insecticide act india in hindi भारत का कीटनाशी अधिनियम, 1968 क्या है ? कब पारित हुआ लागू हुआ ?
कीटनाशकों में मिलावट, उनका भ्रामक ब्रैंडनामन एवं उनकी गलत साज-संभाल रोकने का विधान
बिना मिलावट किए हुए पीड़कनाशियों तथा शाकनाशियों के सही लेबल लगाने, उनके सुरक्षा-पूर्ण उपयोग के निर्देश सहित उनकी बिक्री की ओर भी सरकार का ध्यान देना जरूरी था। इस दिशा में कोई कानून न होने के कारण, कुछ पीड़कनाशियों को विष कानून, 1919 (Poison’s Act, 1919) के अंतर्गत ले लिया गया। पीड़क उद्योग तेजी से फैलता जा रहा था और इन अति विषैले रसायनों का बहुत व्यापक उपयोग होने लगा था इसलिए जनहित और मानव जीवन की सुरक्षा हेतु अधिक विशिष्ट प्रावधानों की आवश्यकता थी। इसलिए पीड़कनाशियों के उत्पादन, परिवहन, साज-संभाल, बिक्री तथा उनके उपयोग पर विशेष कानून बनाने की सोच पैदा हुई और फिर सितम्बर 1968 में भारत की संसद ने कीटनाशी अधिनियम पारित किया।
भारत का कीटनाशी अधिनियम, 1968
भारत की संसद ने 1968 में कीटनाशी अधिनियम पारित किया था जिसका उद्देश्य कीटनाशकों के आयात, उत्पादन, विक्रय, परिवहन, वितरण तथा उपयोग एवं उससे जुड़े सभी अन्य पहलुओं का नियमन करना था ताकि मानवों एवं जानवरों को कोई खतरा न हो सके। इस अधिनियम को अगस्त 1971 में समूचे देश में लागू कर दिया गया और अक्तूबर 1971 में उपनियम बनाए गए।
इस नियम के अंतर्गत ष्कीटनाशक शब्द की परिभाषा में ऐसे प्रत्येक सूचीगत पदार्थ को अथवा किसी भी ऐसे अन्य पदार्थ अथवा निर्मित को शामिल किया जाना चाहिए जो कीटों, रोडेण्टों, कवकों, खरपतवारों तथा अन्य प्रकार के पौधों एवं प्राणि-जीवन को जो मानवों के लिए उपयोगी नहीं है, उनके रोकने, नष्ट करने, उन्हें विकर्षित करने अथवा उनके अल्पीकरण के उद्देश्य से बनाया गया हो।
केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड की सिफारिश और उसके अनुमोदन पर केंद्रीय सरकार समय समय पर किसी पदार्थ को सूची में शामिल कर सकती है। कीटनाशियों के पंजीकरण हेतु ऐसे रसायनों के लिए प्रार्थना पत्र दिए जा सकते हैं जिन्हें कीटनाशी सूची में शामिल कर रखा
कीटनाशी अधिनियम को देश में निम्नलिखित उद्देश्यों हेतु लगाया गया है –
प) केवल सुरक्षित एवं प्रभावकारी पीड़कनाशियों का पंजीकरण किया जाए।
पप) यह सुनिश्चित करना कि कृषकोंध्उपयोगकर्ताओं को पीड़कों के नियंत्रण हेतु गुणवत्तापूर्ण उत्पाद उपलब्ध हों।
पपप) पीड़कनाशियों के जमीन से अथवा वायु से उपयोग में लाए जाने की विधि बतायी जाए एवं उनके छूने-संभालने एवं उपयोग संबंधी
महत्वपूर्ण सावधानियां भी बताई जाएं।
पअ) संदूषित आहार, जल एवं वायु के माध्यम से पीड़कनाशियों के अवशेषों से पैदा हो सकने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरों को न्यूनतम
किया जाए।
अ) यह सुनिश्चित करना कि पीड़कनाशी उद्योग पीड़कों का उत्पादन, परिवहन, वितरण, भंडारण तथा विक्रय निर्धारित नियमों के
अनुसार ही किया जाए जिसके न करने पर कानूनी कदम उठाए जा सकते हैं।
