धर्म के बारे में टाइलर के विचार क्या है | Edward Burnett Tylor on religion in hindi एडवर्ड बर्नेट टाइलर

एडवर्ड बर्नेट टाइलर Edward Burnett Tylor on religion in hindi , धर्म के बारे में टाइलर के विचार क्या है ?

जादू-टोना, विज्ञान और धर्म के बारे में वाद-विवाद
इस भाग में हमने मलिनॉस्की के समय में प्रचलित जादू-टोना, विज्ञान और धर्म के संबंध में धारणाओं के बारे में संक्षेप में विचार किया है। अपने निबंध के पहले भाग में उसने इनके बारे में चर्चा की है और बाद के भागों में कुछ मुद्दों का विस्तार से वर्णन किया है। हमने भी यहां मलिनॉस्की द्वारा अपनाए क्रम को लेते हुए पहले धर्म के बारे में टाइलर के विचारों पर चर्चा की है।

 धर्म के बारे में टाइलर के विचार
मलिनॉस्की के अनुसार एडवर्ड टाइलर को धर्म के नृशास्त्रीय अध्ययन का संस्थापक कहा जा सकता है। टाइलर की दृष्टि में जीववाद (animism) अर्थात् अध्यात्मिक जीवों में विश्वास आदिम धर्म का सार है। टाइलर की यह धारणा है कि आदिम लोगों के स्वप्नों, विभ्रांतियों (hallucination) और अंतर्दृष्टि संबंधी विचार से ऐसा प्रतीत होता है कि उनको आत्मा और शरीर के अलगाव में विश्वास था। मृत्यु के बाद भी आत्मा जीवित रहती है और वह स्वप्नों, स्मृतियों और अंतर्दृष्टि में दिखाई देती है। इसी से उनमें भूत-प्रेतों, पुरखों की आत्माओं और मृत्यु के बाद के विश्व में विश्वास की धारणा पैदा हुई। टाइलर के मत में सामान्यतरू मानव मात्र में विशेष रूप से आदिम जातियों में यह प्रवृत्ति पाई जाती है कि मृत्यु के बाद के विश्व की कल्पना का आधार हमारे उस विश्व का प्रतिरूप है, जिसमें हम रहते हैं। इसके अलावा ऐसा समझा जाता है, कि जो मनुष्य के क्रियाकलापों में सहायक या बाधक होते हैं, ऐसे जानवर, पौधे और अन्य पदार्थों की भी आत्माएं होती हैं।

टाइलर के इस विचार से मलिनॉस्की सहमत नहीं हैं कि आदिम मानव एक महा विचार-प्रधान प्राणी (rational being) होता है। मलिनॉस्की आदिम समाजों के अपने गहरे ज्ञान के आधार पर कहता है कि आदिम मानव अपने रोजमर्रा के मछली पकड़ने, खेती-बाड़ी आदि के कार्यो और जनजातीय गोष्ठियों में इतना अधिक व्यस्त रहता है कि उसे स्वप्नों और अंतर्दृष्टियों के बारे में सोचने की फुरसत कहां? इस तरह टाइलर के विचारों की आलोचना के बाद मलिनॉस्की ने जेम्स फ्रेजर के विचारों की ओर ध्यान केंद्रित किया ।

 जादू-टोना, विज्ञान और धर्म के बारे में फ्रेजर के विचार
फ्रेजर की रचनाएं मुख्य रूप से जादू-टोना और इसके विज्ञान और धर्म के साथ संबंध पर हैं। उनमें टोटमवाद और उर्वरता-पंथ (fertility cult) के बारे में विचार भी शामिल हैं।

