पढ़िए inter chromosomal changes in hindi अन्तर गुणसूत्रीय परिवर्तन क्या है , गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन (Variations in Chromosome number) ?
(B) अन्तर गुणसूत्रीय परिवर्तन (Inter-chromosomal Changes)
जब असमजात गुणसूत्रों (Non-homologous chromosomes) में खण्डन होता है तथा उनके खण्ड आपस में स्थानान्तरित हो जाते हैं तो इसे अन्तर- गुणसूत्रीय परिवर्तन कहते हैं।
इसका उदाहरण स्थानान्तरण ( Translocation) है ।
स्थानान्तरण (Translocation)
स्थानान्तरण में एक गुणूसत्र का खण्ड अन्य गुणसूत्र पर स्थानान्तरित हो जाता है । स्थानान्तरण असमजात या समजात गुणसूत्र किसी पर भी हो सकता है। यह एकपार्श्विक (unilateral) जिसमें एक गुणसूत्र से गुणसूत्र खण्ड दूसरे में जाता है, परन्तु दोनों दिशाओं में आदान-प्रदान नहीं होता है तथा द्विपार्श्विक (bilateral) हो सकता है जिसमें खण्डों का आदान-प्रदान दोनों दिशाओं में होता है। यदि दो असमजात गुणसूत्रों में पारस्परिक गुणसूत्रों के खण्डों का स्थानान्तरण हो तो यह पारस्परिक स्थानान्तरण (reciprocal translocation) या खण्डीय विनिमय (Segmental interchange) कहलाता है (चित्र. 7.7 ) ।
- विषमयुग्मनज स्थानान्तरण (Heterozygotic translocation)
यदि गुणसूत्र के दोनों समुच्चयों में से किसी एक में स्थानान्तरण उपस्थित हो तो इसे विषमयुग्मनज स्थानान्तरण (Heterozygotic translocation) कहते हैं (चित्र 7.7)। जिन पौधों में इस प्रकार का स्थानान्तरण होता है उनमें स्थानातरण में भाग लेने वाले गुणसूत्रों के बीच सामान्य युग्मन द्वारा युगलियाँ (Pairs) का बनना सम्भव नहीं होता है। गुणसूत्रों के समजातीय खण्डों के बीच सामान्य युग्मन के स्थूलपट्ट अवस्था (Pachytene) में एक क्रॉसित आकृति (+) दिखाई देती है, सम्मिलित होते हैं । मध्यावस्था प्रथम ( Metaphase I) के अन्तर्गत इन चारों गुणसूत्रों द्वारा एक चतु संयोजक (quadrivalent ) बनता है जो विभिन्न कोशिकाओं में निम्न प्रकार के विन्यास प्रदर्शित करता है
(a) एकान्तर (Alternate)
इस प्रकार के अभिविन्यास (orientation) में एकान्तर गुणसूत्र एक ही ध्रुव की ओर अभिविन्यस्त (oriented) होते हैं तथा आठ के अंक (8) के रूप में विन्यास दिखाई देता है (चित्र 77 ) ।
(b) आसन्न I (Adjacent I)
इसमें असमजातीय सेन्ट्रोमीयर (non-homologous centromeres) वाले निकटवर्ती गुणसूत्र एक ही ध्रुव की ओर अभिविन्यस्त होते हैं तथा समजातीय सेन्ट्रोमीयर (homologous centromeres) वाले गुणसूत्रों का अभिविन्यास विपरीत ध्रुवों पर होता है । इस स्थिति में चारों गुणसूत्र एक वलय ( Ring) प्रदर्शित करते हैं (चित्र 7.7)।
(c) आसन्न II (Adjacent II )
इस अभिविन्यास में समजातीय सेन्ट्रोमीयर वाले निकटवर्ती गुणसूत्र एक ही ध्रुव पर अभिविन्यस्त रहते हैं। इसमें भी चारों गुणसूत्र एक वलय प्रदर्शित करते हैं (चित्र 7.7)।
इनके परिणामस्वरूप निम्न प्रकार के युग्मकों का निर्माण होगा (चित्र 7.8) :
(i) एकान्तर वियोजन ( disjunction) होने पर प्रकार्यात्मक युग्मक (functional gametes) बनते हैं ।
