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बहुगुणिता की परिभाषा क्या है , polyploidy in hindi definition , परबहुगुणित (Allopolyploids)

जाने बहुगुणिता की परिभाषा क्या है , polyploidy in hindi definition , परबहुगुणित (Allopolyploids) ?

(B) बहुगुणिता (Polyploidy)

किसी भी जीव में दो से अधिक संजीनों या जीनोम (genomes) का पाया जाना बहुगुणिता (Polyploidy) कहलाता है । बहुगुणिता सामान्यतः पादपों में पायी जाती है, जन्तुओं में बहुत कम देखने को मिलती है। पुष्पीय पादपों की अधिकतर जातियों में बहुगुणिता पायी जाती है ( स्टेबिन्स, 1950 ) । क्राइसेन्थीमम (Chrysanthemum), सोलेनम (Solanum), ब्रेसिका (Brassica), गेहूँ (Wheat) तथा निकोटिआना (Nicotiana) ऐसे पादप हैं जिनमें बहुगुणिता सामान्य रूप से पायी जाती है (चित्र 7.11)। क्राइसेन्थीमम में प्रारम्भिक गुणसूत्र संख्या (basic number of the chromosomes) 9 होती है। इसकी विभिन्न जातियों में 36, 54, 63, 72 तथा 90 गुणसूत्र भी पाये जाते हैं ।

इसी प्रकार निकोटिआना में प्रारम्भिक गुणसूत्र की संख्या 12 होती है, किन्तु इसकी बहुगुणित जातियों में गुणसूत्र की संख्या 24, 48, 72 पायी जाती है। गेहूँ में द्विगुणित (2n = 14 ), चतुर्गुणित (4n = 28 ) तथा षटगुणित ( 6n = 42 ) किस्में सामान्य रूप में मिलती हैं ।

द्विगुणिता (2n) से बहुगुणिता दो कारकों द्वारा उत्पन्न हो सकती है-

(i) युग्मक बनाने वाले ऊतकों की कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या में द्विगुणन होने के

(ii) युग्मकों के निर्माण समय गुणसूत्रों का अर्धसूत्रण नहीं होना ।

बहुगुणितों के प्रकार (Types of polyploids) जीव जिनकी प्रत्येक कोशिका में दो से अधिक 1. स्वबहुगुणित (Autopolyploids) – जीनोम या समजात गुणसूत्रों का समुच्चय पाया जाता है, स्वबहुगुणित कहलाते हैं। उदाहरणार्थ, यदि किसी द्विगुणित जाति में गुणसूत्रों के दो समान समुच्चय या संजीन AA हैं तो एक स्वत्रिगुणित (Autotriploid) में तीन समान संजीन AAA तथा एक स्वचतुर्गुणित (autotetraploid) में इस प्रकार के चार संजीन होंगे AAAA (चित्र 7.11)।

2.परबहुगुणित (Allopolyploids) – जब दो विभिन्न जातियों (species) से व्युत्पन्न F, संकर संतति में गुणसूत्रों की संख्या को दुगुना करने के फलस्वरूप बहुगुणिता उत्पन्न की जाती है तो इसे परबहुगुणिता (Allopolyploidy) कहते हैं। अतः जिन जीवों की कोशिकाओं में दो से अधिक विभिन्न जीनोम पाये जाते हैं परबहुगुणित (Allopolyploids) कहलाते हैं ।

उदाहरण के तौर पर यदि दो विभिन्न जातियों में से एक जाति का जीनोम AA तथा दूसरी का BB है। यदि इन दोनों जातियों में संकरण कराया जाये तो F, संतति में उत्पन्न होने वाले संकर में केवल एक A तथा एक B जीनोम होगा। इस F, संकर संतति AB में यदि गुणसूत्रों को दुगुना कर दिया जाये तो एक चतुर्गुणित (Tetraploid) की उत्पत्ति होगी जिसमें दो A और दो B जीनोम (AA, BB) होंगे (चित्र 7.11)। इस प्रकार की परबहुगुणिता को उभयद्विगुणिता (Amphidiploidy ) या परचतुर्गुणिता (Allotetraploidy) कहते हैं । यदि एक या दोनों जनक स्वयं भी बहुगुणित हों, तब ऐसे परबहुगुणितों को उभयबहुगुणित (amphipolyploid) कहते हैं । जैसे- हेक्साग्लोइड गेहूँ (AABBDD) (चित्र 7.12)।

