइट्राइड द्रव अमोनिया में KNH2 के साथ विलेय “ऐमीडो” संकुल देते हैं । उदाहरणार्थ,
ऐमाइड आयन हाइड्रॉक्साइड आयन की तुलना में अधिक प्रबल क्षारक हैं, अर्थात् OH- आयनों की अपेक्षा इसमें प्रोटॉन के प्रति अधिक चाह पाई जाती है, इसलिए यह अति दुर्बल अम्लों से भी प्रोटॉन लेकर लवण बना देता है-
- विनिमय या अवक्षेपण अभिक्रियाएँ (Metathetical or precipitation reactions):- द्रव अमोनिया में आयनिक यौगिकों की अवक्षेपण अभिक्रियाएँ उसी प्रकार से होती हैं जिस प्रकार से जलीय विलयन में पाई जाती हैं। तथापि, विभिन्न पदार्थों की द्रव अमोनिया तथा जल में अविलेयता के अन्तर के कारण, बहुत सी अवक्षेपण अभिक्रियाएँ द्रव अमोनिया में आसानी से की जा सकती हैं। सोडियम, अमोनियम तथा बेरिलियम क्लोराइडों के अतिरिक्त अन्य सभी क्लोराइड द्रव अमोनिया में अविलेय पाये जाते हैं। अतः द्रव अमोनिया में KI की NH4 CI के साथ अभिक्रिया से पोटैशियम क्लोराइड का एक सफेद अवक्षेप प्राप्त होता है।
KI + NH4CI +KCI++NH4I
इसी प्रकार से लीथियम क्लोराइड निम्न प्रकार अवक्षेपित होता है-
LiNO3 + NH4Cl > LiCI ↓ + NH4 NO3
सामान्य रूप से, अमोनियम लवण अन्य लवणों की अपेक्षा द्रव अमोनिया में अधिक विलेय है । द्रव अमोनिया में हेलाइडों की विलेयता का क्रम इस प्रकार है- आयोडाइड > ब्रोमाइड > क्लोराइड > फ्लुओराइड। ऋणायनों की प्रकृति विभिन्न लवणों की विलेयता को प्रभावित करती है। बहुसंयोजक ऋणायन जैसे सल्फेट, सल्फाइड, कार्बोनेट, आर्सेनेट, ऑक्साइड, सल्फाइड इत्यादि तथा हाइड्रॉक्साइड, द्रव अमोनिया में लगभग अविलेय हैं। एकसंयोजकीय ऋणायन, जो बहुइलेक्टॉन तन्त्र है, उदाहरणार्थ थायसायनेट, परक्लोरेट, नाइट्रेट, नाइट्राइट, ऐसीटेट तथा बहुत से आयोडाइड द्रव अमोनिया में काफी अधिक विलेय होते हैं ।
विलेयता को ध्यान में रखकर द्रव अमोनिया में ऐसी बहुत सी अवक्षेपण अभिक्रियाएँ की जा सकती हैं जो जलीय तन्त्र में सम्भव नहीं हैं। उदाहरण के लिए, सोडियम कार्बामेट (sodium carbamate) को जलीय विलयन से बनाना सम्भव नहीं है, लेकिन द्रव अमोनिया में इसे निम्न प्रकार से अवक्षेपित किया जा सकता है-
NH4[NH2CO.O]+ NaNO3 → Na[NH2CO.O]↓ + NHNO3
- अमोनोअपटन या अमोनोअपघटनी अभिक्रियाएँ (Ammonolysis reactions) – इस प्रकार की अभिक्रियाएँ जलअपघटन अभिक्रियाओं के समान हैं। उदाहरण के लिए क्षार धातु तथा क्षार मृदा धातु हाइड्राइड एक ही प्रकार से अमोनोअपघटित व जलअपघटित होते हैं-
NaH + NH3 द्रव अमोनिया NaNH2 + H2
NaH+ H2O जल → NaOH + H2
द्रव अमोनिया में अकार्बनिक सहसंयोजक हेलाइडों का आचरण उसी प्रकार का पाया जाता है जैसा कि जलीय विलयनों में उनका आचरण देखने को मिलता है-