फ्रेजर की प्रसिद्ध रचना दि गोल्डन बाउ में कहा गया है कि आदिम धर्म में जीववाद (animism) के अतिरिक्त कई अन्य मान्यताएं थीं तथा जीववाद को आदिम-संस्कृति का प्रमुख विश्वास नहीं कहा जा सकता। फ्रेजर के अनुसार रोजमर्रा के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए प्रकृति को नियंत्रित करने के प्रयास में आदिम मानव जादू-टोने का सहारा लेता था। जब उसे जादू-टोने की निष्फलता का आभास हो गया तो आदिम मानव राक्षसों, प्रेतात्माओं और देवताओं से प्रार्थना करने की ओर प्रवृत्त हुआ। फ्रेजर ने धर्म और जादू-टोने में स्पष्ट अंतर किया है। प्रकृति पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए उच्च आध्यात्मिक शक्तियों को संतुष्ट करने या मना लेने को उसने धर्म कहा है जबकि तंत्र-मंत्रों और अनुष्ठानों आदि के द्वारा सीधे नियंत्रण स्थापित करने को जादू-टोना कहा है। फ्रेजर का कथन है कि जादू-टोना यह प्रदर्शित करता है कि मनुष्य को प्रकृति पर प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करने की क्षमता पर पूर्ण विश्वास है। यह प्रवृति जादू-टोने को वैज्ञानिक क्रियाविधि के समान बना देती है। फ्रेजर का कहना है कि धर्म के उदय से यह पता चलता है कि मनुष्य ने प्रकृति पर प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करने की अपनी असमर्थता को स्वीकार कर लिया है। इस प्रकार, धर्म मनुष्य को जादू-टोने से ऊपर उठा देता है। इतना ही नहीं, उसकी यह भी मान्यता है कि धर्म का स्थान विज्ञान के समकक्ष है।

फ्रेजर के ये विचार जर्मनी के पुस (Preuss), इंग्लैंड के मैरेट और फ्रांस के ह्यूबर्ट और मॉस आदि यरोपीय विद्वानों के लिए प्रेरणादायक सिद्ध हए। इन विद्वानों ने फ्रेजर की आलोचना करते हुए कहा कि चाहे विज्ञान और जादू-टोना एक जैसे प्रतीत हों, लेकिन वे एक-दूसरे से एकदम भिन्न हैं। उदाहरण के तौर पर विज्ञान तर्क पर आधारित है और इसका विकास पर्यवेक्षणों और परीक्षणों के आधार पर होता है, जबकि जादू-टोने का जन्म परंपरा से होता है और यह रहस्यपूर्ण ज्ञान से घिरा होता है। दूसरे, वैज्ञानिक ज्ञान को कोई भी व्यक्ति प्राप्त कर सकता है, जबकि रहस्यात्मक सूत्रों को गुप्त रखा जाता है और इनका ज्ञान कुछ गिने-चुने लोगों को ही दिया जाता है। तीसरे, विज्ञान का आधार प्राकृतिक शक्तियों की धारणा में है, जबकि जादू-टोने का जन्म रहस्यात्मक शक्तियों की धारणा से होता है। जनजातीय समाजों में इसे भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे मलेनेशियाई लोग इसे श्मानाश् कहते हैं तो ऑस्ट्रेलियाई जनजातियां इसे ‘अरुंगक्विल्था‘ कहती हैं। बहुत से अमरीकी इंडियन समूहों में इसे ‘वाकान‘, ‘ओरेंडा‘, ‘मानिटु‘ नामों से जाना जाता है। ऐसी अलौकिक शक्ति में विश्वास पूर्ण-जीववादी धर्म के सार के रूप में स्थापित होता है और इसे विज्ञान से पूर्णतया भिन्न रूप में दिखाया गया है।

मलिनॉस्की ने ‘माना‘ की तरह की अलौकिक शक्ति में विश्वास के संबंध में कई प्रश्न उठाए। उसने जानना चाहा कि क्या यह एक मूलभूत विचार है जो आदिम मस्तिष्क की अपनी उपज है या मानव मनोविज्ञान के कहीं सरल और अपेक्षाकृत आधारभूत तत्वों से इसकी व्याख्या की जा सकती है, या यह ऐसी वास्तविकता है जिससे आदिम मानव घिरा रहता है। इन प्रश्नों के उत्तर देने से पूर्व मलिनॉस्की टोटमवाद के धार्मिक विश्वासों की समस्याओं के बारे में तथा इस विषय में फ्रेजर और दर्खाइम के विचारों के बारे में चर्चा करता है। क्योंकि इन विद्वानों ने टोटमवाद की व्याख्या के माध्यम से ही धर्म के बारे में अपने मत बनाए थे, अगले अनुभाग में इसी विषय पर चर्चा होगी।

बोध प्रश्न 1
1) एक पंक्ति में जीववाद (animism) की परिभाषा लिखिए।
2) तीन पंक्तियों में आदिम लोगों के जादू-टोने और धर्म के उद्भव के बारे में फ्रेजर का मत लिखिए।

