पर्ण की आन्तरिक संरचना (internal structure of leaf in hindi) , पेड़ की पत्ती की आंतरिक संरचना

पेड़ की पत्ती की आंतरिक संरचना पार्ट्स ऑफ लीफ इन हिंदी पर्ण की आन्तरिक संरचना (internal structure of leaf in hindi) : 

पर्णवृन्त (petiole) : पर्णवृंत की आंतरिक संरचना स्तम्भ की प्राथमिक संरचना के समान ही होती है लेकिन इनमें प्राथमिक संवहन पुलों की व्यवस्था में विविधता पायी जाती है। विभिन्न पर्णों के पर्णवृंत अनुप्रस्थ काट में गोलाकार , त्रिकोणीय या चपटे दिखाई देते है। इनकी बाह्य परिधि प्राय: सरल , खाँचयुक्त (प्रनुस , सिट्स) या तरंगित (कुकुरबीटा) हो सकती है।

पर्णवृंत की आंतरिक संरचना बाह्यत्वचा , भरण ऊतक और संवहन पूलों में विभेदित होती है।

  1. बाह्यत्वचा: यह संहत रूप से व्यवस्थित कोशिकाओं से बनी एकस्तरीय परत होती है। बाह्यत्वचा की कोशिकाएँ प्राय: स्पर्शरेखीय दिशा में दीर्घित होती है लेकिन जलीय जातियों में अरीय रूप से दिर्घित होती है। मरुदभिद पौधों के पर्णवृंत भी बाह्यत्वचा कोशिकाओं की अरीय भित्तियों पर क्यूटिकल का निक्षेपण पाया जाता है , जबकि जलीय जातियों में क्यूटिकल का अभाव होता है। कुछ जातियों में बाह्यत्वचा पर बहुकोशिक रोम (उदाहरण – कुकुरबिटा) उपस्थित होते है।
  2. भरणऊतक: सामान्यतया तने की भांति यह बाह्य अद्यश्त्वचा और भितरी वल्कुट में विभेदित होता है। अद्यश्त्वचा सामान्यतया स्थूलकोणोत्तक की 3-4 परतों से निर्मित होता है। कुछ पत्तियों में यह दृढोत्तक का बना होता है।

वल्कुट मृदुतकी कोशिकाओं से निर्मित होता है जिसमें सुस्पष्ट अंतर्कोशिक अवकाश उपस्थित होते है। भरणउत्तक में कभी कभी दृढोतक कोशिकाएँ (उदाहरण – मैंजीफेरा ) भी पायी जाती है। जलीय जातियों जैसे – (उदाहरण – निम्फिया ) और आइकोर्निया आदि में सुविकसित वायुकोष उपस्थित होते है।

  1. संवहन पूल: विभिन्न जातियों के पर्णवृंतों में संवहन पूलों के व्यवस्था क्रम में अत्यन्त विविधता पायी जाती है। रिसिनस , क्वेर्कस आदि में संवहन पूल एक वलय में उपस्थित होते है , जबकि पोपलस में तीन वलयों में उपस्थित होते है। इसके अतिरिक्त प्रूनस , गाल्फिमिया , लाइगंसट्रम आदि में संवहन पूल एक मेखला पट्टी बनाते है। कुकुरबिटा में दो भिन्न आमाप के उभयफ्लोयमी संवहन पूल पाए जाते है।

संवहन पूल में जाइलम अभ्यक्ष या ऊपर की तरफ और फ्लोयम अपाक्ष या निचे की ओर होता है।

पर्णफलक (leaf lamina) : पर्णफलक चपटी संरचना होती है। विभिन्न पादपों में प्रकाश , तापमान , जल की उपलब्धता आदि के आधार पर पर्णफलक की आंतरिक संरचना में विविधता पायी जाती है।

पत्तियों पर पड़ने वाले सूर्य के प्रकाश और पर्ण फलक की आंतरिक संरचना के आधार पर विभिन्न प्रकार के पर्णों को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है –

(A) पृष्ठधारी पर्ण (dorsiventral leaf) : इस प्रकार की पर्ण संरचनाओं में खम्भ ऊतक ऊपरी बाह्य त्वचा के नीचे उपस्थित होता है इन पंक्तियों की उपरी सतह पर प्रकाश की मात्रा अधिक उपलब्ध होती है और निचली सतह पर प्रकाश कम पड़ता है। पत्तियों की दोनों सतहों पर प्राप्त प्रकाश की मात्रा असमान होने के कारण यह पत्तियाँ अनेक प्रकार के अनुकूलन लक्षण दर्शाती है जैसे द्विबीजी पौधों की पत्तियाँ।

