सुखवाद किसे कहते हैं | hedonism theory definition in hindi | सुखवाद के सिद्धांत नीतिशास्त्र क्या हैं

सुखवाद के सिद्धांत नीतिशास्त्र क्या हैं सुखवाद किसे कहते हैं | hedonism theory definition in hindi
सुखवाद (Hedonism)
सुखवाद के अनुसार जीवन का लक्ष्य सुख की प्राप्ति है, इसलिए इस मत के अनुसार जो कर्म सुख की सिद्धि में सहायक है, उसे शुभ और जो कर्म सुख में बाधक या दुःख उत्पन्न करने वाला हो, उसे अशुभ कहते हैं।
इस तरह सुखवाद नैतिक मापदंड का वह सिद्धान्त है, जिसके अनुसार सुख प्राप्ति ही जीवन का चरम लक्ष्य है। प्रत्येक कर्म के मूल्य में कोई-न-कोई इच्छा विद्यमान रहती है। यदि इस इच्छा की पूर्ति हो जाती है, तो हमें सुखानुभूति होती है और यदि इच्छा की तृप्ति नहीं होती, तो हमें दुःखानुभूति होती है। इसलिए सुख पाने के लिए इच्छाओं या वासनाओं की तृप्ति आवश्यक है। इच्छाओं की तृप्ति ही जीवन का चरम लक्ष्य बन जाती है।
सुखवाद एक अत्यंत लोकप्रिय सिद्धान्त है। मनुष्य साधारणतः सुख की प्राप्ति और दुःख से मुक्ति चाहता है। उसके प्रायः सभी कर्मों के पीछे यह भावना काम करती है। जो कार्य सुख देने वाला होता है,
वही अच्छा है और जो कार्य दुःख देने वाला होता है, वही बुरा है। इस प्रकार सुख और दुःख क्रमशः शुभ और अशुभ के प्रतीक बन जाते हैं।

मनोवैज्ञानिक सुखवाद और नैतिक सुखवाद
(Psychological Hedonism & Ethical Hedonism)
मनोवैज्ञानिक सुखवाद के अनुसार, सुख की प्राप्ति ही प्रत्येक मनुष्य के जीवन का लक्ष्य है। नैतिक सुखवाद के अनुसार सुख प्राप्ति ही मनुष्य के जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। प्रथम सुखवाद ‘होगा‘ (Must) पर जोर देता है, तो दूसरा सुखवाद ‘चाहिए‘ पर बल देता है। मनोवैज्ञानिक सुखवाद के अनुसार मनुष्य सदैव सुख की कामना करता है। मनुष्य की जितनी भी इच्छाएं है, सबके मूल में एक ही लक्ष्य है- सुख की प्राप्ति। जहां मनोवैज्ञानिक सुखवाद एक तथ्य है वहीं नैतिक सुखवाद एक मूल्य है।
नैतिक सुखवाद के दो रूप हैं- स्वार्थमूलक सुखवाद (Egoistic Hedonism) तथा परार्थमूलक सुखवाद/उपयोगितावाद (Altruistic Hedonism or Utilitarianism) स्वार्थमूलक सुखवाद के अनुसार अपना ही सुख पाना व्यक्ति का लक्ष्य है परन्तु परार्थमूलक सुखवाद के अनुसार दूसरों के लिए सुखप्राप्ति ही मनुष्य के जीवन का चरम लक्ष्य है। इस तरह नैतिक सुखवाद के अनुसार मानव जाति का कल्याण ही हमारे कर्मों का लक्ष्य होना चाहिए।

नैतिक सुखवाद – सकल और परिशुद्ध (Ethical Hedonism-Gross and Refined)
नैतिक सुखवाद के दो रूप हैं- सकल स्वार्थमूलक सुखवाद तथा परिशुद्ध स्वार्थमूलक सुखवाद। सकल स्वार्थमूलक सुखवाद के अनुसार किसी प्रकार का सुख पाना ही हमारा परम लक्ष्य है। परिशुद्ध स्वार्थमूलक सुखवाद के अनुसार स्वार्थसुख और उच्च कोटि का सुख ही जीवन का आदर्श है।

