ईथर (ether in hindi) : ऑक्सीजन परमाणु की दोनों संयोजकता एल्किल या एरिल समूह द्वारा जुडी हो , तो ऐसे यौगिक इथर कहलाते है।
उदाहरण : R-O-R
यहाँ R = एल्किल समूह
Ar-O-Ar
यहाँ Ar = एरिल समूह
Ar-O-R
यहाँ R = एल्किल समूह तथा Ar = एरिल समूह
ईथर का वर्गीकरण (classification of ether)
इथर को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जाता है –
- साधारण ईथर
- मिश्रित ईथर
- साधारण ईथर : इथर में ऑक्सीजन से जुड़े दोनों एल्किल या एरिल एक समान हो , तो इसे साधारण इथर कहते है।
उदाहरण : R-O-R
CH3-O-CH3 (di methyl ether)
C2H5-O-C2H5 (di ethyl ether)
Ar-O-Ar
C6H5-O-C6H5 (di phenyl ether)
- मिश्रित ईथर : इथर में ऑक्सीजन से जुड़े दोनों एल्किल या एरिल समूह अलग अलग प्रकार के हो इसे मिश्रित ईथर कहते है।
उदाहरण : R-O-R
C2H5-O-CH3 (ethyl methyl ether)
Ar-O-R
C6H5-O-CH3 (methyl phenyl ether)
ईथर क्रियात्मक समूह की संरचना (ether functional group structure) :
ऑक्सीजन परमाणु का संकरण – SP3
संरचना का नाम – चतुष्फलकीय
बंध कोण – 110 डिग्री
अयुग्मित इलेक्ट्रॉन की संख्या – 2 जोड़े (4 इलेक्ट्रॉन)
समावयवता (Isomerism) :
प्रश्न : ईथर में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन की तुलना में एल्किल समूह का प्रतिकर्षण अधिक पाया जाने के कारण बन्ध कोण का मान बढ़कर 110 डिग्री होता है।
समावयवता :
(a) क्रियात्मक समावयवता –
उदाहरण : CH3-O-CH3 (di methyl ether) [ether]
CH3-CH2-OH (ethyl alcohol) (alcohol)
प्रश्न : ईथर को एल्कोहल का एनहाइड्राइड कहते है , क्यों ?
उत्तर : क्योंकि एल्कोहल के दो अणु के आपस के H2O के त्याग से ईथर बनता है।
इसलिए ईथर को एल्कोहल का एनहाइड्राइड कहते है।
निर्माण विधि
प्रश्न : C4H10O के मध्यावयव समावयवी दर्शाइये।
उत्तर : (i) CH3-CH2-CH2-O-CH3 (मैथिल प्रोपिल ईथर)
(ii) CH3-CH2-O-CH2-CH3 (डाइ एथिल ईथर)
(iii) आइसो प्रोपिल मैथिल ईथर
(i) प्रयोगशाला विधि :
ईथर के निर्माण की प्रयोगशाला विधि को निम्न बिन्दुओ के आधार पर समझाइये।
उत्तर : (a) अभिक्रिया
(b) उपकरण का नामांकित चित्र
(c) विधि
(d) शिद्धिकरण
(e) सतत ईथर (निर्माण की आवश्यक शर्ते)
उत्तर :
(a) अभिक्रिया –
C2H5OH + H-HSO4 → C2H5-HSO4 + H2O
C2H5HSO4 + H-OC2H5 → C2H5-O-C2H5
(b) उपकरण का नामांकित चित्र
(c) विधि : इससे दो आयतन C2H5OH व एक आयतन सान्द्र H2SO4 को आसवन में मिलाकर 413 k ताप पर बालू उष्मक गर्म करने से ईथर वाष्प + एल्कोहल वाष्प + SO2 वाष्प का मिश्रण प्राप्त होता है।
(d) शिद्धिकरण :
(i) इस मिश्रण को NaOH युक्त पृथक्कारी कीप में लेने पर SO2 का अवशोषण हो जाता है।
(ii) शेष को CaCl2 पर से प्रवाहित करने पर C2H5OH वाष्प + H2O वाष्प को एल्कोलेट के रूप में पृथक कर लेता है।
(iii) शेष ईथर वाष्प को प्रभाजी आसवन द्वारा पृथक कर लिया जाता है।
(e) सतत ईथर (निर्माण की आवश्यक शर्ते) :
(i) इस अभिक्रिया में बनने वाली H2O द्वारा सान्द्र H2SO4 को तनु कर दिया जाता है इससे अभिक्रिया धीमी हो जाती है।
(ii) इस अभिक्रिया में सान्द्र H2SO4 द्वारा एथिल एल्कोहल का ऑक्सीकरण करता है परन्तु स्वयं कुछ मात्रा में SO2 अपचयित होता है इससे ईथर निर्माण की अभिक्रिया धीमी हो जाता है।
(iii) इस अभिक्रिया में सान्द्र H2SO4 जल द्वारा तनु हो जाता है इसलिए समय समय पर अभिक्रिया में सान्द्र H2SO4 को बदलता पड़ता है इससे ईथर लगातार बनता रहता है।
(2) औद्योगिक विधि : इस विधि द्वारा ईथर निम्न प्रकार बनाते है।
विधि : इसमें एल्कोहल व सान्द्र H2SO4 को मिलाकर 413k ताप पर रक्त तप्त स्टील कुण्डलियों पर से प्रवाहित करने पर इथर वाष्प एल्कोहल वाष्प SO2 वाष्प व जल वाष्प का मिश्रण बनता है।
यह मिश्रण मार्जक में जाने पर वहाँ ऊपर से NaOH गिरता है जो SO2 का अवशोषण कर लेता है।
शेष मिश्रण को प्रभाजी स्तम्भ में प्रवाहित करने पर वह C2H5OH व H2O को पृथक कर लिया जाता है तथा ईथर का क्वथनांक कम होने के कारण इसे संघनित में भेज देते है।
संघनित में ईथर द्रव अवस्था में ग्राही में एकत्रित कर लिया जाता है।
(3) एल्कोहल के निर्जलीकरण करने पर [Al2O3 + 52K] :
C2H5-OH + H2O-C2H5 → C2H5O-C2H5 + H2O
नोट : एल्कोहल की क्रिया Al2O3 + 52K पर करवाने पर एल्किन बनती है।
CH3-CH2-OH → CH2=CH2 + H2O
(4) एल्कोहल का निर्जलीकरण (सान्द्र H2SO4 + 413k) :
C2H5-OH + H-OC2H5 → C2H5-O-C2H5 + H2O
नोट : एल्कोहल की अभिक्रिया सान्द्र H2SO4 + 443k पर करवाने पर एल्किन बनती है।
C2H5OH → CH2=CH2 + H2O