फिनोल के रासायनिक गुण (chemical properties of phenol in hindi) :
[A] reaction due to -H of -OH group
[B] Reaction due to -OH group
[C] Reaction due to Benzene ring
[D] Condensation reaction
[A] reaction due to -H of -OH group (-OH समूह के -H की अभिक्रिया) : फिनोल की ये अम्लीय प्रकृति की अभिक्रिया होती है।
फिनोल , Na , NaOH , Na2CO3 के साथ क्रिया कर अम्लीय प्रकृति को दर्शाता है।
यदि फिनोल में एल्किल समूह जुड़ता है तो इसे एल्किलीकरण कहते है।
यदि फिनोल में एसिटिल समूह जुड़ता है तो इसे एसिटिलीकरण कहते है।
यदि फिनोल में बेन्ज़ोइल समूह जुड़ता है तो इसे बेन्जोइलीकरण कहते है इसे फिनोल का बेन्जोइलीकरण का शॉटन बामन अभिक्रिया कहते है।
[B] Reaction due to -OH group (-OH समूह की अभिक्रिया) :
(i) उदासीन FeCl3 के साथ क्रिया : फिनोल उदासीन FeCl3 के साथ क्रिया कर आयरन फिनोएट बनाता है जो बैंगनी रंग का होता है।
इसलिए इस अभिक्रिया का उपयोग फिनोल क्रियात्मक समूह के परिक्षेपण में किया जाता है।
(ii) जिंक से क्रिया : जिंक मेटल की अभिक्रिया फिनॉल से करवाने पर बेंजीन बनता है।
(iii) PCl5 से क्रिया : फिनोल PCl5 से क्रिया कर क्लोरो बेंजीन बनाता है।
इस अभिक्रिया में फिनोल को आधिक्य में लिया जाए तो फिनोल , POCl3 से क्रिया करके ट्राई फिनोल फोस्फेट बनाता है।
(iv) अमोनिया से क्रिया या बूचरर अभिक्रिया : फिनोल एनहाइड्राइड ZnCl2 की उपस्थिति व 573K ताप पर अमोनिया से क्रिया कर एनिलिन बनाता है इसे बुचरर अभिक्रिया कहते है।
(v) फास्फोरस पेंटा सल्फाइड से क्रिया : फिनोल इससे क्रिया कर थायो फिनोल बनाता है।
[C] बेन्जीन वलय की अभिक्रिया :
प्रश्न : फिनोल मुख्य रूप से ऑर्थो व पैरा उत्पाद बनाता है , क्यों ?
या
फिनोल की इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया में यह मुख्य उत्पाद O व P स्थिति पर बनाता है , क्यों ?
या
फिनॉल में -OH समूह O व P निर्देशित तथा सक्रियणकारी समूह होता है , क्यों ?
उत्तर : फिनोल में -OH समूह द्वारा बेंजीन वलय की O व P स्थिति पर इलेक्ट्रॉन घनत्व बढाता है इसलिए आने वाला इलेक्ट्रोफिल बेंजीन वलय की O व P स्थिति पर जुड़ता है इसलिए -OH समूह को O व P निर्देशित तथा सक्रियणकारी समूह कहते है तथा यह मुख्य उत्पाद O व P बनाता है।
[1] नाइट्रिकरण :
(a) तनु HNO3 के साथ अभिक्रिया : फिनोल तनु HNO3 से क्रिया कर O व P नाइट्रो फिनोल बनाता है।
इस नाइट्रीकरण की क्रिया में Na2+ इलेक्ट्रोफिल का निर्माण करते है।
(B) सान्द्र H2SO4 + सान्द्र HNO3 के साथ क्रिया : सान्द्र H2SO4 + सान्द्र HNO3 का मिश्रण नाइट्रिक मिश्रण कहलाता है।
फिनोल इससे क्रिया कर 2,4,6 ट्राई नाइट्रो फिनोल बनाता है जिसे पिक्रिक अम्ल बनाता है।
इसके तीन -NO2 समूह के कारण यह अधिक अम्लीय हो जाता है।
इस अभिक्रिया में NO2+ इलेक्ट्रोफिल का निर्माण किया जाता है।
[2] हैलोजनीकरण :
(a) ब्रोमीन से क्रिया : Br2 की अभिक्रिया अध्रुवीय विलायक जैसे – Cl2 , CHCl3 , Cl4 की उपस्थिति में कराने पर O व P उत्पाद बनाते है।
(b) ब्रोमिन जल से क्रिया : फिनोल ब्रोमीन जल से क्रिया करके 2,4,6 ट्राई ब्रोमो फिनोल बनाता है।
[3] फ्रिडेल क्राफ्ट अभिक्रिया :
(a) फ्रिडेल क्राफ्ट एल्कीलीकरण : फिनोल की अभिक्रिया CH3Cl से निर्जल AlCl3 की उपस्थिति में करवाने पर O व P मैथिल फिनोल बनाता है।
इस अभिक्रिया में एल्किल समूह जुड़ता है इसलिए इसे एल्किल क्रिया कहते है।
