संघट्ट सिद्धांत : रासायनिक अभिक्रिया का संघट्ट सिद्धान्त , आवृत्ति , उदाहरण (collision theory of reaction in hindi)

(collision theory of reaction in hindi) संघट्ट सिद्धांत : रासायनिक अभिक्रिया का संघट्ट सिद्धान्त , आवृत्ति , उदाहरण : संघट्ट सिद्धांत या टक्कर सिद्धान्त यह बताता है कि किसी भी अभिक्रिया में क्रियाकारक के अणु किस प्रकार संघट्ट करते है या आपस में टकराते है और परिणामस्वरूप किस प्रकार उत्पाद में बदलते है , साथ ही संघट्ट सिद्धांत यह भी बताता है कि क्यों अलग अलग अभिक्रियाओं का वेग अलग अलग क्यों होता है।
क्रियाकारक के अणु एक निश्चित आर्डर में संघट्ट करने चाहिए।
जैसा कि हम जानते है कि किसी भी अभिक्रिया के अणुओं को क्रियाकारक से उत्पाद में परिवर्तित करने के लिए क्रियाकारक के अणुओं का आपस में टकराना आवश्यक है , और इसी आधार पर विलयम लुईस और मेक्स ट्राउस ने संघट्टवाद सिद्धांत को प्रतिपादित किया जिसके अनुसार उन्होंने किसी अभिक्रिया के क्रियाकारकों को ठोस गोलों के रूप में माना और बताया कि इन ठोस गोलों के आपस में संघट्ट होने से अर्थात टकराने से अभिक्रिया संपन्न होती है या क्रियाकारक , उत्पाद में बदलना शुरू हो जाते है।
किसी भी अभिक्रिया में सभी अणु भाग नहीं लेते है , जिन अणुओं की ऊर्जा का मान सक्रियण ऊर्जा के बराबर हो या उससे अधिक हो केवल वे ही अणु अभिक्रिया में भाग लेते है।
सक्रियण ऊर्जा : वह न्यूनतम ऊर्जा जो किसी अभिक्रिया के क्रियाकारक को अभिक्रिया में भाग लेने के लिए आवश्यक होती है अर्थात यदि किसी अणु के पास सक्रियण ऊर्जा के समान ऊर्जा है तो वह अणु अभिक्रिया में भाग लेता है और वह क्रियाकारक से उत्पाद में बदल जाता है।
संघट्ट आवृत्ति : किसी भी अभिक्रिया मिश्रण के प्रति इकाई आयतन में प्रति सेकंड में संघट्ट की संख्या को संघट्ट आवृत्ति कहते है , अर्थात किसी अभिक्रिया में संघट्ट की दर अर्थात इकाई समय में होने वाली औसत टक्करों की संख्या को संघट्ट आवृत्ति कहते है।

संघट्ट सिद्धांत की व्याख्या

माना दो अणु है A और B है जो आपस में क्रिया करते है , इन अणुओं को क्रिया करके उत्पाद बनाने के लिए यह आवश्यक है कि इनके मध्य के पुराने बंध टूटने चाहिए और नए बंध बनाने चाहिए जिससे उत्पाद का निर्माण हो सके या क्रियाकारक , क्रियाफल या उत्पाद में परिवर्तित हो सके हम इसे संघट्ट कहते है , क्यूंकि जब ये कण आपस में टकराते है तो इनके पुराने बंध टूट जाते है और क्रिया करके ये नए बंधों का निर्माण कर लेते है जिससे उत्पाद का निर्माण हो जाता है।
किसी भी अभिक्रिया में सिर्फ क्रियाकरकों का टकराना या संघट्ट करना ही काफी नहीं होता है , बल्कि यह संघट्ट सही दिशा और सही तरीके से होना भी आवश्यक है , साथ ही टक्कर के समय इन अणुओं की ऊर्जा सक्रियण ऊर्जा के समान या उससे अधिक ऊर्जा होना आवश्यक है , यह ऊर्जा इन अणुओं को इनके पुराने बन्ध तोड़ने के लिए आवश्यक होती है ताकि नए बंध बन सके और क्रियाकारक के अणु क्रियाफल या उत्पाद में परिवर्तित हो सके।
यदि अणुओं की ऊर्जा सक्रियण ऊर्जा के समान या उससे अधिक नहीं है तो ये संघट्ट उचित नहीं माना जाता है और ऐसी टक्कर वाले क्रियाकराक उत्पाद में परिवर्तित नहीं हो पाते है।
अत: क्रियाकारक का उत्पाद में परिवर्तित होने के लिए उपयुक्त अभिविन्यास में और सक्रियण ऊर्जा के साथ संघट्ट करना आवश्यक है।