जवाहरलाल नेहरू का जीवन परिचय | पंडित जवाहरलाल नेहरू के बारे में हिंदी में jawaharlal nehru in hindi essay

(jawaharlal nehru in hindi essay) जवाहरलाल नेहरू का जीवन परिचय | पंडित जवाहरलाल नेहरू के बारे में हिंदी में की पुस्तकें पुस्तकों के नाम बताइए पुस्तक के पिता का नाम क्या है | निबंध और भाषण लिखिए |

जवाहरलाल नेहरू
इकाई की रूपरेखा .
उद्देश्य
प्रस्तावना
नेहरू के राजनैतिक विचारों की प्रमुख विशेषताएं
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रति नेहरू का रवैया
1947 के बाद राष्ट्र-निर्माण
समाजवाद और सामाजिक क्रांति के बारे में नेहरू के विचार
राष्ट्रवाद के आधार के रूप में राष्ट्रीय अर्थतंत्र
नेहरू का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
स्वतंत्र विदेश नीति एवं राष्ट्रीय स्वतंत्रता
अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण
सारांश
शब्दावली
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर

उद्देश्य
राष्ट्रवाद और सामाजिक क्रांति के संबंध में नेहरू के विचारों की मुख्य विशेषताओं का इस इकाई में विश्लेषण किया गया है। समाजवादी चिंतन के क्षेत्र में उनके योगदान को भी रेखांकित किया गया है। इन सबकी व्याख्या आधुनिक भारतीय राजनैतिक विचार की पृष्ठभूमि में की गई है।

प्रस्तावना
जवाहरलाल नेहरू (1889-1964) एक राजनैतिक कार्यकर्ता के रूप में विख्यात हैं। लेकिन राजनैतिक गतिविधियों की तरह ही आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतन में भी उनका योगदान उतना ही महत्वपूर्ण है। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के अंतिम दौर में उनकी नेता के रूप में ख्याति सिर्फ महात्मा गांधी से ही कम थी। 1947 में जब भारत आजाद हुआ तब नेहरू इसके प्रधानमंत्री बने और 1964 में अपनी मृत्यु तक वे इस पद पर बने रहे। वे एक लम्बे अरसे तक देश के विदेश मंत्री भी रहे। वे एक इतिहासकार भी थे। उन्होंने एक बेजोड़ आत्मकथा भी लिखी है, जो अन्य बातों के अलावा भारत में अंग्रेजी राज का इतिहास एवं भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का सर्वेक्षण भी प्रस्तुत करती है। भारत को आजादी मिलने के पहले से ही उन्होंने भारत और विश्व की समस्याओं पर विस्तार से विचार करना आरम्भ क्रिया था और जब वे प्रधानमंत्री बने, तब भी वे इन समस्याओं पर लगातार अपना मत व्यक्त करते रहे । देश-विदेश के विख्यात लेखकों एवं राजनीतिज्ञों से भी उनका पत्राचार था । इन पत्रों में उन्होंने जिन विचारों की पुष्टि की है, जिन विचारों को समर्थन किया है, उससे सामान्य रूप से राजनैतिक चिंतन के क्षेत्र में एवं विशेष रूप से सामाजिक क्रांति के सन्दर्भ में उनके विचारों का पता चलता है।

