निबंधात्मक प्रश्न किसे कहते है ? निबंधात्मक परीक्षण के गुण तथा दोषों की विवेचना कीजिए निबंधात्मक परीक्षा के गुण एवं दोष

निबंधात्मक प्रश्न किसे कहते है ? निबंधात्मक परीक्षण के गुण तथा दोषों की विवेचना कीजिए निबंधात्मक परीक्षा के गुण एवं दोष ?

उत्तर : ऐसे प्रश्न जिनका उत्तर सामान्यतया एक से दो पेज में दिया जाता है उन प्रश्नों को निबंधात्मक प्रश्न कहते है और उनके उत्तर को निबंधात्मक प्रश्नों के उत्तर कहा जाता है | अगर शब्दों की बात करे तो उनका उत्तर लगभग 1000 से 2000 शब्दों में देना हो सकता है |

रसायन विज्ञान में निबन्धात्मक प्रश्नों के गुण व दोषों की विवेचना कीजिये।
Discuss the merits and demerits of Essay type questions in Chemistry.
उत्तर-निबन्धात्मक परीक्षण वह परीक्षण होता है जिसमें प्रश्नों की संख्या अन्य परीक्षणों की तुलना में कम होती है। परीक्षार्थी को यह स्वतन्त्रता होती है कि प्रश्न से सम्बन्धित तथ्यों को स्वेच्छा से लिख सके। सामान्यतरू यह परीक्षण स्मरण पर आधारित होते हैं। इनके द्वारा विभिन्न कौशलों एवं अन्य मानसिक शक्तियों का मापन भी सम्भव है।
निबन्धात्मक प्रश्नों में उत्तरों की स्वतन्त्रता होती है। छात्र अपने उत्तर को अपनी इच्छानुसार व्यवस्थित कर सकते हैं और अपने शब्दों में लिख सकते हैं। इसमें केवल पाठ्य सामग्री का बन्धन होता है।
निबन्धात्मक परीक्षणों के गुण-
1. प्रश्न पत्र निर्माण में सरलता-इस प्रकार के प्रश्न पत्र निर्माण में किसी विशेष कौशल की आवश्यकता नहीं होती है । इस प्रकार के प्रश्न पत्र में प्रश्नों की संख्या कम होती है।
2. निर्माण में धन व समय की बचत-इस प्रकार के प्रश्न पत्र में निर्माण के समय व धन की बचत होती है।
3. भाषा पर नियंत्रण-इस प्रकार के प्रश्न पत्र से भावों को स्पष्ट करने हेतु प्रयुक्त पर परीक्षार्थी का कितना नियंत्रण है यह इस परीक्षण द्वारा नापा जा सकता है ।
4. मानसिक योग्यताओं की जाँच-इस परीक्षण में छात्रों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता होती है। इस कारण इसके माध्यम से अनेक विशिष्ट मानसिक शक्तियों जैसे आलोचनात्मक शक्ति एवं अभिव्यंजना शक्ति आदि का मापन सम्भव होता है।
5. मौलिकता का परीक्षण-इस प्रकार के परीक्षण में छात्रों को उत्तर देते समय अपने विचारों को मौलिक रूप देने का इस परीक्षण में पर्याप्त अवसर मिलता है। ऐसा किसी अन्य परीक्षण में संभव नहीं हैं।
6. भावों का संगठन-तथ्यों एवं सूचनाओं को दिशा प्रदान करने की क्षमता एवं उन्हें उचित प्रकार से संगठित कर सकने का अवसर इसी परीक्षण में मिलता है।
उपरोक्त गुणों के अतिरिक्त निबन्धात्मक परीक्षण के निम्न गुण और हैं-
(1) इससे छात्रों की स्मरण शक्ति का विकास होता है।
(2) इससे छात्रों को एक निश्चित समय में कार्य करने की आदत का विकास होता है।
(3) इससे छात्रों में निदानात्मक व्यवस्था की जा सकती है।
(4) इससे छात्रों में पाठ्यक्रम के अधिक महत्वपूर्ण अंशों व कम महत्वपूर्ण अंशों में विभेद करने की क्षमता का विकास होता है।
निबन्धात्मक परीक्षणों के दोष-निबन्धात्मक परीक्षण में अनेक दोष भी हैं जो निम्न हैं-
1. स्मृति पर अत्यधिक बल-निबन्धात्मक परीक्षण पूर्णतः स्मृति पर आधारित परीक्षण है। इससे तर्कशक्ति व चिन्तन शक्ति की उपेक्षा हो जाती है और स्मृति रहने की दिशा का रूप ले लेती है।
2. अभिव्यक्ति पर अत्यधिक बल-यह परीक्षण अभिव्यक्ति पर भी अत्यधिक बल देता है। केवल मात्र अभिव्यक्ति की योग्यता होने से बालक के ज्ञान का सही परीक्षण संभव नहीं है।
3. सुलेख से मूल्यांकन पर प्रभाव-इस परीक्षण में वे छात्र जिनका सुलेख अच्छा है अन्य छात्रों की अपेक्षा अधिक अंक आसानी से प्राप्त कर लेते हैं। अतः यह ठीक नहीं है।
4. जाँच कार्य पक्षपात पूर्ण-इस विधि में जाँच कार्य पक्षपात पूर्ण होने की पूर्ण संभावना होती है। यह परीक्षक की मानसिक स्थिति पर भी निर्भर करता है। वस्तुनिष्ठ परीक्षण में परीक्षक की मानसिक स्थिति जाँच कार्य को प्रभावित नहीं करती है।
5. सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पर बल नहीं-इस प्रकार के परीक्षण में पाठ्यक्रम के केवल कुछ मुख्य बिन्दुओं पर ही प्रश्न पूछे जाते हैं। इससे कम महत्वपूर्ण अंशों की उपेक्षा हो जाती है।
6. केवल परीक्षा काल में ही अध्ययन की आदत-निबन्धात्मक परीक्षण से छात्र केवल पराक्षा काल में ही कुछ चुनिंदा प्रश्नों को याद करके सफलता प्राप्त कर लेते हैं जिससे प्राप्त ज्ञान अस्थायी होता है।
7. उत्तरों की अस्पष्टता-निबन्धात्मक परीक्षण में छात्र उत्तर सही नहीं आने पर भी सत्य असत्य का मिश्रण बनाकर उत्तर दे देते हैं जिससे अच्छी आदतों का विकास नहीं होता।
8. अव्यवहारिक ज्ञान-इस प्रकार के परीक्षण में छात्रों को केवल अव्यवहारिक ज्ञान को याद करने के लिए दे दिया जाता है ।
सुधार के सुझाव (ैनहहमेजपवदे वित पउचतवअमउमदज)-निबंधात्मक परीक्षण के सही उपयोग के लिए इसमें निम्न बातों का ध्यान रखा जा सकता है
1. सभी पात्रों को उचित प्रतिनिधित्व देना-प्रश्न-पत्र निर्माता सभी पाठों को प्रश्न-पत्र में उचित स्थान देकर प्रश्न-पत्र को विस्तृत बना सकता है।
2. मूल्यांकन के समय पक्षपात रहित होना-निबंधात्मक परीक्षण का मूल्यांकन करते समय अध्यापक पक्षपात से दूर रहकर जाँच कार्य कर सकता है।
3. जहाँ तक हो सके प्रश्न पत्र निर्माता और मूल्यांकनकर्ता एक ही व्यक्ति होना चाहिए।
4. अंकों के स्थान पर ग्रेड देना चाहिए, इसमें छात्रों का विभाजन अति उत्तम, उत्तम. सामान्य, निम्न और अतिनिम्न में करना चाहिए।
5. प्रश्नों का फैलाव व्यापक किया जाना चाहिए।
6. प्रश्नों की भाषा, शैली, स्पष्ट व सीमित तथा निश्चित करने हेतु प्रश्नों के पहले स्पष्ट निर्देश लिखे जाने चाहिए।
7. समग्र प्रश्न-पत्र के स्थान पर प्रश्न वार विकल्प रखे जाने चाहिए तथा विकल्प वाले प्रश्न एक ही क्षेत्र के नहीं होने चाहिए तथा समान कठिनाई स्तर के होने चाहिए।
8. सभी प्रश्नों को हल करना अनिवार्य होना चाहिए।
9. प्रश्न-पत्र में सरल, सामान्य व कठिन प्रश्नों का उचित अनुपात होना चाहिए।
10. उत्तरों की जाँच व अंक प्रदान करने हेतु वैज्ञानिक विधि का उपयोग किया जाना चाहिये।

