(hsab theory in hindi) HSAB सिद्धांत कठोर अम्ल , मृदु क्षारकी परिभाषा क्या है पियरसन की HSAB अवधारणा किसे कहते है , उदाहरण क्या है ?
परिभाषा : पीयरसन वैज्ञानिक ने अम्ल एवं क्षार अभिक्रिया के आपेक्षिक स्थायित्व (relative stability) को समझाने के लिए एक सिद्धांत दिया जिसे अम्ल क्षार का HSAB सिद्धान्त कहते है।
इस सिद्धांत के अनुसार बंध बनाने हेतु कठोर अम्ल , कठोर क्षार की मृदु अम्ल मृदु क्षार की वरीयता देता है।
अत: इस सिद्धान्त के अनुसार
1. कठोर अम्ल + कठोर क्षार = स्थायी संकुल
2. मृदु अम्ल + मृदु क्षार = स्थायी संकुल
3. मृदु अम्ल + कठोर क्षार = अस्थायी संकुल
4. कठोर अम्ल + मृदु क्षार = अस्थायी संकुल
HSAB सिद्धांत के अनुसार कठोर एवं मृदु अम्ल तथा क्षार
पियरसन की HSAB अवधारणा (pearson hsab concept in hindi) : पियरसन ने सन 1963 में कठोर , मृदु , अम्ल और क्षार की अवधारणा दी। पियरसन ने ही यह वर्गीकरण दिया कि वर्ग (a) के समस्त सदस्यों को कठोर और वर्ग (b) के समस्त सदस्यों को मृदु नाम दिया। अत: वर्ग (a) के समस्त धातु आयन कठोर अम्ल और वर्ग (a) के समस्त लिगेंड कठोर क्षार है जबकि वर्ग (b) के समस्त धातु आयन मृदु अम्ल कहलायें तथा वर्ग (b) के समस्त लिगेंडो का नामकरण मृदु क्षार पड़ा।
एक सामान्य अम्ल-क्षार अभिक्रिया को निम्नलिखित प्रकार से दर्शाया जा सकता है :
A + : B → A:B
लुईस अम्ल लुइस क्षार संकुल
(इलेक्ट्रॉन ग्राही) (इलेक्ट्रॉन दाता)
AB के मध्य का बंध आयनिक , ध्रुवीय या अध्रुवीय हो सकता है , वास्तव में बंध की प्रकृति क्या है। विस्तृत क्षेत्र में यह संकुल AB के निर्माण स्थिरांक द्वारा ज्ञात किया जा सकता है। पीयरसन ने 1963 में इसकी व्याख्या करने के लिए ही कठोर और मृदु अम्ल और क्षार HSAB की अवधारणा दी। इनके अनुसार , “मृदु क्षार वे है जिनके दाता परमाणु आसानी से ध्रुवित हो सकते है तथा जिनकी विद्युत ऋणात्मकता कम है। ”
ये दोनों बातें एकदम तुल्य नहीं है एवं एक दूसरे पर निर्भर करती है। वस्तुतः ये इस बात का निर्धारण करती है कि दाता परमाणु के नाभिक से उसके बाह्य इलेक्ट्रॉन कितनी आसानी से विकृत होकर दूर जा सकते है। मृदु अम्लों के एकदम विपरीत गुण कठोर अम्लों में होते है अर्थात उनके दाता परमाणु अपने बाह्य इलेक्ट्रॉन को कितना रोक पाते है। अत: कठोर अम्लों को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया गया है –
“कठोर अम्लों के दाता परमाणुओं में ध्रुवणता कम होती है जबकि उनकी विद्युत ऋणात्मकता अधिक होती है। ”
निम्नलिखित सारणी में कुछ प्रारूपिक अम्लों को कठोर , मृदु और सीमा रेखा वाले अम्लों के रूप में वर्गीकृत करके बताया गया है –
कठोर अम्ल | सीमारेखा वाले अम्ल | मृदु अम्ल |
H+ , Li+ , Na+ , K+ (Rb+ , Cs+) | Fe2+ , Co2+ , Ni2+ , Cu2+ , Zn+ | [Co(CN)5]3- , Pd2+ , Pt2+ , Pt4+ |
Be2+ , Be(CH3)2 , Mg2+ , Ca2+ , Sr2+ , (Ba2+) | Rh3+ , Ir3+ , Ru3+ , B(CH3)3 , GaH3 | Cu+ , Ag+ , Au+ , Cd2+ , Hg22+ , Hg2+ , [CH3Hg]+ , BH3 , Ga(CH3)3 , GaCl3 |
Sc3+ , La3+ , Ce4+ , Gd3+ , Lu3+ , Th4+ , U4+ , UO22+ , Pu4+ | R3C+ , C6H5+ , Sn2+ , Pb2+ | GaBr3 , GaI3 , Tl+ , Tl(CH3)3 |
