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जंपिंग जीन का सिद्धांत क्या है , jumping gene definition in hindi

jumping gene definition in hindi जंपिंग जीन का सिद्धांत क्या है ?

जीन की परिभाषा ( Definition of Genes)

न्यूक्लिक अम्ल का एक सतत् अनुक्रम (continuous sequence) जो एक विशिष्ट पॉलीपेप्टाइड (कार्यात्मक आरएनए) को इंगित करता हो या न्यूक्लियोटाइड का वह कार्यात्मक खण्ड जो प्रोटीन के लिये कोड करता है, जीन कहलाता है। इस प्रकार कोडित सूचना आरएनए पर अनुलेखित (transcribed ) हो जाती है। अतः जीन का प्रथम उत्पाद आरएनए हुआ जिस पर कोड करने वाले डीएनए के पूरक अनुक्रम उपस्थित रहते हैं।

एक ऐसा जीनोमिक अनुक्रम जो नियमन क्षेत्र (regulation region), अनुलेखन क्षेत्र (transcription region), तथा अन्य कार्यात्मक क्षेत्र से जुड़ा हो व जिसके विस्थलों को ज्ञात किया जा सके, जीन कहलाता है। जीन की पारस्परिक क्रियाओं के उत्पाद के रूप में जीवों के गुण, फीनोटाइप व विकास निर्धारित होता है।

जीन आनुवंशिक सूचनात्मक इकाई होती है जो कोशिका के जीवनकाल की प्रत्येक क्रिया को निर्देशित करती है। यह विभाजन के समय एक कोशिका से दूसरी कोशिका अथवा एक से दूसरे जीव में आनुवंशिक सूचना प्रेषित करते हैं।

जीन में निम्नलिखित गुण मौजूद होते हैं-

(1) यह आनुवंशिकी की एक भौतिक इकाई है।

(2) किसी भी गुणसूत्र पर विशिष्ट विस्थल (loci ) पर स्थित यह डीएनए के अनुक्रम होते हैं।

(3) जीन प्रोटीन अथवा आरएनए अणु को कोडित करते हैं।

अनेक वैज्ञानिकों ने जीन से सम्बन्धित निम्न तकनीकी शब्द प्रतिपादित किये जो इस प्रकार हैं-

(1) रिकोन (Recon)- यह शब्द बेन्जर ने दिया। यह पुन: संयोजन (recombination) की सूक्ष्मतम इकाई (smallest unit) है और सूक्ष्मतम रिकोन न्यूक्लिओटाइड के एक युगल (nucleotide pair) से व्यक्त किया जाता है अर्थात् डीएनए में संलग्न न्यूक्लिओटाइड के मध्य की दूरी इसकी न्यूनतम अभिव्यक्ति है । यह रेखीय अनुक्रम में व्यवस्थित होकर जीन का निर्माण करती है।

यह आदान–प्रदान (crossing over) के द्वारा अलग हो सकती हैं। बेन्जर (Benzer) ने 1955 T, बेक्टीरियो फाज (जीवाणुभोजी वाइरस) में रिकॉन जीन में क्रॉसिंग ऑवर प्रदर्शित किया।

(2) सिस्ट्रॉन (Cistron)- यह शब्द भी बेन्जर ने ही दिया था। यह जीन की क्रियात्मक (functional) इकाई है और डीएनए के सबसे बड़े भाग को प्रदर्शित करती है। सिस्ट्रॉन को . एक इकाई के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसके तत्त्व (एलील) सिस – ट्रान्स व्यवस्था प्रदर्शित करते हैं। इस आधार पर जीन्स को कार्यिकी क्रिया की इकाई (unit of physiological activity) माना जाता है। बैक्टीरिया के एक सिस्ट्रॉन में, न्यूक्लीयोटाइड जोड़ों की संख्या 1500-30,000 तक होती है। प्रत्येक सिस्ट्रोन एक mआरएनए अणु को कोड करता है जो कि बदले में पोलीपेप्टाइड श्रृंखला (एंजाइम या प्रोटीन) को कोड करता है। एक सिस्ट्रॉन में उत्परिवर्तन की सैकड़ों इकाइयाँ (hundred units of mutation) या पुनर्नियोजन ( recombination) होते हैं अतः सिस्ट्रॉन गुणसूत्रो में ज्यादा जगह पर उपस्थित रहते हैं।