बहुगुणितों के संरचनात्मक लक्षण (Morphological features of Polyploids) : )

(a). स्वबहुगुणित (Autopolyploids) :

  1. इनमें कायिक वृद्धि अधिक होती है। कोशिकाओं का आकार बड़ा होने के कारण ये द्विगुणितों (2n) की अपेक्षा अधिक स्थूलकाय होते हैं।
  2. इनमें द्विगुणितों की अपेक्षा बीजों का उत्पादन कम होता है।
  3. पुष्प देरी से बनते हैं ।
  4. पुष्प व फलों का आकार बड़ा होता है।
  5. पत्तियाँ गहरी हरी रंग की होती हैं।
  6. चतुर्गुणिता (4n) से अधिक बहुगुणिता बढ़ने पर पौधों में असामान्य लक्षण, जैसे- बौनापन, कमजोर तना व झुर्रीदार पत्तियों का बनना देखा गया है।
  7. त्रि, पंच व सप्त स्वबहुगुणी बंध्य होते हैं । इनमें कायिक व अलैंगिक विधियों द्वारा जनन हो सकता है, जैसे-आलू, सेव, केला, तरबूज आदि में ।

(b) परबहुगुणित (Allopolyploids) —

  1. चूँकि परबहुगुणितों में दोनों ही जातियों का आनुवंशिक पदार्थ मौजूद होता है, अत: इनमें दोनों ही के लक्षण प्रदर्शित होते हैं ।
  2. इनमें सामान्यतः द्विगुणितों से अधिक संकरओज (vigour) होता है, किन्तु कुछ परबहुगुणितों में संकर ओज की कमी देखी गई है।
  3. द्विगुणितों की अपेक्षा अधिक जीवनक्षम अथवा तेजस्वी होते हैं।
  4. इनमें द्विगुणितों की अपेक्षा फलों का आकार बड़ा होता है।
  5. इनमें लैंगिक जनन के स्थान पर अलैंगिक विधियों (Apomictic method) द्वारा जनन होता है ।

यद्यपि परबहुगुणितों का यह अनुमान लगाना कठिन होता है कि इनमें दोनों जातियों के लक्षण किस प्रकार प्रदर्शित होंगे, किन्तु ट्रिटिकेल (Triticale) में जनक जातियों के वांछित लक्षण, गेहूँ की उत्पादक क्षमता व राई की अनुकूलनशीलता पायी जाती है।

बहुगुणिता का कोशिका विज्ञान (Cytology of polyploidy)

क्योंकि एक स्वत्रिबहुगुणित (Autotriploid) अपने सभी समजातों के लिए वास्तव में एकाधिसूत्री (Trisomic) होता है, अत: इनमें अर्धसूत्रण के दौरान, एक त्रिसंयोजक विन्यास (trivalent configuration) अथवा एक द्विसंयोजक (bivalent ) तथा एक संयोजक (univalent ) हो सकते हैं। पश्चावस्था I (Anaphase I) में त्रिसंयोजी एवम् एक संयोजी गुणसूत्रों का वितरण अनियमित होता है जिससे सभी सम्भावित प्रकार के युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या अगुणित (n) से द्विगुणित (2n) हो सकती है। इस प्रकार आनुवंशिक रूप से असन्तुलित युग्मकों का निर्माण होता है तथा स्वत्रिबहुगुणित में उच्च स्तर की बन्ध्यता पायी जाती है ।

