क्लीमेन्सन अपचयन अभिक्रिया पर टिप्पणी लिखिए explain clemmensen reduction with an example in hindi ?
ऐल्डिहाइड का ऑक्सीकरण
(1) ऐल्डिहाइड सिल्वर ऑक्साइड अथवा अम्लीय पोटैशियम परमैंगनेट अथवा क्रोमियम अम्ल द्वारा ऑक्सीकृत होकर समान संख्या के कार्बन परमाणुयुक्त कार्बोक्सिलिक अम्ल बनाते हैं। यहाँ तक कि कुछ ऐल्डिहाइड और कीटोन ऐल्डिहाइड का तो वायुमण्डलीय ऑक्सीजन है। मुक्त मूलक प्रक्रम द्वारा स्वतः ऑक्सीकरण हो जाता
(2) बेयर विलिगर ऑक्सीकरण (Baeyer-Villiger oxidation) ऐल्डिहाइड की कार्बनिक पर अम्लों जैसे परबेंजोइक अम्ल परऐसीटिक अम्ल अथवा मोनोथैलिक अम्ल आदि के साथ अभिक्रिया से ऑक्सीकरण होकर कार्बोक्सिलिक बनते हैं। परन्तु इस अभिक्रिया का उपयोग मुख्यतः ऐल्केनॉन से एस्टर के संश्लेषण में किया जाता है।
(3) सिलेनियम डाइऑक्साइड से ऑक्सीकरण – ऐसे ऐल्डिहाइड तथा कीटोन जिनमें कार्बोनिल ..समूह के निकटवर्ती मेथिल अथवा मेथिलीन समूह होता है, कमरे के ताप पर सिलेनिमय ऑक्साइड द्वारा ऑक्सीकृत होकर डाइकार्बोनिल यौगिक बनाते हैं। उदाहरणार्थ, ऐसीटैल्डिहाइड से ग्लाइऑक्सेल तथा- ऐसीटोन से मेथिल ग्लाइऑक्सेल बनते हैं।
(4) मृदु ऑक्सीकाराकों से ऑक्सीकरण – ऐल्डिहाइडों का अपचायक गुण-
(i) फेलिंग विलयन का अपचयन फेलिंग विलयन दो विलयनों-फेलिंग विलयन ‘ए’ तथा फेलिंग विलयन ‘बी’ का मिश्रण होता है।
फेलिंग विलयन ‘ए’- यह कॉपर सल्फेट का जलीय विलयन होता है ।
फेलिंग विलयन ‘बी’- यह रोशल लवण (Rochele salt सोडियम पोटैशियम टार्टरेट) तथा सोडियम हाइड्रॉक्साइड का जल में रगहीन विलयन होता है।
फेलिंग विलयन ‘ए’ और फेंलिंग विलयन ‘बी’ को मिलाने पर पहले अविलेय Cu(OH)2 बनता है जो तरन्त विलयन में विलेय होकर एक जटिल यौगिक सोडियम क्यप्रीटार्टरेट बनाता है।
जब फेलिंग विलयन में ऐल्केनैल मिलाकर गर्म किया जाता है तो इस जटिल यौगिक से आयन का Cu, 2+ आयन में अपचयन हो जाता है और यह क्यूप्रस ऑक्साइड के रूप में लाल रंग का अवक्षेप बनाता है।
ऐरोमैटिक ऐल्डिहाइड फेलिंग विलयन का अपचयन नहीं करते हैं ।
(ii) बेनेडिक्टविलयन का अपचयन- यह कॉपर सल्फेट (17.3 ग्रा.), सोडियम साइट्रेट (173.0 ग्राम) एवं सोडियम कार्बोनेट (100 ग्रा.) प्रति लीटर जलीय विलयन है। इस विलयन को ऐल्केनैल के साथ गर्म करने पर क्यूप्रस ऑक्साइड का लाल अवक्षेप प्राप्त होता है ।
