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mitochondria in hindi माइटोकॉन्ड्रिया की खोज किसने और कब की थी किसे कहते हैं की संरचना का वर्णन कीजिए

पढो mitochondria in hindi माइटोकॉन्ड्रिया की खोज किसने और कब की थी किसे कहते हैं की संरचना का वर्णन कीजिए ?

कोशिकांगों की संरचना एवं कार्य (Structure & functions of cell organelles )

  1. माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria)

यूकैरिओटिक कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में बिखरे हुए, अतिआवश्यक धागेनुमा अथव कणिकामय अंगक माइटोकॉन्ड्रीया (Mitochondria ) कहलाते हैं । माइटोकॉन्ड्रीया ग्रीक शब्द है | G Mito.-Thread (घागा), chondrion-granule (कणिका)] । कोशिका का सम्पूर्ण माइटोकॉन्ड्रीयर समूह विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे- कॉन्ड्रीयोसोम्स ( Chondriosomes), प्लास्टोसोम (Plastosomes), प्लास्टोकॉन्ड्रीया ( Plastochondria), प्लास्टोकोन्ट्स (Plastoconts), मायोकॉन्ड्रीय (Myochondria), तथा कॉन्ड्रीयोप्लास्ट्स (Chondrioplasts) आदि । कार्यिकीय (Physiologically दृष्टि से इन्हें कोशिका का ऊर्जा ग्रह (Power house) कहा जाता है, क्योंकि ये ऐसी जैव-रासायनि‍ मशीनें हैं जिनमें ऑक्सीकरण की क्रिया के द्वारा खाद्य पदार्थों (Food stuffs ) में निहित ऊर्जा एडीनोसीन- ट्राइ-फॉस्फेट (ATP) के रूप में बदलती रहती है, जिसका उपयोग कोशिका अपनी समस्त जैकि क्रियाओं को सम्पन्न करने में करती है। अतः माइटोकॉन्ड्रीया का मुख्य कार्य ऑक्सीडेटिव-फॉस्फोराइलेश (Oxidative-Phosphorylation) है, जो कि क्रैब्स चक्र (Krebs Cycle) तथा इलेक्ट्रॉन ट्रांसफर त (ETS) द्वारा सम्पन्न होता है तथा ऊर्जा ATP के रूप में संश्लेषित होती रहती है ।

ये कोशिकांग लाल रक्त कोशिकाओं (RBC) को छोड़कर सभी यूकैरिओट्स में पाये जाते हैं । किन्तु प्रोकैरिओट्स (जीवाणु तथा नीले-हरे शैवालों) में अनुपस्थित होते हैं। इसलिए इनमें खाद्य पदार्थो का ऑक्सीकरण प्लाज्मा झिल्ली में उपस्थित एन्जाइम ( enzymes ) अथवा मीजोसोम्स (mesosomes)में पाये जाने वाले एन्जाइम द्वारा होता हैं ।

संक्षिप्त इतिहास (Brief history )

