स्वतंत्र भारत के अंतिम गवर्नर जनरल कौन थे , last governor general of independent india in hindi

last governor general of independent india in hindi स्वतंत्र भारत के अंतिम गवर्नर जनरल कौन थे ?

प्रश्न: सी. राजगोपालाचारी
उत्तर: सी. राजगोपालाचारी भारत के अंतिम गवर्नर जनरल थे। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में इन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किये। 1944 में इनके द्वारा प्रस्तावित ‘सी.आर. फार्मूला‘ (देश के विभाजन से संबंधित) से इन्हें काफी प्रसिद्धि मिली।

प्रश्न: तेज बहादुर सप्रू
उत्तर: बनारस में सेंट्रल हिंदू कॉलेज के निर्माण में एनी बेसेंट के सहकर्मी, मालवीय के साथ बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक, होमरूल आंदोलन के समय राजनीति में प्रवेश, नेहरू केमटी रिपोर्ट से संबंधित तथा गोलमेज सम्मेलनों के प्रतिभागी करने वाले भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति थे।

प्रश्न: बी.आर. अम्बेडकर द्वारा दलितोद्वार के लिए किए गए कार्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर: सामाजिक न्याय का दलित उद्धार आंदोलन: 19वीं शताब्दी के अन्तिम चरण मे दलित उद्धार आंदोलन चला जब महात्मा जोतिबा फुले ने सत्यशोधक समाज बनाया व उनके सहयोगी गोपाल बाबा बालंगर ने बहुजन समाज। बनाया 1920 में इसे अम्बेडकर ने अपने हाथ में ले लिया। इन्होंने जाति प्रथा का विरोध किया मनुस्मृति की भी आलोचना की जिसमें जाति प्रथा को दैवीय संस्था माना है। इन्होंने अस्पृश्यता के विरुद्ध आंदोलन किया। दिसम्बर, 1930 में लंदन में पहला गोलमेज सम्मेलन हुआ। सितम्बर-अक्टूबर, 1021 में दसरे सम्मेलन में अम्बेडकर ने दलितों का प्रतिनिधित्व किया व दलितों के लिए विधान सभाओं में स्थानों का आरक्षण मांगा। 1932 के साम्प्रदायिकता निर्णय के अन्तर्गत दलितों को विधान परिषद में 71 स्थानों का आरक्षण मिल गया। उन्हें मुसलमानों व ईसाइयों की तरह पृथक निर्वाचन क्षेत्र दिये गये।
गांधी ने इस व्यवस्था की आलोचना की व इसके खिलाफ सितम्बर, 1932 में पूना जेल में आमरण अनशन कर दिया। इससे गांधी व अम्बेडकर के बीच एक समझौता (पूना समझौता) हुआ इसमें कहा कि दलितों की आरक्षित सीटों की संख्या पद की जाये तथा उन्हें पृथक चुनाव क्षेत्र न दिये जाये बल्कि दलितों के चुनाव क्षेत्र संयुक्त हो। अतः जब जनवरी, 1937 में 11 प्रान्तों में चुनाव हुये तो उसमें अम्बेडकर की इनडिपेन्डेंट लेबर पार्टी ने भाग लिया लेकिन वह हार गई। जब 1947 में संविधान लिखा गया तो अम्बेडकर प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। उन्होंने अपनी योग्यता से संविधान प्रारूप तैयार किया इसलिए उन्हें संविधान का पिता भी कहते हैं। इस संविधान में सामाजिक न्याय के प्रावधान रखे गये है जैसे – अनच्छेद 16 में ये प्रावधान है कि लोक सेवाओं में ैब्ए ैज्ए व्ठब् को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए। अनुच्छेद 46 में कहा गया है कि राज्य ैब्ए ैज्ए व्ठब् के कल्याण के कार्य करेगा।
परन्तु अंबेडकर को आपत्ति थी कि संविधान ने देश में समानता तो स्थापित की है लेकिन वास्तव में समाज में असमानता है। इसी को उन्होंने विरोधाभास कहा है। यही कारण है कि उन्होंने कानून मंत्री के नाते प्रधानमंत्री नेहरू पर दबाव डाला कि भारत में सामाजिक न्याय पूरी तरह स्थापित होना चाहिए। उन्होंने स्वतंत्र भारत में अपनी पार्टी का नाम रिपब्लिकन पार्टी किया। 1956 में उनका महानिर्वाण हो गया।
प्रश्न: एम.ए.जिन्ना राष्ट्रवादी और अराष्ट्रवादी विचारों का सम्मिश्रण था। विवेचना कीजिए
उत्तर: जिन्ना एक राष्ट्रवादी या उदारवादी नेता थे। वे पहले नौरोजी के बाद में गोखले के निजी सचिव रहे। उन्होंने हमेशा उदारवादियों की तरह ब्रिटिश राज की प्रशंसा की, सुधारों की माँग की व शान्तिपूर्ण साधनों पर जोर दिया। जिन्ना ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया व जिन्ना व तिलक के प्रयासों से ही लखनऊ अधिवेशन में कांग्रेस व मुस्लिम लीग में एकता स्थापित हो सकी। गोखले ने कहा कि जिन्ना हिन्दू-मुस्लिम एकता के अग्रदूत हैं। जिन्ना केन्द्रीय विधान सभा के सदस्य थे जहां उन्होंने नेहरू व मदनमोहन मालवीय के साथ अपनी भूमिका निभाई। जिन्ना एनी बेसेन्ट के अनुयायी हो गये क्योंकि वे पूर्ण रूप से गृह स्वराज के समर्थक थे। लेकिन जब 1920 के नागपुर अधिवेशन में गाँधी का असहयोग प्रस्ताव पास हुआ तभी जिन्ना ने कांग्रेस छोड़ दी।
1937 के प्रान्तीय विधान सभा चुनावों में मुस्लिम लीग बुरी तरह हार गई। उस समय जिन्ना मुस्लिम लीग के अध्यक्ष थे इसलिए ये हार जिन्ना के अपमान का कारण बन गई। अतः जिन्ना ने अपना रुख बदला व कांग्रेस की सरकारों को हिन्दू फांसीवाद का नाम दिया। जब अक्टूबर, 1939 में कांग्रेस सरकारों में त्यागपत्र दिये तो जिन्ना ने 22 दिसम्बर, 1939 को हिन्दू फांसीवाद से मुक्ति का दिवस मनाया।
22-23 मार्च, 1940 में लाहौर में मुस्लिम लीग का अधिवेशन हुआ जिसमें जिन्ना ने अध्यक्षीय भाषण दिया व कहा कि भारत में हिन्दू व मुस्लमान दो अलग सम्प्रदाय ही नहीं बल्कि दो अलग राष्ट्र हैं, इसलिए देश का विभाजन होना चाहिए। जिन्ना ने तर्क दिया कि दोनों की किताबे, इतिहास, सभ्यता व संस्कृति, पार्टियाँ, नेता, भाषायें एक दूसरे से भिन्न है इसलिए दोनों को मिलाया नहीं जा सकता। अतः जब भारत को स्वतंत्र किया जाए तब मुस्लिम राष्ट्र को भारत का एक भाग मिलना चाहिए।