बेसिन क्षेत्रफल अनुपात किसे कहते हैं (Area Ratio in hindi, Ra) क्षेत्रीय पहलू क्या है परिभाषा (Areal Aspect)

क्षेत्रीय पहलू क्या है परिभाषा (Areal Aspect) बेसिन क्षेत्रफल अनुपात किसे कहते हैं (Area Ratio in hindi, Ra) ?

क्षेत्रीय पहलू (Areal Aspect)
सर्वप्रथम प्रवाह-बेसिन के प्रत्येक क्षेत्र का अलग-अलग क्षेत्रफल प्लेनीमीटर की सहायता से ज्ञात कर लिया जाता है। क्षेत्रफल का परिकलन करते समय बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है। सर्वप्रथम, प्रथम श्रेणी की सरिताओं का क्षेत्रफल निकाला जाता है। द्वितीय श्रेणी का क्षेत्रफल निकालते समय यह ध्यान दिया जाता है कि – प्रथम श्रेणी का क्षेत्रफल एवं द्वितीय श्रेणी की वेसिन के अन्तर्बेसिन क्षेत्रफल के योग के बराबर होता है। इसी प्रकार तृतीय का क्षेत्रफल प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय के अन्तर्बेसिन के क्षेत्रफल के योग के बराबर होता है। इस प्रकार बढ़ती श्रेणी के साथ बेसिन का क्षेत्रफल संचयी होता है। इसके बाद प्रत्येक श्रेणी की सभी सरिताओं की वेसिन का औसत क्षेत्रफल (Au) ज्ञात किया जाता है।
(A) * The higher the value] the more circular is the shape.
ϕ The lower the Value] the more elongated is the shape.
़़ The lower the Value] the more elongated is the shape.
# The hirgher the Value] the more elongated is the shape.

;B) CI = A/ π r2, Here P = 2 π r
or r = P/2π
Hence, CI = A/ π ;P/2π)2
= A/ π P2/ 4π2 = A/P2/4π
Thus, CI = 4 πA/P2
;C) R = 2√;A/π)/l = 2/√π √;A/L2)
= 2/√π √F or ;F= π/4 R2)
Here, R = 2/√π times the square root of Horton’s ‘F’ and R = Elongation rati

(1) बेसिन-क्षेत्रफल अनुपात (Area Ratio, Ra) – दो क्रमिक श्रेणी की सरिताओं के क्षेत्रफल अनुपात को ‘बेसिन क्षेत्रफल अनुपात‘ कहते हैं। इसको निम्न सूत्र से ज्ञात किया जाता है –
बेसिन का अनुपात = Ra = Au/Au-1
Au = किसी श्रेणी की बेसिन का औसत क्षेत्रफल ।
इस तरह क्रमिक श्रेणियों के बेसिन के औसत क्षेत्रफल में गुणात्मक क्रम होता है, जो प्रथम श्रेणी की बेसिन के औसत क्षेत्रफल से प्रारम्भ होकर स्थिर क्षेत्रफल अनुपात के अनुसार बढ़ता जाता है। स्पार्क के अनुसार-‘In a drainage network the mean basin areas of the orders approximate to a direct geometric sequence in which the first is the average area of a forst prrder nasom.
इस नियम को निम्न सूत्र द्वारा स्पष्ट किया जाता है-
Aa = A1Ra ;U-1)
A1 = प्रथम श्रेणी की बेसिन का औसत क्षेत्रफल ।
2. प्रवाह-घनत्व (äainage Density) – किसी भी प्रवाह-बेसिन के प्रवाह-घनत्व पर भूगर्भिक संरचना. जलवायु, वनस्पति तथा बेसिन के विकास की अवस्था का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। प्रवाह-घनत्व के अध्ययन के लिये किसी बेसिन के समस्त सरिताओं की लम्बाई तथा सम्पूर्ण बेसिन का क्षेत्रफल ज्ञात किया जाता है। समस्त सरिताओं की लम्बाई के योग में प्रवाह बेसिन के क्षेत्रफल से भाग दिया जाता है। इस प्रकार प्रवाह-घनत्व को प्राप्त किया जाता है। अर्थात –
प्रवाह-बेसिन (D) = सभी सरिताओं की लम्बाई का योग /प्रवाह-घनत्व का क्षेत्रफल
= ∑▒LK/AK
इस आधार पर हम यदि प्रवाह-घनत्व का विश्लेषण करते हैं, तो केवल एक मान प्राप्त होता है जिसके द्वारा प्रवाह-बेसिन के प्रवाह-घनत्व की विविधता का अध्ययन नहीं किया जा सकता है। इसलिये बेसिन को 1 मील × 1 मील (परन्तु आज ब्रिटिश प्रणाली के मैप का संस्करण भारत में बन्द किया जा रहा है) अथवा 1 किलोमीटर × 1 किलोमीटर अथवा 2 किलोमीटर × 2 किलोमीटर (यदि क्षेत्र विस्तृत रहता है) ग्रिड में विभाजित करके प्रत्येक ग्रिड के सभी सरिताओं की लम्बाई ज्ञात कर लेते हैं। यह लम्बाई उस यूनिट क्षेत्र का प्रवाह-घनत्व होता है। सम्पूर्ण बेसिन से प्राप्त इन आँकड़ों को निम्न रूप से वर्गीकृत किया जाता है