कोलिकर (Kolliker, 1880) ने सर्वप्रथम इन कोशिकागों को कीटों की माँस पेशीय कोशिकाओं में देखा तथा ‘सारकोसोम्स’ (sarcosomes) कहा। फ्लेमिंग (Flemming, 1882) ने इन्हें तन्तु बताया । ऑल्टमैन (Altmann, 1894) ने ‘बायोप्लास्ट’ (Bioplast) नाम दिया। इसके बाद सन् 1898 में बेन्डा (Benda) ने इन्हें सर्वप्रथम एलिजेरिन (alizarin) तथा क्रिस्टलवॉयलेट (crystal violet) द्वारा अभिरंजित किया एवं इन धागेनुमा कणिकाओं को ‘माइटोकॉन्ड्रीया’ (Mitochondria) नाम दिया। इसके अलावा इन अंगको के कोशिकीय श्वसन से सम्बन्धित होने की सम्भावना भी जाहिर की। वारबर्ग (Warburg, 1913) ने इनमें श्वसन एन्जाइम की खोज की। सन् 1948 में हॉजबूम व अन्यों (Hogeboom et al.) ने अपने अध्ययनों के आधार पर इस बात की पुष्टि की कि, माइटोकॉन्ड्रिया ही कोशिकीय श्वसन के स्थल है। लेहनिनजर तथा कैनेडी (Lehninger & Kennedy, 1950) ने स्पष्ट किया कि ये कोशिकांग ही सिट्रिक एसिड साइकल (citric acid cycle), फैटी एसिड-ऑक्सीडेशन (fatty acid-oxidation) तथा फॉस्फोराइलेशन (Phosphorylation) की समस्त अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं। नास (Nass) ने सन् 1963 में इन अंगकों में DNA अणु की उपस्थिति बतायी। जिसे माइटोकॉन्ड्रीयल DNA (m-DNA) कहा गया। m-DNA केन्द्रकीय-DNA (n-DNA) से भिन्न होता है। यह यह माइटोकॉन्ड्रीया में प्रोटीन संश्लेषण करता है तथा कोशिकाद्रव्यी वंशागति ( cytoplasmic inheritance) अथवा माइटोकॉन्ड्रीयल वंशागति (mitochondrial inheritance) में भाग लेता है।

माइटोकॉन्ड्रया को सर्वप्रथम मीब्ज (Meves, 1904) ने पादप कोशिकाओं ( निम्फिया पादप की कोशिकाओं में) में खोजा । पैलेडे (Palade, 1953) ने इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा इन कोशिकांगों की आन्तरिक संरचना का अध्ययन किया।

माइटोकॉन्ड्रीया की आकारिकी (Morphology of mitochondria)

(1) आकृति (Shape)—– आकृति में सामान्यतः ये अंगक धागेनुमा अथवा छोटी कणिका समान होते है। विभिन्न कार्यिकीय अवस्थाओं के आधार पर इनकी आकृति में परिवर्तन होता रहता है, किन्तु कुछ समय पश्चात् ये पुनः अपनी वास्तविक आकृति प्राप्त कर लेते हैं। मुख्य रूप से ये मुगदाकार (club shaped), टेनिस के रेकैट (tennis racket like) की आकृति के या छड़नुमा हो सकते हैं।

(2) आकार (size)—–—माइटोकॉन्ड्रिया का आकार भी इसके कार्य के अनुसार बदलता रहता है। इनकी लम्बाई 1.5 से 7 तक बदलती रहती है किन्तु चौड़ाई (0.5) स्थिर रहती है। इनकी आकृति व आकार, इनके चारों ओर पाये जाने वाले माध्यम pH व परासरण दाब (O.P.) पर निर्भर करते हैं । यदि माध्यम का pH अम्लीय हो जाता है तो ये टुकड़ों में टूटकर पुटिकाओं (vesicles) का रूप ले लेते हैं । चूहे की यकृत कोशिकाओं में इनकी लम्बाई 3.3 तथा एम्फीबियन अण्ड कोशिकाओं में इनकी लम्बाई लगभग 20-40 तक हो सकती है ।

(3) संख्या (Number) — जन्तु कोशिकाओं की अपेक्षा पादप कोशिकाओं में इन कोशिकांगों की संख्या कम होती है। इसके अतिरिक्त कोशिकाओं के प्रकार व क्रियाशीलता के अनुसार भी इनकी संख्या में परिवर्तन हो सकता है । सामान्यतः एक कोशिका में 200-300 तक माइटोकॉन्ड्रीया पाये जाते हैं, किन्तु कोशिका की सक्रियता के अनुसार इनकी संख्या 1000 तक या इससे भी अधिक हो सकती है। कुछ शैवाल कोशिकाओं में इनकी संख्या मात्र 1 किन्तु सामान्य यकृत कोशिकाओं में लगभग 1000- 16000 माइटोकॉन्ड्रीया पाये जाते हैं। अमीबा में इनकी संख्या 500,000 तक हो सकती है ।