उदाहरण के लिए बेक्टीरिया ई. कोलाई (E. coli) में टिप्ट्रोफेन सिन्थेटेज (Tryptophan Synthetase) उत्पन्न करने वाले जीन में दो सिस्ट्रॉन्स A व B भाग लेते हैं। ये दोनों एंजाइम की एक–एक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला का निर्माण करते हैं। अतः एक सिस्ट्रॉन एक सम्पूर्ण पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला का कोड ( code ) बनाती हैं।

(3) म्यूटॉन (Muton)- म्यूटॉन उत्परिवर्तन (mutation) की सूक्ष्मतम इकाई है। डीएनए का वह

सूक्ष्मतम भाग, जिसमें उत्परिवर्तन की क्षमता होती है, म्यूटॉन कहलाती है। न्यूक्लिओटाइड के एक युगल में होने वाला परिवर्तन इसकी न्यूनतम अभिव्यक्ति को निरूपित करता है। जीन्स की अन्य तकनीकी परिभाषायें इस प्रकार हैं-

  1. कम्पलॉन (Complon )- इसे सिस्ट्रॉन के स्थान पर प्रयोग में लाते हैं । यह अनुपूरकता (complementation) की इकाई है। कुछ एन्जाइम जो दो या दो से अधिक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं के बने होते हैं। इनके सक्रिय समूह एक दूसरे के पूरक (complement) होते हैं। पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला में किसी भी प्रकार के परिवर्तन या न्यूनता की पूर्ति अनुपूरक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं द्वारा हो जाती हैं।
  2. ऑपरॉन (Operon )- ऑपरॉन क्रियात्मक इकाई है जो आपरेटर जीन (operator gene) व संरचनात्मक जीन (structural gene) दोनो के द्वारा सम्मिलित रूप से प्रदर्शित होती हैं। ये डीएनए से प्रसारित आनुवंशिक सूचनाओं के प्रभाव को परिवर्तित कर देते हैं।
  3. रेप्लिकॉन (Replicon ) – रेप्लीकॉन डीएनए का वह खण्ड (भाग) होता है जो एकमात्र उत्पत्ति स्थल से प्रतिकृतिक (replicate) होता है। प्रोकेरियोट तथा यूकेरियोट जीवों में डीएनए प्रतिकृतिकरण (DNA replication) असतत् इकाईयों (discrete units) से होता है जिसे रेप्लीकॉन कहते हैं। प्रोकेरियोट जैसे प्लाज्मिड, जीवाणु, फॉज एवं वायरस इत्यादि में प्रतिकृति सामान्यतः, एकमात्र उत्पत्ति स्थल से होता है तथा सम्पूर्ण डीएनए अणु एकमात्र रेप्लीकॉन की तरह कार्य करता है। ई.कोलाई बैक्टीरिया में एकमात्र उत्पत्ति स्थल के आनुवंशिक स्थल को ori c कहते हैं जो 245 bp लम्बा होता है। यूकेरियोटिक जीवों में डीएनए में अनेक उत्पत्ति स्थलों से प्रतिकृतिक होता है अतः इनमें अनेक रेप्लीकॉन पाये जाते हैं जहां से डीएनए विभिन्न स्थलों पर प्रतिकृतिक होकर ऑकाजाकी खण्ड निर्मित करता है।

सारणी – 4: प्रोकेरियोट व यूकेरियोट पादपों में उपस्थित रेप्लीकॉन

पादपरेप्लीकॉन की संख्यालम्बाई (kb)
जीवाणु ई. कोलाई

विसिया फाबा (Vicia faba )

यीस्ट (Yeast)

1

35,000

500

4200

300

400

विभिन्न प्रकार के जीन (Various Types of Genes)

