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प्लाज्मा झिल्ली का तरल मोजेक मॉडल fluid mosaic model of cell membrane in hindi का नामांकित चित्र बनाइए

जानिये प्लाज्मा झिल्ली का तरल मोजेक मॉडल fluid mosaic model of cell membrane in hindi का नामांकित चित्र बनाइए ?

मिसेली सिद्धान्त (Micellar Theory) :

इस सिद्धान्त को हिलेर तथा हॉफमैन (Hilleir & Hoffmann 1953) ने प्रतिपादित किया। इस सिद्धान्त के अनुसार प्लाज्माकला गोलाकार उपइकाइयों (Sub-units) या मिसेली के मोजेक फैशन में विन्यास से बनती हैं। जब वसा अम्ल अणु पूर्ण रूप जल द्वारा घिर जाते हैं तो संगठित होकर मिसेली (micelles) कहलाते हैं। इस उपइकाई का व्यास लगभग 40 À से 70 A होता है तथा इसमें वसा अम्ल अणुओं के ध्रुवीय शीर्ष (head) गोले की परिधी ( Periphery ) की ओर तथा अध्रुवीय पुच्छ केन्द्र की तरफ जल से दूर होते हैं। झिल्ली में पाया जाने वाला प्रोटीन घटक लिपिड मिसेली के प्रत्येक एकल स्तर (monolayer) के रूप में पाया जाता है। मिसेली के बीच के अवकाश छिद्र कहलाते हैं। जिनका व्यास 4 A होता है तथा इनमें जल भरा रहता है। ये छिद्र आंशिक रूप से लिपिड के ध्रुवी शीर्ष (Polar-head) और आंशिक रूप से प्रोटीन के ध्रुवीय सिरों से घिरे रहते हैं [ चित्र 2.10 A व B ] इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा विभिन्न कलाओं के अध्ययन से ज्ञात होता है कि कलाएँ लैमिलर या मिसेल कोई भी प्रकार की हो सकती हैं। ये आपस में रूपान्तरित हो सकती हैं जिसकी मोटाई लगभग 7.5 से 10.0nm होती है ( चित्र 2.10 – A ) ।

इकाई कला मॉडल (Unit membrane model) :

रॉबर्टसन (Robertson, 1959) ने इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा विभिन्न प्लाज्मा कलाओं का अध्ययन कर यह परिणाम निकाला कि प्लाज्मा कला एक त्रिस्तरीय (Trilaminar) संरचना है जिसमें दो बाहरी परतें 2.0 से 2.5 nm मोटी होती है तथा ये सघन, ऑस्मोफिलिक प्रोटीन से बनी परतें होती हैं । इनके मध्य हल्के रंग की 3.5 से 5.0nm मोटी लिपिड परत पायी जाती हैं जो कि ऑस्मोफोबिक होती है। रॉबर्टसन ने यह भी बताया कि कला में संरचनात्मक ध्रुवीयता पायी जाती है। कला की बाहरी सतह म्यूकोप्रोटीन (mucoprotein) द्वारा घिरी रहती है जबकि अन्दर वाली सतह पर असंयोजक (unconjugated) प्रोटीन पायी जाती है। सभी जीवों की कोशिकाओं में पायी जाने वाली प्लाज्मा कला तथा विभिन्न कोशिकांगों को घेरने वाली कलाओं में प्लाज्मा कला का त्रिस्तरीय स्वरूप दिखाई देता है। रॉबर्टसन ने इसे इकाई कला सिद्धान्त कहा ( चित्र 2.11 ) ।

तरल मोजेक मॉडल (Fluid Mosaic Model) :

