नागरिक किसे कहते हैं हिंदी में | नागरिक की परिभाषा क्या है what is citizen meaning in hindi definition

(what is citizen meaning in hindi definition) नागरिक किसे कहते हैं हिंदी में | नागरिक की परिभाषा क्या है ? अर्थ नागरिक और नागरिकता में अंतर , बताइये निवासी की अवधारणा नागरिक से अलग होती है सत्य या असत्य ?

शब्दावली

नागरिक ः नागरिक उस राजनीतिक समुदाय के पूर्ण और समाज सदस्य हैं, जोकि वर्तमान राजनीतिक तंत्र के प्रबल भूमण्डलीय रूप से राष्ट्र-राज्य है।
नागरिकता ः अन्योन्य अधिकारों, कर्तव्य के बंधनों पर आधारित व्यक्ति और राज्य के बीच एक संबंध ।
न जाति न जाति सामान्यतः मूल्यों व परम्पराओं को अपने में समेटती एक विभेद्य सांस्कृतिक पहचान के रूप में समझी जाती है। इसमें किसी जनसमुदाय, सांस्कृतिक समूहों अथवा भू-भागीय क्षेत्र के प्रति निष्ठा का मनोभाव शामिल होता है।
अधिवास ः अधिवास सामान्यत: किसी व्यक्ति के आमतौर पर एक स्थायी और कानूनी रूप से मान्य निवास को इंगित करता है। संविधान अधिवास की परिभाषा नहीं दी गई है। सन् 1966 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय (मौ. रजा बनाम बम्बई राज्य, ए.आई.आर, 1966, एम.पी. 1436) से एक कानून पास हुआ कि एक स्थायी निवास और वहाँ रहने की मन्शा निश्चित रूप से अधिवास के दो प्रमुख संघटक हैं।
आरोपात्मक ः वह पदानुक्रम जो असमानता के पिरैमिडी तंत्र को इंगित करता है – यानी ऊर्ध्वाकार रूप से संगठित ढाँचा – जहाँ शीर्षस्थ शेष पर प्रभुत्व रखते हैं। आरोपात्मक पदानुक्रम उन व्यवस्थाओं के संदर्भ में आता है जहाँ जन्म-पदस्थितियाँ लोगों के पदानुक्रमिक संगठन को निर्धारित करती हैं। जाति-व्यवस्था आरोपात्मक पदानुक्रम का एक उदाहरण है।
जनपद ः प्राचीन भारत में लोगों के भू-भागीय रूप से निर्धारित वे समुदाय जो न जाति, बोली, सामाजिक प्रथाएँ, भौगोलीय स्थिति और सामाजिक-राजनीतिक पदस्थिति के आधार पर विकसित हुए थे। पुराणिक स्रोतों के अनुसार, सात क्षेत्रों में छितरे 165 जनपद प्राचीन भारत में अस्तित्व में थे।
प्रजाति ः वैज्ञानिक और राजनैतिक रूप से विवादित एक श्रेणी, प्रजाति का तात्पर्य उन जैविक (आनुवंशिक) प्रभेदों से है जो तथाकथित रूप से लोगों के एक समूह को दूसरे से भिन्न करते हैं। काफी समय से, लोगों के बीच सांस्कृतिक भिन्नताओं, और सभ्यतापरक निकृष्टता और कुछ के मुकाबले पिछड़ापन व दूसरों के मुकाबले उत्कृष्टता की व्याख्या करने के लिए प्रजाति का प्रयोग किया जाता रहा है।
प्रस्तावना (संविधान के प्रति) ः एक दस्तावेज जो उन आदर्शों, लक्षणों व उद्देश्यों को निर्दिष्ट करता है जिनको संविधान-निर्माता संविधान के माध्यम से साकार करने की आकांक्षा रखते थे।
भूमण्डलीय ः इसका तात्पर्य उन स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटनाओं, प्रक्रियाओं व निर्णयों के बीच अन्तर्सम्बन्धों के जाल/ अन्योन्याश्रिता से है जो विश्व भर में व्यक्तियों के जीवन को अनुकूल बनाता
मताधिकार ः वोट देने, अथवा उस अधिकार को प्रयोग करने का अधिकार।
राजनीतिक समुदाय ः एक राजनीतिक समुदाय अपने भीतर सांस्कृतिकध् भावप्रबल पहचान की अपेक्षा राजनीतिक अनुषक्तियों और नागरिक निष्ठाओं पर जोर देता है । नागरिकता को प्रायः इस अनुषक्ति के आविर्भाव के रूप में देखा गया है जो लोगों को नागरिकों के रूप में एक साझा पहचान में जोड़ता है।
लिंग ः उस लिंग से भिन्न जो जैविक भेद को इंगित करता है, यहाँ लिंग का अभिप्राय पुरुषों और महिलाओं के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक भेद से है। नारी अधिकारवादियों के अनुसार, लिंग भेद तब किया जाता है जब जैविक भेद महिलाओं के लिए भिन्न, पराश्रित और वशवर्ती सामाजिक भूमिकाओं और दशाओं हेतु आधार बन जाते हैं ।
विभेदीय नागरिकता ः यह संकल्पना निश्चित (सांस्कृतिक) समूहों के सदस्यों के न सिर्फ व्यक्तियों के रूप में बल्कि समूहों के – सदस्यों के रूप में भी समावेश की वकालत करती है, जबकि उनके अधिकार अंशतः उनकी विशेष जरूरतों को समझती इस समूह-सदस्यता पर निर्भर करते
समुदाय ः साहचार्य, निष्ठा, कर्तव्य के बंधनों पर आधारित एक सशक्त सामूहिक पहचान के साथ-साथ भावनात्मकता और बंधता के बंधनों द्वारा पहचाना जाने वाला एक लोक-संग्रह अथवा सामाजिक समूह ।