(4) स्थिति (Location ) –— सामान्यतः कोशिकाद्रव्य में माइटोकॉन्ड्रीया समानरूप से बिखरे रहते हैं । किन्तु ऐसा विशेष परिस्थितियों में, जैसे कोशिका में ग्लाइकोजन व वसा की अधिकता के कारण हैं किन्तु अपवाद स्वरूप केन्द्रक के चारों ओर कोशिका द्रव्य के परिधीय क्षेत्र में भी पाये जा सकते होता है। वैसे माइटोकॉन्ड्रीया कोशिका के उस क्षेत्र में पाये जाते हैं जहाँ सबसे अधिक उपापचयी क्रियाएँ होती रहती हैं। समसूत्री विभाजन के दौरान ये स्पिडल के निकट एकत्रित हो जाते हैं। कोशिकाद्रव्य में इनकी स्थिति निश्चित भी हो सकती है अथवा ये स्वतंत्र रूप से विचरण भी कर सकते हैं ।

माइटोकॉन्ड्रीया की सूक्ष्म संरचना (Ultrastructure of Mitochondria)

इलेक्ट्रॉन-सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा देखने से ज्ञात होता है कि माइटोकॉन्ड्रीयन (Mitochondrian- singular) संरचना निम्नलिखित भागों से मिलकर होती है (चित्र 2.20 ) ।

(1) माइटोकॉन्ड्रीयल आवरण (Mitochondrial envelop)

प्रत्येक माइटोकॉन्ड्रीयन चारों ओर से दोहरी कला से बने आवरण से घिरा रहता है। वाह्य (outer) व आन्तरिक (Inner) दोनों कलाएँ संरचना में त्रिस्तरीय (trilaminate protein-lipid protein) होती हैं। प्रत्येक कला की मोटाई 60-75 A तक हो सकती है तथा इसमें दोनों बाहरी स्तर प्रोटीन के लगभग 20-25 A मोटे तथा इनके मध्य 25 A मोटा लिपिड स्तर पाया जाता है।

(a) बाह्य कला (outer mitochondrial membrane) – यह कला माइटोकॉन्ड्रिया की बाह्य सीमा बनाती है। जिसके द्वारा ये कोशिकांग कोशिका रस (cell sap) से पृथक् रहते हैं। यह झिल्ली इलेक्ट्रोलाइटस (electrolytes), जल, सूक्रोज (sucrose) तथा वृहद् अणुओं के लिए पारगम्य होती है। आन्तरिक कला की तुलना में (20% लिपिड्स) इस कला में अधिक लिपिड्स (40%) पाये जाते हैं तथा कॉलेस्ट्रॉल व फॉस्फोटीडाइल इनोसीटोल भी अधिक पाये जाते हैं। उच्च पादपों की करीब छः जातियों में बाहरी माइटोकॉन्ड्रीयल कला छिद्रित होती है। छिद्र 25-30 A व्यास के होते हैं। कुछ स्थानों में यह अन्तः प्रद्रव्यी जालिका से जुड़ी रहती है ।

(b) आन्तरिक कला (Inner mitochondrial membrane) – यह लगभग 50-70 A मोटी कला होती है, जो माइटोकॉन्ड्रिया के केन्द्रीय अवकाश (central space) में अंगुली सदृश्य अन्तर्वलन (finger like infoldings) बनाती है, जिन्हें माइटोकॉन्ड्रीयन क्रेस्ट (Mitochondrial crests) अथवा क्रिस्टी कहते हैं। यह घुलनशील पदार्थों जैसे सूक्रोज, आयन्स आदि के लिए अपारगम्य ( Impermeable) होती है (चित्र 2.20 AD) ।

(2) माइटोकॉन्ड्रीयल कक्ष (Mitochondrial chambers)