भारतीय दर्शन में नीतिशास्त्र (Ethics in Indian Philosophy)
भारतीय नीतिशास्त्र के अनुसार, व्यक्ति का दायित्व सिर्फ समाज तक ही सीमित नहीं है बल्कि सभी प्राणियों यथा-वनस्पति जगत, पशुजगत आदि के प्रति भी है। पुनः भारतीय दर्शन में नैतिकता का अर्थ सिर्फ नैतिक अवधारणाओं का बौद्धिक अनुशीलन ही नहीं बल्कि जीवन जीने की एक कला भी है जिसमें एक उत्तम एवं अनुशासित जीवन शैली पर बल दिया गया है। भारतीय नीतिशास्त्र का पाश्चात्य नीतिशास्त्र से भेद है। पाश्चात्य नीतिशास्त्र में नैतिक अवधारणाओं के सैद्धान्तिक विश्लेषण पर अधिक ध्यान दिया गया है और यह बौद्धिक मीमांसा तक ही सीमित है परन्तु भारतीय नीतिशास्त्र में नैतिकता के व्यावहारिक पक्ष पर जोर दिया गया है तथा आचरण के नियमों पर ध्यान दिया गया है जिन पर अमल कर व्यक्ति निःश्रेयस (Ultimate Reality) को प्राप्त कर सके। वस्तुतः भारतीय दर्शन का लक्ष्य है आदर्श मानव का निर्माण वहीं, पाश्चात्य नीतिशास्त्र का लक्ष्य है आदर्श का ज्ञान देना।

भारतीय दार्शनिक सम्प्रदाय (Indian School of Philosophy)
भारतीय दार्शनिक सम्प्रदायों को मोटे तौर पर दो कोटियों में बांटा गया है- आस्तिक (Orthodox) तथा नास्तिक (Heterodox)।भारत में छह दार्शनिक सम्प्रदाय हैं- मीमंासा, वेदान्त, सांख्य, योग, न्याय और वैशेषिक। ये आस्तिक दर्शन की कोटि में आते हैं। ये छह सम्प्रदाय वेदों की सत्ता स्वीकार करते हैं। इसलिए इन्हें आस्तिक दर्शन कहा जाता है। तीन भारतीय दार्शनिक सम्प्रदाय यथा-चार्वाक, बौद्ध तथा जैन को नास्तिक दर्शन के रूप में जाना जाता है। भारतीय दर्शन की ये शाखाएं वेदों की सत्ता को स्वीकार नहीं करती। इसलिए इन्हें नास्तिक दर्शन कहा जाता है।

भारतीय नीतिशास्त्र की विशेषताएं: आस्तिक और नास्तिक
(Features of Indian Ethics : orthodox and Heterodox)