इस अभिक्रिया में CH3+ इलेक्ट्रोफील का निर्माण होता है।
(b) फ्रिडेल क्राफ्ट एसीटीलीकरण : फिनोल , एसिटिल क्लोराइड के साथ निर्जल AlCl3 की उपस्थिति में क्रिया कर O व P – हाइड्रोक्सी एसीटोफेनोन बनाता है।
इस अभिक्रिया में एसिटिल समूह जुड़ता है इसलिए इसे एसिटिलीकरण कहते है।
इस अभिक्रिया में एसिटिल इलेक्ट्रोफिल का निर्माण होता है।
[4] सल्फोनिकरण :
फिनोल का सेल्फोनिकरण सान्द्र H2SO4 की उपस्थिति में करवाने पर O व P – बेंजीन सल्फोनिक अम्ल बनाता है।
[5] फ़्रिश पुनर्विन्यास : फिनोल एनहाइड्राइड AlCl3 की उपस्थिति में फिनोल एक्टिल क्लोराइड से क्रिया कर फेनिल एसिटेट बनाता है , जो निर्जल AlCl3 व नाइट्रो बेंजीन की उपस्थिति में पुनः विन्यासित होकर 333k से कम ताप पर P उत्पाद व 433k ताप से अधिक ताप पर O उत्पाद बनाता है।
इस अभिक्रिया को फ्रिश पुनर्विन्यास अभिक्रिया के नाम से जाना जाता है।
[6] फोमिलिकरण : यदि फिनोल में बेंजीन की एक -H के स्थान पर फोर्मिल समूह (-CHO) जुड़ा हो तो इसे फ़ॉमिलीकरण अभिक्रिया कहते है।
यह क्रिया
(a) राइमर टीमान अभिक्रिया
(b) गाटरमान कोच एल्डीहाइड अभिक्रिया
(c) डफ अभिक्रिया
(a) राइमर टीमान अभिक्रिया या फार्मिलीकरण :
प्रश्न : राइमर टीमन अभिक्रिया दीजिये
या
फिनोल की अभिक्रिया क्लोरोफॉर्म के साथ क्षारीय माध्यम में दीजिये।
या
फिनोल की अभिक्रिया CH3Cl3 के साथ NaOH के साथ दीजिये।
उत्तर : फिनोल CHCl3 के साथ क्षारीय माध्यम में क्रिया कर O – हाइड्रोक्सी बेंजील्डिहाइड बनाता है , इसे राइमर टीमन फोमिलीकरण अभिक्रिया कहते है।
प्रश्न : राइमर टीमान अभिक्रिया में इलेक्ट्रोफिल का नाम बताइये।
उत्तर : CCl2 (डाई क्लोरो कार्बिन)
(b) गाटरमान कोच एल्डीहाइड अभिक्रिया :
फिनोल HCN + HCl के साथ निर्जल AlCl3 की उपस्थिति में क्रिया कर P-हाइड्रोक्सी बेंजेल्डीमाइन बनाता है जो अम्लीय जल अपघटन द्वारा P-हाइड्रोक्सी बेंजेल्डीहाइड का निर्माण करता है इसे गाटरमान कोच एल्डीहाइड अभिक्रिया कहते है।
(c) डफ अभिक्रिया : फिनोल की अभिक्रिया हेक्सो मेथिलिन टेट्रा एमीन के साथ कराने पर बोरिक अम्ल व ग्लिसरोल की उपस्थिति में कराने पर N-मैथिल sdieyaldimine बनता है जिससे जल अपघटन द्वारा O-हाइड्रोक्सी benzoldehyde बनाता है इसे डफ अभिक्रिया कहते है।
कार्बोक्सिलीकरण : फिनोल में एक हाइड्रोजन के स्थान पर -COOH समूह जुड़ा हो तो इस क्रिया को कार्बोक्सलिकरण कहते है।
यह निम्न प्रकार से संपन्न कराया जाता है –
(a) राइमर टीमान कार्बोक्सिलीकरण अभिक्रिया
(b) कोल्बे शिमट अभिक्रिया
(a) राइमर टीमान कार्बोक्सिलीकरण अभिक्रिया : फिनोल की अभिक्रिया CCl4 की उपस्थिति में क्षार (NaOH या KOH ) के साथ कराने पर सैलिसिलिक अम्ल बनता है।
(b) कोल्बे शिमट अभिक्रिया (kolbe schmitt reaction) : फिनोल की अभिक्रिया NaOH क्षार , क्षार से कराने पर सोडियम फिनोक्साइड बनता है जो 403-423k ताप 1.5 न्यूनतम समानित दाब पर कार्बन डाइ ऑक्साइड से क्रिया कर सोडियम फेनिल कार्बोनेट बनाता है जो अम्लीय जल अपघटन द्वारा सेलिसिलिक अम्ल का निर्माण करता है इसे कोल्बे शिमट अभिक्रिया कहते है।
(8) ऑक्सीकरण :
(9) हाइड्रोजनीकरण : फिनोल हाइड्रोजनीकरण द्वारा साइक्लोहेक्सेनोल में बदलता है।
तो निम्न प्रकार परिवर्तन होते है –
[D] संघनन अभिक्रियायें
फिनोल के उपयोग
- बैकेलाइट के निर्माण में।
- एस्प्रिन निर्माण में।
- कीटाणुनाशी में।
- कार्बोलिक साबुन निर्माण में
- पिक्रिक अम्ल बनाने में
- रंजक बनाने में।