(B) समद्विपाशर्वीय पर्ण (isobilateral leaf) : इस प्रकार की पर्ण की आंतरिक संरचना में पर्ण मध्योतक अविभेदित होता है। सूर्य का प्रकाश पत्तियों की दोनों सतहों को एक समान रूप से प्राप्त होता है। क्योंकि इन पत्तियों की स्थिति सूर्य की किरणों के लगभग समान्तर होती है। अत: पर्ण की सतह पर सामान्य बाह्य त्वचा कोशिकाओं के अतिरिक्त कुछ बड़ी कोशिकाएँ भी पायी है , जिनको बुलीफार्म अथवा प्रेरक कोशिकाएँ कहते है। यह कोशिकाएं तेज धूप में इन पत्तियों को सूर्य की किरणों से दूर करने का कार्य करती है। इन कोशिकाओं के कारण पत्तियाँ एक गोलाकार रूप में अथवा नालिका के समान हो जाती है।

(C) एक पृष्ठीय पर्ण अथवा केन्द्रिक पर्ण (unfacial / centric leaf) : इस प्रकार की पत्तियाँ बेलनाकार या चपटी हो सकती है और इनकी ऊपरी और निचली बाह्य त्वचा में समानता पायी जाती है जैसे – प्याज की पत्तियाँ।

(D) एलबेसेन्ट पर्ण (albescent leaf) : इस प्रकार की पत्तियों में खम्भ ऊतक पत्ती के अर्द्ध भाग में पाया जाता है और शेष आधे हिस्से में स्पंजी मृदुतक उपस्थित होता है जैसे , एब्युटीलोन की पर्ण।

पृष्ठाधर पर्ण की आंतरिक संरचना (anatomy of dorsiventral leaf)

द्विबीजपत्री पर्ण या पृष्ठाधर पर्ण की आंतरिक संरचना को तीन प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है : बाह्यत्वचा , पर्णमध्योतक और संवहन पूल।

बाह्यत्वचा – यह ऊपरी और निचली बाह्यत्वचा में विभेदित होती है –

(i) ऊपरी बाह्यत्वचा : यह बाहरी और उपरी परत होती है जिसमें ढोलकाकार मृदुतकी कोशिकाएँ एक दूसरे से सटी हुई एक पंक्ति में व्यवस्थित होती है। इसके ऊपर क्यूटिकल की परत भी पायी जाती है। इन कोशिकाओं में हरितलवक नहीं होते और इनके मध्य पर्णरन्ध्र बहुत कम पाए जाते है। कनेर और बरगद की पत्तियों में ऊपरी बाह्यत्वचा बहुस्तरीय होती है और कभी कभी इस परत में त्वचारोम भी पाए जाते है।

(ii) निचली बाह्यत्वचा : यह पत्ती की निचली परत है जिसमें मृदुतकी कोशिकाएँ सघन रूप से व्यवस्थित होती है। कोशिकाओं के मध्य पर्णरंध्र अपेक्षाकृत अधिक संख्या में मिलते है। इसके साथ ही हरितलवक केवल पर्णरंध्र की रक्षक कोशिकाओं में ही मिलते है। प्रत्येक पर्णरंध्र के भीतर की तरफ एक कक्ष अथवा गुहा पायी जाती है जिसे अधोरन्ध्रिय गुहा अथवा श्वसन गुहिका कहते है। यह गुहिका पत्ती का बाहरी वातावरण से सम्बन्ध स्थापित करने अर्थात वाष्पोत्सर्जन और गैसों के आदान प्रदान करने में सहायक होती है।

पर्णमध्योतक (mesophyll) : ऊपरी और निचली बाह्यत्वचा के मध्य पाए जाने वाले ऊतकों को पर्णमध्योतक कहते है। मध्योतक में दो प्रकार की मृदुतकी कोशिकाएँ पायी जाती है। यह निम्नलिखित प्रकार से है –

(i) खम्भ मृदुतक : यह मृदुतकी कोशिकाएँ सुदीर्घित लम्बी और खम्बे के समान होती है। इन कोशिकाओं में हरितलवक प्रचुर मात्रा में पाए जाते है।

जबकि अन्तरकोशिकीय स्थानों का अभाव होता है। इनका प्रमुख कार्य प्रकाश संश्लेषण के द्वारा भोज्य पदार्थो का निर्माण करना है। कनेर में खम्भ मृदुतक बहुस्तरीय (2-3 स्तर) होता है।