 

प्रवाह-घनत्व (प्रत्येक ग्रिड वर्गीकरण सम्बन्धी संकेत
के सरिताओं की लम्बाई व्याख्या
किलोमीटर में)
0-2 निम्न प्रवाह-घनत्व Dd L= Low äainage density.
2-4 मध्यम प्रवाह-घनत्व DdM = Moderate äainage density.
4-6 उच्च प्रवाह-घनत्व Dd H= High äainage density.
> 6 अति उच्च प्रवाह-घनत्व Dd VH=Very high äainage density.
परन्तु यह वर्गीकरण स्थाई नहीं है। यह क्षेत्रफल तथा सरिताओं के जाल के अनुसार परिवर्तित किया जा सकता है। प्रत्येक भू-आकृतिविद् को चाहिए कि इसके अध्ययन करते समय प्रवाह-जाल के अध्ययन के बाद ही वर्गीकरण का आधार चयन करें। ऐसा न हो कि मैदानी क्षेत्र का प्रवाह-घनत्य 0-2 के अन्तर्गत ही न हो जाय या पहाड़ी क्षेत्रों का घनत्व झ 6 के अन्तर्गत ही न हो जाय। आवश्यकतानुसार 6-8 तथा > 8 के यर्ग और बढ़ाये जा सकते हैं। कभी-कभी अधिक विश्लेषण के लिए उपवर्ग भी किया जा सकता है। इस तरह वर्गीकत करने के बाद इसके अन्तर्गत की आवृत्तियों का अध्ययन किया जाता है तथा इसके
1. Spark, B. W. 1972: Geomorphology, pp. 160.
3. प्रवाह गठन (äainage Texture) – प्रवाह-गठन का तात्पर्य किसी भी प्रवाह-बेसिन में सरिताओं के बीच की दूरी से होता है। प्रवाह-गठन के आँकड़ों को देखकर उस क्षेत्र के घर्षण का स्वभाव तथा मात्रा का आकलन किया जा सकता है। जब सरिताओं का वितरण दूर-दूर होता है, तो उसे स्थूल गठन का संज्ञा दी जाती है तथा जब मध्यम प्रकार का वितरण होता है, तब मध्यम । इसके विपरीत यदि सरितायें बहुत पास-पास रहती हैं, तो उसे सूक्ष्म गठन की संज्ञा दी जाती है। यदि इसका गहराई से अध्ययन किया जाय, तो स्पष्ट होता है कि उसे शैल प्रकार एवं संरचना, जल-वर्षा तथा वनस्पति का आवरण प्रत्यक्ष रूप प्रभावित करता है। हार्टन सारिता के क्षेत्र को इकाइयों में विभाजित करके, प्रत्येक इकाई में सरिताओं संख्या ज्ञात करके इसका अध्ययन किया। स्मिथ (1950) ने निम्न प्रकार से इसका अध्ययन प्रस्तुत किया है –
गठन अनुपात = N/P
N = सूक्ष्मदन्ती समोच्च रेखा के सूक्ष्मदन्तों की संख्या,
P = बेसिन की परिधि।
प्रो० सविन्द्र सिंह (1978) ने 1 मील × 1 मील की इकाई क्षेत्र में विभाजित करके निम्न ढंग से इसका अध्ययन किया –
प्रवाह गठन = I(tp)/2
I = 1 मील का लम्बाई
t = एक वर्ग मील के ग्रिड में 1 मील की लम्बाई में सरिताओं की कटान संख्या।
यह सूत्र केवल ब्रिटिश मापक पर लागू किया जा सकता है। जबकि आज मानचित्र का संस्करण मिट्रिक प्रणाली में हो रहा है। साथ-ही-साथ आवश्यकता से अधिक सूक्ष्मता का ध्यान दिया गया है. जिस कारण 5-6 कटान की संख्या पर गणना 1 से अधिक आती है। डॉ० गायत्री प्रसाद ने 4 वर्ग किलोमी की इकाई में छिन्दवाड़ा पठार को 2317 ग्रिड में बाँटकर अध्ययन किया है। साथ-ही-साथ 19 चयनित बेसिन का भी इसी इकाई के ग्रिड (2km.  x 2 km.) पर प्रवाह-गठन ज्ञात किया है जो निम्न फार्मूला पर आधारित है-!!
प्रवाह-गठन T = L/t
L = ग्रिड के अन्तर्गत लम्बाई जो कि ग्रिड के एक भुजा के (2 किलोमीटर) बराबर होती है,
t = इकाई ग्रिड में लम्बाई (2 किलोमीटर) पर सरिताओं की कटान संख्या
t = (t1़t2)/2/√8
t1,t2 = दो विकर्णों के सहारे सरिताओं की कटान संख्या।
इस तरह प्रवाह-बेसिन अथवा इकाई ग्रिड में बाँट कर उसका (प्रवाह-गठन) मान ज्ञात किया जाता है। इसके बाद विभिन्न ग्रिड के मान को प्रवाह-गठन वर्गों में विभक्त किया जाता है।
सारणी 4.10 प्रवाह-गठन वर्ग एवं उनकी व्याख्या

