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reporter gene in hindi , रिपोर्टर जीन किसे कहते हैं , प्रकार समझाइये

जानिये reporter gene in hindi , रिपोर्टर जीन किसे कहते हैं , प्रकार समझाइये ?

रिपोर्टर जीन (Repoter Gene)

रिपोर्टर जीन की मदद से रूपान्तरित कोशिकाओं को चिन्हित किया जाता है। यह ट्रांसजीन को आसानी से पहचाने जाने योग्य बनाता है जिससे परिवर्तित जीन को रिपोर्टर जीन तुरंत रिपोर्ट करते हैं। अतः ऐसे जीन जो ट्रांसजीन के साथ जुड़ कर इनकी पहचान करने में सहायक होते हैं, रिपोर्टर जीन कहते हैं। इन्हें चिन्हक मार्कर अथवा वरणीय (marker or selectable) जीन भी कहते हैं ।

रिपोर्टर जीन के अन्तर्गत ल्यूसिफरेज – लक्स (Lux). नौपेलीन सिंथेस – नोस ( nos ) . क्लोरैम्फीनिकॉल एसिटाइल ट्रांसफरेज-केट (cat) तथा ग्रीन फ्लोरिसेन्ट प्रोटीन जेप (GEP) प्रमुख हैं। रिपोर्टर जीन की उपस्थिति ज्ञात करने के लिए निम्न विधियां प्रयोग की जाती हैं-

(1) वेस्टर्न ब्लॉट तकनीक (Western Blot Technique)

(2) प्रतिरक्षात्मक टेस्ट (Immunological Test )

(3) एन्जाइम प्रक्रियाओं द्वारा (By Enzymatic Process)

(4) पराबैंगनी किरणों द्वारा ग्रीन फ्लोरिसेन्ट प्रोटीन

(Green Fluorescent Protein with the help of Ultraviolet Rays)

पूर्ववर्ती m – आरएनए संश्लेषण (Synthesis of Pre m-RNA)

यूकेरियोट में अनुलेखन कोशिका के अन्दर स्थित केन्द्रक में सम्पन्न होता है। यह 5′-3′ दिशा में निम्न तीन क्रमिक चरणबद्ध तरीके से पूर्ण होता है-

  1. अनुलेखन आरम्भन (Initiation of Primary Transcript)
  2. प्राथमिक अनुलेखन का दीर्घीकरण (Elongation of Primary Transcript)
  3. अनुलेखन का समापन (Termination of Primary Transcript)

अनुलेखन प्रारम्भ करने से पूर्व सर्वप्रथम अनुलेखन कारक जीन के प्रमोटर भाग से जुड़ते हैं जिसके जुड़ते ही उपयुक्त पॉलिमरेज इन्हें चिन्हित करके तत्पश्चात् इनसे स्वयं भी जुड़ जाते हैं। आरएनए पॉलिमरेज-I ही अनुलेखित m – आरएनए में भाग लेता है।

प्रोकेरियोट में जीन की संरचना (Structure of Prokaryotic Gene)

प्रोकेरियोट के जीवों में इन्ट्रॉन नॉन कोडिंग भाग कम ही मिलते हैं। इनमें जीन एकमात्र एकल सतत् डीएनए (uninterrupted DNA) के खण्ड जिसे सिस्ट्रॉन कहते हैं, कोडिंग क्षेत्र (coding) के रूप में मिलता है जो उत्पाद (आरएनए / प्रोटीन) के लिए कोड करता है। अतः सिस्ट्रॉन जीन की क्रियात्मक इकाई है जो जीन के सबसे बड़े भाग को प्रदर्शित करती है। बैक्टीरिया के । सिस्ट्रॉन में न्यूक्लियोटाइड की संख्या 1500-30,000 तक होती है। प्रत्येक सिस्ट्रॉन 1 mRNA अणु को कोड करता है जो पुनः प्रोटीन को कोड करता है।

जीन के 5′ सिरे पर उपस्थित वह क्षेत्र जो mRNA पर अनुलेखित नहीं होता लीडर (leader) कहलाता है। यह प्रमोटर अनुक्रम होते हैं तथा यह उर्ध्वप्रवाह ( upstream) अनुक्रम प्रदर्शित होते हैं। इसी प्रकार 3′ सिरे पर वह भाग जो mRNA पर अनुलेखित नहीं होता ट्रेलर ( trailer) कहलाता है। यह अधो प्रवाह (down stream) अनुक्रम होते हैं।

यूकेरियोट जीन की संरचना (Structure of Eukaryotic Gene)

यूकेरियोटिक जीवों में लगभग सभी m-आरएनए जीन की एक आधारभूत संरचना मिलती है जिसमें कोडिंग एक्जॉन व नॉन कोडिंग इन्ट्रॉन, दो प्रकार के आधारी प्रमोटर्स (basal promoters) व अनेक प्रकार के अनुलेखनकारी नियमन डोमेन (transcription regulators domain) उपस्थित होते हैं।