नेहरू मार्क्सवादी चिंतन-से प्रभावित थे। मार्क्सवादी साहित्य को उन्होंने गहराई से पढ़ा था। मार्क्सवादी दर्शन ने उनके चिंतन को एक नई दृष्टि दी थी, जिससे भारतीय समाज को सहायता मिली। उनका कहना था: ‘‘वहत् रूप से मार्क्सवादी दर्शन मुझे प्रभावित करता है। इससे मुझे इतिहास की प्रक्रिया को समझने में मदद मिलती है।’’ नेहरू के समाजवादी चिंतन का एक दूसरा पहलू भी था। रूस की यात्रा के दौरान उन्होंने समाजवादी अर्थतंत्र की गति (डायनामिक्स) को समझा। अब वे पश्चिमी पूंजीवाद एवं सोवियत समाज को तुलनात्मक रूप से देख सकते थे। रूसी क्रांति में लेनिन के योगदान का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। रूस जैसे पिछड़े समाज में लेनिन ने जिस तरह मार्क्सवाद को लागू कर उसका आमूलचूल परिवर्तन किया था — इन सब के लिए नेहरू के मन में लेनिन के प्रति गहरा आदर का भाव था। अब भारत की समस्याओं को नेहरू दूसरे कोण से देखने की कोशिश करने लगे। नेहरू लिखते हैंः ‘‘भारत की समस्याएं वैसी ही हैं जैसे कुछ वर्ष पहले रूस की थीं। इन समस्याओं का समाधान भी वैसे ही हो सकता है, जैसे कि रूसियों ने अपनी समस्याओं को सुलझाया था। औद्योगीकरण एवं जनता को शिक्षित करने के मामले में भी हमें रूसियों से सीख लेनी चाहिए। दृ

बोध प्रश्न 1.
टिप्पणी: 1) उत्तर के लिए रिक्त स्थानों का प्रयोग करें।
2) अपने उत्तर का परीक्षण इकाई के अंत में दिये गये उत्तर से करें।
1) नेहरू पर पड़े प्रभावों का संक्षेप में उल्लेख करें।
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नेहरू के राजनैतिक विचारों की प्रमुख विशेषताएंः
नेहरू भारतीय परम्परा और उसकी प्रकृति के अनुकूल प्रजातांत्रिक समाजवाद के ढांचे को अपनाना चाहते थे। वे ब्रिटेन के ‘‘फेबियन समाजवाद’’ से प्रभावित थे। फेबियन समाजवाद के कई सक्रिय कार्यकर्ता उनके निजी मित्र थे । नेहरू मानते थे कि संसदीय राजनीति के द्वारा समाजवाद प्राप्त किया या सकता है। उनका मानना था कि विविध सामाजिक और विचारधारात्मक समूह भारतीय प्रजातंत्र के विचारधारात्मक समूह के भारतीय आधार को मजबूत बनायेगा । व्यक्तिगत और सामाजिक अपेक्षाओं के बीच एक खूबसूरत संधि की आवश्यकता है।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति नेहरू का रवैया
राष्ट्रीय आन्दोलन के अन्तिम चरण के सबसे बड़े नेता महात्मा गांधी थे, लेकिन इसके बाद दूसरा स्थान. जवाहरलाल नेहरू का ही था। राष्ट्रीय आन्दोलन में नेहरू का एक विशिष्ट योगदान है।

पहला योगदान तो यह है कि नेहरू के निर्देश में भारतीयों का एक अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण विकसित हुआ। कांग्रेस कार्य समिति द्वारा विश्व घटनाओं पर जितने भी प्रस्ताव पास हुए, वे सभी नेहरू के द्वारा तैयार किये गये थे।

साम्राज्यवाद-विरोधी ब्रसेल्स कांफ्रेंस में नेहरू ने भाग लिया था। नेहरू का मानना था कि भारत का स्वतंत्रता संग्राम साम्राज्यवाद के विरुद्ध चल रहे अन्य संघर्षों का एक हिस्सा है।

नेहरू ने साम्राज्यवादियों, कम्युनिस्टों एवं ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधियों, राष्ट्रीय आन्दोलन में किसानों को भी आकर्षित किया क्योंकि वे खुले रूप से कहते थे कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम का उददेश्य सिर्फ विदेशी शासन से राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त करना भर नहीं है, बल्कि सामाजिक एवं आर्थिक स्वतंत्रता भी हासिल करना है। दूसरे शब्दों में, उन्होंने आर्थिक अन्तर्वस्तु को भी स्वतंत्रता संग्राम में जोड़ा।