जबकि एक स्वचतुर्गुणित (Autotetraploid) में प्रत्येक समजात चार बार प्रदर्शित होता है। यहाँ चतुर्संयोजन विन्यास (quadrivalent configuration) या दो द्विसंयोजक विन्यास (bivalents) या एक त्रिसंयोजक तथा एक एकसंयोजक या चार एक संयोजक बनते हैं। इनमें उर्वरता (fertility) कुछ अधिक हो सकती है फिर भी द्विगुणितों (diploids) से कम होती है ।

इसी प्रकार एक परचतुर्गुणित (Allotetraploid) में प्रत्येक गुणसूत्र जोड़े में उपस्थित होता है। यह द्विगुणित ( diploid) के समान सामान्य युग्मन (pairing) दर्शाते हैं। उदाहरणार्थं A, A के साथ व B, B के साथ जोड़े बनाते हैं। इसे ऑटोसिन्डेसिस (Autosyndesis) कहा जाता है। लेकिन विषमजात गुणसूत्रों (non-homologous chromosomes) जैसे A तथा B गुणसूत्रों में पूर्ण अथवा आंशिक युग्मन एलोसिन्डेसिस (allosyndesis) कहलाता है। दो विषमजात गुणसूत्रों में एक अथवा अधिक छोटे खण्ड आनुवंशिकीय रूप से समान हो सकते हैं। इस प्रकार के गुणसूत्रों वाले जीव सखण्ड परबहुगुणित (Segmental Allopolyploids) कहलाते हैं। इनका विकासीय (evolutionary) महत्त्व अधिक होता है।

परबहुगुणिता के कुछ मुख्य उदाहरण ( Some Examples of Allopolyploidy)

(a) रैफेनोब्रैसिका ( Raphanobrassica)

एक रूसी वैज्ञानिक जी.डी. कार्पिचेन्को (G.D. Karpechenko) ने सन् 1927 में एक कृत्रिम परबहुगुणित रैफेनोब्रैसिका उत्पन्न किया । इन्होंने मूली अथवा रैफेनस सैटाइवस (Raphanus sativus, 2n = 18) तथा गोभी अथवा ब्रेसिका ओलेरेसिया (Brassica oleracea, 2n = 18) के बीच संकरण द्वारा एक F, संतति को प्राप्त किया, जो पूर्ण रूप से बन्ध्य थी । बन्ध्यता का मुख्य कारण गुणसूत्रों के बीच युग्मन नहीं होना था, क्योंकि रैफेनस सैटाइवस तथा ब्रेसिका ओलेरेसिया के गुणसूत्र आपस में समजात नहीं थे। इन बन्ध्य F, संकर संतति के पौधों में से कुछ में जनन क्षमता देखी गयी । जनन सक्षम पौधों में 2n = 36 गुणसूत्र पाये गये जिनमें अर्धसूत्री विभाजन के समय सामान्य युग्मन द्वारा 18 युगलियाँ (bivalents) देखे गये ( चित्र 7.13 ) ।

(b) ट्रिटिकेल (Triticale)

कृत्रिम परबहुगुणिता का एक अन्य उदाहरण ट्रिटिकेल है । इसे निर्मित करने के लिए चतुर्गुणित (2n = 4x = 28) अथवा षट्गुणित ट्रिटिकम (Titicum-गेहूँ) का द्विगुणित (2n = 2x = 14 ) राई से संकरण कराया जाता है (चित्र 7.14 ) । संकरण द्वारा व्युत्पन्न F, संतति (hybrid) बन्ध्य होती है । किन्तु

कोलचिसिन (Colchicine) द्वारा गुणसूत्रों का द्विगुणन प्रेरित किया जाता है, जिससे षट्परबहुगुणित (Allohexaploid) जाति ट्रिटिकेल उत्पन्न होती है। इन्हें और अधिक उन्नतिशील बनाने के लिए इनका गेहूँ के साथ संकरण किया जाता है। प्राप्त ट्रिटिकेल को व्यापारिक स्तर पर खेती के लिए प्रयोग में लाया जाता है।

