यह नियम तरल गतिकी में द्रव्यमान संरक्षण नियम पर आधारित होता है।
अत: किसी तरल का प्रवाह इस प्रकार होना चाहिए कि इसमें द्रव्यमान संरक्षित रहे , यहाँ द्रव्यमान संरक्षण का नियम यह बताता है कि द्रव्यमान को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है।
इसलिए जब तरल का प्रवाह नियत हो तो नली में जितना द्रव्यमान का तरल प्रवेश करता है उतना ही तरल द्रव्यमान बाहर निकलता है , इसमें द्रव्यमान संरक्षण रहता है।
उदाहरण और सूत्र : माना चित्रानुसार कोई नली है जिसका प्रवेश द्वार का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल A1 है और निकास द्वार का क्षेत्रफल A2 है। प्रवेश द्वार पर द्रव का वेग V1 है तथा द्रव V2 से से बाहर निकलता है , द्रव का घनत्व p है और इसे t समयांतराल तक प्रवाह किया जाता है अत:
नली में t समय में प्रवेश करने वाले द्रव का द्रव्यमान = p tV1A1
नली में t समय में बाहर निकलने वाले द्रव का द्रव्यमान =p t V2 A2
चूँकि द्रव्यमान संरक्षण के नियम से या अविरतता का सिद्धांत के अनुसार नली में प्रवेश करने वाले द्रव का द्रव्यमान , बाहर निकलने वाले द्रव के द्रव्यमान के बराबर है अत:
p tV1A1 = p t V2 A2
अत:
V1A1 = V2 A2
अत: यही कारण होता है कि किसी नली या पाइप के चौड़े भाग से द्रव का वेग कम होता है और संकरे भाग से द्रव का वेग अधिक होता है , यही कारण है कि जब नली का मुंह थोडा दबा लिया जाता है तो इसका पानी अधिक वेग से और अधिक दूरी तक जाता है।