अप) यह सुनिश्चित करना कि पीड़कनाशियों की सही पैकिंग की जाए और उन पर सही लेबल नामांकन किया जाए, और लाए ले जाने
के दौरान हानिकारक पीड़कनाशियों का कहीं से रिसाव न हो, और उनके सुरक्षित उठाने-रखने एवं उपयोग के विषय में पर्याप्त
निर्देश दिए गए हों।
इन उद्देश्यों की उपलब्धि हेतु भारत सरकार तथा राज्य सरकारों ने केंद्र एवं राज्य दोनों स्तरों पर उपयुक्त प्रणाली तैयार की है ताकि इस नियम का पालन हो सके। कुछ महत्वपूर्ण प्रणालियां इस प्रकार हैं |
सारांश
ऽ आरम्भ में पौधों तथा प्राणियों को एक देश से दूसरे देश में लाने ले जाने में कोई प्रतिबंध नहीं थे। ऐसा होने से अनेक कीट, किलनियां तथा नीमैटोड पीड़क उन देशों में पहुंच जाते थे जिनमें वे पहले से मौजूद नहीं थे।
ऽ आप्रवेशित खतरनाक पीड़कों को अक्सर उससे भी ज्यादा हानि पहुंचाते देखा गया है जितना स्वदेशीय पीड़क भी नहीं पहुंचाते।
ऽ विदेशीय पीड़कों, रोगों तथा खरपतवारों के आप्रवेश को रोकने हेतु विधान बनाने आवश्यक हैं।
ऽ देश के भीतर अथवा किसी राज्य विशेष में पहले से ही स्थापित पीड़कों, रोगों तथा खरपतवारों के फैलाव को रोकने के लिए विधान की आवश्यकता है।
ऽ पीड़कों के विरुद्ध चलाए जाने वाले अधिसूचित आंदोलनों के लिए विधान बनाना, यानी ऐसे विधान बनाना जिसमें कृषकों को प्रभावकारी नियंत्रण उपाय लेने के लिए जिम्मेदारी दी जाए ताकि पूर्वतरू स्थापित पीड़कों, रोगों एवं खरपतवारों से होने वाली हानि को रोका जा सके।
ऽ पीडकों के नियंत्रण हेतु उपयोग में लाए जाने वाले कीटनाशकों, यंत्रादि में मिलावट भ्रामक ब्रैंडनामन तथा गलत छूना-उठाना आदि को रोकना तथा खाद्य वस्तुओं में अनुमतिशील अवशेष सहनता निर्धारित करने हेतु विधान बनाना आवश्यक है।
ऽ पीड़क नियंत्रण कार्यचालन एवं जोखिम युक्त कीटनाशियों के लगाए जाने में काम करने वाले व्यक्तियों की गतिविधियों के नियमन के लिए विधान चाहिए।
ऽ विनाशकारी कीट तथा पीड़क अधिनियम 3 फरवरी 1914 को पारित किया गया था।
ऽ भारत सरकार के अधिनियम 1914 के विविध संशोधनों के अनुसार केंद्र शासित क्षेत्रों एवं राज्यों में स्थानीय अथवा बाहर से आए पीड़कों के प्रति नियंत्रण उपाय अपनाने हेतु प्रावधान बनाए गए।
ऽ मद्रास का कृषि पीड़क एवं रोग अधिनियम 1919 में पारित किया गया था और कदाचित सारे देश का यही पहला राज्य तथा जिसने इस प्रकार का अधिनियम लागू किया।
ऽ पूर्वी पंजाब कृषि पीड़क, रोग एवं हानिकर खरपतवार अधिनियम 1949 में पारित किया गया। अन्य राज्यों में भी इस प्रकार के कानून पारित किए गए।
ऽ इस समय पीड़कों, रोगों तथा खरपतवारों के नियंत्रण हेतु, भारत में दो प्रकार के नियमन उपाय लागू हैं – पादप संगरोध द्वारा कानूनी उपाय, तथा राज्य कृषि पीड़क एवं रोग अधिनियम द्वारा कानूनी उपाय।
ऽ पीड़क जोखिम विश्लेषण एक ओर नियमनकारी गतिविधियों तथा दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के बीच ताल-मेल कराने में सहायता करता है।