गुणसूत्र बहुगुणिता के परिणाम तथा महत्त्व (Consequences of polyploidy & its importance) (c) कपास (Cotton)

गोसीपियम बारवेडेन्स (Gossypium barbadense) तथा गोसीपियम हिरसूटम (Gossypium hirsutum) कृत्रिम बहुगुणिता के अच्छे उदाहरण हैं। कपास की इन जातियों को गोसीपियम हरबेसियम (G. herbaceum—Asian Cotton) तथा गोसीपियम वेमोन्डी (G. Vaimondi) को आपस में क्रॉस कराकर उत्पादित किया गया है (चित्र 7.15 )

(d).तम्बाकू (Tabacco)

तम्बाकू की एक जाति निकोटियाना टेबेकम (Nicotiana tabacum) को कृत्रिम रूप से, तम्बाकू की दो जातियों निकोटियाना सिल्वेस्ट्रिस (Nicotiana sylvestris) तथा निकोटियाना टोमेन्टोसा (Nicotiana tomentosa) को क्रॉस कराने पर प्राप्त किया गया है। इन दोनों जातियों में क्रमशः गुणसूत्रों की संख्या 12 होती है। इनके संकरण से प्राप्त होने वाली F, पीढ़ी के पौधे बन्ध्य होते हैं किन्तु उनमें द्विगुणन द्वारा निकोटियाना टेबेकम जाति प्राप्त होती है जिसमें गुणसूत्रों की संख्या 48 होती है। इसी प्रकार निकोटियाना टेबेकम (Nicotiana tabacum) तथा निकोटियाना ग्लूटीनोसा बन्ध्य पादप प्राप्त होते हैं, जिनमें गुणसूत्रों (Nicotiana glutinosa) को क्रॉस कराने पर F पीढ़ी की संख्या 36 होती है। इन पौधों में द्विगुणन के फलस्वरूप निकोटियाना डिगलूटा (N. digluta) जाति के पौधे प्राप्त होते हैं जिनमें गुणसूत्रों की संख्या 72 होती है ( चित्र 7.16)।

गुणसूत्र बहुगुणिता के परिणाम तथा महत्त्व (Consequences of Polyploidy & its importance)

पौधों में बहुगुणिता के कारण विभिन्न प्रकार के आकारिकीय, रासायनिक एवम् कार्यिकी परिवर्तन होते हैं जो निम्नानुसार वर्णित हैं-

(a) आकारिकीय परिवर्तन

  1. किसी भी जीव में बहुगुणिता का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रभाव महाकायता (gigantism) उत्पन्न करना है । बहुगुणित पौधे के तने मोटे, छोटे व भद्दे हो जाते हैं ।
  2. पत्तियाँ अधिक चौड़ी, माँसल व गहरे हरे रंग की हो जाती हैं। रोम व रंध्रों का आकार बढ़ जाता है।
  3. पुष्प आकार में बहुत बड़े हो जाते हैं जिनमें जननांग अधिक विकसित हो जाते हैं ।
  4. फल व बीजों का आकार बढ़ जाता है।
  5. पौधे की कोशिकाओं में जल वृद्धि के कारण परिमाण बढ़ जाता है।

(b) रासायनिक परिवर्तन

  1. बहुगुणित पादपों (4n) में द्विगुणित (2n) पादपों की अपेक्षा एस्कोर्बिक अम्ल (Ascorbic acid) तथा विटामिन A की मात्रा अधिक पायी जाती है।
  2. कुछ पादपों जैसे-चुकन्दर की जड़ों में शर्करा की मात्रा में वृद्धि हो जाती है।
  3. पादपों में मुख्य खनिजों जैसे- नाइट्रोजन (N2), मैग्नीशियम (Mg), पोटेशियम (K), कैल्शियम (Ca) आदि की मात्रा बढ़ जाती है। किन्तु कुछ पादपों में कार्बोहाइड्रेट्स, सल्फर व फोस्फोरस की मात्रा कम हो जाती है
  4. इसी प्रकार तम्बाकू के पौधों में निकोटीन की मात्रा बढ़ जाती है ।