1947 के बाद राष्ट्र-निर्माण
एक राष्ट्र प्रमुख के रूप में एक नेता का कार्य राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेता के कार्य से अलग होता है, क्योंकि राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेता का उद्देश्य सिर्फ देश की आजादी दिलाना होता है। आजादी प्राप्ति के पहले भिन्न-भिन्न राजनैतिक ताकतें भी एक ही उद्देश्य की प्राप्ति की लक्ष्य से एकजुट रहती हैं। 1947 के पहले भारत में भिन्न-भिन्न राजनैतिक ताकतें थी- उदारपंथी, हिन्दू उग्रपंथी, कम्युनिस्ट, मुस्लिम, गांधीवादी, कांग्रेसी समाजवादी एवं भाषागत आधार पर कई क्षेत्रीय राजनैतिक शक्तियां।

इन विभिन्न ताकतों को एकजुट करने एवं विघटनकारी शक्तियों से संघर्ष करते हुए भारतीय राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने में नेहरू का ऐतिहासिक योगदान है। पाकिस्तान बनने के बाद मुस्लिम विघटनकारी कोई बड़ी शक्ति नहीं रहे। एक हिन्दू धर्मांध के द्वारा गांधी की शहादत ने 1948 के बाद हिन्दु धर्मांधता को काफी कमजोर किया। लेकिन इन शक्तियों के खिलाफ नेहरू के लगातार विचारधारात्मक संघर्ष ने राजनैतिक एवं शासकीय रूप से इन्हें दुर्बल कर दिया। अगर भारत आज एक आधुनिक राज्य एवं सभ्य समाज है और पाकिस्तान के मुकाबले अधिक संख्या में यहां मुस्लिम सुरक्षित एवं स्वतंत्र हैं, तो इसकी वजह धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में नेहरू का दिया गया निरन्तर उपदेश है।

नेहरू ने यह स्पष्ट कर दिया था कि सार्वजनिक जीवन में और विशेषकर राजनीति में धर्म का कोई स्थान नहीं है। पश्चिमी उदारवादी शिक्षा के प्रभाव में नेहरू के धर्मनिरपेक्ष विचारों ने आकार ग्रहण किया था। एक उदारवादी (लिबरल) के रूप में उन्होंने धर्म और राजनीति को अलगाया । राजनीति में धर्म का कोई स्थान नहीं है । जब राजनीति में धर्म सक्रिय होता है, तब यह साम्प्रदायिक बन जाता है। नेहरू ने बहुसंख्यक साम्प्रदायिकता एवं अल्पसंख्यक साम्प्रदायिकता में भेद किया था। उनका सोचना था कि बहुसंख्यक साम्प्रदायिकता का विकास होने पर यह ‘फासिज्म‘ का रूप अख्तियार कर सकती है। भारतीय संविधान को धर्मनिरपेक्ष बनाने एवं सभी धार्मिक समुदायों को बराबरी का हक दिलाने में नेहरू का महत्वपूर्ण योगदान है। भारत कोई भी धर्म को बिना अपनाये ही एक धर्मनिरपेक्ष एवं प्रजातांत्रिक राज्य है।

बोध प्रश्न 2
टिप्पणी: क) उत्तर के लिए रिक्त स्थानों का प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तर का परीक्षण इकाई के अंत में दिये गये उत्तर से करें।
1) नेहरू के विचारों की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करें। .
2 राष्ट्रीय आन्दोलन में नेहरू की भूमिका का संक्षेप में उल्लेख करें।

 समाजवाद और सामाजिक क्रांति के बारे में नेहरू के विचार
स्त्रोतों के अधिकतम उपयोगिता के लिए नेहरू आयोजित अर्थतंत्र (प्लान्ड इकॉनामी) में विश्वास रखते थे। वे निजी पूंजी के राष्ट्रीयकरण के पक्ष में नहीं थे। आर्थिक विकास की उनकी योजना में मिश्रित अर्थव्यवस्था (मिक्सड इकॉनामी)। का महत्वपूर्ण स्थान था। भारतीय समाज की मूलभूत समस्याओं एवं गरीबी हटाने में निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र, दोनों मिलकर काम करेंगे, ऐसा नेहरू का मानना था।

