WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

desmosomes in hindi डेस्मोसोम्स क्या है Hemidesmosomes हेमीडेसमोसोम्स प्लाज्मोडेस्मेटा (Plasmodesmata)

जाने desmosomes in hindi डेस्मोसोम्स क्या है Hemidesmosomes हेमीडेसमोसोम्स प्लाज्मोडेस्मेटा (Plasmodesmata) ?

प्लाज्मा झिल्ली की विशिष्टताएँ (Specializations of Plasma membrane ) — प्लाज्मा झिल्ली की सतह पर विभिन्न उपापचयी क्रियाएँ होती रहती हैं। किन्तु कुछ विशिष्ट कार्यों को सम्पन्न करने के लिए प्लाज्मा झिल्ली निम्न रूपों में रूपान्तरित हो जाती हैं—

(1) डेस्मोसोम्स Desmosomes) :

पास में स्थित दो कोशिकाओं की प्लाज्मा झिल्लियाँ एक-दूसरे से 110-150À चौड़े स्थान द्वारा अलग रहती हैं, जिसमें एक सीमेन्ट पदार्थ भरा रहता है। कुछ स्थानों पर इन दो कोशिकाओं की झिल्ली की आन्तरिक सतह पर स्थूलन पाये जाते हैं जिनसे बहुत सारे कोशिकाद ्य तन्तु निकलते हैं। इन तन्तुओं को टोनोफाइब्रिल्स कहते हैं (चित्र 2.17)। यह सम्पूर्ण टोनोफाइब्रिल्स युक्त स्थूलित संरचना डेस्मोसोम कहलाती है। टोनोफाइब्रिल्स का कार्य इस जंक्शन को तथा कोशिकाद्रव्यी संरचनाओं को सहारा प्रदान करना है। इसके अलावा डेस्मोसोम्स कोशिकाओं को आकार, दृढ़ता व सहारा प्रदान करते हैं। इस प्रकार के जंक्शन एपीथीलियम को बनाने वाली कोशिकाओं में पाये जाते हैं ।

(a) हेमीडेसमोसोम्स (Hemidesmosomes) :

ये एपीथीलियल कोशिकाओं की आधारीय सतह पर पाये जाते हैं। इनका आधा भाग डेस्मोसोम्स से तथा आधा भाग कोलाजन फाइब्रिल्स से बना होता है।

(b) टर्मिनल बार्स (Terminal bars) :

ये डेस्मोसोम्स के समान, टोनोफाइब्रिल्स रहित जंक्शन होते हैं। ये एक्टिन (Actin) व इन्टरमिडिएट फाइब्रिल्स के बने होते हैं ।

(2) प्लाज्मोडेस्मेटा (Plasmodesmata) :

दो कोशिकाओं की कोशिका भित्ति व प्लाज्मा झिल्ली के मध्य स्थित सेतु, जिसके कारण दो कोशिकाओं का कोशिका द्रव्य आपस में जुड़ा रहता है, प्लाज्मोडेस्मेटा कहलाता है।

(3) माइक्रोविलाई (Microvilli) :

जन्तुओं की आँतों (Intestine) में पायी जाने वाली एपीथीलियल कोशिकाओं की बाहरी सतह से बहुत सारे अंगुली सदृश्य कोशिकाद्रव्यी उभार उत्पन्न होते हैं जो कि प्लाज्मा कला द्वारा ढके रहते हैं, माइक्रोविलाई कहलाते हैं। ये 0.6 से 0.8 लम्बे होते हैं तथा इनका व्यास 100 mu होता है इनके मुख्य कार्य अवशोषण, स्त्रवण, रसायनों की पहचान व स्वाद की पहचान करना है। एक कोशिका की सतह पर लगभग 3000 माइक्रोविलाई हो सकती है।

(4) झिल्लियों की परस्पर क्रियाएँ (Interactions of membranes) :

विभिन्न कोशिकाओं की झिल्लियाँ अग्र प्रकारों से परस्पर क्रिया करती हैं-

(i) गेप जंक्शन (Gap Junction) :

जब पास में स्थित दो कोशिकाओं की प्लाज्मा कलाऍ एक-दूसरे के करीब हो किन्तु उनसे मध्य 3 mu चौड़ा स्थान हो, गेप जंक्शन कहलाता है। इस गेप द्वारा दो कोशिकाओं के मध्य आयन्स व कुछ अणुओं का आदान-प्रदान होता है ।