SO2CI2 + 4NH3 = SO2(NH2)2 + 2NH4CI
SO2CI2 + 2H2O = SO2(OH)2 + 2HCI
अमोनोअपघटन के कुछ और उदाहरण नीचे दिये गये हैं-
BCI3 + 6NH3 → B(NH2)3 + 3NH4CI
SiCl4 + 8NH3 → Si(NH2)4 + 4NH4Cl
PCI3 + 6NH3 → P(NH2)3 + 3NH4Cl
द्रव अमोनिया के क्वथनांक पर कार्बनिक, हेलाइड धीरे-धीरे अमोनोअपघटित होते हैं-
C6H5CI + 2NH3 = C6 H5NH2 + NH4CI
ऐसी बहुत सी अभिक्रियाएँ हैं जो जलीय माध्यम में तो नहीं हो सकती परन्तु द्रव अमोनिया में सम्पन्न की जा सकती हैं क्योंकि अभिक्रिया में भाग लेने वाले या अभिक्रिया से बने पदार्थ अमोनोअपघटन के प्रति तो स्थायी होते हैं, परन्तु जलअपघटन के प्रति अस्थायी होते हैं। उदाहरण के लिए, जिंक नाइट्रेट तथा पोटैशियम सुपरऑक्साइड की द्रव अमोनिया में अभिक्रिया द्वारा जिंक परॉक्साइड तो बनाया जा सकता है, लेकिन जलीय माध्यम में यह अभिक्रिया सम्भव नहीं है, क्योंकि पोटैशियम सुपरऑक्साइड जलअपघटन हो जाता है-
Zn(NO3)2 + 2KO2 द्रव अमोनिया → ZnO2 + 2KNO3 + O2
- रिडॉक्स अभिक्रियाएँ (Redox reactions):- सामान्य रूप से द्रव अमोनिया में भी जलीय तन्त्रों जैसी ही ऑक्सीकरण-अपचयन अभिक्रियाएँ होती हैं। अपचयन विभव का मान विलायक बदलने के साथ-साथ बदल जाने पर भी विभवों का वास्तविक क्रम कभी नहीं बदलता । तथापि, कुछ ऐसी ध्यान देने योग्य बाते हैं जिनका रिडॉक्स अभिक्रिया करते समय सदैव ध्यान रखना चाहिये। जल बहुत से अपचायकों द्वारा प्रभावित हो जाता है। अतः जलीय तन्त्र में प्रबल अचपायक काम में नहीं लिये जा सकते अन्यथा वे इसमें से हाइड्रोजन निकाल देंगे। अतः जलीय विलयन में केवल वे ही अपचायक काम में लिये जा सकते हैं जिनके अपचयन विभव इलेक्ट्रॉड विभव श्रृंखला में हाइड्रोजन से नीचे आते हैं। दूसरी ओर, जल ऑक्सीकरण के प्रति काफी हद तक स्थायी है। अतः जलीय तन्त्रों में ऑक्सीकरण अभिक्रियाएँ आसानी से की जा सकती हैं। अमोनिया के लिए विपरीत सत्य है, अर्थात् यह अपचायक के प्रति स्थायी है। अतः द्रव अमोनिया में वे अपचयन अभिक्रियाएँ कराई जा सकती हैं जिनमें प्रबल अपचायक काम में आते हों लेकिन प्रबल ऑक्सीकारक काम में नहीं लिये जा सकते क्योंकि अमोनिया, नाइट्रोजन या अन्य किसी ऑक्सीकरण उत्पाद में परिवर्तित हो जायेगी। इस प्रकार जल ऑक्सीकरण अभिक्रियाओं के लिए उपयुक्त माध्यम है, जबकि अमोनिया अपचयन अभिक्रियाओं के लिए उपयुक्त है।