इस मॉडल को एस.जे. सिंगर तथा जी. निकोल्सन (S.J. Singer and G. Nicholson, 1972) ने दिया। प्लाज्मा कला की इस संरचना को बहुत लोगों ने स्वीकार किया है। इस मॉडल के अनुसार जैविक कलाएँ अर्धतरल (Semifluid) संरचनाएँ हैं। इसमें लिपिड अणु द्विपरतों में व्यवस्थित रहते हैं तथा प्रोटीन अणु अलग-अलग रूप से धँसे रहते हैं। सिंगर के अनुसार प्रोटीन दो प्रकार के होते हैं- (1) आन्तरिक प्रोटीन (Intrinsic protein) तथा (2) बाह्य प्रोटीन (extrinsic protein) । लिपिड द्विपरत तथा आन्तरिक प्रोटीन (Intrinsic protein) मोजेक फैशन में व्यवस्थित होकर प्लाज्माकला का संरचनात्मक ढाँचा (Structural framework) बनाती हैं ( चित्र 2.12, 2. 13 ) । ये आन्तरिक प्रोटीन एक सतत् लिपिड द्विपरत में आंशिक या पूर्णरूप से अन्तर्विष्ट रहती हैं। इनके अध्रुवीय (non-polar) समूह लिपिड के बीच में तथा ध्रुवीय (polar) समूह कला की सतह के बाहर निकले रहते हैं। बाह्य प्रोटीन (extrinsic protein) कला की सतह पर पायी जाती हैं। आन्तरिक प्रोटीन के ध्रुवीय सिरे बाहर होने के कारण ही विभिन्न एन्जाइमों तथा एन्टीजेनिक ग्लाइकोप्रोटीन (antigenic glycoprotein) के सक्रिय स्थल प्लाज्मा कला की सतह पर होते हैं। प्लाज्मा कला का अर्धतरल रूप होने के कारण ही लिपिड एवं छोटे आकार के प्रोटीन, द्विपरत के अन्दर ही अन्दर गति क्षम्य बने रहते हैं । विलगित लाल रक्ताणु कोशिकाओं में 8.0nm व्यास वाले आन्तरिक प्रोटीन कण की उपस्थिति तथा अन्य कोशिका कलाओं के फ्रीज काट ” तरल मोजेक मॉडल” की पुष्टि करते हैं (चित्र 2.13 ) ।

प्लाज्मा कला के गुण (Properties of plasma membrane) :

  1. पारगम्यता (Permeability) :

है । यह कोशिका के अन्दर तथा कोशिका से बाहर पदार्थों के प्रवाह को नियन्त्रित करती है। इसके. चयनात्मक पारगम्यता (Selective permeability) प्लाज्मा कला का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण अलावा कोशिका द्रव्य में घुलनशील पदार्थों की सान्द्रता में भिन्नता बनाये रखती है। इसमें पाये जाने वाले छिद्र ही विभिन्न पदार्थों के आवागमन का नियमन करते हैं। कुछ कम अणुभार वाले पदार्थ तथा ऑक्सीजन, कार्बनडाइऑक्साइड व जल इसमें से आसानी से गुजर सकते हैं। किन्तु अन्य पदार्थ जैसे- सोडियम ऑयन, प्रोटीन तथा पॉलीसेकैहरॉइड्स अधिक कठिनाई से गुजर पाते हैं । कला की पारगम्यता पोटेशियम ऑयन (K+) की सान्द्रता में परिवर्तन के साथ बदलती रहती है। इसके अलावा विसरित होने वाले अणुओं का आकार, उनकी लिपिड में विलेयता, कोशिका बाहर व अन्दर उनका सान्द्रण तथा विसरित कणों के विद्युत आवेश सभी पारगम्यता को प्रभावित करते हैं। प्लाज्मा कला के द्वारा कोशिका में विभिन्न पदार्थों का अवग्रहण (intake) निम्न क्रियाओं द्वारा होता है ।

  1. परासरण (Osmosis) :

प्लाज्मा झिल्ली एक अर्धपारगम्य झिल्ली (Semipermeable membrane) है जो कि उच्च सान्द्रता वाले तथा निम्न सान्द्रता वाले घोलों को पृथक् करती है । यह परासरण की क्रिया द्वारा कोशिका में पाये जाने वाले पदार्थों को बाहर विसरित ( diffuse) नहीं होने देती । परासरण की क्रिया में जल या विलायक के अणु, अर्धपारगम्य झिल्ली द्वारा अपनी उच्च सान्द्रता से निम्न सान्द्रता की ओर गमन करते हैं। कोशिका में कोशिका द्रव्य का सान्द्रण, बाहर के माध्यम की अपेक्षा अधिक होता है जिससे जल कोशिका के अन्दर प्रविष्ट होता है । इसे अन्त: परासरण (endosmosis) कहते हैं तथा जल का कोशिका से बाहर आना बाह्य परासरण ( Exosmosis) कहलाता है ।