(C) कार्यिकी परिवर्तन

  1. पौधों की कोशिकाओं में जल अंश में वृद्धि के कारण परासरण दाब (Osmotic pressure) कम हो जाता है । अतः पाले इत्यादि के प्रति प्रतिरोधकता कम हो जाती है ।
  2. कोशिका विभाजन की दर कम होने की वजह से वृद्धि कम हो जाती है तथा ‘ऑक्सिन’ (Auxin) की आपूर्ति में कमी के कारण श्वसन क्रिया घट जाती है।
  3. पौधे वृद्धि करना बन्द कर देते हैं ।
  4. पुष्प देर से खिलते हैं व अधिक समय तक खिले रहते हैं।
  5. फल व बीज देर से पकते हैं ।
  6. फसलें बहुवर्षीय हो जाती हैं।
  7. उच्च गुणिता स्तर पर पौधों की मृत्यु हो जाती है ।

उपरोक्त वर्णित परिवर्तनों के अतिरिक्त पौधों में बहुगुणिता के और भी कई महत्त्व हैं, जैसे- परबहुगुणितों (Allpolyploids) में, क्योंकि दोनों ही जनकों के संरचनात्मक व प्रकार्यात्मक लक्षणों का समावेश होता है इसलिए ये द्विगुणितों (2n) से अधिक प्रबल (Vigorous) होते हैं। ये बन्ध्य होते हैं, किन्तु ऐपोमिक्सिस (Apomixis लैंगिक जनन की सामान्य प्रक्रिया के स्थान पर अलैंगिक जनन) द्वारा जनन् करते हैं ।

इसी प्रकार स्वत्रिबहुगुणितों में क्योंकि उच्च स्तर की बन्ध्यता होती है, अतः आर्थिक रूप से उपयोगी पादपों की बीजरहित जाति उत्पन्न करने में इनका व्यापारिक महत्त्व होता है । उदाहरण- जापान में एच. किहारा (H. Kihara) द्वारा उत्पन्न की गयीं तरबूज की बीज रहित प्रजाति। इसी प्रकार अन्य फलों, जैसे- चुकन्दर, टमाटर, अँगूर व केले आदि की खेती के लिए इनकी बीज रहित प्रजातियाँ कृत्रिम बहुगुणिता द्वारा उत्पन्न की जाती है। खाद्यान्न फसलों के अधिक उत्पादन के लिए स्वचतुर्गुणित पौधे उत्पन्न किये जाते हैं। इनमें मुख्य राई, मक्का तथा गेंदा, फ्लॉक्स, सेब आदि हैं।

बहुगुणिता का कृत्रिम प्रेरण (Artificial Induction of Polyploidy)

बहुगुणिता को निम्न विधियों द्वारा कृत्रिम रूप से प्रेरित किया जा सकता है-

(1) विकिरणों द्वारा (By radiations) – यदि कुछ पौधों की कायिक व पुष्प कलिकाओं को विभिन्न प्रकार के विकिरणों जैसे UV, X तथा गामा, किरणों द्वारा विकिरित किया जाये तो उनमें बहुगुणिता उत्पन्न हो जाती है। इन्हें r– बहुगुणित कहा जाता है। विकिरण कोशिका विभाजन की दर को बढ़ा देते हैं, जिससे गुणसूत्रों की संख्या में गुणन हो जाता है।