- धातु अमोनिया विलयन की अभिक्रियाएँ- द्रव अमोनिया तथा जल में एक दृष्टि से महत्वपूर्ण अन्तर यह है कि बेरिलियम के अतिरिक्त सभी क्षार तथा क्षारीय मुदा धातुएँ अमोनिया में बिना किसी स्पष्ट रासायनिक अभिक्रिया के घुल जाती हैं जबकि जल से धातुओं की ऐसी कोई अभिक्रिया नहीं होती है। इस प्रकार से प्राप्त विलयन का विशिष्ट नीला रंग होता है। जो धातुएँ ऐसे विलयन बनाती हैं उनमें आगे दिये गये गुण होने चाहिये – (i) कम आयनन ऊर्जा, (ii) कम ऊष्मन ऊर्जा, तथा (iii) उच्च विलायकन ऊर्जा । धातुओं का इलेक्ट्रॉड विभव भी उच्च होना चाहिये ।
धातु-अमोनिया विलयनों के मुख्य भौतिक गुण नीचे दिये गये हैं –
(i) चाहे कोई सी भी धातु घोली जाये, तनु विलयनों का एक-सा ही नीला रंग तथा अवशोषण स्पेक्ट्रम होता है।
(ii) ये विलयन बहुत ही अच्छे विद्युत अपघटनी चालक हैं । सान्द्र विलयनों (सांद्रण > 1M) का रंग कांस्य जैसा होता है तथा चालकता धातु की जितनी ही होती है।
(ii) तनु विलयन अनुचुम्बकीय (paramagnetic) होते हैं जो अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति की ओर संकेत करते हैं। सान्द्रता बढ़ाने पर मोलर चुम्बकीय प्रवृत्ति (molar magnetic susceptibility) घटती है जो इलेक्ट्रॉनों के युग्मन की ओर संकेत करती है।
(iv) विभिन्न विलयनों की चालकता मापने पर पता चलता है कि चाहे कोई भी धातु घोली जाये सबमें एक से ही ऋण आवेशित कण पाये जाते हैं 1
(v) जब क्षार धातुओं के अमोनिया में विलयनों को वाष्पित किया जाता है, तो मुक्त धातु वापिस प्राप्त हो सकती है। कैल्सियम, स्ट्रॉन्शियम तथा बेरियम के अमोनिया विलयनों को वाष्पित करने पर क्रमशः Ca(NH3)6. Sr(NH3) 6 तथा Ba (NH3) ू संघटनों के ठोस प्राप्त होते हैं। ये ठोस बहुत ही अच्छे विद्युत सुचालक हैं तथा प्रकट रूप में धातु जैसे लगते हैं ।
(Vi) ये विलयन काफी स्थाई हैं। शुद्ध पदार्थों का प्रयोग करके तथा ठण्डे स्थानों पर रखकर विलयनों को अधिक समय तक रखा जा सकता है। इनमें कुछ हद तक निम्न प्रकार की अभिक्रिया होती है-
2NH3 + 2Na → 2NaNH2 + H2
धातु-अमोनिया विलयनों के उपर्युक्त गुणों के आधार पर हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि विलयनों में अमोनियित धातु आयन तथा अमोनियित इलेक्ट्रॉन प्राप्त होते हैं-
M→ M+ (amm) + e–(amm), or [M(NH3)x]+ + [e(NH3)]
विलयन का नीला रंग अमोनियित इलेक्ट्रॉनों के कारण होता है। यह इस बात से स्पष्ट है कि विभिन्न धातुओं के तनु विलयनों का अवशोषण स्पेक्ट्रम एक-सा होता है तथा चालकता नापने से पता चलता है कि सभी विलयनों में एक सा ही ऋण आवेशित कण होता है।
तनु विलयनों के अनुचुम्बकीय गुण भी उपर्युक्त परिकल्पना से मेल खाते हैं । सान्द्रता बढ़ने पर अमोनियित धातु आयन तथा अमोनियित इलेक्ट्रॉन प्रतिचुम्बकीय (diamagnetic) युग्मों में परिवर्तित हो जाते हैं-
[M(NH3)x]+ + [e(NH3)y] = [M(NH3)z]