(iii) टॉलेन अभिकर्मक का अपचयन (Reduction of Tollen’s reagent ) – अमोनियामय सिल्वर नाइट्रेट का विलयन टॉलेन अभिकर्मक कहलाता है। यदि सिल्वर नाइट्रेट के जलीय विलयन में अमोनियम हाइड्रॉक्साइड मिलायें तो पहले AgOH का सफेद भूरे रंग का अवक्षेप प्राप्त होता है जो अमोनियम हाइड्रॉक्साइड की अधिकता में विलेय हो जाता है। यह विलयन अमोनियामय सिल्वर नाइट्रेट विलयन (टॉलेन अभिकर्मक) कहलाता है। इस विलयन में डाइ ऐम्मीन सिल्वर – I (धनायन) होते हैं। इसे ऐल्केनॉल के साथ गर्म करने पर इस जटिल आयन में उपस्थित सिल्वर का आयन धात्विक सिल्वर में अपचयन हो जाता है, जो परखनली की दीवार पर रजतदर्पण अथवा काले-भूरे रंग के अवक्षेप के रूप में निक्षेपित हो जाता है।
(iv) मर्क्यूरिक क्लोराइड विलयन का अपयचन- ऐल्केनैल को मर्क्यूरिक क्लोराइड के जलीय विलयन के साथ गर्म करने पर ये इसका मर्क्यूरस क्लोराइड (सफेद अवक्षेप) में अपचयन कर देते हैं। यह अभिक्रिया यहीं बन्द नहीं हो जाती है वरन् मर्क्यूरस क्लोराइड का ऐल्केनैल द्वारा मर्क्युरी के काले अवक्षेप में अपचयन हो जाता है।
कीटोन का बेयर विलिगर ऑक्सीकरण
कीटोन का कार्बनिक परअम्लों जैसे परबेंजोइक अम्ल, परऐसीटिक अम्ल अथवा परमोनोथैलिक अम्ल द्वारा ऑक्सीकरण हो जाता है और कार्बोक्सिलिक एस्टर बनते हैं।
अभिक्रिया की क्रियाविधि को निम्न प्रकार दिया जा सकता है-
इस अभिक्रिया के उत्पाद से ज्ञात होता है कि मेथिल समूह की अपेक्षा फेनिल समूह के स्थानान्तरण की प्रवृत्ति अधिक है इसलिए फेनिल ऐसीटेट CH3COOC6H5 प्राप्त होता है।
यदि मेथिल समूह के स्थानान्तरण की प्रवृत्ति अधिक होती है तो मेथिल बेंजोएट C6H5COOCH3 प्राप्त होता है। विभिन्न समूहों के स्थानान्तरण की प्रवृत्ति निम्न प्रकार है।
H > फेनिल > 30 ऐल्किल > 20 ऐल्किल > 10 ऐल्किल > मेथिल
पोपोफ का नियम (Popoff’s rule):- असममित कीटोन में कौनसा C—C बन्ध विदलित होगा इसे पोपोफ ने निम्नलिखित प्रकार समझाया।
(i) CO समूह के उस तरफ का C-CO बन्ध टूटता है जहाँ a-H परमाणुओं की संख्या कम होती है। उदाहरणार्थ,
(ii) यदि CO समूह के दोनों ओर a – H परमाणुओं की संख्या समान हो तो CO समूह प्रमुख रूप से उस ऐल्किल समूह पर लगा रहता है जिसमें कार्बन परमाणु कम हो। उदाहरणार्थ,
ऐसे ऐल्केनैल जिनमें a-हाइड्रोजन परमाणु उपस्थित नहीं होते हैं, जैसे- HCHO (मेथेनैल), C6H5CHO (बेंजेल्डिहाइड), (CH3)3C-CHO (पिवैल्डिहाइड) तथा CCI3 -CHO (क्लोरल) आदि के दो अणु सांद्र क्षार विलयन में गर्म करने पर आपस में अभिक्रिया कर लेते हैं। इनमें से एक अणु का ऐल्केनॉल में अपचयन और दूसरे अणु का ऐल्केनोइक अम्ल में ऑक्सीकरण हो जाता है, जो क्षार की उपस्थिति के कारण लवण के रूप में प्राप्त होता है। यह अभिक्रिया कैनिजारो अभिक्रिया (Cannizzaro reaction) कहलाती है। उदाहरणार्थ-