(a) बाह्य कक्ष (Outer chamber) – माइटोकॉन्ड्रीयल आवरण को बनाने वाली बाह्य तथा आन्तरिक कला के मध्य पाया जाने वाला 60-80 A चौड़ा स्थान बाह्य कक्ष (outer chamber) अथवा पेरीमाइटोकॉन्ड्रीया स्थान (Perimitochondrial space) कहलाता है। इसमें कम घनत्व व कम श्यानता का द्रव भरा रहता है। यह स्थान क्रिस्टी के शिखरों तक फैलता रहता है।

(b) आन्तरिक कक्ष (Inner chamber) आन्तरिक कला द्वारा आबद्ध समस्त अवकाश आंतर कक्ष (Inner chamber) कहलाता है। बाह्य कक्ष में उपस्थित द्रव पदार्थ की तुलना में आंतर कक्ष में पाया जाने वाला द्रव पदार्थ अधिक घनत्व वाला, समांगी (homogeneous) व प्रोटीन युक्त होता है जिसे माइटोकॉन्ड्रीयल मैट्रिक्स कहते हैं । यह कणिका युक्त होता है, क्योंकि आंतरकला द्वारा बनने वाली क्रिस्टी अपूर्ण पट एवं उभारों के रूप में होती हैं अतः यह कक्ष कई अपूर्ण किन्तु सतत् खानों में बँट जाता है। इनमें माइटोकॉन्ड्रिया मैट्रिक्स समान रूप से भरा रहता है।

(3) माइटोकॉन्ड्रीयल मैट्रिक्स (Mitochondrial matrix )

जैसा कि ऊपर वर्णित है कि, आन्तर कक्ष में उपस्थित जैली जैसा, प्रोटीन युक्त द्रव पदार्थ माइटोकॉन्ड्रीयल मैट्रिक्स कहलाता है। यह सामान्यतः समांगी होता है किन्तु कुछ अवस्थाओं में यह अति सूक्ष्म तन्तु अथवा घनी कणिकाओं युक्त होता है। इन कणिकाओं का व्यास लगभग 40-50 A होता है । इनका मुख्य कार्य मैग्नीशियम तथा कैल्शियम (Mg++ & Ca++) के आयनों के लिए बन्धक स्थल (binding sites) की तरह कार्य करना है। इसके अतिरिक्त मैट्रिक्स में लघु राइबोसोम्स (70s), RNA तथा एक या एक से अधिक DNA अणु पाये जाते हैं। DNA अणु वृत्ताकार (circular) होता है,’ जिसकी लम्बाई 4.7-6.0p होती है। मैट्रिक्स में DNA तथा प्रोटीन संश्लेषण में काम आने वाले एन्जाइम तथा क्रैब्स चक्र में काम आने वाले घुलनशील एन्जाइम पाये जाते हैं ।

(4) माइटोकॉन्ड्रीयल क्रिस्टी (Mitochondrial cristae)

उपरोक्त विवरण से ज्ञात है कि क्रिस्टी आन्तरिक संरचनाएँ हैं जो कि आंतर कक्ष में फैले रहते हैं। माइटोकॉन्ड्रीया का वह समस्त भाग जो आन्तरिक कला द्वारा आबद्ध रहता है, माइटोप्लास्ट (Mitoplast ) कहलाता है। आन्तरिक कला की दो सतहें होती है । बाह्य कक्ष की ओर वाली सतह साइटोसोल अथवा C-face तथा मैट्रिक्स की ओर वाली सतह M- face कहलाती है ।