III. निष्क्रिय अभिगमन या विसरण (Passive transport or diffusion) :

जब विभिन्न पदार्थों के अणु प्लाज्मा कला से बिना ऊर्जा का उपयोग किये विसरित हो जाते हैं तो यह निष्क्रिय अभिगमन ( Passive transport) कहलाता है। जैसा कि हमें ज्ञात है कि प्लाज्मा कला में लगभग 7 A-10 A व्यास वाले असंख्य छिद्र पाये जाते हैं जिन पर धनात्मक या ऋणात्मक आवेश होता है। ये कपाटों की तरह कार्य करते हैं। आयन तथा अणु अपनी गतिज ऊर्जा के कारण लगातार कोशिका के बाहर या अन्दर आपस में या कला पर टक्कर मारते रहते हैं। जब यह टक्कर कला में उपस्थित छिद्र पर होती है तो यह छिद्र द्वारा कला के दूसरी तरफ आ जाते हैं । ताप के साथ बढ़ने वाली यह अनियन्त्रित गति आयनों या अणुओं की अधिक सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर होती है । इसे विसरण कहते हैं (चित्र 2.14)।

  1. सुगमित परिवहन (Facilitated transport) :

इस प्रकार के अभिगमन में भी ऊर्जा का उपयोग नहीं होता है तथा इसमें भी अणु अधिक सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर गमन करते हैं । किन्तु यह साधारण विसरण से अलग क्रिया होती है, क्योंकि इसमें कार्बनिक पदार्थों के बड़े अणुओं को कुछ विशिष्ट वाहक या सहायक ले जाते हैं । ये विशिष्ट वाहक प्रोटीन होते हैं जिन्हें परमीएजेज (Permeases) कहते हैं। इस प्रकार का विसरण उच्च वरणात्मक (highly selective) होता है। विशिष्ट वाहक प्रोटीन (Specific carrier protein) पार जाने वाले बड़े अणुओं के साथ शिथिल बंधों द्वारा जुड़कर इनके साथ ही कला के चयनात्मक चैनल मार्ग से दूसरी ओर पहुँच जाते हैं।

  1. सक्रिय परिवहन (Active transport) :

सक्रिय परिवहन में निष्क्रिय परिवहन के विपरीत अणुओं या आयनों की गति कम सान्द्रता वाले क्षेत्र से अधिक सान्द्रता वाले क्षेत्र में या सान्द्रण प्रवणता (Concentration gradient) के विपरीत दिशा में होती है। प्लाज्माकला के आर-पार आयनों के इस प्रकार के वितरण में ऊर्जा व्यय होती है जो ए.टी.पी. ) के अपघटन (hydrolysis) से प्राप्त होती है। आयनों के परिवहन के लिए विशिष्ट पम्प पाये हैं, जैसे-Na’ और K’ विनिमय पम्प – यह Na’ आयनों को कोशिका से बाहर जाने और K’ आयनों को कोशिका के अन्दर आने देता है। इस पम्प के लिए ऊर्जा ए.टी.पी. से प्राप्त होती है। Na’ आयनों का बहि:स्राव और K” आयनों का अन्तर्वाह आपस में दृढ़ता के साथ जुड़े रहते हैं। इसलिए यदि बाहरी वातावरण से K’ आयनों को निकाल दिया जाए तो Na’ आयनों का बहि:स्राव भी कम हो जाता है (चित्र 2.15 ) ।

सक्रिय परिवहन की क्रियाविधि (Mechanism of active transport Nat-K’ AT Pase) :

सक्रिय परिवहन में कला में पाई जाने वाली वाहक प्रोटीन सहायता करती है। Na’ आयन वाहक प्रोटीन के बन्धन स्थल (binding site) पर जुड़ जाता है, जिससे ATPase एन्जाइम सक्रिय हो जाता है तथा ATP का अपघटन हो जाता है। इससे प्राप्त फॉस्फेट ग्रुप प्रोटीन पर स्थानान्तरित हो जाता है, जिससे वाहक प्रोटीन के आकार में परिवर्तन आ जाता है। परिणामस्वरूप Nat स्थल कला के दूसरी ओर पहुँच जाता है और K स्थल कला के बाहर आ जाता है। इसके बाद प्रोटीन K आयन को ग्रहण कर लेता है। इसी के साथ फॉस्फेट ग्रुप भी प्रोटीन से निकल जाता है और प्रोटीन पुनः अपना प्रारम्भिक आकार ले लेती है। इससे K आयन कोशिका के बाहर से कोशिका के अन्दर पहुँच जाता है तथा वाहक प्रोटीन फिर से Na+-K+ स्थानान्तरण के लिए स्वतन्त्र हो जाती है।