बोध प्रश्न 1 उत्तर
प) धर्म के संबंध में टाइलर के विचार के संदर्भ में ‘‘जीववाद‘‘ का अर्थ है शरीर से अलग आत्मा के अस्तित्व में विश्वास ।
पप) फ्रेजर के मत में आदिम लोगों ने अपने रोजमर्रा के जीवन-यापन के लिए प्रकृति पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की। इस काम के लिए उन्होंने जादू-टोने का सहारा लिया। जब उनका जादू-टोना अपने मनचाहे लक्ष्य को पाने में असफल हुआ तो वे उच्चतर आध्यात्मिक तत्व से याचना करने लगे और इससे धर्म का उद्भव हुआ।

टोटमवाद पर फ्रेजर और दर्खाइम के विचार
फेजर ने टोटमवाद को समूह विशेष के लोगों और प्राकृतिक अथवा कृत्रिम जातियों के बीच संबंध के रूप में परिभाषित किया है। इन वस्तुओं को एक समूह के लोगों का टोटम माना जाता है। यह कहा जा सकता है कि टोटमवाद एक धार्मिक व्यवस्था है और सामाजिक समूह बनाने की विधि है। एक धार्मिक व्यवस्था के रूप में यह आदिम लोगों की उस इच्छा को व्यक्त करती है जो उन्हें विभिन्न प्राणियों, वनस्पति की जातियों जैसी महत्वपूर्ण वस्तुओं से संबंध स्थापित करने की प्रेरणा देती है। लोगों का जो समूह उन्हें टोटम के रूप में मानता है, उस समूह के लिए इन वस्तुओं को नष्ट करना या मारना वर्जित है। दूसरी ओर, वह समूह उन टोटम वस्तुओं की संख्या बढ़ाने के लिए अनुष्ठान या समारोह आयोजित करता है। सामाजिक समूहों के निर्माण में टोटम वस्तुएं समूहों को छोटे-छोटे समूहों में विभाजित करने का आधार बनती हैं। इस प्रकार, इसके द्वारा धार्मिक विश्वास के समाजशास्त्रीय महत्व का एक पूर्ण रूप से नया पक्ष उभर कर सामने आया। इसी कारण से धर्म से संबंधित नृशास्त्र के अग्रणी रॉबर्ट्सन स्मिथ (1889) ने यह निष्कर्ष निकाला कि आदिम धर्म व्यक्तियों से संबंधित नहीं था अपितु उसका अनिवार्यतरू सारे समुदाय से संबंध था।

दखाईम के धर्म संबंधी अध्ययन के अनुसार टोटमवाद धर्म का प्राचीनतम रूप है। रॉबर्ट्सन स्मिथ के समान दर्खाइम भी धर्म और समाज के बीच बहुत निकट का संबंध मानता है। उसके मत में टोटमीय सिद्धांत भी मानाश् या श्अलौकिक शक्तिश् के समान है। दर्खाइम (1976ः 206) ने लिखा है कि समाज का अपने सदस्यों के लिए वही महत्व है जो ईश्वर का अपने भक्तों के लिए होता है। वह धर्म को समाज का ही देवीकृत रूप मानता है। दर्खाइम ने धार्मिक व्यवहार के सामूहिक पक्ष पर विशेष बल दिया।

मलिनॉस्की को दर्खाइम के निरूपण में कई समस्याएं दिखाई दीं। वह धर्म की इस रूप में कल्पना नहीं कर सकता जिसमें एकांत में किए गए मनन-चिंतन की कोई जगह नहीं है। मलिनॉस्की (1948ः 56) के अनुसार अमरत्व की धारणा भी व्यक्तिपरक है। इसका सामाजिक या सामूहिक पक्ष से कोई विशेष संबंध नहीं है। दूसरी बात मलिनॉस्की ने कहा कि समाज में नैतिकता की मान्यता व्यक्तिगत दायित्व तथा अंतरात्मा से उपजे विवेक पर निर्भर करती है, न कि सामाजिक दण्ड-विधान के डर पर। तीसरी बात, उसने यह कही कि हमें सामाजिक शक्तियों की महत्ता को कम नहीं समझना चाहिए और आदिम समूहों के धार्मिक व्यवहार को समझने में दोनों, व्यक्ति और समाज, को महत्व देना चाहिए। साथ में, उसने यह भी कहा कि एक ओर जहां धार्मिक समारोह सार्वजनिक रूप से मनाए जाते हैं, वहीं दूसरी ओर धार्मिक अंतर्दृष्टि एकांत में किए गए मनन-चिंतन से ही प्राप्त होती है।

