(hole in ozone layer in hindi) ओजोन परत में छिद्र (छेद) कहा बन रहा है , कैसे बनता है ? ओजोन परत में छिद्र का कारण क्या है , रोकने के उपाय लिखिए |
ओजोन परत में छिद्र
ओजोन स्तर और जीवन में घनिष्ठ सम्बन्ध है तथा यही कारण है कि जिससे वैज्ञानिक इस विशेष सम्बन्ध के बारे में अधिकाधिक जानकारी प्राप्त करने में प्रयत्नशील है। लगभग दो दशक पूर्व इंग्लैंड के वैज्ञानिकों ने इस बात की घोषणा की थी कि वायुमण्डल में विद्यमान ओजोन की मात्रा धीरे धीरे कम हो रही है। फिर एक और सनसनीखेज खबर फैली कि अंटार्कटिका महाद्वीप के ऊपर स्थित ओजोन स्तर में एक छेद हो गया है। शुरू में न तो किसी ने इस छिद्र वाली बात पर विश्वास किया एवं न ही इसे विशेष महत्व दिया लेकिन जब यह छिद्र बढ़ने लगा तब शक की कोई गुंजाइश नहीं रही। यह अनुमान लगाया गया कि वायुमण्डल में ओजोन की मात्रा 0.5% प्रतिवर्ष के हिसाब से कम हो रही है और अंटार्कटिका के ऊपर स्थित वायुमण्डल में कुल 20 से 30 प्रतिशत तक ओजोन कम हो गयी है। सन 1970 के दशक से वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका महाद्वीप के ऊपर ओजोन परत में कमी पाई है जो प्रतिवर्ष अगस्त माह से अक्टूबर तक व्याप्त रहती है। समय के साथ ओजोन परत में ओजोन की मात्रा कम होती गयी। 1987 में वैज्ञानिकों ने स्पष्टतया देखा कि अंटार्कटिका के ऊपर तो ओजोन इतनी कम हो गयी कि मानो ओजोन परत में छिद्र हो गया हो। इसी प्रकार के छोटे छोटे अन्य छिद्र अन्य स्थानों पर भी देखे गए। धीरे धीरे उत्तरी ध्रुव पर भी बसंत ऋतु में इस प्रकार के छिद्र स्पष्ट होने लगे। प्रकृति का यह सुरक्षा कवच क्यों और कैसे फटा ?
वायुमंडल के इस स्तर में विद्यमान ओजोन गैस क्यों कम होने लगी ?
इसके क्या प्रभाव हो सकते है ? इस प्रकार के अनेक प्रश्नों को हल करने के लिए विश्व में वैज्ञानिक विश्लेषण होना शुरू हुआ तथा आज पूरे विश्व का ध्यान इस वायुमंडलीय समस्या की तरफ है।
ओजोन परत के छिद्र सम्बन्धी तथ्य
(अ) ओजोन परत में छिद्र का आकार बढ़कर यूरोप के लगभग कुल आकार के बराबर एक करोड़ वर्ग किलोमीटर हो गया है।
(ब) विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने 1995 में बताया कि छेद का आकार पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में दोगुना हो गया है।
(स) ओजोन परत का छेद अंटार्कटिका के ऊपर स्थित है एवं यह सामान्यतया सितम्बर तथा अक्टूबर के दौरान बढ़ता है।
(द) ओजोन से समद्ध संगठन के विशेष सलाहकार रुमेन बोजकोव ने बताया कि इस ध्रुवीय क्षेत्र के ऊपर स्थित ओजोन की परत में जुलाई के आखिर से सितम्बर की शुरुआत के दौरान प्रतिदिन एक प्रतिशत की रफ़्तार से छेद का आकार बढ़ता है।
(य) ओजोन विनाश में क्लोरिन , ब्रोमिन , आयोडीन , फ़्लोरिन की उत्प्रेरक भूमिका के असर की वजह से अंटार्कटिका के स्ट्रेटोस्फीयर वायुमंडल में इस तरह की परिस्थिति निर्मित हो जाती है कि जब धूप पड़ेगी तो ओजोन के दो अणु विघटित होकर ऑक्सीजन के तीन अणु बन जायेंगे। बसंत के आने पर पोलर वर्टेक्स धाराएँ समाप्त हो जाती है तथा हवा निचले वायुमंडल के साथ घुल मिल जाती है अर्थात जाड़ो के अंत में ध्रुवीय क्षेत्र के ऊपर ओजोन हास के क्षेत्र नजर आने लगते है। कुछ ही हफ्तों में ओजोन छेद स्पष्ट परिलक्षित होने लगता है। जब पोलर वर्टेक्स धाराएँ समाप्त होती है और क्षेत्र गर्माने लगता है तो यह छिद्र भी समाप्त हो जाता है।