(i) जम्पिंग जीन (Jumping Gene)

गुणसूत्र में जीन के विस्थल (loci ) नियत स्थान पर होते हैं। मक्का में कुछ ऐसे जीन देखे गये (मैक्लिनटाक, 1950) जो अपना स्थान एक गुणसूत्र पर एक जगह से दूसरी जगह तथा एक गुणसूत्र से दूसरे गुणसूत्र पर बदलते रहते हैं। स्थान परिवर्तन करने वाले ऐसे जीनों को जम्पिंग जीन अथवा ट्रांसपोसोजोन कहते हैं।

(ii) पुनरावृति डीएनए (Repetitive DNA)

विभिन्न जातियों में डीएनए की मात्रा अलग-अलग पायी जाती है। ई. कोलाई नामक बैक्टीरिया से गुना अधिक 700 गुना अधिक डीएनए मनुष्य में पाया जाता है। इसी तरह ट्रेडीस्केंशिया में मनुष्यं से 10 डीएनए उपस्थित होता है। निम्न से उच्च जीव जन्तुओं व पादपों में उनके बढ़ते आकार व शारीरिक जटिलता के साथ-साथ क्रियाशील जीनों (functional genes) की संख्या उनमें उपस्थित डीएनए की अधिक मात्रा के हिसाब से आनुपातिक (proportionately) रूप से अधिक नहीं होती है।

यूकेरियोटिक कोशिकाओं में अतिरिक्त (extra ) डीएनए अधिक मात्रा में पाया जाता है। सन् 1964 में सर्वप्रथम आश्चर्यजनक तथ्य सामने आया था कि चूहे में अधिकतर डीएनए की एक से अधिक प्रतियाँ (copies) मौजूद रहती हैं, जिन्हें अतिरिक्त डीएनए कहा गया । यह अतिरिक्त डीएनए कुछ विशिष्ट अनुक्रमों में ही उपस्थित होता है। ब्रिटन तथा कोहने (Britten and Kohne) ने 1968 में बताया कि इस अतिरिक्त डीएनए (जो विशिष्ट अनुक्रम में ही पाया जाता है) की अनेक प्रतियाँ (copies) यूकेरियोटिक कोशिकाओं में उपस्थित होती हैं। ऐसे पुनरावर्ती अनुक्रम भागों (repeated sequence components) में r-आरएनए, m-आरएनए, t-आरएनए, तथा हिस्टोन इत्यादि होते है जो हजारों की संख्या में पुनरावतीं भाग में उपस्थित रहते हैं परन्तु इनका कोई विशिष्ट व प्रत्यक्ष कार्य नहीं होता। यह सरल अनुक्रम अथवा सेटेलाइट डीएनए हैं जो अधिकतर हीटरोक्रोमेटिन भाग में उपस्थित होते हैं। इसलिये यह गुणसूत्र बिन्दु (centromere) अन्तखण्ड (टिलोमियर ) स्थलों पर मौजूद रहते हैं परन्तु यह अनुलेखित (transcribed) नहीं होते हैं।

अन्तस्थ खण्ड (telomeres) में विशिष्ट डीएनए के छोटे पुनरावर्ती अनुक्रम उपस्थित रहते हैं। यह 5 से 350 बार तक पुनरावर्ती होते हैं। पादप में T, AG, एरेबिडोप्सिस (Arabidopsis) तथा (TC) -.) A(G)1-3 यीस्ट में पुनरावर्त होते हैं।

(iii) कोडिंग जीन (Coding Gene)