नेहरू का यह विचार समाजवादी मूल्यों पर आधारित था जिसके अनुसार मुनाफे पर आधारित अनियंत्रित पूंजीवाद एवं बाजार केन्द्रित अर्थतंत्र (मार्केट इकॉनामी) देश के अर्थतंत्र की प्रकृति को निर्धारित न करने पाये। नेहरू चाहते थे कि सार्वजनिक क्षेत्र (पब्लिक सेक्टर) ही अर्थतंत्र को नियंत्रित करने वाला कारक बने । यही कारण है कि इस्पात एवं भारत में तेल का पता लगाने वाले बड़े-बड़े उद्योगों को उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत रखना उचित समझा।

औद्योगीकरण का उद्देश्य समतावादी समाज की रचना होनी चाहिए। नेहरू की योजना में उन्नत तकनीक वाले बड़े की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। जैसा कि नेहरू का कहना था: ‘‘मैं ट्रैक्टर और बड़ी मशीनों के पक्ष में है। मैं इस बात से सहमत हूं कि देश में जमीन पर पड़े दबाबों को घटाने, गरीबी को निर्मूल करने, जीवन-स्तर को ऊपर उठाने, प्रतिरक्षा एवं अन्य कई कामों के लिए भारत का तेजी से औद्योगीकरण करना जरूरी है। लेकिन मैं इस बात से भी उतना ही सहमत हूं कि औद्योगीकरण का पूरा-पूरा फायदा उठाने एवं इसके कुछ खतरों से बचने के लिए बहुत ही समुचित योजना की जरूरत है।’’

 राष्ट्रवाद के आधार के रूप में राष्ट्रीय अर्थतंत्र
नेहरू चाहते थे कि राष्ट्रीय अर्थतंत्र राष्ट्रवाद की शक्ति बने । कोई भी भारतीय नेता चाहे वह उदारवादी हो या गांधीवादी, इस विषय को पूरी तौर से नहीं समझा था और न इस पर ध्यान दिया था । कम्युनिस्ट पश्चिमी पूंजीवादी आर्थिक शक्तियों से भारत का संबंध तोड़ देना चाहते थे। लेकिन उन्होंने यह कभी नहीं महसूस किया कि भारत अगर योजना की कम्युनिस्ट शैली अपनाता है. और लयत यूनियन पर बहत ज्यादा आश्रित रहता है, तो उसके क्या नतीजे होंगे। लेकिन नेहरू ने कई कदम उठाए । उन्होंने अपने व्याख्यानों एवं रचनाओं के विकास पर बहुत जोर दिया है। वे अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के विरोधी नहीं थे, लेकिन वे चाहते थे कि भारत स्वनिर्भरता के साथ अपने अर्थतंत्र का विकास खुद करे।’’

नेहरू इस बात से परी तौर से सचेत थे कि 1947 में प्राप्त की गई भारत की राजनैतिक आजादी को विदेशी ताकतें अपने आर्थिक घुसपैठ से खत्म कर सकती हैं और शनैः-शनैः भारत को एक अर्द्ध-उपनिवेश में बदला जा सकता है। भारतीय राष्ट्रवाद के सन्दर्भ में नेहरू की राजनीतिक सोच का यह आर्थिक आधार था । राष्ट्रीय अर्थतंत्र का विकास तभी संभव है जब निम्नांकित कदम उठाये जायेंगेः 1) आर्थिक विकास के लिए राष्ट्रीय योजना एवं जनता में सम्पत्ति का बंटवारा। 2) पश्चिम से सीमित सहायता प्राप्त कर “हरित क्रांति’’ के द्वारा भारतीय कृषि का विकास । 3) सोवियत संघ की सहायता से इस्पात एवं तेल का पता लगाने वाले बड़े-बड़े उद्योगों का विकास।

 नेहरू का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
नेहरू के विचारों का एक महत्वपूर्ण पक्ष है, उनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण । भारत अपने विज्ञान एवं तकनीक का विकास करके आर्थिक क्षेत्र में उसका बड़े पैमाने पर प्रयोग करके ही आर्थिक रूप से ‘‘स्व-निर्भर‘‘ बन सकता था। कांग्रेसी नेताओं में अकेले नेहरू ही थे जिन्होंने इस सन्दर्भ में गांधी के विचारों से अपना भिन्न मत प्रकट किया था।