(ii) आसन्न I व आसन्न II दशाओं में अप्रकार्यक (non-functional) या बन्ध्य (Sterile) युग्मक बनते हैं, क्योंकि उनमें पाये जाने वाले गुणसूत्रों में हीनताएँ अथवा द्विगुणन होता है ।
अतः जिस पौधे में स्थानान्तरण विषमयुग्मनजी दशा में उपस्थित होता है उसमें पराग बन्ध्यता (Pollen-sterility) का स्तर अधिक होता है। प्रकृति में प्राय: इस प्रकार के स्थानान्तरण कुछ पादपों जैसे, ओइनोथेरा (Oenothera), ट्रैडेस्कैंशिया (Tradescantia) तथा रहोइओ (Rhoeo) में देखे गये हैं।
स्थानान्तरण के आनुवंशिक प्रभाव (Genetic effect of translocation) :
- स्थानान्तरण से गुणसूत्र की संरचना व सहलग्न समूहों में गुणात्मक (qualitative) परिवर्तन हो जाते हैं।
- इसके कारण गुणसूत्रों में जीन्स का स्थान परिवर्तित (Position effect) हो जाता है, असामान्य शारीरिक लक्षण प्रदर्शित होते हैं, जैसे- ड्रोसोफिला में बार नेत्रों का पाया जाना ।
- व्युत्क्रम स्थानान्तरण से पौधों में अर्धबन्ध्यता व बीज निर्माण में कमी जैसे लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं ।
- समयुग्मनज स्थानान्तरण (Homozygotic translocation)
इस प्रकार के स्थानान्तरण में अर्धसूत्री विभाजन सामान्य होता है । अत: इन्हें कोशिका वैज्ञानिक रूप (Cytologically) से पहचाना नहीं जा सकता है।
गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन (Variations in Chromosome number)
प्रत्येक जाति की कायिक कोशिकाओं (Somatic cells) व युग्मकों (gametes) में गुणसूत्रों की संख्या निश्चित होती है। एक युग्मक में गुणसूत्रों की संख्या अगुणित (haploid) या एकगुणित (monoploid) कहलाती है। इसे ‘n’ द्वारा प्रदर्शित करते हैं। जब नर व मादा युग्मक निषेचित होते हैं तो युग्मनज (zygote) में गुणसूत्रों के दो समुच्चय (sets) पाये जाते हैं । गुणसूत्रों की यह संख्या द्विगुणित संख्या (Diploid number) कहलाती है। इसे ‘2n’ द्वारा प्रदर्शित करते हैं । इस प्रकार युग्मनज में पाये जाने वाले द्विगुणित समुच्चय ( diploid set) में प्रत्येक प्रकार का गुणसूत्र दो बार उपस्थित है । अतः एकसमान गुणसूत्रों के एक जोड़े में प्रत्येक सदस्य दूसरे का समजात (homologue) है, जिसमें से एक सदस्य मादा जनक से तथा दूसरा नर जनक से प्राप्त होता है । उदाहरणार्थ मटर के पौधे की कायिक कोशिका में 14 (2n) गुणसूत्र होते हैं । अतः इसमें समजात गुणसूत्रों के सात जोड़े पाये जाते हैं। इनमें से यद्यपि 7 गुणसूत्र संरचनात्मक रूप से एक दूसरे से विभिन्न होते हैं किन्तु वे आपस में मिलकर कार्य करते हैं तथा गुणसूत्रों की यह संख्या प्रारम्भिक समुच्चय ( basic set) बनाती है जिसे जीनोम (genome) कहते हैं, इसे ‘x’ द्वारा प्रदर्शित करते हैं।
एक जाति विशेष में निश्चित द्विगुणित गुणसूत्रों की संख्या में विभिन्नता विषमगुणिता (Heteroploidy) कहलाती है। यह मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है (चित्र 7.9)।
(A) न्यूनबहुगुणिता (Aneuploidy)
एक पूर्ण द्विगुणित समुच्चय में आंशिक रूप से गुणसूत्र बढ़ व घट जाते हैं तो इसे न्यूनबहुगुणिता कहते हैं। बढ़ने या घटने वाले गुणसूत्रों की संख्या प्रारम्भिक समुच्चय (x) का गुणन नहीं होती है – 1 यह दो प्रकार की होती है-