प्रोटीन कोडित करने वाले लगभग सभी जीन विशिष्ट (unique) प्रकार के होते हैं तथा एक ही प्रति के रूप में उपस्थित रहते हैं परन्तु – आरएनए r-आरएनए तथा इम्यून तंत्र (immune system) में प्रोटीन्स के जीन एक से अधिक प्रतियों (copies) में मिलते हैं। बिशप ( Bishop-1974) तथा लेविन (Lewin) ने 1975 में बताया यूकेरियोट के डीएनए अनुक्रम का ज्यादातर भाग – आरएनए नहीं उत्पन्न करता बल्कि अतिरिक्त डीएनए का मात्र छोटा सा भाग ही जीन नियंत्रण में भाग लेता है। बरनार्ड (Bernard ) ने 1979) में बताया कि मनुष्य के 3 ग्लोबिन (globins) का डीएनए 40 किलो क्षार (kilobase) लम्बा होता है इसका मात्र 10 किलो क्षार युग्म ही – आरएनए निर्मित करता है। शेष बेकार (junk) डीएनए होता है। ऑरगिल तथा क्रिक (Orgel and Crick 1980) के अनुसार इनका जीव के स्वस्थ होने (fitness) में कोई भूमिका ज्ञात नहीं है।

(iv) जन्क जीन (Junk Gene)

इसमें नॉन कोडिंग, पुनरावर्ती जीन सम्मिलित है जो प्रोटीन के लिए कोड नहीं करते। इसको इन्ट्रॉन कहते है । यह यूकेरियोटिक में सामान्यतः मिलते हैं। प्रोकेरियोट में यदा कदा पाये जाते हैं। (v) स्पिलिट जीन (Split Gene)

प्रोकेरियोट में स्पिलिट जीन रिपोर्ट किये गये हैं जो नॉनकोडिंग अनुक्रमों द्वारा विभेदित होकर दूरी पर स्थित होते हैं। शार्प तथा राबर्ट ने 1977 में एडेनोवायरस (Adenovirus) में स्पिल्ट जीन का आविष्कार किया तथा 1993 में नोबल पुरस्कार प्राप्त किया ।

(vi) आत्मघाती जीन ( Suicidal Gene)

ऐसे जीन जो एन्टीबायोटिक के लिए कोड करते हैं तथा यह जीवाणु कोशिकाओं को नष्ट करते हैं, आत्मघाती जीन कहलाते हैं। यह आनुवंशिक रूप से जीवाणु कोशिका में रूपान्तरित हो जाते हैं। इनकी सक्रियता वातावरण में पोषकतत्वों के हाथ में रहती है जो स्विच का कार्य करते हैं। जब खनिज पदार्थ समाप्त हो जाते हैं तब आत्मघाती जीन का स्विच ऑन हो जाता है तथा जीवाणु कोशिकायें मर जाती हैं।

(vii) स्यूडो जीन (Pseudo Gene)

यह सक्रिय जीन (functional gene) की कॉपी होती है जो उत्परिवर्तन (mutation) के पश्चात् द्विगुणन (duplication) द्वारा बनती हैं। यह क्रियाशील नहीं होते हैं।

प्रमोटर की भूमिका (Role of Promoter)