(ii) इन्टरडिजिटेशन व टाइट जंक्शन (Interdigitation and Tight Junctions) : दो कोशिकाओं की प्लाज्मा कलाओं से निकलने वाले अंगुली सदृश्य उभार इन्टरडिजिटेशन कहलाते हैं । किन्तु कभी-कभी ये कलाएँ आपस में इतनी करीब होती हैं कि इनके मध्य कोई नहीं बचता है, इन्हें टाइट जंक्शन कहते हैं जिनकी मोटाई 100 से 1404 तक हो सकती है।

(iii) सेप्टेट जंक्शन (Septate Junction) :

जब दो कोशिकाओं की प्लाज्मा कलाएँ एक-दूसरे से 150-225 A चौड़े खाली स्थान द्वारा अलग रहती हैं, जिनके मध्य कोई सीमेन्ट पदार्थ नहीं पाया जाता है, किन्तु ये आपस में अनुप्रस्थ व समानान्तर पटों द्वारा जुड़ी रहती हैं, जिन्हें सेप्टेट जंक्शन कहते हैं।

  1. जीवद्रव्य एवं कोशिकांग (Protoplasm and Cell Organelles सभी कोशिकाएँ जीवित पदार्थ से बनी होती हैं, जिसे जीवद्रव्य (Protoplasm) कहते हैं। हक्सले (Huxley) ने इसे जीवन का भौतिक आधार (Physical basis of life) माना। जे.ई. पुरकिन्जे तथा एच. वॉन मोल [J.E. Purkinje, (1840) and H. Von Mohl (1846) ] ने इसे प्रोटोप्लाज्म (Protoplasm) नाम दिया तथा इसे समांगी (Homogeneous ), जेलीनुमा (Gelatinous), श्लेषी पदार्थ बताया। सन् 1861 में शुल्ट्ज (Schultz) ने पादप व जन्तु कोशिकाओं में पाये जाने वाले जीवद्रव्य में समानता बतायी तथा जीवद्रव्य सिद्धान्त (Protoplasm theory) प्रतिपादित किया, जिसके अनुसार कोशिकायें आवश्यक रूप से एक जीवित पदार्थ द्वारा निर्मित होती है, जिसमें केन्द्रक पाया जाता है, यह चारों ओर से जीवद्रव्य झिल्ली (Plasma membrane) द्वारा घिरा रहता है। इसमें से यदि सभी अन्तःकोशिकीय समावेशन (inclusions) तथा अंगकों (Orgahelles) को निकाल दिया जाये तो यह हायर्लोप्लाज्म (Hyaloplasm) कहलाता । इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा इसका विस्तार से अध्ययन सम्भव हो पाया है।
  2. जीवद्रव्य की भौतिक प्रकृति (Physical Nature of Protoplasm)

भौतिक रूप से जीवद्रव्य एक कलिल तंत्र (Colloidal System) है। इसमें अधिक मात्रा में जल पाया जाता है, जिसमें विभिन्न पदार्थ, जैसे- ग्लूकोज, वसा, अम्ल, अमीनो अम्ल, खनिज, विटामिन्स, हार्मोन, एन्जाइम इत्यादि पाये जाते हैं। जल में घुलित पदार्थ इसे समांगी (Homogeneous) व अघुलित पदार्थ इसे असमांगी (Heterogeneous) बनाते हैं। इसकी भौतिक प्रकृति के बारे में विभिन्न वैज्ञानिकों ने अपने-अपने मत दिये, वे निम्नानुसार हैं-

  1. दानेदार सिद्धान्त (Granular Theory ) – इस सिद्धान्त को आल्टमेन (Altmann, 1893) ने दिया। इसके अनुसार जीवद्रव्य दानेदार (Granular ) होता है।
  2. कूपिका सिद्धान्त (Alveolar Theory ) – बुटचली (Butchlli, 1892) के अनुसार जीवद्रव्य एक पायस (Emulsion) है जिसमें छोटी बूँदें, बुलबुले तथा कूपिकाएँ ( Alveoli) बिखरे रहते हैं।
  3. तन्तुमय सिद्धान्त (Fibrillar Theory ) – इस सिद्धान्त को फ्लेमिंग (Flemming) ने दिया। इसके अनुसार जीवद्रव्य तन्तुओं का बना होता है जिन्हें मिटोम (Mitome) कहते हैं मिटोम प्रोटीन के बने होते हैं ये पैरामिटोम (Paramitome ) या हायलोप्लाज्म (Hyaloplasm) में धँसे रहते हैं।
  4. जालिका सिद्धान्त (Reticulate Theory ) – इस सिद्धान्त को क्लीन (Klein) एवं कोरनॉय (Cornoy) ने दिया। इसके अनुसार जीवद्रव्य जालिकामय (Reticulate) होता है । (चित्र 2.18)

