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कलम बाँधना या अध्यारोपण क्या है (grafting plants in hindi) कलम लगाने की विधियाँ pdf ग्राफ्टिंग विधि के प्रकार

(grafting plants in hindi) कलम बाँधना या अध्यारोपण क्या है कलम लगाने की विधियाँ pdf ग्राफ्टिंग विधि के प्रकार किसे कहते है , परिभाषा बताइए ?

अध्यारोपण या कलम बाँधना (grafting plants): वह प्रक्रिया जिसके अंतर्गत दो पौधों के दो अलग अलग हिस्सों को इस प्रकार जोड़ा जाए कि ये समांग अथवा समरस होकर एक ही पौधे के रूप में जीवनयापन करे , अध्यारोपण या ग्राफ्टिंग कहा जाता है। उपर्युक्त दोनों पौधों में जिनके अलग अलग भाग आपस में जोड़े जाते है , एक पौधा तो भूमि में जड़ सहित स्थापित रहता है। कभी कभी यह केवल जड़ अथवा ठूंठ के रूप में भी हो सकता है। इस पौधे को मूठ अथवा स्टाक (stock) कहते है। दुसरे पौधे के जोड़ें जाने वाला भाग प्ररोह के रूप में होता है जिसमें एक अथवा एक से अधिक प्ररोह कलिकाएँ मौजूद रहती है। इसे सांकुर टहनी अथवा सियोन कहते है। इन दोनों पौधों में मूठ और सांकुर टहनी का जुड़ाव , इनके एधा क्षेत्रों वाले स्थानों पर किया जाता है। एक भाग के कैम्बियम को दुसरे भाग अर्थात मूठ के कैम्बियम पर इस तरह से जोड़ा जाता है कि कटे हुए दोनों हिस्से समरस होकर एक ही पौधे के तौर पर निरुपित होने लगते है। इस प्रकार अध्यारोपण अथवा कलम बाँधने की प्रक्रिया में मूठ नये पौधे अथवा कलम का आधारीय भाग निर्मित करता है और भूमि से जड़ों के द्वारा अवशोषित जल और खनिज पदार्थ , ऊपरी भाग अर्थात सांकुर टहनी अथवा वंशज को उपलब्ध करवाता है। वही दूसरी तरफ कलम का ऊपरी हिस्सा अर्थात सांकुर टहनी नवनिर्मित पौधे के ऊपरी भाग को निरुपित करता है और यह कलम के आधारीय भाग अथवा जड़ों को कार्बनिक खाद्य पदार्थो की आपूर्ति का कार्य करता है।