प्रश्न 3. वायु में ‘‘ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन 1: 4 अनुपात में होती है।‘‘ यह तथ्य दर्शाने हेतु आप किस प्रकार का प्रदर्शन करेंगे ?
How will you demonstrate to show that ratio of oxygen and nitrogen in air is 1:4 ?
उत्तर-प्रयोग-अध्यापक काँच का एक टब लेते हैं और उसे एक तिहाई पानी से भर लेते हैं। अब इसमें थोड़ा कास्टिक सोडा डाल देते हैं एवं एक या दो बूंद स्याही डाल देते हैं जिससे विलयन नीला हो जाता है। अब एक मोमबत्ती को जलाकर उसे पानी के टब में रख देते हैं और एक चिन्हित किए गैस जार से ढक देते हैं।
प्रेक्षण-1. मोमबत्ती थोड़े समय पश्चात् बुझ जाती है।
2. पानी का जल ऊपर चढ़ जाता है।
निष्कर्ष-1. मोमबत्ती जलने से जार में उपस्थित ऑक्सीजन, कार्बन डाई ऑक्साइड में बदल गई।
2. बनी कार्बन डाई ऑक्साइड को विलयन में उपस्थित कास्टिक सोडा द्वारा अवशोषित किया गया।
3. जार में कार्बन डाई ऑक्साइड द्वारा रिक्त किए गए स्थान को पानी ने ग्रहण कर लिया।
4. देखने से ज्ञात हुआ कि लगभग 1/5 भाग में पानी ऊपर चढ़ा। अतः वायु का 1/5 भाग ऑक्सीजन होता है तथा शेष भाग में मुख्य रूप से नाइट्रोजन गैस उपस्थित होती है।