क्रियाविधि –
इस अभिक्रिया की क्रियाविधि को फार्मेल्डिहाइड की सांद्र NaOH के साथ अभिक्रिया का उदाहरण लेकर निम्न प्रकार समझा जा सकता है।
(iii) पिवैल्डिहाइड (ट्राइमेथिलऐसीटैल्डिहाइड ) को सांद्र Ca(OH)2 विलयन में गर्म करने पर ट्राइमेथिलऐसीटेट आयन तथा नियोपेंटिलऐल्कोहॉल प्राप्त होते हैं।
(iii) ऐसे ऐल्केनैल जिनमें एक a- हाइड्रोजन परमाणु होता है, मेथेनेल के साथ सांद्र क्षार की उपस्थिति करके B-हाइड्रॉक्सी ऐल्डिहाइड देते हैं। ये B-हाइड्रॉक्सी ऐल्डिहाइड मेथेनैल की अधिकता के साथ आगे अभिक्रिया करके एक प्रतिस्थापित ट्राइमेथिलीन ग्लाइकॉल बनाते हैं।
(iv) ऐसे ऐल्केनैल जिनमें दो a-हाइड्रोजन परमाणु होते हैं। पहले हाइड्रॉक्सीमेथिल, फिर बिस हाइड्रॉक्सीमेथिल और अन्ततः ट्रिस हाइड्रॉक्सी मेथिल यौगिकों में बदल जाते हैं, यदि इनकी अभिक्रिया मेथेनैल की अधिकता के साथ सांद्र क्षार विलयन की उपस्थिति में की जाए। जैसे-
(v) एक विशिष्ट उदाहरण एथेनैल का है जिसमें तीन a-हाइड्रोजन परमाणु है। एथेनैल पैरा फॉर्म ऐल्डिहाइड के जलीय निस्पंदन में कैल्सियम ऑक्साइड चूर्ण मिलाने पर टेट्राकिस हाइड्रॉक्सीमेथिल मेथेन (टेट्रामेथिलॉल मेथेन) या पेन्टा एरिथ्रिटॉल बनाता है।
पेन्टा ऐरिथ्रिटॉल एक महत्वपूर्ण औद्योगिक यौगिक हैं। इसका टेट्रानाइट्रो व्युत्पन्न एक शक्तिशाली विस्फोटक होता है।
अपचयन (Reduction)
ऐल्डिहाइड सामान्यतः अपचयन पर प्राथमिक ऐल्कोहॉल तथा कीटोन द्वितीयक ऐल्कोहोल देते हैं अपचयन हेतु काम में जाने वाली विधियाँ निम्नलिखित है।
(i) मीरवाइल-पॉन्डॉर्फ-वर्ली अपचयन (Meerwine-Pondorf – Verly reduction, 1925 1926) कार्बोनिल यौगिकों का ऐलुमिनियम आइसोप्रोपॉक्साइड [(CH3)2CH-O-]3AI के साथ आइसोप्रोपिल ऐल्कोहॉल में आसवन करने पर ऐल्कोहॉलों में अपचयन हो जाता है। अभिक्रिया में आइसोप्रोपिल ऐल्काहॉल के ऑक्सीकरण से ऐसीटोन भी बनता है जिसे मंद आसवन द्वारा अलग कर लेते हैं।
यह अपचायक कार्बोनिल समूह के अपचयन के लिए विशिष्ट है। यदि यौगिक में कार्बोनिल समूह के अतिरिक्त अन्य अपचयन योग्य समूह जैसे – NO2 या द्विबंध भी उपस्थित हो तो भी केवल कार्बोनिल समूह का ही अपचयन होता है।
क्रियाविधि- इस अपचयन में ऐलुमिनियम आइसोप्रोपॉक्साइड से कार्बोनिल समूह पर हाइड्राइड आयन का स्थानान्तरण होता है और अभिक्रिया चक्रीय संक्रमण अवस्था के द्वारा सम्पन्न होती है।
क्लीमेंसन अपचयन ( Clemmension reduction, 1913)