इनमें आधारभूत प्रमोटर तत्व सीसीएएटी (CCAAT) बॉक्स तथा टाटा बॉक्स (TATA box) कहलाते हैं। यह नाम उनके मोटिफ ( motif) के अनुक्रम के आधार पर रखा गया है।

यूकेरियोटिक मानव के B-ग्लोबिन जीन की संरचना में तीन एक्सॉन, एक्सान 1, एक्सान 2 व एक्सान 3 पाये जाते हैं। जीन के 5′ सिरे पर जिसे उर्ध्व प्रवाह अनुक्रम (upstream sequences) कहते हैं | सिरे 5′ पर मिथाइलेटेड केप व 3′ सिरे पर पॉली ट्रेल उपस्थित रहती है। जीन पर जो नम्बर दिये 1 गये हैं वे कोडोन के स्थल इंगित करते हैं।

जीन की अभिव्यक्ति (Expression of genes)

जीन की विशिष्ट संरचना (constructs) द्वारा ही इनकी अभिव्यक्ति (expression) संभव होती है। इनकी संरचना में विभिन्न कार्य करने वाले डीएनए खण्ड एक निश्चित क्रमानुसार व्यवस्थित रहते हैं जिसे जीन संरचना (gene concept) कहते हैं। ट्रांसजीनी पादप में ट्रांसजीन की अभिव्यक्ति के लिए इसकी संरचना का ज्ञान अत्यावश्यक होता है

जीन संरचना के विभिन्न अवयव (Different components of gene construct)

जीन संरचना को भली भांति समझने के लिए इसके चित्र को समझना आवश्यक है। चित्र- 17 एक जीन की सम्पूर्ण संरचना दर्शा रहा है।

  1. इस चित्र में कैप (cap) से पॉलि टेल (poly tail) तक की संरचना वास्तविक जीन कहलाता है जिसमें प्रोटीन कोड करने वाला व नॉन कोडिंग जीन उपस्थित हैं ।
  2. जीन से बायें स्थित भाग को उर्ध्व प्रवाह (up stream) व जीन के दायें भाग को अधो प्रवाह (down stream) भाग कहते हैं ।
  3. उर्ध्व प्रवाह (up stream) व अधो प्रवाह (down stream) दोनों ही ओर मार्गदर्शक ( leader ) उपस्थित रहता है जिसे क्रमशः उर्ध्व प्रवाह लेडर (up stream leader) तथा अधो प्रवाह लीडर (down stream leader) कहते हैं। इस भाग का अनुवादन (translation) नहीं होता है ।
  4. कैप स्थल (Cap site) : अनुलेखन प्रारम्भन स्थल (transcription start site) हैं जहां से डीएनए से m-आरएनए पर सूचना का अनुलेखन शुरू होता है।
  5. पॉलि-A टेल (Poly- A tail) : यह पॉलिएडिनाइलेशन अनुक्रम G/AATAA (A) होते हैं। इसमें एडेनीन A असंख्य हो सकते हैं। यह विशिष्ट अनुक्रम अनुलेखन समाप्त होने को इंगित करते हैं। इसका अर्थ है कि इससे पहले के अनुक्रम ही अनुलेखित होते हैं ।
  6. अनुवादन प्रारम्भन अनुक्रम (Translation initiation sequence) : अनुवादन का आरम्भ डीएनए में स्थित अनुक्रम कोडोन ATG होता है। वह m-आरएनए में इसके पूरक अनुक्रम AUG उपस्थित होते हैं। इस कोडोन के पश्चात् m-आरएनए पर सूचना का अनुवादन स्वतः रूक जाता है।
  7. अनुवादन समापन अनुक्रम (Translation termination sequence) : डीएनए से m-आरएनए पर अनुवादित होने वाली सूचना समाप्त करने वाला अनुक्रम कोडोन TAG है व m-आरएनए पर इसके पूरक UAG होते हैं। इस कोडोन के पश्चात् सूचना से m-आरएनए पर अनुवादन स्वतः रूक जाता है।
  8. प्रमोटर (Promoter): जीन संरचना में प्रमोटर वह स्थान होता है जहां पर आकर एन्जाइम आरएनए पॉलिमरेज डीएनए स्थल पर जुड़ जाता है । यह प्रमोटर – आरएनए पॉलिमरेज बन्ध बनाता है जो अनुलेखन शुरू करने के लिए एक अनिवार्य चरण (step) है। इसमें प्रमोटर अनुक्रम CAAT तथा TATA बॉक्स प्रमुख हैं जो आरएनए पॉलिमरेज II के साथ बंधते हैं। 9. संवर्धक शमनक अनुक्रम (Enhancer / silencer sequence): संवर्धक अथवा शमनक अनुक्रम