क्योंकि जीवद्रव्य एक कोलायडी माध्यम (Colloidal medium) है अत: इसमें से विलायक (Solvent) व विलेय (Solutes) के कणों को अलग-अलग नहीं किया जा सकता। यह बहुकलीय (Polyphasic) तथा असमांगी (Heterogeneous) होता है। इसमें विलायक सतत् कला (Continuous phase) कहलाता है तथा विभिन्न विलेय पदार्थ (Solutes), जैसे- वसा गोलिकायें, मंडकण वर्णक, प्रोटीन आदि परिक्षिप्त प्रावस्था (disperse phase) कहलाते हैं। प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट विलेय निलम्बन (Suspension) बनाते हैं तथा वसा के कण पायस (Emulsion) बनाते हैं ।

जीवद्रव्यी कोलायडी माध्यम दो अवस्थाओं में रहता है-

  1. जैल (Gel) – इसमें बहुत सारे कण अर्द्ध ठोस अवस्था या जैली जैसी अवस्था में निलम्बित रहते हैं। इसमें विलेय की मात्रा विलायक से बहुत अधिक होती है । इस अवस्था रासायनिक बन्धों द्वारा जुड़े रहते हैं । जैल अवस्था और अधिक द्रव अवस्था में परिवर्तित हो सकती हैं। अणु परस्पर यह क्रिया सॉलेशन (Solation) कहलाती है ।
  2. सॉल (Sol) — यह जीवद्रव्य का अधिक तरल रूप है। इसमें विलायक की मात्रा विलंब से अधिक होती है। यह जलस्नेही (Hydrophilic ) या जलविरोधी (Hydrophobic) हो सकता है। कोलायडी जीवद्रव्य की जैल तथा सॉल अवस्थाएँ एक-दूसरे में परिवर्तित हो सकती हैं ।

इसके अलावा भी जीवद्रव्य के अन्य भौतिक लक्षण होते हैं, जैसे-

(1) प्रत्यास्थता (Elasticity)

इस गुण के कारण जीवद्रव्य प्रसारित होकर पुनः अपना मूल आकार ग्रहण कर लेता है ।

(2) तनन सामर्थ्य (Tensile strength)

जीवद्रव्य में लम्बाई में खिंचने की सामर्थ्य होती है ।

(3) संसंजनता तथा श्यानता (Cohesiveness and Viscosity)

संसंजनता गुण के कारण जीवद्रव्य को श्यानता का गुण प्राप्त होता है। श्यानता के बढ़ने से जीवद्रव्य में उपापचयी क्रियाओं में कमी आती है । जीवद्रव्य में होने वाली ब्राऊनियन गति (Brownian movement), अमीबीय गति ( Amoeboid movement) तथा जीवद्रव्य भ्रमण ( Cyclosis) श्यानता के कारण ही होती है।

अतः भौतिक रूप से जीवद्रव्य एक रंगहीन, अर्धपारदर्शी (Transluscent ), श्लेषी (Gelatinous),अर्धतरल पदार्थ है जो कि जल से भारी होता है तथा जिसमें विभिन्न पदार्थों के अणु निलम्बित रहते हैं । इसमें विभिन्न परिवर्तन होते रहते है ।

जीवद्रव्य की गतियाँ (Movements of Protoplasm)

  1. ब्राउनियन गति-जब जीवद्रव्य सॉल (sol) अवस्था में होता है तो इसमें निलम्बित कणों पर एक ही विद्युत आवेश होने के कारण ये एक-दूसरे से दूर हटते रहते हैं और परस्पर टकरा- टकरा कर तेजी से इधर-उधर भागते रहते हैं। इनकी गति Zig Zag रूप में होती है। इसे ब्राउनियन गति कहते हैं। सर्वप्रथम इस गति का प्रदर्शन रॉबर्ट ब्राउन ने सन् (1827) में किया था। जैल अवस्था में ऐसी गति नहीं होती, क्योंकि कणों पर विपरीत विद्युत आवेश होने के कारण वे आपस में जुड़ने लगते हैं तथा श्यानता बढ़ती जाती है ( चित्र 2.19 ) ।
  2. अमीबीय गति यह गति जीवद्रव्य से बनने वाले कूटपादों (Pseudopodia) द्वारा होती है। उदाहरण श्वेत रक्त कणिकाओं में होने वाली गति ।
  3. जीवद्रव्य भ्रमण – जीवद्रव्य का कोशिका भित्ति के अन्दर चक्कर लगाना जीवद्रव्य भ्रमण कहलाता है । यह दो प्रकार का होता है-