यदि कार्बोनिल यौगिकों की अभिक्रिया जिंक अमलगम तथा सांद्र HCI के साथ की जाये तो कार्बोनिल समूह का -CH2 में अपचयन हो जाता है और ऐल्केन प्राप्त होते हैं। क्लीमेंसन अपचयन से ऐल्केनैल का अपचयन ‘भली भांति नहीं हो पाता है।
क्लीमेंसन अपचयन ऐसिल बेंजीन को ऐल्किल बेंजीन में बदलने में सामान्य रूप जाता है।
वोल्फ किश्नर अपचयन तथा इसका हुएंग मिलन रूपान्तरण (Wolff Kishner reduction and its Huang – Minlon modifications, 1946)
जब ऐल्डिहाइड तथा कीटोन के हाइड्रेजोन सोडियम एथॉक्साइड के साथ 180° ताप पर गर्म किये जाते हैं तो उनमें से N2 निकल जाती है और ऐल्केन प्राप्त होते हैं। इस प्रकार कार्बोनिल समूह मैथिली समूह में बदल जाता है। यह अभिक्रिया वोल्फ किश्नर अपचयन कहलाती है।
इस अभिक्रिया में ऐल्केन की लब्धि क्लीमेंसन अपचयन की अपेक्षा अधिक प्राप्त होती है, परन क्लीमेंसन अपचयन और वोल्फ किश्नर अपचयन दोनों ही सामान्यतः त्रिविम बाधित ऐल्केनॉन के साथ असफल रहते हैं। अतः हुएंग मिलन ने वोल्फ किश्नर अपचयन का रूपान्तरण किया। उसके अनुसार यदि ऐल्केनैल अथवा ऐल्केनॉन की अभिक्रिया हाइड्रैजीन और KOH के साथ डाइएथिलीनग्लाइकॉल (HOCH2CH2CH2CH2OH) या ट्राइ एथिलीनग्लाइकॉल (HOCH2CH2OCH2CH2OCH2CH2OH) = 200°C ताप पर की जाये तो ऐल्केन अच्छी मात्रा में प्राप्त होते हैं।
यदि मेथिल सल्फोक्साइड को विलायक के रूप में प्रयुक्त करें तो अभिक्रिया को निम्न ताप पर सम्पन्न किया जा सकता है। क्लीमेंसन अपचयन तो अम्लीय माध्यम में होता है जबकि वोल्फ किश्नर अपचयन प्रबल क्षारीय माध्यम में होता है। अतः क्षार से प्रभावित होने वाले कार्बोनिल यौगिकों का क्लीमेंसन और अम्ल से प्रभावित होने वाले यौगिकों का वोल्फकिश्नर अपचयन करते हैं। क्रियाविधि – प्रथम पद- हाइड्रैजोन का बनना-
द्वितीय पद- क्षार उत्प्रेरित चलावयवीकरण और N2 अणु का विलोपन-
कार्बोनिल समूह >C= O का सोडियम बोरोहाइड्राइड एवं लीथियम ऐलुमिनियम हाइड्राइड द्वारा अपचयन –
>C=Oसमूह का NaBH, या LiAIH से अपचयन करने पर यह >CHOH समूह में बदल जाता है। ऐल्डिहाइड के अपचयन से प्राथमिक ऐल्कोहॉल तथा कीटोन के अपचयन से द्वितीयक ऐल्कोहॉल बनते हैं।
NaBH4 एवं LiAlH4 से कार्बोनिल यौगिकों के अपचयन के लिये अध्याय – 4 देखें । अमलगमित मैग्नीशियम द्वारा (By amalganated magnesium):- जब कीटोन को शुष्क विलायक में अमलगमित मैग्नीशियम के साथ गरम करते हैं तो प्राप्त यौगिक के जल अपघटन पर पिनैकॉल बनता है। इसे पिनैकॉल अपचयन कहते हैं। उदाहरणार्थ,