बहुत-सी पादप व जन्तु कोशिकाओं में पायी जाने वाली माइटोकॉन्ड्रीयल क्रिस्टी के अध्ययन से ज्ञात होता है कि माइटोकॉन्ड्रीया में इनकी व्यवस्था व संख्या भिन्न-भिन्न हो सकती है। इनकी संख्या का सीधा प्रभाव माइटोकॉन्ड्रीया में होने वाली ऑक्सीकरण अभिक्रियाओं पर पड़ता है । माइटोकॉन्ड्रिया में इनकी व्यवस्था इन कोशिकांगों की अनुदैर्ध्य अक्ष के समानान्तर, लम्बवत् अथवा संकेन्द्री हो सकती हैं। क्रिस्टी दो प्रकार की हो सकती है। (i) ट्यूबलर (tubular or microvilli) तथा (ii) प्लेट नुमा (plate- like)। ट्यूबलर क्रिस्टी अधिकतर पादपों तथा प्लेटनुमा जन्तु कोशिकाओं के माइटोकॉन्ड्रीया में पायी जाती है। माइटोकॉन्ड्रीया में क्रिस्टी विभिन्न आकृति की, फूले हुए थैलेनुमा (swollen sacs) नियमित प्लेट्स, सकरी वेसिकल्स अथवा ट्यूबल्स के रूप में भी हो सकती हैं (चित्र 2. 20, 2.21 ) । 2.21)I (5)

(5). माइटोकॉन्ड्रीयल अथवा प्रारम्भिक कण (Mitochondrial or Elementary Particles of F,- Particle)

सन् 1965 में ऋणात्मक अभिरंजन तकनीक द्वारा यह स्पष्ट हुआ कि माइटोकॉन्ड्रीया की आन्तरिक झिल्ली की M – face पर 80-100 À लम्बे कण अपने वृन्तों द्वारा जुड़े रहते हैं । इन्हें प्रारम्भिक कण अथवा F,- -कण कहा गया (H.F. Moran, 1963), बाह्य कला की बाहरी सतह पर भी कण पाये जाते हैं किन्तु वे अवृन्त होते हैं । ऐसा माना गया कि इन कणों में ऑक्सीकरण अभिक्रियाएँ होती हैं जिनसे इलेक्ट्रॉन्स निकलते हैं तथा ये ATP संश्लेषण में मदद करते हैं । आन्तरिक कला की सतह पर पाया जाने वाला प्रत्येक सवृन्त कण तीन भागों द्वारा निर्मित होता है । 40×100 A आकार का घनाकार आधारीय भाग, 30-40 A व्यास का व 40-50 A लम्बा वृन्त तथा 75-100 A व्यास का गोलाकार शीर्ष । चान्स व पारसन (Chance & Parson) ने इन्हें आक्सीसोम्स (oxysomes ) कहा । एक माइटोकॉन्ड्रीयां में इनकी संख्या 10.000-100000 तक हो सकती है। क्रिस्टी की सतह पर ये कण नियमित रूप से 100 A की दूरी पर जुड़े रहते हैं (चित्र 2.21C)

इन पर ऑक्सीडेटिव फास्फोराइलेशन हेतु एन्जाइम्स तथा माइटोकॉन्ड्रीयन एडीनोसीन ट्राइफोस्फेटेज एन्जाइम्स पाये जाते हैं इसलिए इन्हें इलेक्ट्रॉन ट्रांसपोर्ट पार्टिकल (ETP) भी कहा जाता है। ये कण (ETP) NADH तथा सक्सीनेट (succinate) का आक्सीकरण करते हैं। इनमें संरचनात्मक प्रोटीन व 30% लिपिड्स पाये जाते हैं।

आन्तरिक कला तथा F, कणों में अभी तक चार प्रकार की क्रियात्मक इकाइयाँ खोजी जा चुकी हैं जिन्हें कॉम्पलेक्स कहते हैं। काम्पलेक्स वे विशिष्ट स्थल हैं जहाँ क्रेब्स चक्र के समय विभिन्न H-ग्राही (Hydrogen acceptors) ऑक्सीकृत होकर (H’) आयन तथा ऊर्जा मुक्त करते हैं। मुक्त ऊर्जा से अधिक ऊर्जा वाले ATP का निर्माण होता है ( चित्र 2.22 ) ।