डीएनए का वह भाग जो विशिष्ट जीन के अनुलेखन को प्रारम्भ करता है, प्रमोटर कहलाता है। आरएनए अनुलेखन डीएनए के किसी विशिष्ट भाग से ही प्रारम्भ होता है। इसके लिये आरएनए पॉलिमरेज द्वितीय (पॉल II) डीएनए के किसी विशिष्ट स्थल से जुड़ता है जिसे प्रमोटर (Promoter) कहते हैं। अतः प्रमोटर की मुख्य भूमिका के रूप में डीएनए का नियन्त्रक स्थल है जो जीन के ऊर्ध्व प्रवाह 5′ सिरे पर जीन अनुलेखन को नियंत्रित करता है। प्रमोटर में विशिष्ट डीएनए क्षार अनुक्रम उपस्थित रहते हैं जो अनुलेखन कारको (प्रोटीन) द्वारा चिहिन्त किये जाते हैं। यह अनुलेखन कारक इन प्रमोटर अनुक्रमों से जुड़ कर इन्हें सक्रिय करते हैं। अनुलेखन कारकों को प्रमोटर के साथ संलग्न होने के पश्चात् एन्जाइम आरएनए पॉलिमरेज II भी प्रमोटर पर स्थित क्षार T अथवा C द्वारा कारकों की पहचान करके इनके साथ (प्रमोटर + अनुलेखन कारक) जुड़ जाता है। जैसे ही विभिन्न अनुलेखन कारक व एन्जाइम आरएनए पॉलिमरेज II प्रमोटर के साथ आकर जुड़ते हैं वैसे ही अनुलेखन प्रारम्भ हो जाता है। नव निर्मित श्रृंखला में T अथवा C के सामने Aव G निर्मित होता है। यहाँ मुख्य तथ्य है कि आरएनए पॉलिमरेज II स्वयं अनुलेखन का कार्य प्रारम्भ नहीं कर सकता है। यह कारकों के साथ मिल कर सक्रिय होता है। आरएनए संश्लेषण के दौरान जीन के प्रारम्भिक विशिष्ट स्थल (special start site) पर जहाँ आरएनए पॉलिमरेज II संलग्न होता है, उस विशिष्ट स्थल को प्रमोटर कहते हैं। यह आरएनए संश्लेषण को उत्प्रेरित ( catalysed) करता है। यह प्रथम क्षार युग्म जिसका अनुलेखन (transcribed ) आरएनए पर होता है, के साथ संलग्न रहता है। जहाँ से प्रारम्भन होता है, इसी प्रारम्भन स्थल से आरएनए पॉलिमरेज डीएनए टेम्पलेट के साथ आरएनए निर्मित करता है। यह संश्लेषण अन्तिम क्षार पर पहुँच कर समाप्त होता है ।

प्रमोटर तत्व (Promoter Elements)

प्रमोटर तत्व प्रमोटर के साथ संलग्न होकर इनको सक्रिय करते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं क्रोड प्रमोटर (Core Promoter ) : एक प्रमोटर को अनुलेखन प्रारम्भन के लिये निम्नलिखित आवश्यकतायें होती है-

  1. अनुलेखन प्रारम्भन स्थल (Transcription start site-TSS)
  2. लगभग 34 क्षार अनुक्रम की दूरी
  3. आरएनए पॉलिमरेज के लिये बन्ध्य स्थल
  4. सामान्य अनुलेखन कारकों के लिये बन्ध्य स्थल

समीपस्थ प्रमोटर (Proximal Promoter ) : यह जीन के उर्ध्व प्रवाह के प्राथमिक नियमन स्थल (regulatory element) हैं जो लगभग 25 क्षार युग्म की दूरी पर स्थित होता है।

विशिष्ट अनुलेखन कारक बाह्य स्थल :- यूकेरियोट में प्रमोटर तत्वों में प्रमुख टाटा बॉक्स, (TATA), केट बॉक्स (CCAAT) व जीसी बॉक्स हैं।

टाटा बॉक्स (TATA Box)

डीएनए अनुक्रम के 5′ सिरे को उर्ध्व प्रवाह (-) अनुक्रम (upstream) तथा 3′ को अधोप्रवाह (+) अनुक्रम (down stream) कहते हैं।

एक टाटा बॉक्स (TATAbox) पर लगभग 20-30 क्षार टाटाबॉक्स प्रभाव युग्म प्रमोटर तत्व है। यह अनुक्रम – 25 क्षार युग्म की दूरी पर ऊर्ध्वप्रवाह पर स्थित रहते हैं। यह अनुलेखन आरम्भन विस्थल (transcription start site) कहलाते हैं। टाटा बॉक्स में आरएनए पॉलिमरेज II को नियमित करने वाले कारक TFIID.TF1IA, TAFFB, व TF1IC, E तथा F पाये जाते हैं।

बॉक्स में जो एक समान अनुक्रम अधिक बार मौजूद रहते हैं वे कन्सेन्सस अनुक्रम (consensus sequence) कहलाते हैं। प्रिबनोबॉक्स कन्सेन्सस अनुक्रम TATAT/AAT/A होते हैं। इसमें T/A का अर्थ है कि इनमें से कोई भी उस जगह पर उपस्थित हो सकते हैं।