किन्हीं विशिष्ट परिस्थितियों में ही अभिव्यक्त होते हैं। इन विशिष्ट परिस्थितियों में विशेष प्रकार के ऊतक अथवा उद्दीपन ( stimules) की स्थिति की उपस्थिति भी हो सकती है। जैसे प्रकाश नियमित जीन की अभिव्यक्ति के लिये प्रकाश आवश्यक होते हैं।

सारणी- 5: उद्दीपन द्वारा विशेष जीन अभिव्यक्ति

जीननियमनजातिऊतकउद्दीपन
cabक्लोरोफिल बन्ध प्रोटीनमटर, गेहूंतना / पत्तीप्रकाश
hspऊष्मा शॉक (heat shock) प्रोटीनमक्का सोयाबी

बीजऊष्मा, आघातो

प्रमोटर जीन (Promoter Gene)

पादपों में जीन की अभिव्यक्ति प्रमोटर जीन द्वारा निर्धारित होती है। यह इन्ट्रॉन अनुक्रम (नॉन कोडिंग) होते हैं। यह जीन किस परिस्थिति में अभिव्यक्त होगा यह संवर्धक जीन द्वारा तय होता है। विशेष परिस्थितियों में विशिष्ट ऊतक उद्दीपत (stimulte) हो सकते हैं।

पादपों में अनेक प्रमोटर का प्रयोग होता है। कुछ प्रमुख ट्रांसजीन हेतु प्रयुक्त प्रमोटर सारणी में दिये गये हैं। सबसे अधिक 35 प्रमोटर का प्रयोग किया जाता है। यह द्विबीजपत्री पादपों के लिए सुविधाजनक हैं। एक वीजपत्री पादपों के लिए AdhI प्रमोटर का प्रयोग करते हैं जो मक्का से प्राप्त किया जाता है।

सारणी – 6 : पादप जातियों में जीनों के संचालन के लिए प्रयुक्त प्रमोटर

क्र.सं.

प्रमोटरजीन स्रोतअभिव्यक्ति
1.35.5कॉलीफ्लावर मोजेक वायरसअधिकतर प्रयुक्त

2.35S + shI-11

35S प्रमोटर + मक्का

के sh 1 जीन का प्रथम नॉन कोडिंग इन्ट्रॉन

एकबीजपत्री में अभिव्यक्त

3.Ubil + Ubi1-11

मक्का का यूबीक्यूटिन

1 जीन प्रमोटर + इसी

जीन का 1 या 6 इन्ट्रॉन

धान में सर्वोच्च अभिव्यक्ति

यदि मक्का से प्राप्त ShI जीन का प्रथम इन्ट्रॉन 355 प्रमोटर से जोड़ा जाये तो यह 10 गुना अधिक सक्रिय हो जाते हैं। यह प्रमोटर व जीन जिसका अनुवादन होता है उस के मध्य जोड़ा जाता है।

संवर्धक जीन (Enhancer gene)

डीएनए के वह अनुक्रम जो अनेक जीवों की अभिव्यक्ति को विशिष्ट ऊतकों अथवा विशिष्ट उद्दीपन अवस्था में अपने आपको व्यक्त करते हैं उन्हें संवर्धक जीन कहते हैं।

यह अनुक्रम प्रमोटर के बाहर असंख्य क्षारकों तक 5′- अथवा 3′ – दिशा में व्यवस्थित होते हैं। इनमें जो जीन अभिव्यक्ति में वृद्धि करते हैं वे संवर्धन अनुक्रम तथा जो इसकी अभिव्यक्ति को कम करते हैं उन्हें शमनक अनुक्रम (silencer sequence) कहते हैं। यह पॉलिमरेज से नहीं बंधते हैं तथा अनुलेखन का प्रारम्भन नहीं करते हैं।

प्रकाश की उपस्थिति में अभिव्यक्त होने वाले जीन (संवर्धक ) में प्रमुख प्रकाश संश्लेषण में प्रयुक्त एन्जाइम 1-5 बिसफॉस्फेट कार्बाक्सिलेज/ ऑक्सीजिनेज है। यह केन्द्रकी जीन RBCs कोडित करता है जो कैप स्थल (cap) से 5 – दिशा से 149-166 क्षारक अनुक्रम पर प्रकाश की उपस्थिति में जीन की अभिव्यक्ति करता है। यह अनुक्रम प्रकाश अनुक्रिया अवयव ( light responsive element) कहलाते हैं । मक्का का Adh I जीन वायु की उपस्थिति में जीन के प्रमोटर की क्रिया को रोकता है अतः शमनक (silencer) अनुक्रम का उदाहरण है। ऐसी परिस्थिति में इस जीन की अभिव्यक्ति वायु की अनुपस्थिति में ही संभव होती है ।