(2) क्षति या चोट द्वारा (By injury ) —– जब किसी पौधे का विभाज्योतकी क्षेत्र (Meristematic Zone) चोट से क्षतिग्रस्त हो जाता है तो उस क्षेत्र में कोशिकाएँ वृद्धि करके कैलस (Callus) का निर्माण करती हैं। कैलस की वृद्धि को कोमेरिन (Coumerine) नामक रासायनिक पदार्थ द्वारा बढ़ाया जा सकता है। यह पदार्थ बहुगुणिता भी उत्पन्न करता है। इस प्रकार टमाटर के चोटग्रस्त भागों में चतुर्गुणित (4n) उत्पन्न किये जा सकते हैं ।

(3) रसायनों द्वारा (By chemicals)—–— आज के समय में बहुत से ऐसे रसायनों के बारे में ज्ञान हो चुका है जो पौधों में बहुगुणिता प्रेरित करते हैं । उनमें से मुख्य कोल्चीसीन, ग्रेनोसेन, क्लोरोफॉर्म, क्लोरलहाइड्रेट, ऐल्केलॉइड्स, हेक्साक्लोरोसाइक्लोहेक्सेन आदि हैं। इनमें से भी बहुगुणिता प्रेरित करने के लिये कोल्चीसीन (Colchicine) सबसे अधिक प्रभावकारी होता है। इसकी खोज सर्वप्रथम परनिस (Pernice, 1889) ने की। इसे कोल्चीकम ऑटमनेल (Colchicum autumnale), कोल्चीकम ल्यूटियम (Colchicum leuteum) तथा ग्लोरीओसा सुपरबा (Gloriosa superba ) आदि पादपों के बीज तथा शल्क कंदों (bulbs) से प्राप्त किया जाता है । ये रसायन निम्न में से किसी भी विधि द्वारा बहुगुणिता उत्पन्न कर सकते हैं ।

(1) तर्कु निर्माण (spindle formation) के पूर्ण रूप से रूक जाने के कारण ।

(2) अस्पष्ट पश्चावस्था ( Anaphase) के बाद गुणसूत्रों के दो समुच्चय का सायुज्यन (fusion) द्वारा ।

(3) चिपचिपे गुणसूत्र पूलों के निर्माण द्वारा ।

अभ्यास-प्रश्न

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न अथवा रिक्त स्थानों की पूर्ति

(Very Short answer questions / Fill in the blanks) :

  1. गुणसूत्रों की अगुणित संख्या (n) = 2……………….में होती है।
  2. बच्चों में बिल्ली की भाँति म्याऊँ करने (cat like cry) वाले रोग का कारण है ।
  3. रैफेनोब्रैसिका (Raphanobrassica) किसका उदाहरण है?
  4. कोल्चीसीन की खोज सर्वप्रथम किसने की?
  5. कोल्चीसीन किस पादप से प्राप्त किया जाता है ?

लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short answer questions) :

  1. ऐसेन्ट्रिक व होलोसेन्ट्रिक गुणसूत्र क्या होते हैं?
  2. गुणसूत्रों की अगुणित (n), द्विगुणित (2n) तथा आधारीय संख्या (x) से क्या तात्पर्य है? समझाइए ।
  3. बहुगुणिता के परिणाम व महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
  4. स्वबहुगुणिता (Autopolyploids) व परबहुगुणिता (Allopolyploids) में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay type of questions ) :

  1. गुणसूत्रीय विपथन किसे कहते है ? गुणसूत्रों में होने वाली हीनताओं अथवा विलोपन का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए ।
  2. बहुगुणिता पर निबन्ध लिखो।
  3. गुणसूत्रीय स्थानान्तरण से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  4. गुणसूत्रों में होने वाले विभिन्न प्रकार के संख्यात्मक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।

उत्तरमाला (Answers)

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न / रिक्त स्थानों की पूर्ति :

  1. एस्केरिस मेगेलोसिफेला
  2. पाँचवे गुणसूत्र पर हीनता
  3. परबहुगुणिता (Allopolyploidy) का
  4. परनिस ने की
  5. कोल्चीकम ऑटमनेल तथा ग्लोरीओसा सुपरबा।