(crystallisation process in hindi) क्रिस्टलीकरण : जब किसी द्रव में बहुत अधिक मात्रा में ठोस पदार्थ घुला हुआ रहता है और सान्द्र विलयन बनाता है तो इस सान्द्र विलयन में से ठोस पदार्थ और द्रव को अलग अलग करने के लिए जिस विधि को काम में लिया जाता है उसे क्रिस्टलीकरण प्रक्रिया कहते है।
अत: क्रिस्टलीकरण प्रक्रिया तब काम में ली जाती है जब कोई विलयन सान्द्र हो अर्थात जिसमें द्रव की मात्रा कम होती है और ठोस पदार्थ बहुत अधिक मात्रा में उपस्थित रहता है , ऐसी स्थिति में जब ठोस और द्रव को पृथक करना होता है तो क्रिस्टलीकरण विधि का इस्तेमाल किया जाता है।
अर्थात क्रिस्टलीकरण एक संतृप्त विलयन से ठोस क्रिस्टल बनाने या अलग करने की प्रक्रिया होती है।
उदाहरण : चासनी से शक्कर को अलग करना आदि।
क्रिस्टलीकरण विधि में पहले विलयन का वाष्पन किया जाता है अर्थात चूँकि विलयन में द्रव उपस्थित है इसलिए इस विलयन को गर्म किया जाता है जिससे इसमें उपस्थित द्रव वाष्प में बदलने लगता है और विलयन और अधिक सान्द्र अर्थात गाढ़ा होने लगता है , जब विलयन में द्रव वाष्प बनकर उठ जाता है और विलयन और अधिक सान्द्र (गाढ़ा) हो जाता है तो वाष्पन की क्रिया को रोक दिया जाता है और इस सान्द्र विलयन को अब ठंडा किया जाता है जिससे यह सान्द्र (गाढ़ा) विलयन ठंडा होकर ठोस रूप में या क्रिस्टल रूप में प्राप्त हो जाता है अर्थात इस प्रकार द्रव और ठोस को अलग कर लिया गया है।
अर्थात क्रिस्टलीकरण विधि में द्रव पदार्थ वाष्पन विधि द्वारा पृथक हो जाता है और जो थोडा बहुत द्रव विलयन में बचता है उसे निस्यंदन विधि द्वारा अलग किया जा सकता है।
उदाहरण : जब किसी नमक और पानी के विलयन में से दोनों को पृथक करना हो तो इसके लिए हम क्रिस्टलीकरण विधि ही काम में लेते है , इसके लिए पहले विलयन को गर्म किया जाता है जिससे कुछ अधिकांश द्रव की मात्रा वाष्पन द्वारा पृथक हो जाती है और बाकी बचे ठोस पदार्थ को ठंडा कर लिया जाता है , अभी भी यदि इसमें कुछ द्रव बचा है तो इसे निस्यंदन प्रक्रिया द्वारा अलग कर सकते है।
इसी प्रकार चासनी में से शक्कर को क्रिस्टलीकरण विधि द्वारा प्राप्त करते है और मिश्री बनाई जाती है।
क्रिस्टलीकरण प्रक्रिया को निम्न चित्र द्वारा आसानी से समझा जा सकता है –
अत: क्रिस्टलीकरण प्रक्रिया तब काम में ली जाती है जब कोई विलयन सान्द्र हो अर्थात जिसमें द्रव की मात्रा कम होती है और ठोस पदार्थ बहुत अधिक मात्रा में उपस्थित रहता है , ऐसी स्थिति में जब ठोस और द्रव को पृथक करना होता है तो क्रिस्टलीकरण विधि का इस्तेमाल किया जाता है।
अर्थात क्रिस्टलीकरण एक संतृप्त विलयन से ठोस क्रिस्टल बनाने या अलग करने की प्रक्रिया होती है।
उदाहरण : चासनी से शक्कर को अलग करना आदि।
क्रिस्टलीकरण विधि में पहले विलयन का वाष्पन किया जाता है अर्थात चूँकि विलयन में द्रव उपस्थित है इसलिए इस विलयन को गर्म किया जाता है जिससे इसमें उपस्थित द्रव वाष्प में बदलने लगता है और विलयन और अधिक सान्द्र अर्थात गाढ़ा होने लगता है , जब विलयन में द्रव वाष्प बनकर उठ जाता है और विलयन और अधिक सान्द्र (गाढ़ा) हो जाता है तो वाष्पन की क्रिया को रोक दिया जाता है और इस सान्द्र विलयन को अब ठंडा किया जाता है जिससे यह सान्द्र (गाढ़ा) विलयन ठंडा होकर ठोस रूप में या क्रिस्टल रूप में प्राप्त हो जाता है अर्थात इस प्रकार द्रव और ठोस को अलग कर लिया गया है।
अर्थात क्रिस्टलीकरण विधि में द्रव पदार्थ वाष्पन विधि द्वारा पृथक हो जाता है और जो थोडा बहुत द्रव विलयन में बचता है उसे निस्यंदन विधि द्वारा अलग किया जा सकता है।
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इसी प्रकार चासनी में से शक्कर को क्रिस्टलीकरण विधि द्वारा प्राप्त करते है और मिश्री बनाई जाती है।
क्रिस्टलीकरण प्रक्रिया को निम्न चित्र द्वारा आसानी से समझा जा सकता है –
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