खनिज लवण अवशोषण को प्रभावित करने वाले कारक Factors affecting absorption of mineral salts in hindi

Factors affecting absorption of mineral salts in hindi खनिज लवण अवशोषण को प्रभावित करने वाले कारक ?

खनिज लवण अवशोषण को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting absorption of mineral salts)

विभिन्न कारक लवणों के अवशोषण को प्रभावित करते हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

  1. तापमान (Temperature)

तापमान के घटने व बढ़ने से लवण अवशोषण की दर को क्रमशः कमी एवं वृद्धि होती है। कुछ हद तक यह परिवर्तन सक्रिय एवं निष्क्रिय दोनों पर प्रभावी होता है। परन्तु एक सीमा (अधिकतम सीमा) के पश्चात् तापमान में वृद्धि करने पर लवण अवशोषण का संदमन लवण अवशोषण से संबंधित एन्जाइमों के गुणनाशन (denaturation) के कारण होता है। तापमान व सक्रिय अवशोषण का उसी प्रकार का संबंध होता है जिस प्रकार का उपापचयी क्रियाओं में होता है। तापमान के साथ अणुओं की गतिज ऊर्जा में वृद्धि के कारण कुछ हद तक निष्क्रिय अवशोषण में भी वृद्धि पाई गई है।

  1. प्रकाश (Light)

प्रकाश वाष्पोत्सर्जन के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से लवण अवशोषण को प्रभावित करता है। प्रकाश की उपस्थिति में रं खुले रहते हैं तथा वाष्पोत्सर्जन की दर अधिक होती है। इससे वाष्पोत्सर्जन अपकर्श (transpiration pull) के कारण अधिक द्रव्यमान प्रवाह (mass flow) होता है एवं जल अवशोषण की मात्रा बढ़ जाती है फलस्वरूप लवण अवशोषण में भी थोड़ी वृद्धि होती है।

सक्रिय लवण अंतर्ग्रहण के लिए आवश्यक ऊर्जा व ऑक्सीजन प्रकाश संश्लेषण से मिलती है। अन्यथा श्वसन से भी लवण अवशोषण के लिए ऊर्जा उपलब्ध होती है क्रियाधार प्रकाश संश्लेषण के कारण ही मिल पाता है।

  1. ऑक्सीजन तनाव (Oxygen tension)

सक्रिय लवण अवशोषण ऑक्सीजन की कमी (ऑक्सीजन तनाव) होने पर संदमित हो जाती है क्योंकि ऑक्सीजन की कमी के कारण श्वसन की क्रिया विशेषकर ATP संश्लेषण की क्रिया मंद होने से अवशोषण के लिए वांछित ऊर्जा उपलब्ध नहीं हो पाती।

  1. pH अथवा हाइड्रोजन आयन सान्द्रता (pH or Hydrogen ion concentration)

PH अथवा हाइड्रोजन आयनों (H) की सान्द्रता विभिन्न लवणों के आयनों की उपलब्धता को प्रभावित करते हैं अतः अप्रत्यक्ष रूप से लवणों का अवशोषण भी प्रभावित होता है। सामान्यतः मृदा विलयन के pH का निम्न मान (lowpH) ऋणायनों के अवशोषण को बढ़ाता है तथा उच्च pH मान (high pH) धनायनों के अवशोषण को बढ़ाता है। फास्फोरस सामान्यतः H2 PO4 के रूप में अवशोषित होता है परन्तु क्षारीय pH में यह द्विसंयोजी HPO4 2- एवं त्रिसंयोजी PO43 – में बदल जाता है जिससे पादप को फास्फेट की उपलब्धता कम हो जाती है। अत्यधिक उच्च अथवा निम्न pH पादप ऊतकों को क्षति पहुंचाता है तथा लवण अवशोषण संदमित हो जाता है।

  1. पारस्परिक अभिक्रिया (Interaction)

अनेक बार एक प्रकार के आयनों की उपस्थिति दूसरे आयनों के अवशोषण को प्रभावित करती है। सामान्यतः सक्रिय अवशोषण के लिए आवश्यक वाहकों में विशिष्ट आयनों के लिए बंधुता (affinity) होती है तथा यह उस वर्ग के सभी आयनों के साथ जुड़ सकता है ऐसी स्थिति में उसी समूह के अन्य आयन की उपस्थिति में उस आयन का अवशोषण कम हो जाता है K+ एवं Ru+ दोनों के उपस्थित होने पर लीथियम अवशोषण प्रभावित होता है।

  1. वृद्धि (Growth)

पादप की विभिन्न वृद्धि अवस्थाऐं लवण अवशोषण को प्रभावित करती है। अधिक कायिक वृद्धि से जल अंतर्ग्रहण एवं अभिगमन (uptake and transport) बढ़ जाता है तथा लवण अवशोषण भी बढ़ जाता है। वृद्धि के साथ पृष्ठी क्षेत्रफल, कोशिकाओं की संख्या तथा वाहकों में बढ़ोतरी होने से भी अवशोषण दर बढ़ जाती है। द्वितीयक वृद्धि अथवा अधिक मात्रा में सुबेरिन युक्त जड़ों में लवणों का अवशोषण नहीं हो पाता । –