दर्खाइम के विचारों की आलोचना करते हुए उसने यह भी कहा कि समाज के सभी सामूहिक उद्यमों को धार्मिक क्रियाकलाप के रूप में निरूपित नहीं किया जा सकता। इसलिए हम समाज और धर्म को पर्यायवाची नहीं मान सकते। उसने युद्धरत सैनिकों, नौका-दौड़ प्रतियोगिता और द्वीपवासियों के आपसी झगड़ों के उदाहरण दिए। ये सभी सामूहिक क्रिया-व्यापार हैं लेकिन इनका धर्म से कोई संबंध नहीं है। इस प्रकार मलिनॉस्की के अनुसार सामूहिक और धार्मिक क्रिया-व्यापार अन्योन्यव्यापी (overlapping) तो हो सकते हैं लेकिन वे समानार्थक नहीं हो सकते। उसने इस तर्क को आगे बढ़ाते हुए कहा कि समाज में धार्मिक और गैर-धार्मिक अथवा लौकिक दोनों पक्ष समाहित हैं। इसलिए समाज को केवल धार्मिक या पावन पक्षों के समकक्ष नहीं माना जा सकता। इन तर्कों के आधार पर मलिनॉस्की ने दर्खाइम द्वारा विकसित धर्म के समाजशास्त्रीय सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया।

मलिनॉस्की की आलोचनाओं की पृष्ठभूमि में अब हमने यह देखने का प्रयास किया है कि इस बारे में मलिनॉस्की के क्या विचार हैं। जादू-टोने, विज्ञान और धर्म के संबंध में उसके विचारों का सारांश प्रस्तुत करने से पूर्व आइए, हम उन स्तरों को देखें जिन पर उसके विचार मुखरित होते हैं। अगले अनुभाग में जादू-टोने, विज्ञान और धर्म की समस्याओं पर मलिनॉस्की के विचारों को समझने के लिए उसके विशिष्ट और सार्विकीय संदर्भ को संक्षेप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

मलिनॉस्की का दृष्टिकोणरू विशिष्टता (particular) में सार्विकी (universal)
मलिनॉस्की के विचार उस सीमा-रेखा पर हैं जहां एक ओर मानव-व्यवहार के पहले से चले आए साविक रूप से वैध सिद्धांत हैं तो दूसरी ओर समाज विशेष में अनुभवाश्रित अनुसंधान के प्रति नई-नई ललक दिखाई देती है। मलिनॉस्की को आसानी से उन्नीसवीं शताब्दी के उन विकासवादी विद्वानों के साथ रखा जा सकता है जिन्होंने धर्म और जादू-टोने की प्रकृति और उद्भव के बारे में विचार किया है। उसे इस युग का ऐसा अंतिम विद्वान कहा जा सकता है जिसने धर्म और जादू-टोने के सार्विक रूप से लागू होने वाले सिद्धांतों की व्याख्या की। लेकिन हमें इस तथ्य को भी स्वीकार करना होगा कि मलिनॉसकी ने उस नए चरण को शुरू किया जिसमें समाज विशेष की सावधानीपूर्वक पर्यवेक्षित एवं संग्रह की हुई सामग्री को अत्यधिक महत्व दिया गया। इस प्रकार, वह एक ऐसा नृशास्त्री है जो पुराने प्रश्नों के नए ढंग से उत्तर देता है।

इस प्रकार हमारे सामने ऐसे दो स्पष्ट स्तर उभर कर आते हैं जिन पर उसके जादू-टोने, विज्ञान और धर्म से संबंधित विचारों का निर्माण हुआ और जिन्हें उसने अपने इस निबंध में प्रस्तुत किया।

