एक अर्धचालक में होल से आप क्या समझते हैं hole in semiconductor is defined as in hindi

hole in semiconductor is defined as in hindi एक अर्धचालक में होल से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर : किसी परमाणु के विशेष स्थान पर इलेक्ट्रॉन की कमी को होल द्वारा दर्शाया जाता है | जैसे मान लीजिये किसी स्थान पर पहले कोई इलेक्ट्रॉन था लेकिन ताप आदि देने से वह इलेक्ट्रॉन अपने स्थान से चला गया तो उसके स्थान पर जो रिक्त स्थान उत्पन्न हुआ वह अब होल के समान व्यवहार करता है |

अर्द्धचालक युक्तियाँ
(Semiconductor Devices)
 अर्द्ध चालक (Semiconductors)
अर्द्धचालक वे पदार्थ होते हैं, जिनकी विद्युत चालकता चालक kad sel; ga (जर्मेनियम, सिलिकॉन, कार्बन आदि आई चालक हैं। ताप बढ़ाने पर अर्द्ध चालकों की चालकता बढ़ जाती है।
अर्द्ध चालक में चालन बैण्ड और संयोजी बैण्ड के मध्य वर्जित ऊर्जा अन्तराल की चैड़ाई कम होती है (लगभग lev)। परम शून्य ताप पर अर्द्धचालकों का चालन बैण्ड पूर्णतरू रिक्त तथा संयोजी बैण्ड पूर्णतः भरा हुआ होता है। अतः परभ शून्य ताप पर चालन बैण्ड में इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति के कारण बाह्य विद्युत-क्षेत्र लगाने पर विद्युत् का प्रवाह नहीं हासन इस प्रकार निम्न तार पर अर्द्धचालक विद्युतरोधी होते है।
कमरे के ताप पर संयोजो बैण्ड के कुछ इलेक्ट्रॉन (Valence Electrons) जायफजी Phermai Energ ) प्राप्त कर लेते हैं। यह ऊर्जा वर्जित ऊर्जा अन्तराल म्ह से अधिक हाती है। अतः वे चालन दण्ड की ओर चलने लात है। इस प्रकार जो पदार्थ निम्न तापी पर विद्युतरोधी होते हैं, कमरे के ताप पर विद्युत के कुछ चालक हो जाते हैं। ऐसे पदार्थों को अर्द्ध चालक कहते हैं।
 अर्द्ध चालकों के प्रकार (Types of Semiconductors)
अर्द्ध चालक दो प्रकार के होते हैं- (i) नैज अर्द्धचालक (ii) बाह्य अर्द्धचालक

(i) नैज अर्द्धचालक (Intrinsic Semiconductors):
पूर्णतः शुद्ध अर्द्धचालक को नैज अर्द्धचालक कहते हैं। प्राकृतिक रूप से प्राप्त शुद्ध जर्मेनियम (Ge-32) तथा सिलिकॉन (Si-14) नैज अर्द्धचालक क उदाहरण है। दोनों ही चतुःसंयोजी पदार्थ हैं। इनकी क्रिस्टल संरचना समचलफलकीय होती है।
निम्न ताप पर इन अर्द्ध चालकों के प्रत्येक परमाणु के चारों संयोजी इलेक्ट्रॉन अपने चारों ओर के चार परमाणुओं के एक-एक इलेक्ट्रॉन से साझेदारी करके सह-संयोजक बन्ध (Covalent Bond) बना लेते हैं। जिससे प्रत्येक परमाणु स्थायी विन्यास प्राप्त कर लेता है। फलस्वरूव एक स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन शेष नहीं रह पाता। अद्र्वचालक मे से विद्युत प्रवाह नही हो पाता।।
साधारण ताप पर ऊष्मीय प्रक्षोभ (Thermal Agitation) के कारण कुछ सहसंयोजक बन्ध टूट जाते हैं कुछ इलेक्ट्रॉन स्वतंत्र हो जाते हैं। ताप बढ़ाने पर अधिक सहसंयोजक बन्धों के टूट जाने के कारण स्वतंत्र दुल की संख्या बढ़ जाती है। अतः जब ऐसे अर्द्धचालकों के सिरों के बीच विद्युत् विभवान्तर लगाया जाता है तो यह धन सिरे की ओर गति करने लगते हैं। जब स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन अपनी जगह को छोड़कर गति में आ जाते हैं तो स्थान छोड़ जाते हैं। इन रिक्त स्थानों को कोटर या होल (Holes) कहते हैं। ये होल अपने पास के सहसंयोजक से एक-एक इलेक्ट्रॉन आकर्षित कर लेते हैं जिससे वहां नये होल उत्पन्न हो जाते हैं । यही क्रिया आगे जारी रहती है।
होल धनावेश वाहक (Positive Charge Carrier) की भांति कार्य करते हैं। अतः ये होल इलेक्ट्रॉनों के हित ऋण सिरे की ओर गति करने लगते हैं। इस प्रकार अर्द्धचालक में विद्युत का प्रवाह होने लगता है। स्पष्ट है कि अर्द्धचालक में विद्युत प्रवाह धनावेश वाहक (होल) और ऋणावेश वाहक (इलेक्ट्रॉन) दोनों की गति के कारण होता है।
ऊर्जा बैण्ड सिद्धान्त पर नैज अर्द्धचालक की व्याख्या- कमरे के ताप पर सहसंयोजक बैण्ड के कुछ इलेक्ट्रॉन तापीय ऊर्जा प्राप्त कर लेते हैं। जब तापीय ऊर्जा वर्जित ऊर्जा अन्तराल से अधिक होती है तो ये इलेक्ट्रॉन संयोजी बैण्ड को छोड़कर चालन बैण्ड में जाने लगते हैं जिससे संयोजी बैण्ड में खाली स्थान बच जाते हैं। इन्हें होल कहते हैं। ये धनावेश वाहक की भांति कार्य करते हैं। अतः जब अर्द्धचालक के सिरों के बीच विद्युत् विभवान्तर लगाया जाता है, तो इलेक्ट्रॉन धन सिरे की ओर तथा होल ऋण सिरे की ओर चलने लगते हैं। इस प्रकार अर्द्धचालक में दो प्रकार के विद्युत वाहक होते हैं-इलेक्ट्रॉन और होल।
नैज अर्द्धचालक में चालन इलेक्ट्रॉनों (Conduction Electrons) की संख्या सदैव होलों की संख्या के बराबर होती है।