कॉम्पलेक्स 1-F1 कणों के आधारीय भाग में स्थित |

NADH-Co-enzy.Q रिडक्टेज – NADH से CO-enzy. Q तक इलेक्ट्रॉन ट्रांसफर को उत्प्रेरित करता है

काम्पलेक्स II यह भी F, कणों के आधारीय भाग में उपस्थित ।

succinate-co-enzy Q रिडक्टेज – succinate से co-enzy Q तक ET को उत्प्रेरित करता है । कॉम्पलेक्स III-F,-कण के वृन्त में स्थित ।

co-enzy.Q-cytochrome C-रिडक्टेज – CO-enzy Q से cyto-C तक ET उत्प्रेरित करता है । इसमें Cytochrome b, Cytochrome C, व Cytochrome C उपस्थित होते हैं।

कॉम्पलेक्स IV-F,- कण के शीर्ष में स्थित। इसमें Cytochrome a तथा a3 oxidase) उपस्थित होते हैं ।

(6) रासायनिक संघटन (Chemical composition)

बेन्सले (Bensley) ने यकृत माइटोकॉन्ड्रीया में (on the basis of dry weight analysis) 65% अज्ञात प्रोटीन, 29% ग्लीसराईड्स, 4% पीधि सिफेलिन तथा 2% कालेस्ट्रॉल की उपस्थिति बतायी। कोहन (Cohn) ने बताया कि शुष्क भार के आधार पर माइटोकॉन्ड्रीया में 25-30% लिपिड्स, 70% प्रोटीन पाये जाते हैं। कुल लिपिड्स की मात्रा में 90% फॉस्फोलिपिड्स तथा शेष 10% में कॉलेस्ट्राल, वसा अम्ल, ट्राइग्लीसराइड्स, कैरोटिनोइड्स, Vit-E तथा अन्य अकार्बनिक पदार्थ पाये जाते हैं। इनके अतिरिक्त 0.5% RNA तथा बहुत कम मात्रा में DNA पाया जाता है।

(7) माइटोकॉन्ड्रीयल विकर तंत्र (Mitochondrial enzyme system)

भोज्य पदार्थों के तीनों मुख्य घटक शर्करा, प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट्स कोशिका द्रव में विघटित हो जाते है । यहाँ से क्रैब्स चक्र के दौरान माइटोकॉन्ड्रीया में ऑक्सीकृत हो जाते हैं। इस चक्र में उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन, ETS में प्रविष्ट हो जाते हैं। इस क्रिया में 70 से अधिक एन्जाइम्स, को एन्जाइम्स व ऑयन मिलकर भाग लेते हैं। ये सभी माइटोकॉन्ड्रिया के विभिन्न भागों में वितरित रहते लेहनिनंजर (A. L. Lehninger, 1969) के अनुसार माइटोकॉन्ड्रिया में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण एन्जाइम पाये जाते हैं।

(i) माइटोकॉन्ड्रीया की बाह्य कला पर पाये जाने वाले एन्जाइम्स (Enzymes of outer membrane of mitochondrial)

(1) Monoaminase oxidase. (2) NADH – Cytochrome reductase, ( 3 ) Kynurenine hydroxylase. (4) Fatty acid Co-A ligase.

(ii) माइटोकॉन्ड्रीया के बाह्य कक्ष में पाये जाने वाले एन्जाइम्स (Enzymes of outer mitochondrial chamber)

(5) Adenylate kinase ( 6 ) Nucleoside diphosphokinase DNA Se 1 to 5′,endonuclease

(iii) माइटोकॉन्ड्रीया की आन्तरिक कला पर पाये जाने वाले एन्जाइम्स (Enzymes of inner mitochondrial membrane)

(7) Enzymes of electron transport pathway – (a) Nicotinamide adenine dinucleotide NAD, (b) Flavin adenine dinucleotide FAD, (c) Diphosphopyridine Nucleotide (DPN) dehydrogenase, (d) Four cytochromes (cyt-b, c, a, a3), (e) Ubiquinone & or CO-enzy, (f) Non-heme copper and iron, ( g ) / succinic-dehydrogenase, (8) ATP. synthetase, (9) succinic-dehydrogenase, (10) P – hydroxybutyrate dehydrogenase. (11) carnitine fatty acid acyl transferase.