  1. कोशिकाशन (Phagocytosis) :

किसी कोशिका में प्लाज्मा कला द्वारा ठोस पदार्थों का सीधा भक्षण कोशिकाशन (Phagocytosis) कहलाता है। इस क्रिया में जिन पदार्थों के कणों का भक्षण करना होता है, वे सबसे पहले प्लाज्मा झिल्ली की सतह पर अवशोषित हो जाते हैं। फिर इन कणों के चारों ओर कूटपाद या अन्तर्वेशन द्वारा रिक्तिकाएँ बन जाती हैं। प्रत्येक रिक्तिका फेगोसोम (Phagosome) कहलाती हैं, जो कि कोशिका द्रव्य द्वारा ग्रहण कर ली जाती है। कोशिका में फेगोसोम लाइसोसोम से मिल जाते हैं तथा इनका पाचन हो जाता है। अपचित अवशेष प्लाज्माकला द्वारा बाहर छोड़ दिये जाते हैं जिसे बहि:क्षेपण (Egestion) कहते हैं। उदाहरण- श्वेत रक्त कणिकाओं द्वारा जीवाणुओं का भक्षण ( चित्र 2.16A ) ।

VII. कोशिका पायन (Pinocytosis) :

इस क्रिया में प्लाज्मा कला द्वारा तरल पदार्थों को अन्तर्ग्रहण किया जाता है। इस क्रिया द्वारा अधिक आणविक भार वाले प्रोटीन जैसे राइबोन्यूक्लीऐज (ribonuclease ) द्रव रूप में प्लाज्मा कला द्वारा कोशिका में प्रवेश करते हैं। इसमें प्लाज्मा कला सूक्ष्मधानियाँ (microvacuoles) या अन्तर्वेशन (invaginations) बनाती हैं जिसमें तरल पदार्थ होते हैं । इन्हें पिनोसोम्स (Pinosomes ) कहते हैं । इनका भी कोशिका के अन्दर लाइसोसोम द्वारा पाचन हो जाता है (चित्र 2.16B ) ।

VIII. कोशिकांगों का जीवात् जनन ( Biogenesis of cell organelles) :

विभिन्न कोशिकांगों जैसे अन्तःप्रद्रव्यी जालिका, केन्द्रक झिल्ली, माइटोकॉण्ड्रिया, गॉल्जी काम्पलेक्स आदि का जीवात् जनन (Biogenesis) प्लाज्मा कला द्वारा ही किया जाता है।

  1. ऑक्सीडेटिव फॉस्फोराइलेशन :

माइटोकॉण्ड्रिया की आन्तरिक कला एवं प्रोकैरिओट्स की कोशिकाओं में प्लाज्मा कला पर आक्सीडेटिव फोस्फोराइलेशन हेतु इलेक्ट्रॉन अभिगमन तंत्र (Electron transport system) पाया जाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के एन्जाइम्स भी पाये जाते हैं ।

  1. यांत्रिक आधार व सुरक्षा (Mechanical support and protection) :

प्लाज्मा कला कोशिका को निश्चित आकृति प्रदान करती है तथा कोशिकीय अवयवों की बाह्य क्षति से रक्षा भी करती है । इसके द्वारा कोशिका के विभिन्न अंगक पृथक्-पृथक् रहकर अपना-अपना कार्य करते हैं ।

  1. पुनरुद्भवन एवं मरम्मत ( Regeneration & repair) :

पुनरुद्भवन एवं कोशिका की मरम्मत में सक्रिय योगदान देना, प्लाज्मा कला का मुख्य लक्षण उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्लाज्मा कला विभिन्न महत्त्वपूर्ण कार्यों का सम्पन्न करती है। यह कोशिका में अर्धपारगम्यता (semi-permeability), पुन: शोषण ( resorption). उत्सर्जन (Excretion) एवं स्त्रवण (secretion) क्रियाओं पर नियन्त्रण करती है। पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति का निर्माण भी इन क्रियाओं पर आधारित है। यह कोशिका के अन्दर आने वाले तथा उससे बाहर जाने वाले पदार्थों के लिए एक वरणात्मक मार्ग (selective path) का कार्य करती है। कोशिका के आकार व सक्रियता पर नियन्त्रण रखना, उसे सुरक्षा प्रदान करना व उसके चारों ओर के वातावरण के बीच पारस्परिक सम्बन्ध बनाये रखना आदि इसके प्रमुख कार्य हैं ।