प्रवाह गठन वर्ग वर्गीकरण सम्बन्धी व्याख्या संकेत
(1) 0-0.2 अतिसूक्ष्म प्रवाह-गठन (TVE)
(2) 0.2-0.4 सूक्ष्म प्रवाह-गठन (TF)
(3) 0.4-0.6 मध्यम प्रवाह-गठन (TM)
(4) 0.6-0.8 स्थूल प्रवाह-गठन (TC)
(5) 0.8 – 1.0 अति स्थूल प्रवाह-गठन (TVC)
परन्तु, यह वर्गीकरण ग्रिड की भुजा के अनुसार परिवर्तित किया जा सकता है। प्रवाह गठन के अंन्तर्गत वर्गों की आवृत्तियों का अध्ययन किया जाता है। इसी आधार पर Isopleth मैप का निमाण अध्ययन किया जाता है।
उद्यावच पहलू के अन्तर्गत सरिताओं के मार्ग ढाल, घाटी-पार्श्व ढाल, ऊँचाई, परिच्छेदिका, घर्षण की मात्रा आदि का अध्ययन किया जाता है। घर्षण की मात्रा निरपेक्ष उच्चावच तथा सापेक्ष उधावा आधार पर निकालते हैं। यदि प्रवाह बेसिन के उच्चावच के पहलू को प्रभावित करने वाले कारका विश्लेषण करें तो स्पष्ट होता है कि जलवायु तथा भगर्भिक संरचना प्रमख कारण हैं, जिनके आधार पर प्रवाह-बेसिन के उद्यावच में भिन्नता दिखाई पड़ती है।
Prasad, Gayatri.  1984: A Geomorphological Study of Chhindwara Plateau.