(iv) माइटोकॉन्ड्रिया के मैट्रिक्स में पाये जाने वाले एन्जाइम्स (Enzymes of the mitochondrial matrix)

(12) Malatate-dehydrogenases, (12) Isocitrate dehydrogenases, ( 14 ) Fumarase, (15) Aconitase, (16) a-keto acid dehydrogenases. (17) B-oxidation enzymes, (18) Citrate synthetase. (19) Glutamate dehydrogenase, ( 20 ) Phosphatidic acid cytidyl transferase (CTP)

इनके अलावा मैट्रिक्स में विभिन्न न्यूक्लिओटाइड्स तथा न्यूक्लिओटाइड को एन्जाइम्स तथा कार्बनिक ऑयन जैसे-K+, Mg++, HPO4, CT, SO4 आदि पाये जाते हैं ।

(8) माइटोकान्ड्रीयल DNA (Mitochondrial DNA)

एक माइटोकॉन्ड्रीया में एक से अधिक DNA अणु पाये जा सकते हैं । सामान्यत: इनकी लम्बाई 6 ́ होती है। प्रत्येक अणु द्विसूत्रीय, अत्यधिक कुण्डलित, वृत्ताकार होता है तथा जीवाणु DNA से समानता रखता है। किन्तु m-DNA केन्द्रकीय DNA (n-DNA) से निम्न लक्षणों में असमानता रखता है।

  • m-DNA वृत्ताकार जबकि n-DNA सिढ़ीनुमा होता है ।

(2) n-DNA की अपेक्षा m-DNA में G (ग्वानीन) व (साइटोसीन) की मात्रा अधिक अतः इसका घनत्व अधिक होता है।

(3) m-DNA का आणविक भार 9 से 11 लाख तक हो सकता है।

(4) n-DNA की अपेक्षा अधिक उच्च ताप पर विकृत (denature) होता है।

(5) m-DNA में कम सूचनाएँ कोडित रहती हैं, क्योंकि यह अपेक्षाकृत छोटा होता है।

(6) माइटोकॉन्ड्रीया में पाया जाने वाला DNA पोलीमरेज, केन्द्रक में पाये जाने वाले DNA पोलीमरेज से भिन्न होता है ।

क्योंकि माइटोकॉन्ड्रीया में स्वयं का DNA RNA, DNA पोलीमरेज एन्जाइम, व राइबोसोम्स आदि पाये जाते हैं। अतः ये अंगक प्रोटीन संश्लेषण व m-DNA के द्विगुणन के लिए सक्षम होते हैं । ये लगातार पीढ़ी दर पीढ़ी स्वयं प्रतिकृत होते रहते हैं । इस प्रकार ये माइटोकॉन्ड्रीयल वंशागति में भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा m-DNA माइटोकॉन्ड्रीया में पाये जाने वाले कुछ संरचनात्मक प्रोटीन के 1 संश्लेषण को भी कोडित करता है। लेकिन माइटोकॉन्ड्रीया में पाये जाने वाले विभिन्न एन्जाइम्स के लिए जीन n-DNA में ही स्थित होते हैं ।

(9) माइटोकॉन्ड्रीयल RNA (Mitochondrial RNA)

m-RNA (माइटोकॉन्ड्रीयल RNA) मैट्रिक्स में पाया जाता है तथा कोशिका द्रव्य में पाये जाने वाले RNA से भिन्न होता है । माइटोकॉन्ड्रीया से 23s, 16s व 4s प्रकार के RNA पृथक् किये जा चुके हैं। इनका संश्लेषण माइटोकॉन्ड्रिया में ही होता है ।