सम्पूर्ण भारतीय दर्शन चाहे उनकी प्रकृति नास्तिक हो या आस्तिक अपनी उल्लेखनीय विशिष्टताओं के लिए जानी जाती हैं। भारतीय नीतिशास्त्र की खास विशेषताएं इस प्रकार हैं-
ऽ भारतीय नीतिशास्त्र की प्रथम उल्लेखनीय विशेषता यह है कि यह प्राचीनतम नीतिशास्त्रीय विद्या है। बौद्ध दर्शन को अगर छोड़ दिया जाए तो भारतीय दार्शनिक सम्प्रदायों को तिथिक्रम प्रस्तुत कर पाना कठिन है। भारत दर्शन की यही प्राचीनता इसकी एक खास विशेषता है और अत्यंत प्राचीन होने के कारण ही भारतीय जीवन शैली से अभिन्न हो चुका है। भारतीय दर्शन की प्रत्येक शाखा में नैतिक आदर्शों की चर्चा है जो धीरे-धीरे व्यावहारिक जीवन में अपनी पकड़ बना चुका है और अब तो भारतीय जीवन का अंग बन चुका है।
ऽ भारतीय नीतिशास्त्र मात्र नैतिक अवधारणाओं का बौद्धिक अनुशीलन ही नहीं अपितु नैतिक विचारों को जीवन में उतारने का प्रयास भी है। भारतीय विचारकों ने न सिर्फ नैतिक आदर्शों की मीमांसा की है बल्कि यह भी बताया है कि किस प्रकार के अभ्यासों से नैतिक जीवन की उपलब्धि संभव है। जैन, बौद्ध तथा योग दर्शन में उल्लिखित नैतिक जीवन शैली को आज भी आम भारतीय अपने जीवन में अपना रहे हैं।
ऽ भारतीय नीतिशास्त्र के प्रत्येक सम्प्रदाय के विचार उसके तत्वशास्त्रीय दृष्टिकोण के परिणाम है। वेद हो या उपनिषद, गीता या चार्वाक या कोई अन्य सम्प्रदाय, उनका आचार संहिता उनके तत्वशास्त्र पर आश्रित है। अतः भारतीय नीतिशास्त्र सिद्धान्त व व्यवहार का अनुपम समन्वय प्रस्तुत करता है। मोक्ष, निर्वाण अथवा निःश्रेयस को प्रायः सभी भारतीय दार्शनिक सम्प्रदायों में उच्चतम आदर्श बतलाया गया है। इस आदर्श के अन्तर्गत सुख-दुख आदि सभी विरोधों से परे जाने की बात की गई है। भारतीय दर्शन की यह विशेषता इसे आध्यात्मिक बनाती है। अपनी आध्यात्मिक प्रकृति के कारण भारतीय आचार संहिता निरपेक्ष है। आचरण के नियम किसी व्यक्ति की बुद्धि या संवेगों पर निर्भर नहीं है। इसका अंतिम लक्ष्य है उस अलौकिक व निरपेक्ष सत्ता की उपलब्धि।
ऽ भारतीय नीतिशास्त्र का दृष्टिकोण मानवतावादी है। यह सिर्फ व्यक्ति के कल्याण की बात नहीं करता बल्कि सामाजिक कल्याण के लिए भी नैतिक नियम प्रस्तुत करता है। एक ओर यह मानव के आंतरिक व बाह्य जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है तो दूसरी ओर यह व्यक्ति और समाज के हित के बीच भी संतुलन स्थापित करने का लक्ष्य रखता है। इस तरह अन्तर्वैयक्तिक संबंधों में भी यह मानवीय है। भारतीय नीतिशास्त्र में आचरण के नियम इस प्रकार बनाए गए हैं जिससे व्यक्ति और समाज के हितों के बीच कोई विरोधाभास न हो। नैतिक जीवन का अर्थ भारतीय नीतिशास्त्र के मुताबिक मानवता का कल्याण है।
ऽ भारतीय नीतिशास्त्र की एक खास बात यह भी है कि यह मात्र मानव समाज के प्रति ही अहिंसा प्रेम अथवा करुणा का पाठ नहीं पढ़ाता पर सभी प्राणियों, वनस्पति जगत, पशु जगत आदि के प्रति भी वही भावना रखने की बात करता हैं। वर्तमान काल में भी यह तथ्य बेहद प्रासंगिक है और भारतीय नीतिशास्त्र में यह प्राचीन काल से ही विद्यमान है। वस्तुतः भारतीय दार्शनिकों ने सम्पूर्ण प्राणी जगत के प्रति अपनी चिन्ता व्यक्त की है और वे सभी के प्रति समान आचार संहिता की वकालत करते हैं।
ऽ भारतीय नीतिशास्त्र की एक उल्लेखनीय विशेषता है कर्म फल का नियम। कर्म सिद्धान्त को ‘कर्म का नियम‘ भी कहा जाता है जिसकी तुलना प्रायः अनुल्लंघनीय प्राकृतिक नियमों के साथ की जाती है। इस प्रकार कर्मवाद अथवा कर्म-सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य अपने शुभ या अशुभ कर्मों के कारण ही इस संसार में सुख अथवा दुःख भोगता है और स्वयं ही अपने कर्मों द्वारा अपने भाग्य का भी निर्माण करता है। चार्वाक को छोड़कर बाकी सभी भारतीय दार्शनिक सम्प्रदायों में कर्म के नियम को स्वीकार किया गया है। बौद्ध दर्शन तो आत्मा की अमरता को स्वीकार न करते हुए भी कर्मवाद तथा पुनर्जन्म के सिद्धान्त में विश्वास करता है।