खनिज लवणों का स्थानान्तरण ( Translocation of mineral salts)

मूल द्वारा अवशोषित लवण के मुख्यतया जायलम के द्वारा वाष्पोत्सर्जन जल द्रव्यमान प्रवाह के साथ प्ररोह में जाते हैं। लवण अवशोषण के समान ही मूल अधिचर्म कोशिका से मूल जायलम तक का चालन भी विशिष्ट एवं नियंत्रित होता है।

सामान्यतः आयन बाह्यदिक् स्थान में निष्क्रिय विधि द्वारा प्रविष्ट होते हैं तथा आंतरिक दिक्स्थान में सक्रिय अवशोषण द्वारा प्रविष्ट होते हैं। आंतरिक दिक्रस्थान अर्थात् जीवद्रव्य एवं रसधानी से लवण वल्कुट (cortex) की विभिन्न परतों से होते हुए अंतर:त्वचा (endodermis ) तक उपापचयी ऊर्जा के उपयोग के बिना ही स्थानांतरित हो जाते हैं। अंतस्त्वचा में उपस्थित कैस्पेरी पट्टियां (casparian bands ) लवण व जल के लिए अपारगम्य होती है।

ऐसा माना जाता है कि लवणों के स्थानान्तरण में एपोप्लास्ट (पादप में उपस्थित विभिन्न कोशिकाओं की कोशिका भित्तियाँ) तथा सिम्प्लास्ट (कोशिकाओं का जीवद्रव्य एवं जीवद्रव्य तंतु) दोनों का महत्वपूर्ण होता है। आयन कोशिकाओं में जीवद्रव्यतंतुओं (plasmodesmata) के माध्यम से तथा कोशिका भित्ति में से होते हुए अंतःत्वचा तक पहुंच जाते हैं। अंतत्व में कैस्पेरियन पट्टिकाओं के कारण आगे का स्थानान्तरण एपोप्लास्ट अथवा कोशिका भित्ति के माध्यम से नहीं हो सकता अतः लवणों को कोशिका जीवद्रव्य (सिम्पलास्ट) में प्रविष्ट करना अनिवार्य हो जाता है। सिम्पलास्ट से जायलम की मृतवाहिनिका (tracheid) अथवा वाहिका में लवणों का स्थानान्तरण जायलम भारण (xylem loading) कहलाता है।

जायलम भारण की क्रिया विधि वैज्ञानिकों के लिए पहेली सा है। ऑयन सिम्प्लास्ट से विसरण द्वारा जायलम वाहिका/वाहिनिका में प्रवेश कर सकते हैं। काफ्ट एवं बेयर (Carfts and Bayer, 1938) ने पाया कि जड़ में से बाहर से भीतर की ओर O2 सान्द्रता कम होती जाती है तथा CO2 सान्द्रता बढ़ती जाती है। लवण संभवत सिम्पलास्ट के माध्यम से ही लवण सान्द्रता प्रवणता की दिशा में निष्क्रिय विधि से अंदर की ओर चालन करते रहते हैं तथा जायलम की मृदूतकी कोशिकाओं फिर वाहिकीय तत्वों में प्रविष्ट हो जाते हैं। संभवत् , की अल्प मात्रा के कारण सान्द्रता प्रवणता के विरूद्ध लवणों को जीवद्रव्य में रोके रखना संभव नहीं हो पाता। जायलम रस की सान्द्रता आसपास की कोशिकाओं के मुकाबले अधिक होती है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार जायलम भारण में ऊर्जा की आवश्यकता होती है क्योंकि सान्द्रता प्रवणता के विरूद्ध लवणों का स्थानान्तरण जायलम में होता है। इसमें जायलम मृदूतक का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इन की कोशिका झिल्ली में प्रोटॉन पम्प, चैनल इत्यादि होते हैं। जिनके द्वारा आयन अंदर अथवा बाहर गति करते हैं।

तने में ऊपर की ओर खनिज लवणों का स्थानांतरण ( Translocation of mineral salts in stem)

मूल जायलम से लवण तने की जायलम में प्रवेश करते हैं तने में ऊपर की ओर स्थानान्तरण मुख्यतः वाष्पोत्सर्जन कर्षण (transpiration pull) के कारण जल के साथ होता है। लवणों का एधा (cambium) एवं फ्लोएम में पार्श्वीय स्थानान्तरण भी होता है। ऐसा माना जाता है कि एधा व ऊपर व नीचे की ओर तथा पार्श्वीय स्थानातंरण को नियंत्रित करती है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार कुछ लवणों का चालन व स्थानान्तरण फ्लोएम व मृदूतकी कोशिकाओं के माध्यम से भी होता है।