सारांश
भारतीय संविधान वैयक्तिक नागरिक और समुदाय दोनों को ही अधिकार प्रदान करता है। यह इस प्रकार स्वतंत्र और समान (वैयक्तिक) नागरिक का सृजन करता है और सांस्कृतिक समुदायों की पहचान को भी सुरक्षित करने का यत्न करता है। प्रायः, यद्यपि, सामुदायिक अधिकार कुछ वर्षों के नागरिकता अधिकारों को वस्तुतः सीमित कर सकते हैं, मुख्यतः महिला वर्ग के । वैयक्तिक नागरिकों के विशेष संदर्भ (जाति, वर्ग, लिंग आदि) महती रूप से सीमा-शर्त वहीं तक रखते हैं जहाँ तक कि अधिकारों का लोगों द्वारा उपभोग किया जा सकता है। नागरिकता, बहरहाल, कोई निश्चल श्रेणी नहीं है और ऐसे विविध तरीके हैं जिनसे इन अधिकारों के कार्य-क्षेत्र और सार्थकता को, लोकप्रचलित/ वैयक्तिक पहल और संघर्ष के माध्यम से अथवा न्यायालयों और जन-शिकायतों को समझने वाली संस्थाओं की शरण लेकर, बढ़ावा दिया जा सकता है।

 कुछ उपयोगी पुस्तकें
कश्यप, सुभाष, सिटीजन्स एण्ड दि कॉन्सटीट्यूशन, प्रकाशन विभाग, भारत सरकार, दिल्ली, 1997

जयाल, नीरजा गोपाल, डिमोक्रेसी एण्ड दि स्टेट, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रैस, दिल्ली, 1999 (अध्याय-4, खण्ड-प्ट: सिटीजनशिप इन दि नर्मदा वैली)।

बस, डी.डी., इण्ट्रोडक्शन टु दि कॉन्सटीट्यूशन ऑव इण्डिया, वधवा एण्ड कम्पनी, नागपुर, नवीनतम संस्करण (सिटीजनशिप, फण्डामेण्टल राइट्स और डायरेक्टिव प्रिंसिपल्से से संबंधित अध्याय)।

देसाई ए.आर., आभा अवस्थी सं० सोशल एण्ड कल्चरल डाइवर्सिटीज, डी.पी. मुकर्जी इन मैमारियम. में ‘इम्पॉवरिंग दि सॅवरेन सिटीजन ऑव इण्डिया: सम कन्सटीट्यूशनल ऑब्सटैकल्स‘ रावत पब्लिकेशन्स, जयपुर, 1997।

महाजन, गुरप्रीत, आइडेण्टिटीज एण्ड राइट्स, एस्पैक्ट्स ऑव लिबरल डिमोक्रेसी इन इण्डिया, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रैस, दिल्ली, 1998, (अध्याय: इण्ट्रोडक्शन: निगोशिएटिंग डिफरैन्सिज विद्इन लिबरैलिज्म)।

बोध प्रश्न 
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए गए रिक्त स्थान का प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तरों की जाँच इकाई के अन्त में दिए गए आदर्श उत्तरों से करें।

1) महिलाओं व अन्य अल्प-लाभांवित वर्गों के नागरिकता अधिकारों से संबंधित भारतीय संविधान
की मुख्य सीमाबद्धताएँ क्या हैं?
2) राष्ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसे संस्थान हमारे नागरिकता अधिकारों की संवृद्धि में किस प्रकार मदद करते हैं?

बोध प्रश्न उत्तर
1) नागरिकों के अधिकार, विशेषकर समाज के कमजोर वर्गों के, ठीक प्रकार से सुरक्षित नहीं होते हैं।
2) वे महिलाओं एंव अन्य नागरिकों के अधिकारों से सम्बन्धित विषयों को विभिन्न तरीको जैसे जनहित याचिका वादों एवं सामाजिक कार्यवाही वादों द्वारा उठाते हैं।