इन एकलकों (monomers) में अभी भी अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं जो द्विलकीकरण या त्रिलकीकरण में भाग लेकर प्रतिचुम्बकीय पदार्थ [M2 (NH3)m], [M3(NH3)] आदि बना देते हैं। और अधिक सान्द्रता बढ़ाने पर धातु आयन परस्पर इतने निकट आ जाते हैं कि बाह्यतम कक्षक अतिव्यापन करके एक चालन बैण्ड (conduction band) बना देते हैं। धातुओं के ये अति सान्द्र विलयन चालकता में पिघली हुई समाधातुओं के समान हैं।
धातु-अमोनिया विलयनों का नीला रंग अमोनियम लवणों द्वारा तेजी से गायब हो जाता है जिससे इस बात को पुनः बल मिलता है कि धातु अमोनिया विलयनों का नीला रंग अमोनियत इलेक्ट्रॉनों के कारण होता है।
NH4+ + e– (amm) → NH3 + 1/2H2
धातु – अमोनिया विलयन इलेक्ट्रॉनों का एक बहुत ही सुविधाजनक स्त्रोत है तथा एक बहुत ही शक्तिशाली समाँग अपचायक है (अपचयन विभव – 19.5 Vat 25°C) । इस अपचायक अभिक्रिया का उपयोग कर सैकड़ों अभिक्रियाएँ खोज निकाली गई हैं। रसायनशास्त्र में इसका व्यापक उपयोग कर ऐसी बहुत सी अभिक्रियाएँ कराई गई हैं जो अन्यथा असम्भव होती। कुछ संश्लेषणात्मक अभिक्रियाएँ नीचे दी गई हैं- (i)
2[Nill(CN4)]2 + 2e = [ni21(CN)6]4- + 2CN–
क्षार धातु विलयन की अधिकता में,
[NilI(CN)4]2 + 2e– → [Ni0(CN)4]4-
उपर्युक्त अभिक्रिया से निकल के +1 तथा 0 ऑक्सीकरण अवस्था के यौगिक बनाये जा चुके हैं। इसी | प्रकार से प्लेटीनम के 0 ऑक्सीकरण अवस्था के यौगिक भी बनाये जा सकते हैं-
(ii) [PtII(NH3)4]Br2 + 2e→ [Pt°(NH3)4] + 2Br
(iii) ऐसीटिलिनिक हाइड्रोकार्बन ऐसीटिलाइड आयन में परिवर्तित हो जाते हैं-
RC=CH+e–→ RC=C+ ½ H2
अकार्बनिक रसायन भाग- II
(iv) ऐल्किल हेलाइडों की उपस्थिति में, ऐल्किन ऐसीटिलीन प्राप्त होते हैं-
RC=C+R’X → RC=CR’+X-
(v) ऐल्कोहॉल तथा फीनॉल क्रमशः ऐल्कॉक्साइड तथा फेनॉक्साइड बनाते हैं-
C2H5OH + e– → C2H5O– + ½ H2
C6H5OH+ e– – → C6H5O– + ½ H2
द्रव अमोनिया तन्त्र की सीमाएँ (Limitations of ammonia system) – अमोनिया का बहुत ही क्वथनांक होने के कारण इसे एक विलायक के रूप में या अभिक्रिया के माध्यम के रूप में काम में लेने के लिए बहुत ही बढ़िया किस्म के सुसम्पन्न उपकरणों की आवश्यकता पड़ेगी क्योंकि कम ताप पर काम करना आवश्यक है। अमोनिया चूँकि एक बहुत ही अधिक आर्द्रताग्राही (hygroscopic) पदार्थ है, बाह्य वातावरण से उपकरण में नमी न घुसने देने के लिये बहुत अधिक सावधानी की आवश्यकता होती है। तथापि, इसे बहुत से कार्बनिक तथा अकार्बनिक संश्लेषणों में विलायक के रूप में काम में लिया जाता है- ये संश्लेषण (syntheses) अन्यथा असम्भव होते ।