Ti4+ , Zx4+ , Hf4+ , VO2+ , Cr3+ , Cr6+ , MnO3+ , WO4+ , Mn2+ , Mn7+ , Fe3+ , Co3+ | NO+ , Sb3+ , Bi3+ , SO2 | CH2 , कार्बीन
Π ग्राही : ट्राई नाइट्रोबेंजीन , क्लोरानिल , क्विनोन , टेट्रा सायनोएथिलीन आदि | |
BF3 , BCl3 , B(OR)3 , Al3+ , Al(CH3)3 , AlCl3 , AlH3 , Ga3+ , In3+ | HO+ , RO+ , RS+ , RSe+ , Te4+ , RTe+ | |
CO2 , RCO+ , NC+ , Si4+ , Sn4+ , CH3Sn3+ , (CH3)2Sn2+ | Br2 , Br+ , I2 , I+ , ICN आदि
O , Cl , Br , I , N , RO , RO2 |
|
N3+ , RPO2+ , ROPO2+ , As3+ | ||
SO3 , RSO2+ , ROSO2+ , Cl3+ , Cl7+ , I5+ , I7+ , HX (हाइड्रोजन बंधन अणु) | M0 (धातु परमाणु) और स्थूल धातुएं |
मृदु अम्ल वे है जिनके पास ऐसा इलेक्ट्रॉनग्राही परमाणु है जिसका आकार बड़ा है , कम धनावेश है तथा जिनके पास संयोजकता कोश में अबंधी p या d इलेक्ट्रॉन युग्म है अर्थात जिनकी उच्च ध्रुवणता है और कम विद्युत ऋणात्मकता है तथा जिनका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास उत्कृष्ट गैस जैसा नहीं है।
उपर्युक्त के विपरीत कठोर अम्ल वे है जिनका ग्राही परमाणु आकार में छोटा है , उच्च विद्युत ऋणात्मकता वाला है और कम ध्रुवणता वाला है तथा उसका उत्कृष्ट गैस विन्यास है।
मृदु अम्ल ऐसे क्षारों के साथ स्थायी संकुल बनाते है जो उच्च ध्रुवणता वाले है तथा अच्छे अपचायक है तथा यह कतई आवश्यक नहीं है कि वे प्रोटोनों के प्रति अच्छे क्षारक हो। दूसरी ओर कठोर अम्ल वे है जो सामान्यतया ऐसे क्षारों के साथ स्थायी संकुल बनाते है जो प्रोटोनों के साथ भी भली भांति बंधन बना सकते हो।
निम्नलिखित सारणी में कुछ प्रमुख प्रारूपिक क्षारको को कठोर , मृदु और सीमा रेखा क्षारकों के रूप में वर्गीकृत करके दिया जा रहा है :
कठोर क्षारक | सीमारेखा वाले क्षारक | मृदु क्षारक |
NH3 , RNH2 , N2H4 | C6H5NH2 , C6H5N , N3– , N2 | H– |
H2O , HO– , O2- , ROH , RO– , R2O | NO2– , SO32- | R– , C2H4 , C6H6 , CN– , RNC |
CH3COO– , CO32- , NO3– , PO43- , SO42- , ClO4– | Br– | SCN– , R3P , (RO)3P , R3As , R2S , RSH , RS– , S2O32- |
F– (Cl–) | I– |
आवर्त सारणी के एक वर्ग में दाता परमाणु के आकार की वृद्धि के साथ क्षारको की मृदुता बढती जाती है। अत: हैलाइड आयनों में F– सबसे कठोर क्षारक है तो I– सबसे अधिक मृदु क्षारक है , जबकि बीच का Br– सीमारेखा में है।
कठोर क्षारको का ऑक्सीकरण कठिनाई से होता है जबकि मृदु क्षारक आसानी से ऑक्सीकृत हो जाते है।
अब इस कठोरता और मृदुता वाली अवधारणा को संकुल A:B के स्थायित्व पर लागू करते है। संकुल AB अत्यंत स्थायी होगा यदि अम्ल A और क्षारक B या तो दोनों ही मृदु हो या दोनों ही कठोर हो अर्थात
A + :B → A : B
मृदु अम्ल + मृदु क्षारक → स्थायी संकुल
A + : B → A : B
कठोर अम्ल + कठोर क्षार → स्थायी संकुल
उपर्युक्त के विपरीत अम्ल A और क्षारक :B दोनों में से कोई भी एक तो मृदु हो तथा दूसरा कठोर हो तो संकुल AB का स्थायित्व कम होगा , अर्थात
A + :B → A : B
कठोर अम्ल + मृदु क्षार → अस्थायी संकुल
A + : B → A : B
मृदु अम्ल + कठोर क्षार → अस्थायी संकुल
पियरसन का यह सिद्धान्त एक अनुमान है जिसके आधार पर किसी लुईस अम्ल और लुईस क्षारक से बने योगात्पद के स्थायित्व के बारे में गुणात्मक पूर्वानुमान किया जा सकता है।