हाइड्रोजन बंध : जब दो अत्यधिक विद्युत ऋणी परमाणुओं के मध्य H2 परमाणु एक सेतु या पुल की भांति व्यवहार करता है तो इसे हाइड्रोजन बन्ध कहते है।
हाइड्रोजन बंध बनाने की शर्तें
- हाइड्रोजन व उससे जुड़े परमाणुओं की विद्युत ऋणताओं में अधिक अंतर होना चाहिए।
- अधिक विद्युत ऋणी परमाणु पर कम से कम हाइड्रोजन परमाणु उपस्थित होना चाहिए।
हाइड्रोजन बंध के प्रकार
ये बन्ध दो प्रकार के होते है –
1. अंत: अणुक ‘H’ बंध (intramolecular hydrogen bonding)
जब एक ही अणु में हाइड्रोजन बंध का निर्माण होता है तो उसे अंत: अणुक ‘H’ बंध कहते है।
उदाहरण : O- क्लोरो फिनोल
2. अन्तरा अणुक ‘H’ बंध (intermolecular hydrogen bonding)
जब दो या दो से अधिक अणुओं के मध्य हाइड्रोजन बंध का निर्माण होता है , उसे अंतरा अणुक हाइड्रोजन बंध कहते है।
नोट : अंतरा अणुक हाइड्रोजन बंध , अंत: अणुक हाइड्रोजन बंध की तुलना में अधिक प्रबल होता है।
फाजान्स नियम या फायान्स नियम
आयनिक बंध में आंशिक सहसंयोजक लक्षणों की व्याख्या करने के लिए फाजांस ने एक नियम दिया जिसे फाजान्स का नियम कहते है।
स्थिर विद्युत आकर्षण बल के कारण जैसे ही धनायन , ऋणायन की ओर जाता है तो धनायन का नाभिक ऋणायन के इलेक्ट्रॉन अभ्र को विकृत कर देता है , इस विकृति के कारण इलेक्ट्रॉन का आंशिक विस्थापन धनायन की ओर जाता है जिससे उनके मध्य आवेश की मात्रा बढती है।
यह प्रक्रिया सहसंयोजी बंध के निर्माण के समान नहीं होती है अत: आयनिक बंध में सहसंयोजी लक्षण आ जाते है। ये लक्षण धनायन की ध्रुवण क्षमता , ऋणायन की ध्रुवता तथा ऋणायन की ध्रुवण मात्रा पर निर्भर करते है।
नियम 1 : धनायन का आकार जितना छोटा होता है वह ऋणायन को उतना ही अधिक ध्रुवित करता है , जिससे बंध में सहसंयोजी लक्षण बढ़ते है अत: सहसंयोजी लक्षण बढने का घटता क्रम निम्न है –
उदाहरण : NaCl > KCl > RbCl > CbCl
नियम 2 : ऋणायन का आकार जितना बड़ा होता है वह धनायन द्वारा उतना ही अधिक ध्रुवित होता है जिससे बंध में सहसंयोजी लक्षण बढ़ते है अत: सहसंयोजी लक्षण बढने का बढ़ता क्रम –
उदाहरण : CsF < CsCl < CsBr < CsI
नियम 3 : धनायन या ऋणायन पर जितना अधिक आवेश होता है , बंध में उतने ही अधिक सहसंयोजी लक्षण बढ़ते है अत: सहसंयोजी लक्षण बढ़ने का बढ़ता क्रम –
उदाहरण : NaCl < MgCl2
< AlCl3
< AlCl3
NaCl < Na2O
< Na3PO4
< Na3PO4
नियम 4 : nS2
nP6 (अक्रिय गैस) वाले धनायन की ध्रुवण क्षमता (n-1)d10 ns2 (छद्म या आभासी अक्रिय गैस) वाले धनायनों की अपेक्षा कम होती है अत: संक्रमण धातु धनायन क्षार धातु तथा क्षारीय मृदा धातु धनायन की अपेक्षा अधिक सहसंयोजी लक्षण प्रदर्शित करते है।
nP6 (अक्रिय गैस) वाले धनायन की ध्रुवण क्षमता (n-1)d10 ns2 (छद्म या आभासी अक्रिय गैस) वाले धनायनों की अपेक्षा कम होती है अत: संक्रमण धातु धनायन क्षार धातु तथा क्षारीय मृदा धातु धनायन की अपेक्षा अधिक सहसंयोजी लक्षण प्रदर्शित करते है।
उदाहरण : NaCl < CuCl
आयनिक विभव (ф) : किसी धनायन के आवेश एवं आकार के अनुपात को आयनिक विभव कहते है , इसे ф से व्यक्त करते है।
अर्थात
आयनिक विभव (ф) = धनायन पर आवेश/धनायन की त्रिज्या
किसी धनायन के लिए ф का मान जितना अधिक होता है उसकी ध्रुवण क्षमता उतनी ही अधिक होती है तथा उसके यौगिको का उतना ही अधिक सहसंयोजक गुण होता है।
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