(i) घूर्णन (Rotation)—जब जीवद्रव्य रसधानी (Vacuole ) के चारों ओर दक्षिणावर्त (Clockwise) या वामावर्त (Anticlockwise) रूप में चक्कर लगाता है, घूर्णन (Rotation) कहलाता है। उदाहरण पैरामिशियम की कोशिका में होने वाली गति या हाइड्रिला की पत्ती की कोशिकाओं में होने वाली गति ।

(ii) परिसंचरण (Circulation ) – जब जीवद्रव्य रसधानी (Vacuole ) के चारों ओर विभिन्न घूमता है। उदाहरण ट्रेडेस्केशिया (Tradescantia spp.) के पुंकेसरीय रोम कोशिका में होने दिशाओं में वाली गति ।

  1. जीवद्रव्य की रासायनिक प्रकृति (Chemical Nature of Protoplasm )

क्योंकि सभी जीवित कोशिकाओं में निरन्तर विभिन्न प्रकार की रासायनिक व भौतिक क्रियाएँ चलती रहती हैं, जिनके अन्तर्गत अधिक ऊर्जा युक्त विशाल अणुओं का निर्माण एवम् उनका विघटन होता रहता है, अतः जीवद्रव्य का रासायनिक संघटन निरन्तर परिवर्तनशील रहता है

लगभग 20 तत्व सभी जीवों के जीवद्रव्य में आवश्यक रूप से पाये जाते हैं । जिन्हें उनकी निश्चित मात्रा व आवश्यकता के अनुसार तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है- (1) मुख्य तत्त्व, (2) दुर्लभ तत्व, (3) अति दुर्लभ तत्व । इनमें से 10 तत्व, जैसे -C. H.N, O, Na. Mg, P. S, Ca, K आवश्यक रूप से सभी जीवों की कोशिकाओं के प्रमुख घटक हैं तथा जीवद्रव्य में इन तत्वों की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। इनके अतिरिक्त कुछ तत्व, जैसे-Fe, Cu, Mn, Zn. B. Mo. CI. I जीवद्रव्य में सूक्ष्म मात्रा में पाये जाते हैं, इनकी मात्रा 1 प्रतिशत से भी कम होती है। ये तत्व विभिन्न प्रकार की उपापचयी क्रियाओं के लिए आवश्यक होते हैं। ये तत्व कई जीवों की कोशिकाओं के आवश्यक घटक है शेष तत्व जैसे-Si, V, Co आदि कुछ विशिष्ट जीवों के जीवद्रव्य में पाये जाते हैं। ये सभी तत्व जीवद्रव्य में स्वतन्त्र रूप से नहीं पाये जाते हैं। ये विभिन्न प्रकार के यौगिकों के मुख्य घटक होते हैं, उदाहरणार्थ-फोस्फोरस (P) ए.टी.पी., डी.एन.ए. तथा आर.एन.ए. का मुख्य घटक है। जीवद्रव्य के रासायनिक विश्लेषण में पाये जाने वाले विभिन्न यौगिकों को मुख्य रूप से दो समूहों में बाँटा जा सकता है ।

(1) अकार्बनिक यौगिक ( 2 ) कार्बनिक यौगिक ।

(1) अकार्बनिक यौगिक जीवद्रव्य में उपस्थित जल, लवण व गैसें मुख्यतः अकार्बनिक यौगिक हैं। अकार्बनिक घटकों में से जल एक महत्त्वपूर्ण तथा सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला यौगिक है। कोशिकाओं में लगभग 85 प्रतिशत से 90 प्रतिशत जल रस (Sap) रिक्तिकाओं (Vacncies हायलोप्लाज्म (Hyaloplasm) में पाया जाता है। इसके मुख्य कार्य निम्न हैं-

(i) विभिन्न रासायनिक क्रियाओं के लिए माध्यम का कार्य करना अथवा उचित माध्यम तैयार करना ।

(ii) यह यौगिक एक महत्त्वपूर्ण विलायक की तरह कार्य करता है। अतः विभिन्न पदार्थों के संवहन में सहायक होता है।