इनमें से एक स्तर विशिष्ट समाज का यानी ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासियों का है। वह इन द्वीपवासियों को मानवीयता का एक अत्युत्कृष्ठ उदाहरण मानता है। दूसरे स्तर पर उसने इन द्वीपवासियों के बीच क्षेत्रीय शोधकार्य के दौरान एकत्र की हुई सामग्री का उपयोग जादू-टोने और धर्म की प्रकृति और प्रकार्य पर अपने सर्वव्यापी विचारों को समझाने के लिए किया। उसकी दृष्टि में सामाजिक जीवन के पर्यवेक्षण और सार्वत्रिक रूप से वैध सिद्धांतों के बीच संबंध बैठाना एक बहुत ही साधारण और सहज बात है। इस निबंध में उसने इन दोनों स्तरों को बहुत ही सहज रूप में मिला दिया है और जादू-टोने, विज्ञान और धर्म के समाजशास्त्रीय महत्व के बारे में पैदा होने वाले प्रश्नों के उत्तर भी दे दिए हैं। इतना ही नहीं, उसने ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासियों के विशिष्ट संदर्भ में प्राप्त जानकारी के आधार पर संपूर्ण मानवता के स्तर पर कुछ सामान्य निष्कर्ष भी निकाले हैं। साथ ही उसने इन तत्वों की वैधता को सिद्ध करने का भी प्रयास किया है। मानव-व्यवहार के इन तीन महत्वपूर्ण पक्षों (जादू, धर्म और विज्ञान) पर उसके विचारों का अध्ययन करते समय ऊपर बताए गए दोनों स्तरों को ध्यान में रखना उपयोगी होगा।

उसने समाजिक जीवन के तीनों पक्षों को नए ढंग से देखा। इन तत्वों के अध्ययन के लिए उसने नए दृष्टिकोण से सोचा। उसके मत में इन तीनों पक्षों के अस्तित्व का कुछ अर्थ होना चाहिए। आइए, हम देखें कि कैसे वह इनके अस्तित्व के संबंध में कोई अर्थ खोजने का प्रयास करता है। नाडेल (1957ः 208) के मत में अगर उसका अर्थ खोजने का तरीका भले ही बहुत सहज हो और परिष्कृत न हो, फिर भी यह विज्ञान, धर्म और जादू-टोने के अध्ययन का नया तरीका जरूर है। यह मानना पड़ेगा कि इस नए मार्गदर्शन के अभाव में उसके उत्तरवर्ती नृशास्त्री वह प्रगति नहीं कर सकते थे जो उन्होंने बाद में की। समाजशास्त्रीय इतिहास और विकास के अध्येताओं को इस परिप्रेक्ष्य में यह समझने में सहायता मिलती है कि मलिनॉस्की ने विज्ञान, जादू और धर्म के अध्ययन में तर्कसंगत सिद्धांत (the logic of rationality) को कैसे लागू किया।

अमरीकी नृशास्त्री रॉबर्ट रैडफील्ड (1948ः 9) के अनुसार मलिनॉस्की के मैजिक, साइंस एंड रिलीजन शीर्षक निबंध में हमें लेखक की विशेष प्रतिभा का आभास मिलता है। उसकी विशेषता यह है कि उसने सफलतापूर्वक विशिष्टता में सर्वत्रता (the universal in the particular) को केवल अनुभव ही नहीं किया अपितु उसे सिद्ध भी किया।

मलिनॉस्की ने जिस प्रकार धर्म और जादू-टोने के अर्थ और प्रकार्य को प्रदर्शित किया, उससे सामाजिक स्थितियों में मानव हितों में उसकी गहरी रुचि का पता चलता है। रॉबर्ट रैडफील्ड के अनुसार मलिनॉस्की की मानवीयता एक ओर उसे नृशास्त्र को विज्ञान के स्तर से उठाकर कला के स्तर तक ले जाने में मदद करती है। दूसरी ओर वह मानव-जीवन की संवेदनशील वास्तविकता को और विज्ञान के नीरस अमूर्तीकरण को मिलाने में भी सफल होता है। अब आपको निश्चय ही यह जानने की उत्सुकता होगी कि मलिनॉस्की ने अपने निबंध में क्या कहा था। इकाई के अगले भाग में उसके द्वारा बताए गए आदिम ज्ञान और जीवन के व्यावहारिक क्षेत्र में उसके अनुप्रयोग का संक्षिप्त विवरण दिया जायेगा। इसे उसने जीवन का लौकिक पक्ष (domain of the profane) कहा है।

इस बिंदु पर, सोचिए और करिए 1 को पूरा कीजिये।

सोचिए और करिए 1
भारतीय मिथकों (mythology) टोटम-निषेध के कई संदर्भ मिलते हैं। इस विषय में आप एक पृष्ठ की टिप्पणी (नोट) लिखिए, जिसमें पाँच टोटम-निषेधों (totem&taboos) की सूची हो और दो विशिष्ट समुदायों के संदर्भ में उनके महत्व का वर्णन हो।