नेहरू का विश्वास था कि विज्ञान ने इतिहास की लम्बी अवधि में मानव जीवन को सबसे अधिक क्रांतिकारी सम्भावनाओं से सम्भव बनाया है। वे लिखते हैं: ‘‘वैज्ञानिक प्रविधि, विज्ञान का आलोचनात्मक रवैया, सत्य एवं ज्ञान का अन्वेषण, बिना परीक्षण किए हर चीज का अस्वीकार, नये अनुसंधानों से पुराने निष्कर्षों को बदल सकने की क्षमता, पूर्वाग्रहित । सिद्धांतों के बदले अवलोकित तथ्यों पर भरोसा, मन का कठोर अनुशासन – ये सभी सिर्फ विज्ञान के प्रयोग के लिए ही जरूरी नहीं हैं, बल्कि जीवन और जीवन की समस्याओं के समाधान के लिए भी उतने आवश्यक हैं’’

भारत में विज्ञान और तकनीक का वृहत् पैमाने पर प्रयोग किये जाने के पीछे नेहरू का तर्क यह था कि यह देश को आर्थिक शक्ति एवं स्वतंत्रता प्रदान करेगा।

विज्ञान एवं तकनीक का बड़े पैमाने पर प्रयोग एवं देश में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को नेहरू इसलिए बढ़ावा देना चाहते थे क्योंकि उनका मानना था इन सबसे आर्थिक विकास होगा जो सामाजिक क्रांति का मार्ग प्रशस्त करेगा। इन सब उपायों से भारत की अविवेकी परम्परा (इररैशनल ट्रेडिशन) कमजोर हुई। अविवेकी परम्परा यो पदवी पर आधारित थी, का धीरे-धीरे बुर्जुआ दृष्टिकोण ने स्थान ग्रहण कर लिया।

विज्ञान और तकनीक के वृहत् पैमाने पर प्रयोग से यह सम्भव था कि भारत एक स्वतंत्र, स्वनिर्भर आर्थिक राजनैतिक एवं सैनिक शक्ति के रूप में उभरे। 1945 में नेहरू ने गांधी को लिखा था, ‘‘मुझे ऐसा लगता है कि जब तक भारत तकनीकी रूप से विकसित नहीं होगा तब तक वह सही मायने में स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर पायेगा । मैं ऐसा सिर्फ वैज्ञानिक विकास के सन्दर्भ में नहीं सोचता हूं । विश्व के वर्तमान सन्दर्भ में हम लोग हर विभाग में वैज्ञानिक अनुसंधान के बगैर सांस्कृतिक रूप से भी विकास नहीं कर सकते। आजकल व्यक्ति, समूह एवं राष्ट्र में अजीब लोभी प्रवृत्ति का उदय हुआ है, जो संघर्ष एवं युद्ध का कारण बनता है।‘‘

नेहरू के अनुसार भारत को विदेशी ताकतों को प्रतिरोध देने के लिए यह आवश्यक है कि भारत खुद विज्ञान एवं तकनीक का विकास करे । ‘‘न्युक्लियर नॉन प्रोलिफेरेशन संधि‘‘ पर भारत ने हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया था, उसका अन्य कारणों के अलावा एक कारण यह भी था । आरम्भ में भारत ने सिर्फ शांतिपूर्ण कामों के लिए नाभिकीय ऊर्जा (न्युक्लियर इनर्जी) का विकास करना चाहा, लेकिन अपनी रक्षा के लिए हथियार बनाने का विकल्प भी वह नहीं छोड़ना चाहता था । इस वजह से भारत में स्वतंत्र विदेश नीति को बहाल किया गया ।

बोध प्रश्न 3
टिप्पणी: क) उत्तर के लिए नीचे दिये गये रिक्त स्थानों का प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तर का परीक्षण इकाई के अन्त में दिये गये उत्तर से करें।
1) समाजवाद के बारे में नेहरू के विचारों को संक्षेप में लिखें।
2) राष्ट्रीय अर्थतंत्र के विकास के लिए नेहरू ने किन-किन उपायों पर विचार किया?
3) नेहरू के वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बारे में संक्षेप में विश्लेषण करें ।