(iii) जीवद्रव्य में Ht (ions) तथा OH (ions) की आपेक्षिक सान्द्रता को नियन्त्रित रखता है। लवण जीवद्रव्य में विभिन्न प्रकार के खनिज लवण धनात्मक तथा ऋणात्मक (-) आयनों, जैसे – Na+, K+, Ca++, Mg++ व HCO3 , PO4, SO4, CO3, आदि के रूप में पाये जाते हैं। जीवद्रव्य में लवणों की उचित मात्रा, कोशिकाओं की क्रियाशीलता के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है ।

गैसें जीवद्रव्य में मुख्य रूप से ऑक्सीजन व कार्बन डाइ ऑक्साइड गैसें पायी जाती हैं।

(2) कार्बनिक यौगिक कार्बनिक यौगिकों में से मुख्य रूप से निम्न चार प्रकार के यौगिक सभी कोशिकाओं में पाये जाते हैं। ये यौगिक ही जीवद्रव्य का संरचनात्मक व कार्यात्मक आधार बनाते हैं।

प्रोटीन जीवद्रव्य का लगभग 45 प्रतिशत भाग प्रोटीन द्वारा बना होता है प्रोटीन झिल्लियों, हायलोप्लाज्म तथा विकरों आदि में पेप्टाइड श्रृंखलाओं के रूप में होते हैं। प्रत्येक पॉली पेप्टाइड श्रृंखला अमीनों अम्लों की बहुलक होती है।

लिपिड – वसा अम्ल व उनसे बने यौगिक जीवद्रव्य का लगभग 25 प्रतिशत भाग बनाते हैं अधिकतर रिक्तिओं कोशिका भित्ति तथा हायलोप्लाज्म के मुख्य घटक हैं।

न्यूक्लिक अम्ल-ये यौगिक वृहद् अणुओं के रूप में पाये जाते हैं। कोशिका में दो न्यूक्लिक अम्ल पाये जाते हैं जिनका निर्माण चार प्रकार की न्यूक्लिओटोइड्स से होता है। ये प्रकार मुख्य से केन्द्रक में तथा कोशिकांगों, जैसे- माइटोकॉन्ड्रिया तथा क्लोरोप्लास्ट आदि में पाये जाते हैं। ये जीव का लगभग 1-2 प्रतिशत भाग बनाते हैं।

विभिन्न प्रकार के कार्बनिक पदार्थ कोशिका निर्माण, उसकी क्रियाशीलता व कोशिका में वाली विभिन्न उपापचयी क्रियाओं के लिए अति आवश्यक यौगिक होते हैं।

अन्य पदार्थ – उपरोक्त यौगिकों के अतिरिक्त जीवद्रव्य में लगभग 5 प्रतिशत मात्रा में: पदार्थ रिक्तिकाओं, हायलोप्लाज्म तथा विकरों में सहकारकों (Cofacters) के रूप में पाये जाते हैं। से कुछ निम्नानुसार हैं-

(a) ट्रेटापाइरॉल (Tetrapyrroles ) – ये वलयरूपी या श्रृंखलायुक्त रंगीन यौगिक होते हैं. प्रत्येक वलय पाँच कार्बन परमाणु तथा एक नाइट्रोजन का बना होता है। विभिन्न प्रकार के पादप वर्ण जैसे – लाल, पीले व हरे इसी प्रकार के यौगिकों के उदाहरण हैं। क्लोरोफिल (हरा वर्णक) के ट्रेटापाइल वलय के केन्द्र में मैग्नीशियम धातु का एक-एक परमाणु होता है। पीले नारंगी वर्णक कैरोटीन (Caolly )में कार्बन वलय कार्बन शृंखला के दो सिरों पर स्थित होता है। कैरोटीन जल की उपस्थिति में दो अणुओं में टूटकर विटामिन-ए बनाता है। जेन्थोफिल-पीले रंग का वर्णक (C40 H56 O2) पौधों की पत्तियों फूल, फल आदि में पाये जाने वाले आइसोप्रीनोइड ( Isoprenoid) यौगिक है । इसी प्रकार साइटोक्रोम् में भी चार पाइरोल वलय संयोग करके एक बड़ी वलय बनाते हैं और इसके केन्द्र में परमाणु होता है। ये इलेक्ट्रोन ट्रांसफर सिस्टम में भाग लेते हैं ।

उपरोक्त पदार्थों के अतिरिक्त जीवद्रव्य अधिकतर क्षारीय प्रकृति का होता है। सामान्यतः इस PH का मान 5.2 से 8.5 के बीच रहता है। यह तनु क्षार व तनु अम्लों में विलय हो जाता है, क सान्द्र अम्ल व क्षार से क्रिया करके ठोस हो जाता है ।