inter state council in hindi , अंतर्राज्यीय परिषद ;-
अंर्तराज्यीय परिषद का गठन केन्द्र – राज्य संबंधों की समस्याओं
एवं राज्य-राज्य समन्वय प्राप्त करने के लिए सरकारिया आयोग की
सिफारिश पर 28 मई 1990 को अनुच्छेद (263) के तहत् किया गया।
इसे गृह मंत्रालय के आदेश द्वारा गठित किया गया।
इस परिषद का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है जबकि सभी केन्द्रीय कैबिनेट
मंत्री राज्यों के मुख्यमंत्री तथा केन्द्रशसित प्रदेशों के प्रशासक (मुख्यमंत्री
या उपराज्यपाल) इसके सदस्य होते हैं। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री
की अध्यक्षता में एक स्थायी समिति भी कार्य करती है जिसमें छः
केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री तथा छः मुख्यमंत्री (सभी छः जोनों से एक-एक)
सदस्य होते हैं।
यह व्यवस्था केन्द्रीय एवं राज्य मुख्य कार्यकारियों के बीच एक बेहतर
समझ तथा समन्वय के विकास के लिए की गई है। भारतीय संविध्
ाान के अनुच्छेद (263) के तहत् इसके कर्तव्यों का उल्लेख किया गया
है जो इस प्रकार हैः
1 राज्यों के बीच जो विवाद उत्पन्न हो गए हों उनकी जाँच
करना और उन पर सलाह देना।
2 कुछ या सभी राज्यों के अथवा संघ और एक या अधिक
राज्यों के सामान्य हित से संबंधित विषयों के अन्वेषण और
उन पर विचार विमर्श करना।
3 ऐसे किसी विषय पर सिफारिश करना और विशिष्टतया उस
विषय के संबंध में नीति और कार्यवाही के अधिक अच्छे
समन्वय के लिए सिफारिश करना।
अंर्तराज्यीय परिषद की एक वर्ष में तीन बैठकें होनी आवश्यक है।
इसकी कार्यवाहियाँ कैमरे में होती हैं और सभी प्रश्नों पर सहमाति से
निर्णय लिए जाते हैं। सहमाति है या नहीं इसका निर्धारण
अध्यक्ष द्वारा होता है।
उपरोक्त तथ्यों के अलावा केन्द्र-राज्य संबंधों में सुधार लाने के लिए
निम्नलिखित अन्य प्रयास भी अपेक्षित है।
1 अनुच्छेद (248) का संशोधन कर यह प्रावधान किया जाना
चाहिए कि अवशिष्ट शक्तियों पर केन्द्र एवं राज्य दोनांे का
अधिकार क्षेत्र हो ।
2 अनुच्छेद (249) में भी बदलाव किया जाना चाहिए जो केन्द्र
को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार देता
है। इसके विकल्प के रूप में अनुच्छेद (252) का उपयोग
किया जाना चाहिए जिसमें दो या दो से अधिक राज्यों की
सहमति से संसद की विधि बनाने की शक्ति प्राप्त है।
3 अनुच्छेद (280) का संशोधन कर वित्त आयोग को स्थायी
बनाया जाना चाहिए एवं ऐसा प्रावधान होना चाहिए कि कुल
केन्द्रीय आवंटन का 70 प्रतिशत भाग वित्त आयोग की
सिफारिश पर हो ।
4 अनुच्छेद (3) का संशोधन कर यह प्रावधान होना चाहिए कि
बिना राज्य सहमति के राज्यों के नाम एवं क्षेत्र में परिर्वन
नहीं किया जाना चाहिए।