इस विधि का उपयोग करके बागवान और उद्यान विज्ञानी प्राय: आर्थिक रूप से उपयोगी अनेक पौधों की उन्नत किस्में विकसित करते है। इस प्रक्रिया के द्वारा उनको दो अलग अलग पौधों के उत्तम लक्षणों को एक पौधे में समाहित करने में आसानी रहती है , अर्थात यदि एक पौधे में रोग प्रतिरोधी क्षमता और दुसरे पौधे में अधिक उपज और उत्तम गुणवत्ता वाले गुण है। तो अध्यारोपण अथवा कलम बाँधकर इन दोनों पौधों के उत्तम लक्षणों को एक ही पौधे में प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार एक पौधे की बेहतर अथवा उन्नत किस्म प्राप्त की जा सकती है।
प्राय: कलम बाँधने की इस विधि में ऊपरी सांकुर टहनी ऐसे पौधे से प्राप्त करते है , जिसकी गुणवत्ता बेहतर हो , जैसे – फलों का आकार बड़ा होना , स्वाद का अच्छा होना , ऊपज अधिक होना आदि। जबकि कलम के आधारीय भाग अथवा मूठ को ऐसे पौधे में चयनित किया जाता है , जिसमें रोग प्रतिरोधी क्षमता और जल की अवशोषण क्षमता अधिक होती है। इस तथ्य को आम के पेड़ के कलम बाँधने के उदाहरण द्वारा आसानी से समझा जा सकता है। इसमें दशहरी नस्ल की ऊपरी टहनी ( scion फलों का अधिक मीठापन) को देशी आम की मूठ (stock ; रोग और कीट प्रतिरोधी क्षमता) पर अध्यारोपित करके अथवा कलम बाँध कर दोनों इच्छित लक्षण एक ही पौधे में प्राप्त किये जाते है। ऐसे पौधों की जड़ें भी काफी गहरी होती है। अत: इनमें एक कार्यकुशल मूलतंत्र विकसित होता है। जल और खनिज पदार्थो का अवशोषण भी अधिक मात्रा में होता है।
इसी प्रकार गुलाब की नस्ल सुधारने के लिए उत्तम किस्म के गुलाब की टहनी को जंगली गुलाब पर अध्यारोपित किया जाता है।
अध्यारोपण या कलम बाँधना पौधों का एक अनूठा लक्षण है। अति प्राचीन काल से ही इस हुनर का उपयोग बागवानों और कृषकों द्वारा किया जाता रहा है। इस विधि का उपयोग सम्भवत: उस युग में भी किया जाता था जबकि उद्यान विज्ञान का विधिवत वैज्ञानिक अध्ययन प्रारंभ भी नहीं हुआ था। कलम बाँधने की तकनीक का उपयोग बागवानों और उद्यान विज्ञानियों के द्वारा प्राय: द्विबीजपत्री पौधों में ही किया जाता है और इनमें भी विशेषकर फल उत्पादक पौधों में इच्छित लक्षण प्राप्त करने के लिए यह प्रक्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण है। सामान्यतया एक दुसरे से घनिष्ठ बन्धुता प्रदर्शित करने वाली किस्मों और प्रजातियों के मध्य ही कलम बाँधने का काम किया जाता है। बागवानों और उद्यान विज्ञानियों के द्वारा आजकल अध्यारोपण अथवा कलम बाँधने के लिए अनेक अलग अलग विधियों का उपयोग किया जाता है , जैसे – जिभिका अध्यारोपण अथवा चाबुक छड़ी अध्यारोपण और फच्चर अध्यारोपण।
पौधों में कलम बाँधने के लिए कौनसी विधि का उपयोग किया जाए , इसके लिए पौधे की आयु , उसकी बाह्य आकृति और अन्य विशेषताओं को विशेष रूप से ध्यान में रखा जाता है।
कलम रोपण की सामान्य विधियाँ निम्नलिखित प्रकार है –
(i) चाबुक छड़ी अध्यारोपण (whip grafting): इस विधि में मूठ और संकुर टहनी को तिर्यक रूप अथवा तिरछे किनारों से लगभग 5 से 7 सेंटीमीटर तक काटते है। इसके बाद संकुर टहनी को अपने मुख्य पौधे से अलग करके मूठ के साथ मजबूती से जोड़ दिया जाता है। इन दोनों हिस्सों में कटे हुए सिरों को एक दुसरे में समायोजित करके टेप की सहायता से मजबूती से बाँध देते है और इनके जोड़ के चारों तरफ गीली मिट्टी का लेप कर दिया जाता है , जिससे जुड़े हुए हिस्सों के मध्य वायु प्रवेश नहीं कर सके। कुछ दिनों के बाद ये दोनों हिस्से आपस में जुड़ जाते है और एक ही पौधे के तने अथवा शाखा के तौर पर निरुपित होते है।
(ii) फच्चर अध्यारोपण (wedge grafting): इस विधि में जिस पौधे के तने की शाखा को संकुर टहनी के रूप में प्रयुक्त किया जाता है , उसके निचले सिरे को फच्चर के आकार में नुकीला काटा जाता है। अब जिस पौधे की शाखा अथवा तने को मूठ के रूप में प्रयुक्त करते है , उस तने को आधारीय भाग से काट देते है और इसमें अर्थात इस आधारीय ठूंठ में लम्बाई में एक खांच अथवा दरारनुमा चीरा लगा देते है। अगले चरण में संकुर टहनी को इस दरार अथवा खाँच में जो कि मूठ में मौजूद होती है , मजबूती से जमा देते है। इस प्रकार समायोजित दोनों सिरों को दृढ़ता से बाँधकर टेप लपेट देते है और इसके आस पास गीली मिट्टी का लेप कर दिया जाता है। कुछ दिनों के बाद एक दुसरे में समायोजित दोनों पौधों को अलग अलग टहनियों के ये टुकड़े समरसता प्रदर्शित करते हुए एक ही शाखा के रूप में आपस में जुड़ जाते है।
(iii) कलिका अध्यारोपण (bud grafting): उपर्युक्त दोनों विधियों के अतिरिक्त अध्यारोपण अथवा कलम बाँधने की एक और सर्वप्रचलित विधि कलिका अध्यारोपण भी लोकप्रिय है। इस प्रक्रिया में जिस पौधे में कायिक प्रवर्धन इच्छित लक्षणों के लिए करवाना होता है , उसकी प्ररोह कलिका को संकुर टहनी अथवा सियोन के रूप में प्रयुक्त करते है उसकी छाल अथवा वल्क में T के आकार का एक चीरा लगाया जाता है और इस कटी हुई छाल को धीरे से किनारों पर से ऊँचा कर देते है। तत्पश्चात संकुर अथवा सियोन कलिका को सावधानी के साथ इस T आकृति के चीरे हुए हिस्से में स्थापित कर देते है। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद संकुर अथवा स्थापित कलिका को आस पास से डोरियों के द्वारा मजबूती से बाँध दिया जाता है , जिससे कि यह चिरी हुई जगह में ही बनी रहे , बाहर नहीं निकल जाये। लगभग तीन सप्ताह पश्चात् चीरे में रोपी गयी यह संकुर कलिका , मूठ वाले पौधे से एकरूपता स्थापित कर लेती है और इसी मुख्य पादप के एक हिस्से के रूप में अंकुरित हो वृद्धि करने लगती है। इस कलिका के अंकुरण के साथ ही , इसमें जनक पौधे के इच्छित लक्षण भी प्रकट होने लगते है। कलिका अध्यारोपण सामान्यतया अनेक पौधों जैसे गुलाब , आडू , नाशपाती और सेब में कायिक प्रवर्धन की एक सर्वमान्य विधि है। इसके अतिरिक्त अन्य फलोत्पादक पौधों में भी इस विधि का प्रयोग बहुतायत से किया जाता है।