(ii) स्पंजी मृदुतक : यह खम्भ मृदुतक के ठीक नीचे अवस्थित गोलाकार , अण्डाकार अथवा बहुभुजाकार मृदुतकी कोशिकाएं होती है। इनमें हालाँकि हरितलवक पर्याप्त मात्रा में पाए जाते है। फिर भी खम्भ ऊतक की कोशिकाओं की तुलना में कम होते है। स्पंजी मृदुतकी कोशिकाओं के बीच पर्याप्त मात्रा में अन्तरकोशिकीय अवकाश पाए जाते है। यह अवकाश गैसों के विसरण में सहायक होते है। स्पंजी मृदुतक की कोशिकाएं प्रकाश संश्लेषण का कार्य भी करती है।

संवहन बण्डल (vascular bundles) : पृष्ठाधर पत्ती में संवहन बंडल वैसे तो एक समान और स्पंजी मृदुतक में बिखरे हुए पाए जाते है लेकिन मध्य शिरा का संवहन बंडल अन्य बंडलों की तुलना में बड़ा होता है। प्रत्येक संवहन बण्डल के चारों तरफ मृदुतकी कोशिकाओं के द्वारा निर्मित एक बंडल आच्छद पायी जाती है। संवहन बंडल में जाइलम ऊपरी बाह्यत्वचा की तरफ और फ्लोयम निचली बाह्यत्वचा की तरफ पाया जाता है। संवहन बंडलों का मुख्य कार्य पत्तियों में जल , खनिज पदार्थ और भोज्य पदार्थो की आपूर्ति करना है।

समद्विपाशर्वीय पर्ण की आंतरिक संरचना (anatomy of isobilateral leaf)

इस प्रकार की पर्ण प्रारूपिक तौर पर प्राय: एकबीजपत्री पौधों में पायी जाती है। इनमें पर्ण रंध्र दोनों सतहों पर अर्थात ऊपरी और निचली सतहों पर समान रूप से उपस्थित होते है।

पर्ण मध्योतक खम्भ ऊतक और स्पंजी मृदुतक में विभेदित नही होता सम्पूर्ण भरण ऊतक में हरित मृदुतक कोशिकाएँ ही पायी जाती है।

कुछ उदाहरणों में जैसे एगेव अमेरिकाना में पर्ण मध्योतक आवश्यक रूप से पेलीसेड ऊतक और स्पंजी मृदुतक में विभेदित होता है। लेकिन यहाँ पेलीसेड ऊतक आवश्यक रूप से उपरी और निचली बाह्य त्वचा के पास पाया जाता है। एक प्रारूपिक समद्विपाशर्वीय पर्ण की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने पर इसमें निम्न संरचना दिखाई देती है –

 

बाह्यत्वचा (epidermis)

ऊपरी और निचली बाह्य त्वचा एक समान संरचना प्रदर्शित करती है। पर्ण फलक की बाह्यत्वचा में सघन भरी हुई ढोलकाकार कोशिकाएँ एक पंक्ति में व्यवस्थित पायी जाती है। इस बाह्य त्वचा के ऊपर क्यूटिन की उपत्वचा उपस्थित होती है। बाह्यत्वचा में पर्णरंध्र ऊपरी और निचली दोनों सतहों पर पाए जाते है जो भीतर की तरफ उपस्थित मध्योतक की ऊपरन्ध्री गुहाओं में खुलते है। ऊपरी बाह्यत्वचा की कुछ कोशिकाएं पत्ती की लम्बाई के साथ कतारों में व्यवस्थित होती है जिन्हें प्रेरक कोशिकाएँ अथवा बुलिफार्म कोशिकाएँ कहते है। अनुकूल परिस्थितियों में यह जल से भरी होती है और स्फीत अवस्था प्रदर्शित करती है लेकिन जब वाष्पोत्सर्जन की दर अधिक होती है तो इनका जल वाष्पित हो जाता है। पत्ती में इनका पाया जाना एक मरुदभिदीय अनुकूलन का लक्षण है। प्रेरक कोशिकाओं के मध्य में छोटे छोटे और एक दूसरे से जुड़े हुए अन्तरकोशिकीय स्थान भी पाए जाते है।