- अधिगुणिता (Hyperploidy)
जब द्विगुणित जीनोम (2n) में एक अथवा एक से अधिक गुणसूत्र बढ़ जाते हैं तो इसे अधिगुणिता कहते हैं।
इसके निम्नलिखित दो प्रकार होते हैं-
(a) एकाधिसूत्रता (Trisomy, 2n + 1)
इस प्रकार की अधिगुणिता में केवल एक गुणसूत्र की अधिकता होती है। अतः एकाधिसूत्री (Trisomics) जीवों में गुणसूत्रों की संख्या को 2m + 1 द्वारा निरूपित करते हैं, क्योंकि यह अतिरिक्त गुणसूत्र एक अगुणित घटक (haploid component) के विभिन्न गुणसूत्रों में से कोई भी एक हो सकता है, अतः किसी जाति विशेष में जितनी अगुणित गुणसूत्र संख्या होगी उतने ही एकाधिसूत्री बन सकते हैं।
एकाधिसूत्री तीन प्रकार के हो सकते हैं (चित्र 7.10)-
(i) प्रारम्भिक एकाधिसूत्री (Primary trisomics)
इनमें अतिरिक्त गुणसूत्र किसी एक गुणसूत्र के समान होता है ।
(ii) द्वितीयक एकाधिसूत्री (Secondary trisomics)
जब अतिरिक्त गुणसूत्र एक समगुणसूत्र ( isochromosome) होता है जिसमें दोनों भुजाएँ समान होती हैं।
(ii) तृतीयक एकाधिसूत्री (Tertiary trisomics)
इनमें अतिरिक्त गुणसूत्र दो गुणसूत्रों में खण्डों के परस्पर स्थानान्तरण से बनता है ।
एकाधिसूत्री (Trisomics) प्रकृति में विभिन्न जीवों में पाये जाते हैं । इसका प्रमुख उदाहरण मानव में पाये जाने वाले डाउन संलक्षण (Down’s syndrome) या मंगोलियता (monogolism) का लक्षण है जो बच्चों में सामान्य है । इस असामान्यता से बच्चों में मानसिक मंदन, छोटा शरीर, सूजी हुई जीभ तथा नेत्र पलक (eyelids) वलन मंगोल जाति के लोगों के समान होते हैं। इस प्रकार ए. एफ. ब्लैक्सली एवम् अन्य (A.F. Blakeslee et al., 1924) ने धतूरा में फल के परिमाण, आकृति व अन्य आकारिक लक्षणों में सामान्य लक्षणों से विभिन्नताओं का कारण एकाधि-सूत्रता (Trisomy ) बताया। धतूरा स्ट्रेमोनियम गुणसूत्रों की सामान्य संख्या (2n = 24 ) होती है। लेकिन धतूरा में (उत्परिवर्तित प्रकारों में ) 25 गुणसूत्र देखे गये। अर्धसूत्री विभाजन की मध्यावस्था में 11 जोड़े गुणसूत्र सामान्य थे व एक जाड़ा गुणसूत्र एकाधिसूत्री था ।
(b) द्विअधिसूत्रता (Tetrasomy, 2n + 2)
इस प्रकार की अधिगुणिता में द्विगुणित जीनोम में, समजात गुणसूत्रों के एक युग्म की अधिकता होती है। इसे 2n+2 द्वारा प्रदर्शित करते हैं । द्विअधिसूत्रियों (Tetrasomics) में एक विशेष गुणसूत्र चार बार पाया जाता है। इसे 2+1+1 द्वारा निरूपित नहीं कर सकते हैं, क्योंकि इस सूत्र द्वारा द्विएकाधिसूत्रों (double trisomics) को प्रदर्शित करते हैं । अर्धसूत्री विभाजन के समय द्विअधिसूत्रियों (Tetrasomics) के चारों समजात गुणसूत्र चतुर्संयोजक (quadrivalent) बनाते हैं। यदि इनका वितरण नियमित (दो के समूह में) होता है तो आनुवंशिक तंत्र सामान्य रूप से कार्य करता है। उदाहरण-गेहूँ (wheat) में 21 द्विअधिसूत्री ।
- अधोगुणित (Hypoploidy)
जब एक द्विगुणित समुच्चय (2n) में से एक अथवा एक से अधिक गुणसूत्र कम हो जाते हैं तो इसे अधोगुणिता (hypoploidy) कहते हैं ।
इसके दो प्रकार निम्न हैं-