(ii) बाह्य अर्द्धचालक (Extrinsic Semiconductor):
जब एक नैज अर्द्धचालक में पंचसंयोजी या त्रिसंयोजी पदार्थ अपद्रव्य के रूप में मिलाया जाता है तो प्राप्त अर्द्धचालक को बाह्य या अपद्रव्यी अर्द्धचालक कहते हैं ये दो प्रकार के होते हैं।
;।) N-प्रकार के अर्द्धचालक (N-type Semiconductor):
जब शुद्ध जर्मेनियम या सिलिकॉन में पंच संयोजी पदार्थ जैसे आर्सेनिक, एण्टीमनी, फॉस्फोरस आदि की अशुद्धि मिलायी जाती है तो पंचसंयोजी पदार्थ का परमाणु एक चतुसंयोजी शुद्ध अर्द्धचालक के परमाणु को विस्थापित कर क्रिस्टल संरचना में स्थान ग्रहण करता है तथा अपने 5 संयोजी इलेक्ट्रॉनों में से 4 इलेक्ट्रॉनों द्वारा सहसंयोजी बन्धों का निर्माण कर लेता है परंतु इनके पांचवें इलेक्ट्रॉन को बंध संरचना में स्थान प्राप्त नहीं होता फलतः यह इलेक्ट्रॉन अल्प ऊर्जा प्राप्त कर पदार्थ में स्वतंत्र विचरण करने के लिए उपलब्ध रहता है तथा इसके स्थान पर कोई होल भी उत्पन्न नहीं होता।
इस प्रकार पंचसंयोजी अशुद्धि का प्रत्येक परमाणु, वादक के रूप में गति करने के लिए अतिरिक्त जन प्रदान करता है अतः इस अशुद्धि को दाता अशुद्धि तथा इस प्रकार के अर्द्धचालक में चालन बैण्ड में ष्लेक्ट्रॉन की संख्या संयोजी बैण्ड में होलों की संख्या से अधिक होती है। अतः इन्हें छ-प्रकार के अर्द्धचालक कहते है।
चित्रानुसार नैज अर्द्धचालक में पंचसंयोजी अशुद्धि जाने पर एक नवीन ऊर्जास्तर जिसे दाता स्तर कहते हैं निर्माण होता है। दाता स्तर चालन बैंड के निकट होता है तथा इसमें पंचसंयोजी परमाणु के वे इलेक्ट्रॉन होते हैं को सहसंयोजी बन्धों में स्थान प्राप्त नहीं करते। ये इलेक्ट्रॉन अल्प ऊर्जा प्राप्त कर चालन बैण्ड में पहुंच जाते हैं तथा भक्त आवेश वाहक का कार्य करते हैं।
(ठ) P-प्रकार के अर्द्धचालक (P-type semiconductor):
जब नैज अर्द्धचालक में त्रिसंयोजी पदार्थ जैसे बोरोन, एल्यमिनियम, इण्डियम आदि की अशुद्धि मिलायी जाती है तो त्रिसंयोजी परमाणु, क्रिस्टल संरचना में अपना स्थान बनाता है तथा इसके तीन संयोजी इलेक्ट्रॉन सहसंयोजी बन्धों में बंध जाते हैं परन्तु चैथा सहसंयोजी बंध पूर्ण नहीं हो पाता तथा इसमें एक इलेक्ट्रॉन की कमी रह जाती है जो कि होल या कोटर का कार्य करता है। यह होल या कोटर अपने निकटवर्ती परमाणु के सहसंयोजी बन्ध को तोड़कर इलेक्ट्रॉन ग्रहण करता है तथा होल उस निकटवर्ती परमाणु पर स्थानान्तरित हो जाता है। यही क्रिया आगे चलती रहती है। इस प्रकार अर्द्धचालक में होलों की संख्या, मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या से अधिक होती है। इस प्रकार के अर्द्धचालक को च् प्रकार का अर्द्धचालक कहते हैं तथा चूंकि मिलायी गयी अशुद्धि के परमाणु, इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति रखते हैं अतः इन्हें ग्राही अशुद्धि कहते हैं।
जब नैज अर्द्धचालक में त्रिसंयोजी अशुद्धि मिलायी जाती है तब एक नवीन ऊर्जा स्तर जिसे ग्राही स्तर कहते हैं का निर्माण होता है यह संयोजी बैण्ड के निकट होता है तथा इसमें त्रिसंयोजी परमाणु के कारण अपूर्ण सहसंयोजी बन्धों के होल स्थित होते हैं जो कि निकटवर्ती सहसंयोजी बंधों को तोड़कर इलेक्ट्रॉन ग्रहण करते हैं। इस प्रकार संयोजी बैंड के होलों की संख्या, चालन बैंड के इलेक्ट्रॉन से अधिक हो जाती है।