 स्वतंत्र विदेश नीति एवं राष्ट्रीय स्वतंत्रता
भारत की विदेश नीति के सन्दर्भ में नेहरू ने अपने आरम्भिक वक्तव्यों में यह दावा किया था कि यह सर्वथा स्वतंत्र विदेश नीति थी। नेहरू ने विदेश नीति के क्षेत्र में अपने स्वतंत्र चिंतन का विकास किया था। वे विश्व-राजनीति की गतिशीलता (डायनामिक्स) को समझते थे। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में मुख्यतः दो शक्ति केन्द्र थे — पश्चिमी साम्राज्यवादी केन्द्र एवं सोवियत समाजवादी केन्द्र । नेहरू का सोचना था कि भारत और भारत जैसे नये-नये स्वतंत्र हुए राष्ट्रों को इन शक्ति केन्द्रों में शामिल न होकर अपनी स्वतंत्र नीति अपनानी चाहिए। उन्होंने लिखा: “हम लोगों को गृह या अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान अपने तरीके से खोजना चाहिए। अगर किसी विशेष अवसर पर इन शक्ति केन्द्रों से अपना संबंध पड़े, तो हो सकता है किसी एक दृष्टिकोण से लाभप्रद मालूम पड़े, लेकिन वृहत् दृष्टिकोण से यह न सिर्फ भारत के लिए बल्कि विश्व-शांति के लिए नुकसानदेह ही साबित होगा, इसमें मुझे थोड़ा भी संदेह नहीं ।’’ नेहरू चाहते थे कि गुट निरपेक्ष देश एक शक्ति केन्द्र के रूप में कार्य करें । वे अपने स्रोतों का अपनी सम्पन्नता के लिए हिस्सेदारी करें।

नेहरू ऐसे भारत की कल्पना नहीं करते थे जो बाकी दुनिया से कटा हुआ हो । उनकी स्वतंत्र विदेश नीति ऋणात्मक नहीं थी । उनका मानना था कि विज्ञान, संस्कृति, अर्थतंत्र एवं राजनीति के सन्दर्भ में भारत दुनिया का एक हिस्सा है। इस सन्दर्भ में उनका यह स्पष्टीकरण महत्वपूर्ण है: “हमारा पूरा समाज कमोबेश इसी पर आधारित है। यह आधार सहयोग का होना चाहिए न कि अलगाव का जो कि प्रायः असम्भव है। अगर यह स्वीकार कर लिया जाय और इसे उपयुक्त पाने पर यह महसूस करने के लिए प्रयास किया जाना चाहिए कि अर्थतंत्र के सन्दर्भ में पूरी दुनिया से विछिन्न होने के बदले आपसी सहयोग ज्यादा अनिवार्य है। आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से विछिन्न भारत दूसरे देशों की लोभी प्रवृत्ति को उकसाने का काम करेगा जिसकी स्वाभाविक परिणति संघर्ष होगी।’’

अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण
भारत के आजाद होने पर नेहरू के अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण ने ही उनके विचारों एवं कार्यों को आकार दिया। वे शीत युद्ध एवं शक्तिशाली शक्तियों के दो शक्ति केन्द्रों में विभाजन के विरोधी थे। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय तनावों को कम करने की कोशिश की और कुछ अवसरों पर संघर्ष कर रहे राष्ट्रों के बीच मध्यस्था की भूमिका निभाई।

बोध प्रश्न 4
टिप्पणी: क) उत्तर के लिए रिक्त स्थानों का प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तर का परीक्षण इकाई के अंत में दिये गये उत्तर से करें।
1) नेहरू की विदेश नीति की मुख्य अवधारणाओं का उल्लेख करें। .