(र) जो हास पहले सिर्फ अंटार्कटिका के ऊपर देखा गया था , वह अब कम मात्रा में आर्कटिका के ऊपर भी देखा जा रहा है।
ओजोन परत में छिद्र निर्माण की प्रक्रिया
ओजोन परत में छिद्र का बनना अंटार्कटिका की मौसम अवस्थाओं पर निर्भर करता है। ज्यों ही सूर्य कर्क रेखा की तरफ मुड़ता है , अंटार्कटिका की छह महीने लम्बी रात्रि अर्थात सर्दियाँ शुरू हो जाती है। तापमान शून्य से नीचे -90 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है। ध्रुव के चारों तरफ चलने वाली प्रबल पश्चिमी हवाएँ इतनी प्रबल हो जाती है कि उनका वेग 100 मीटर प्रति सेकंड तक पहुँच जाता है। स्ट्रेटोस्फीयर में अंटार्कटिका पर जाड़ों में एक पवन धारा चलती है जिसे पोलर वर्टेक्स कहा जाता है। इस धारा में जो हवा कैद हो जाती है वह रात में बहुत ठण्डी हो जाती है। तापमान इतना कम हो जाता है कि अपेक्षाकृत शुष्क स्ट्रेटोस्फीयर में भी बादल बन जाते है। ध्रुव के चारों तरफ तीव्रता से घूमता हवाओं का एक ऐसा परिवृत बन जाता है जिसके अन्दर के मुख्य भाग का शेष भाग से पूर्णतया पृथक्करण हो जाता है। उत्तर की गर्म हवाओं से विलगित इस परिवृत के अन्दर का तापमान इतना गिर जाता है कि 25 किलोमीटर की उंचाई पर समतापमण्डलीय बादल बनना शुरू हो जाते है। ये बादल दो काम करते है जो निम्नलिखित है –
(i) एक तो ये बर्फ के क्रिस्टल तैयार करते है। इन क्रिस्टलों पर होने वाली रासायनिक क्रियाएँ CFC और हैलोजन यौगिकों को क्लोरिन और फ़्लोरिन के ऐसे परमाणुओं में परिवर्तित कर देती है जो सूर्य रश्मियों में प्रति अत्यंत संवेदनशील होते है।
(ii) इन बादलों का दूसरा कार्य गैसीय नाइट्रोजन के उन ऑक्साइडो को ठंडक से जमाकर निष्क्रिय करना है जो क्लोरिन की क्रियाशीलता को कम करते है। तात्पर्य यह है कि सर्दियों में क्लोरिन परमाणु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा क्लोराइड नाइट्रेट नामक स्थिर यौगिकों में परिवर्तित होकर जम जाते है। नाइट्रिक एसिड ट्राइहाइड्रेट सबसे पहले करीब -80 डिग्री सेल्सियस पर संघनित होता है। तापमान जब -86 डिग्री सेल्सियस हो जाता है तो बर्फ के कण बनने लगते है। इन कणों पर जब रासायनिक क्रियाएँ होती है तो जैसा कि ऊपर कहा गया है , क्लोरिन परमाणु मुक्त हो जाते है। अब जब बसंत ऋतु में धुप पड़ती है तो ये क्लोरिन परमाणु ओजोन विनाश की क्रिया में भाग लेने को मौजूद होते है। बसंत की पहली किरण में ये सक्रीय हो जाते है और क्लोरिन तथा फ़्लोरिन के स्वतंत्र परमाणु मुक्त करते है। ये ताजा क्लोरिन और ब्रोमीन के परमाणु ओजोन को तोड़ने की रासायनिक प्रक्रिया को प्रारंभ कर देते है। इस तरह अंटार्कटिका क्षेत्र के ऊपर ओजोन का विघटन प्रारंभ हो जाता है। अगस्त माह के मध्य तक छिद्र बनना प्रारंभ होता है तथा एक महीने के अन्दर ही अपना पूरा आकार ग्रहण कर लेता है। अक्टूबर मास समाप्त होते होते यह छिद्र पुनः: लुप्त हो जाता है।
1995-96 वर्ष में अंटार्कटिका पर ओजोन परत में छिद्र एक सप्ताह पूर्व ही बनना प्रारंभ हो गया था जो बढ़ते खतरे का संकेत है।