अगेव अमेरिकाना की पर्ण में पर्णमध्योतक पेलीसेड ऊतक और स्पंजी ऊतक में विभेदित होता है। पेलीसेड ऊतक ऊपरी और निचली बाह्यत्वचा के पास पाया जाता है जबकि स्पंजी ऊतक इसके मज्जा भाग में वितरित होता है।

पर्णमध्योतक (mesophyll)

इस प्रकार की पर्ण की आंतरिक संरचना में पर्ण मध्योतक अविभेदित होता है। सभी कोशिकाएँ मृदुतकी और पर्णहरित युक्त होती है और इनके मध्य छोटे अंतर्कोशिक अवकाश उपस्थित होते है। अगेव अमेरिकाना पर्ण में पर्णमध्योतक पेलीसेड ऊत्तक और स्पंजी ऊतक में विभेदित होता है। पेलीसेड ऊत्तक ऊपरी और निचली बाह्यत्वचा के पास पाया जाता है जबकि स्पंजी ऊतक इसके मध्य भाग में वितरित होता है।

संवहन बण्डल (vascular bundle)

एकबीजपत्री पर्ण में क्योंकि समानांतर शिराविन्यास पाया जाता है , अत: इसकी अनुप्रस्थ काट में छोटे और बड़े संवहन बण्डल एक पंक्ति में एकांतर व्यवस्थित दिखाई देते है। यह संवहन बण्डल सदैव संयुक्त , समपाशर्वीय और अवर्धी प्रकार के होते है। यह सभी संवहन बण्डल पतली भित्ति वाली मृदुतकी कोशिकाओं के एक पंक्तिक आच्छद से घिरे हुए पाए जाते है। इस आच्छद को बण्डल आच्छद कहते है। बंडल आच्छद की कोशिकाओं में स्टार्च कण और हरितलवक पाए जाते है। बड़े संवहन बंडलों के ऊपर और निचे की तरफ दृढोतकी कोशिकाओं का समूह पाया जाता है। इसके साथ बड़े संवहन बंडलों में जाइलम और फ्लोयम ऊतक स्पष्ट दिखाई देते है। जिसमें से जाइलम ऊपरी बाह्यत्वचा और फ्लोयम निचली बाह्यत्वचा की तरफ स्थित होता है।

इस प्रकार की पत्ती में मोटी उपत्वचा का पाया जाना ऊपरन्ध्री गुहाओं और प्रेरक कोशिकाओं की उपस्थिति बड़े संवहन बंडलों के ऊपर और नीचे दृढोतक कोशिका समूह का पाया जाना इसके मरुदभिदीय अनुकूलन के प्रमुख लक्षण है।

द्विबीजपत्री और एक बीजपत्री पत्ती की आन्तरिक संरचना में अंतर (difference between dicot leaf and monocot leaf)

 लक्षण  द्विबीजपत्री पर्ण (dicot leaf)  एकबीजपत्री पर्ण (monocot leaf)
 1. प्रकार  पृष्ठाधारी  समद्विपाशर्वीय
 2. ऊपरी अधिचर्म  (i) इस पर रंध्र अनुपस्थित होते है।

(ii) प्रेरक कोशिकाएँ अनुपस्थित

 (i) रंध्र पाए जाते है।

(ii) प्रेरक कोशिकाएं उपस्थित

 3. निचली अधिचर्म  रंध्र केवल इसी त्वचा पर पाए जाते है।  इस पर भी रंध्र पाए जाते है।
 4. मध्योतक  (i) यह खम्भ ऊतक और स्पंजी मृदुतक में विभेदित होता है।

(ii) स्पंजी मृदुतकों में बड़े और अधिक अन्तरकोशिकी स्थल पाए जाते है।

(i) यह अविभेदित होता है अर्थात इसमें केवल स्पंजी मृदुतक ही पाए जाते है।

(ii) स्पंजी मृदुतक में छोटे और कम अंतरकोशिक स्थल पाए जाते है।

 5. संवहन बण्डल  (i) पूल आच्छद की कोशिकाओं में कम मंड कण पाए जाते है।

(ii) बंडलों के ऊपर और नीचे स्थलकोणोतक अथवा मृदुतक बाह्यत्वचा तक फैले रहते है।

(iii) एक बड़ा मध्यशिरा बण्डल केन्द्र में स्थित रहता है।

 (i) पूल आच्छद की कोशिकाओं में अधिक मंड कण पाए जाते है।

(ii) बंडलों के ऊपर और नीचे दृढोतक बाह्यत्वचा तक फैले रहते है।

(iii) ऐसा नहीं होता।