सारांश
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब पूंजीवाद और कम्युनिज्म के बीच संघर्ष तेज था और नेहरू ने भारत की गुटनिरपेक्ष नीति की घोषणा की, तब लोगों ने उन्हें अयथार्थवादी एवं आदर्शवादी कहना आरम्भ किया। अब जब दो गुटों का विखंडन हो गया है, तब पता चलता है कि नेहरू का दृष्टिकोण कितना प्रासंगिक और यथार्थवादी था । अब तो दोनों महाशक्तियों । के बीच अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की सम्भावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता ।

देश के भीतर नेहरू की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि उन्होंने विभिन्न राजनीतिक दलों, समूहों के बीच संधि एवं सहयोग की धारणा विकसित की जिससे राजनैतिक स्थिरता एवं सामंजस्य धीरे-धीरे विकसित हुये ।

वे समाज में बहुत बड़ी क्रांति लाने में सफल नहीं हुए, लेकिन उन्होंने निश्चित रूप से अर्थतंत्र एवं समाज को आधुनिक बनाने में एक हद तक सफलता प्राप्त की । हिन्दू-संहिता विधेयक विधि निर्माण का एक बेहतरीन नमूना था, जिसने हिन्दू समाज को सामंती समाज से एक आधुनिक समाज बनाने में मदद की । यह एक सही दिशा में उठाया गया कदम था। संक्षेप में कहा जा सकता है कि नेहरू ने भारत में राजनैतिक एवं सामाजिक स्थिरता कायम करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे देश राजनैतिक रूप से स्वतंत्र रह सका । उनके समय में राष्ट्रीय मतैक्य को बढ़ावा मिला । भिन्न-भिन्न राजनैतिक दलों के बीच आपसी सहयोग की भावना का विकास हुआ। लेकिन यह किसी प्रजातांत्रिक समाजवादी क्रांति को जन्म नहीं दे सका । सिर्फ इतना हआ कि देश में राजनैतिक रूप से स्थितरता आई जिससे धीरे-धीरे सामाजिक परिवर्तन श्और सामाजिक क्रांति के लिए जमीन तैयार हुई । इसी राजनैतिक स्थिरता की वजह से भारत दक्षिण एशिया में एक बड़ी शक्ति के रूप में एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक मध्य शक्ति के रूप में उभरा ।

शब्दावली
राष्ट्रवाद: मानव-समूह की वह पहचान जो उसके सामान्य भाषा एवं सांस्कृतिक रूप के अत्यधिक विकसित एवं आधुनिक स्वरूप से उभरती है।
सामाजिक क्रांति: समाज के आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक मूल्यों का आमूल एवं सम्पूर्ण परिवर्तन ।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: ऐसा दृष्टिकोण जो विज्ञान को ही एकमात्र सत्य स्वीकार करता है और जो पारम्परिक अवधारणाओं में जकड़ी सभी तरह के विवेकहीन अंधविश्वासों को खारिज करता है।
धर्मनिरपेक्षता: एक ऐसी अवधारणा जो रणनीति और राजनैतिक जीवन में धर्म की किसी भी तरह की भूमिका को खारिज करती है।
समाजवाद: एक ऐसा सामाजिक सिद्धांत जो पूंजीवादी व्यवस्था को बदलकर उत्पादन के साधनों पर सामाजिक मल्कियत कायम कर शोषण रहित व्यवस्था स्थापित करने पर विश्वास रखता है।

कुछ उपयोगी पुस्तकें
आधार ग्रंथ
जवाहरलाल नेहरू
पिता के पत्र पुत्री के नाम (इलाहाबादं 1920)
विश्व इतिहास की झांकी (इलाहाबाद 1934)
मेरी जीवनी (1962)
भारत की एक खोज, (कलकत्ता 1946)
इंडियाज फारेन पोलिसी, सलेक्टैड स्पीचेज, 1961, प. 70
नेहरू ऑन सोशलिज्म, व्ही. सिंह (संपादित) दिल्ल्ला. 1988
सन्दर्भ ग्रंथ
डी. नौरमन, नेहरू द फस्ट सिक्सलीन इयरर्स, लंदन, 1965
एस. गोपाल, जवाहरलाल नेहरू रू ए बायोग्राफी, थ्री वोल्युम्स, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1984
थे. गौरव एवं व्ही. थूमानिया, जवाहरलाल नेहरू, मास्को, 1982
मायकेल बेकर, नेहरू रू ए पॉलिटिकल बायोग्राफी, लंदन 1950