(a) एकन्यूनसूत्रता (Monosomy, 2n – 1 ) – जब एक द्विगुणित समुच्चय में केवल एक गुणसूत्र की कमी होती है तो इसे एक न्यूनसूत्रता कहते हैं । एक न्यूनसूत्रता को हम इस प्रकार समझ सकते हैं। माना कि किसी जीव में द्विगुणित समुच्चय (2n) में चार जोड़ी गुणसूत्र हैं। इनमें से यदि किसी कारणवश एक गुणसूत्र घट जाये तो, इसमें गुणसूत्रों के तीन जोड़े तो सामान्य होंगे तथा एक एकल गुणसूत्र होगा । यह जीव एकन्यूनसूत्री (monosomic) कहलाता है। एकन्यूनसूत्री असामान्य प्रकार का अर्धसूत्रण प्रदर्शित करते हैं, क्योंकि एकन्यूनसूत्री जीवों में एक पूर्ण गुणसूत्र की कमी होती है इसलिए इनमें दो प्रकार के युग्मकों का निर्माण होता है। कुछ में गुणसूत्रों की संख्या (n) व दूसरों में (n-1) होती है। एकल गुणसूत्र जिसका कोई समजात नहीं होता है वह पश्चावस्था में विलुप्त हो जाता है। जिन पौधों में (7-1) युग्मक होते हैं वे जीवित नहीं रहते। जबकि जन्तुओं में आनुवंशिक असन्तुलन होने के कारण उनकी जनन क्षमता घट जाती है। कुछ पौधों जैसे धतूरा में एकन्यूनसूत्री जीवित रहते हैं। सीयर्स (Sears, 1948) ने ट्रिटिकम वलगेयर में 21 सम्भावित एकन्यूनसूत्री प्राप्त किये।
(b) द्विन्यूनसूत्रता (Nullisomy, 2n2 ) – वह जीव जिसमें समजातीय गुणसूत्रों के एक युग्म का अभाव होता है, द्विन्यूनसूत्री जीव (Nullisomics) कहलाते हैं। इन्हें 2-2 जीनोमिक (genomic) सूत्र द्वारा निरूपित करते हैं। इनमें गुणसूत्र संख्या को 2-1-1 न लिखकर 2-2 लिखते है, क्योंकि 2017- 1-1 सूत्र द्विएकन्यूनसूत्री के लिए लिखा जाता है। द्विन्यूनसूत्रीयों (Nullisomics) में क्योंकि एक जोड़ी गुणसूत्र का पूर्ण अभाव होता है, अतः उन पर उपस्थित जीनों के अभाव के कारण ये सामान्य पौधों से कई लक्षणों में विभिन्नता रखते हैं। ये भी प्रायः एकन्यूनसूत्रियों के समान जीवित नहीं रहते हैं लेकिन द्विन्यूनसूत्री बहुगुणित जैसे हेक्साफ्लोइड गेहूँ (6x 2 ) जीवित रह सकते हैं किन्तु इनमें भी जनन क्षमता का निर्माण होता है ।
न्यूनबहुगुणिता का उद्भव (Origin of Aneuploids)
पौधों में न्यूनबहुगुणिता कई कारणों से हो सकती है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं- 1. प्रकृति में स्वतः ही पौधों में n+1 अथवा n-1 युग्मकों का निर्माण होता रहता है। यदि +1 अथवा –1 गुणसूत्र संख्या वाले युग्मक n गुणसूत्र संख्या वाले युग्मकों के साथ संयोजित हो जाते हैं `तो 2n+1 अथवा 2n-1 प्रकार के युग्मनज (zygote) का निर्माण हो जाता है। 2. त्रिगुणित (3n) पौधों में अधिकतर +1 या n-1 प्रकार के युग्मकों का निर्माण होता है । जिनसे न्यूनबहुगुणित संततियाँ प्राप्त होती हैं ।
- अधिकतर टेट्रासोमिक (2n+2) पौधों में n+1 प्रकार के युग्मक पाये जाते हैं, जिनके संयोजन से ट्राइसोमिक (2n+1) प्रकार के युग्मनज (zygote) बनते हैं ।
- स्थानान्तरण विषमयुग्मनजों (translocation heterozygotes) में क्वाड्रीवेलेण्ट (quadrivalent) के चारों गुणसूत्रों का पृथक्करण के कारण n+1 तथा n – 1 युग्मकों का निर्माण हो सकता है। जब ये युग्मक सामान्य युग्मक (n) से संयोजित होते हैं तो न्यूनबहुगुणित पौधों का उद्भव होता है ।