अग्रन्थिल रोम (non glandular trichomes in hindi) | ग्रन्थिल रोम ( glandular trichomes) क्या है

(non glandular trichomes in hindi) difference between glandular and non glandular trichomes अग्रन्थिल रोम ग्रन्थिल रोम क्या है किसे कहते है , अंतर , परिभाषा |

बाह्य त्वचीय रोम (epidermal hairs) : पर्ण की बाह्यत्वचा पर कुछ अतिवृद्धि समान संरचनाएँ उत्पन्न होती है जिनका कार्य , आकृति और प्रकृति अलग अलग होती है। स्पोर्ने (1953) के अनुसार यह संरचनायें पौधे की पहचान के लिए उपयोगी वर्गिकीय लक्षण के रूप में प्रयुक्त की जा सकती है। फ़ॉस्टर (1914) के अनुसार पर्ण के ऊपर की अतिवृद्धियाँ अधिकांश रोमिल होती है , जिनको त्वचा रोम कहते है। यह निम्नलिखित प्रकार के हो सकते है –

(1) अग्रन्थिल रोम (non glandular trichomes) : ये सजीव या निर्जीव उपांग है जो किसी प्रकार का स्त्रवण नहीं करते है। अग्रंथिल रोम एक कोशिक या बहुकोशिक होते है। एक कोशिक रोम प्राय: सरल , लम्बे या मुड़े हुए होते है लेकिन कभी कभी शाखित भी होते है। यह मुख्यतः सुरक्षात्मक संरचनायें होती है। एक कोशिक रोम मुख्यतः लोब्यूलेरिया , केनाबिस और गोसीपियम आदि में मिलते है।
बहुकोशिक रोम एककोशिक आकृतियों द्वारा बने होते है और एकपंक्तिक अथवा बहुपंक्तिक हो सकते है। अशाखित बहुकोशिक रोम चीनोपोडियम , टमाटर , सूरजमुखी और तम्बाकू आदि में पाए जाते है। बहुकोशिक शाखित रोम अनेक आकार के होते है :
(i) वृक्षाभ रोम : उदाहरण – प्लेटेनस , वर्बेस्कम।
(ii) गुच्छित रोम : उदाहरण – डोम्बिया।
(iii) ताराकृत रोम : उदाहरण – साइडा , लेंग्यूनेरिया।
(iv) छत्रिकाकार रोम : उदाहरण – ओलिया।
(2) ग्रन्थिल रोम ( glandular trichomes) : यह महत्वपूर्ण त्वचा रोम होते है , क्योंकि पत्तियों पर पाया जाने वाला लसलसा पदार्थ इनसे ही स्त्रावित होता है। ग्रंथिल रोम भी एक कोशिक या बहुकोशिक होते है। सरल एक कोशिक ग्रंथिल रोम बाह्यत्वचा कोशिकाओं से पेपिला के रूप में विकसित होते है। अर्टिका डायोका में एक कोशिक ग्रन्थिल रोम का आधार फूला हुआ होता है और उपरी भाग चोच के समान पतला होता है। रोम के छूने पर शीर्ष भाग टूट जाता है और स्त्राव बाहर आ जाता है जो त्वचा में उत्तेजना उत्पन्न करता है। ये रोम दंश रोम कहलाते है।
बहुकोशिक ग्रंथिल रोम आधारी वृंत और शीर्ष में विभेदित होते है। अधिकतर कीटभक्षी पादपों में पाचक ग्रन्थियां बहुकोशिक ग्रन्थिल रोम ही होते है।

पर्णमध्योतक (mesophyll)

इसका निर्माण भरण ऊतक तंत्र के द्वारा होता है और यह पत्ती की ऊपरी और निचली बाह्यत्वचा के बीच पाया जाता है। यह तन्त्र प्रकाश संश्लेषण में प्रमुख भूमिका निभाता है। अत: इसकी कोशिकाओं में हरितलवक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। कोशिकाओं की संरचना और इनकी स्थिति के आधार पर इस ऊतक में दो प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती है।
1. खम्भ ऊत्तक (palisade tissue) : यह लम्बवत पंक्तियों में व्यवस्थित और सुदीर्घित कोशिकाओं का बना होता है। यहाँ सामान्यतया कोशिकाओं के मध्य अन्तरकोशिकीय स्थान नहीं पाए जाते। इन कोशिकाओं में हरित लवक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। खंभ ऊत्तक की कोशिकाएँ एक अथवा एक से अधिक पंक्तियों में व्यवस्थित हो सकती है। यह द्विबीजपत्री पौधों की पृष्ठाधारी पर्णों में केवल ऊपरी बाह्य त्वचा के नीचे ही पाया जाता है जबकि समद्विपाशर्वीय पर्णों में ऊपर और निचली दोनों बाह्य त्वचाओं से लगा हुआ पाया जाता है। तेज धूप में उगने वाले पौधों और मरुदभिद पौधों की पत्तियों में खम्भ ऊतक अत्यधिक विकसित होता है जबकि छाया में पाए जाने वाले पौधों में यह अल्पविकसित होता है।
2. स्पंज ऊतक (spongy tissue) : इस प्रकार की मध्योतकी कोशिकाएं मृदुतकी , बहुभुजीय अण्डाकार या गोलाकार होती है और इनमें हरितलवक अपेक्षाकृत कम मात्रा में उपस्थित होते है। इनकी कोशिकाओं के मध्य बड़े और सुविकसित अन्तरकोशिकीय वायु स्थान पाए जाते है।