इसमें कनसेन्सस अनुक्रम GGT / C CAATCT उपस्थित रहते हैं जो अनुलेखन ऊर्ध्व (अपस्ट्रीम) स्टार्ट साइट से 50-130 क्षार की दूरी पर स्थित होता है। इसमें प्रोटीन C/EBP CCAAT बॉक्स के साथ बन्धित होता है। कुछ अन्य अनुक्रम भी m-आरएनए पर उपस्थित रहते हैं जो अनुलेखन कारकों को साथ जुड़ते हैं जैसे CTF, NF-KB, SP1 आदि ।

जीन के 5′ सिरे पर उपस्थित वह क्षेत्र जो आएनए पर अनुलेखित नहीं होता लीडर (leader ) कहलाता है। यह प्रमोटर अनुक्रम होते हैं तथा यह ऊर्ध्व प्रवाह (अपस्ट्रीम) अनुक्रम होते हैं। इसी प्रकार 3’सिरे पर वह भाग जो m – आरएनए पर अनुलेखित नहीं होता ट्रेलर ( trailer) कहलाता है। यह अधो प्रवाह (down stream) अनुक्रम होते हैं।

GC बॉक्स (GC Box)

यह अनुक्रम लगभग – 100 bp उर्ध्व दिशा में स्थित होते हैं। इनके प्रमुख सर्वसम्मत क्रम GGGCGGG होता है। यह अनुक्रम प्रमोटर में अनेक प्रतियों के रूप में उपस्थित रहता है।

संवर्द्धक (Enhancer)

ऐसे अनुक्रम जो स्वयं से कई हजार क्षार युग्म की दूरी पर स्थित प्रमोटर की सक्रियता को प्रभावित कर सकते हैं उन्हें संवर्द्धक ( enhancer) कहते हैं। यह मुख्य रूप से प्रमोटर के आस-पास अनुलेखन कारको की सान्द्रता को बढ़ा देते हैं।

अनुलेखन कारक (Transcription factors)

ऐसे प्रोटीन जो अनुलेखन के लिये आवश्यक होते हैं परन्तु आरएनए पॉलिमरेज के घटक नहीं होते उन्हें अनुलेखन कारक (transcription factors) कहते हैं।

सभी प्रमोटरों पर अनुलेखन प्रारम्भ करने के लिये इन अनुलेखन कारकों की आवश्यकता पड़ती है। ये कारक पॉलिमरेज II के साथ संलग्न होकर प्रारम्भन स्थन पर एक संकुल ( complex) बनाते हैं जिसे प्रारम्भन स्थल संकुल कहते हैं। यहाँ से अनुलेखन प्रारम्भ होता है। इनमें प्रमुख अनुलेखन कारक निम्न है-

  1. TF II B यह_TF = ट्रांस्क्रिप्शन फेक्टर (transcription factor) है।
  2. TFII B
  3. TFIID
  4. TFIIE

5.T FII F

  1. TFII H
  2. TFIIJ

सारणी-2 : यूकेरियोटिक प्रमोटर एवं प्रोकेरियोटिक प्रमोटर में तुलना

यूकेरियोटिक प्रमोटरप्रोकेरियोटिक प्रमोटर

यह जीन के उर्ध्व प्रवाह पर मिलते हैं।

अनेक किलो क्षार युग्म की दूरी पर स्थित होते हैं।

इनमें टाटा बॉक्स प्रमुख हैं। यह प्रारम्भन स्थल से 50 क्षार युग्म की दूरी पर स्थित होते हैं।

अन्य में GC व केट बॉक्स होता है।

अनुलेखन प्रारम्भ स्थल से यह छोटे अनुक्रम पर उर्ध्व प्रवाह पर मिलते हैं।

यह 10 तथा 35 क्षार दूरी पर स्थित होते हैं

इनमें 10 क्षार युग्म पर 6 न्यूक्लियोटाइड TATAAT स्थित होते हैं।

इनमें 35 क्षार युग्म की दूरी पर भी 6 न्यूक्लियोटाइड TTGACA स्थित होते हैं।