संवहनी ऊतक तंत्र (vascular tissue system)

पत्तियों में संवहन ऊतक तंत्र का निर्माण मुख्यतः संवहन बंडलों से होता है। संवहन बंडलों की शिराएँ और इनके द्वारा निर्मित संवहन तंत्र को शिराविन्यास कहते है। द्विबीजपत्री पौधों में पर्ण के संवहन बण्डल बिखरे हुए पाए जाते है और यह जालिकावत शिराविन्यास का निर्माण करते है। द्विबीजपत्री पत्ती की सबसे बड़ी शिरा जो मध्य में उपस्थित होती है , उसे मध्यशिरा कहते है और इससे अनेक छोटी शिराएँ उत्पन्न होकर किनारों की तरफ बढती है। एकबीजपत्री पौधों में यह शिराएँ समानांतर रूप से व्यवस्थित पायी जाती है और समान आकृति की होती है अर्थात इनके संवहन बण्डल लगभग एक आकार के होते है। पर्ण के संवहन बण्डल संयुक्त , समपाशर्वी और बंद होते है। सामान्यतया पर्ण जाइलम ऊपरी अथवा अभ्यक्ष और फ्लोयम निचली अथवा अपाक्ष सतह की तरफ पाया जाता है। बड़ी शिराओं अथवा बंडलों के जाइलम में वाहिका और वाहिनिकाएं पायी जाती है। इनके फ्लोएम में चालनी नलिकाएँ पायी जाती है। जबकि छोटी शिराओं में जाइलम केवल वाहिनिकाओं और फ्लोयम केवल मृदुतकी कोशिकाओं के द्वारा निरुपित होता है।
बण्डल आच्छद (bundle sheath) : पर्ण में प्राय: संवहन बण्डल के चारों तरफ बड़ी कोशिकाओं की एक परत पायी जाती है , इसे बंडल आच्छद कहते है। इन कोशिकाओं की आकृति संरचना और विन्यास में बहुत अधिक भिन्नता पायी जाती है। बण्डल आच्छद की कोशिकाएँ एक अथवा दो परत में व्यवस्थित और मृदुतकीय या दृढोतकी हो सकती है। कभी कभी इन कोशिकाओं में हरितलवक भी पाया जाता है। एकबीजपत्री पौधों में बण्डल आच्छद दो परतों का बना होता है जिसमें से बाहरी परत की कोशिकाओं में हरित लवक उपस्थित होते है परन्तु भीतरी परत की कोशिकाओं में नहीं पाए जाते। द्विबीजपत्री पौधों में बण्डल आच्छद कभी कभी संवहन बण्डल के एक ओर अथवा दोनों ओर अत्यधिक वृद्धि करके बाह्यत्वचा तक पहुँच जाते है। इस प्रकार की आच्छदी संरचनाओं को बंडल आच्छद प्रसार कहते है। यह प्रसारी संरचनाएँ मृदुतकी या दृढोतकी होती है। जब यह मृदुतकी कोशिकाओं से निर्मित होती है तो यह माना जाता है कि इनका प्रमुख कार्य पत्तियों में खनिज विलयन और खाद्य पदार्थो के संवहन का होता है। बण्डल आच्छद की आधारभूत प्रवृति के बारे में विभिन्न वनस्पतिशास्त्रियों के अलग अलग विचार है लेकिन अधिकांश की यह मान्यता है कि यह एक प्रकार की अन्तश्त्वचा परत होती है , क्योंकि इनमें स्टार्च कण मौजूद होते है और कभी कभी इनमें कैस्पेरियन पट्टिकाएँ भी पायी जाती है। जलीय पौधों और फर्न्स में बण्डल आच्छद अनुपस्थित होते है।
पत्तियों में याँत्रिक ऊतक (mechanical tissue in leaf) : पर्ण की सतह को पूरी तरह फैलाए रखने के लिए प्राय: इनमें यांत्रिक ऊतक की आवश्यकता होती है। द्विबीजपत्री पौधों की पत्तियों में तो जालिकावत शिरा विन्यास और बंडल आच्छद का प्रसार पत्तियों को पूरी तरह फैली हुई स्थिति में रखने में सहायता प्रदान करते है। बड़ी शिराओं की बाह्यत्वचा के नीचे और सिरे पर स्थूलकोण ऊतक और दृढोतकी कोशिकाएँ यांत्रिक बल प्रदान करने का कार्य करती है। इसी प्रकार एकबीजपत्री पर्णों में तंतुरूप में दृढोतक के अलावा विभिन्न कोशिकाओं में लिग्निन और सिलिका का निक्षेपण भी यांत्रिक बल प्रदान करने का कार्य करता है।
स्त्रावी ऊतक (secretory tissue) : विभिन्न पत्तियों की मृदुतक में तेल , गोंद , मकरन्द , रेजिन , टेनिन , म्यूसीलेज और लेटेक्स आदि अनेक घुलनशील पदार्थ पाए जाते है और पत्तियों में अनेक प्रकार के क्रिस्टल , रेफिड्स और सिस्टोलिथ भी मिलते है , जैसे – रूटेसी , एस्टेरेसी , एपोसाइनेसी और यूफोर्बियेसी आदि कुलों में।