चालक की धारिता capacitance of conductor in hindi , सूत्र , विमा , इकाई , in english

(capacitance of conductor in hindi ) चालक की धारिता  : धारिता का शाब्दिक अर्थ है ‘ धारण करने की क्षमता ‘ , अतः चालक की धारिता से अभिप्राय है चालक द्वारा विद्युत आवेश धारण करने की क्षमता।

जिस प्रकार एक बर्तन में एक सीमा से अधिक द्रव डालते है तो वह बिखरने लग जाता है ठीक उसी प्रकार जब चालक को सीमा से अधिक आवेश दिया जाता है तो आवेश का वातावरण में विसर्जन होने लगता है।

तथा बर्तन में डाला गया द्रव गुरुत्वीय तल को बढ़ाता है उसी प्रकार चालक को दिया गया आवेश चालक के विद्युत तल को बढ़ाता है अर्थात चालक को दिया गया आवेश विद्युत विभव को बढ़ाता है।

एक सीमा से अधिक आवेश किसी वस्तु से न तो लिया जा सकता है और न ही दिया जा सकता है तथा किसी वस्तु पर आवेश देने से उसमे पहले से उपस्थित आवेशों के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है जिससे इसकी स्थितिज ऊर्जा (विभव ) में वृद्धि होती है।

जितना अधिक आवेश चालक को दिया जाता है उतना ही अधिक विभव का मान भी बढ़ता जाता है।

अतः हम कह सकते है की चालक पर विभव का मान उसको दिए गए आवेश के समानुपाती होता है।

q ∝ V

q = CV

यहाँ C एक समानुपाती नियतांक है , C को ही चालक की विद्युत धारिता कहते है।

C (विद्युत धारिता) का मान चालक के आकार , क्षेत्रफल , माध्यम तथा अन्य चालकों की उपस्थिति पर भी निर्भर करता है।

C = q/V

विद्युत धारिता किसी चालक को दिए गए आवेश व चालक के विभव में हुई वृद्धि के अनुपात को कहते है।

V = 1 , C = q

अतः किसी चालक की धारिता उस चालक को दिये गए उस आवेश के बराबर होती है जो उस चालक मे वोल्ट  विभव परिवर्तन कर दे ।

C (धारिता) का मात्रक = फैरड (farad) होता है ।

चूँकि फैरड एक बड़ा मात्रक है अत: सामन्यतया इसको उपयोग में नहीं लेते है , सामन्यतया माइक्रो फैरड , पिको फैरड का इस्तेमाल करते है ।

1 माइक्रो फैरड = 10-6 F

1 पिको फैरड = 10-12 F

1 नैनो फैरड = 10-9 F

C (धारिता) का विमा सूत्र = [M-1 L-2 TA]

चालक की धारिता को प्रभावित करने वाले कारक (factors affecting capacity of a conductor)

किसी चालक कि धारिता को कुछ कारण होते है जो प्रभावित करते है वे निम्नलिखित है।

  1. चालक का क्षेत्रफल :  चालक का क्षेत्रफल बढ़ने पर इसके पृष्ठ पर विद्युत विभव का मान कम हो जाता है अतः चालक की धारिता बढ़ जाती है।
  1. जब आवेशित चालक के पास कोई अन्य अनावेशित चालक रखा जाता है तो आवेशित चालक का विभव कम हो जाता है जिससे धारिता बढ़ जाती है।
  2. चूँकि धारिता के सूत्र में विभव आता है और विभव का मान माध्यम (K) पर निर्भर करती है अतः धारिता का मान माध्यम पर निर्भर करता है।

विलगित चालक की धारिता : जब किसी चालक को आवेशित किया जाता है तो इसके विभव में वृद्धि होती है। किसी विलगित चालक (चालक परिमित विमाओं का होना चाहिए ताकि अनंत पर विभव शून्य माना जा सके) के लिए चालक का विभव इसको दिए गए आवेश के समानुपाती होता है।

q = चालक पर आवेश

V = चालक का विभव

q ∝ V

q = CV

जहाँ C समानुपाती नियतांक है इसे चालक की धारिता कहा जाता है।

धारिता की परिभाषा : किसी चालक के विभव में इकाई वोल्ट की वृद्धि करने के लिए आवश्यक आवेश की मात्रा चालक की धारिता कहलाती है।

किसी विलगित चालक की धारिता से सम्बंधित महत्वपूर्ण बिंदु

  • यह एक अदिश राशि है।
  • धारिता का SI मात्रक फैरड है और इसकी विमा M-1L-2I2T4 होती है।
  • एक फैरड : 1 फैरड उस चालक की धारिता है जिसे एक कुलाम धन आवेश देने पर उसके विभव में एक वोल्ट की वृद्धि होती है।

विलगित चालक की धारिता निम्न कारकों पर निर्भर करती है :-

  • चालक का आकार और आकृति : आकार बढ़ने पर धारिता बढती है।
  • माध्यम पर : पराविद्युतांक K बढ़ने पर धारिता में वृद्धि होती है।
  • अन्य चालकों की उपस्थिति : जब एक निरावेशित चालक को आवेशित चालक के निकट रखा जाता है तो चालक की धारिता में वृद्धि हो जाती है।

चालक की धारिता निम्नलिखित पर निर्भर नहीं करती है :-

  • चालक पर उपस्थित आवेश पर
  • चालक के विभव पर
  • चालक की स्थितिज ऊर्जा पर

विलगित चालक की स्थितिज ऊर्जा या स्व ऊर्जा : किसी चालक को आवेशित करने के लिए इसके स्वयं के विद्युत क्षेत्र के विरुद्ध किया गया कार्य या चालक के विद्युत क्षेत्र में संचित कुल ऊर्जा को चालक की स्थितिज ऊर्जा या स्व ऊर्जा कहते है।

विधुत स्थितिज ऊर्जा (स्व-ऊर्जा) :- संधारित्र को आवेशित करने में किया गया कार्य।

W = q2/2C

W = U = q2/2C = CV2/2 = qV/2

जहाँ q = चालक पर आवेश

V = चालक पर विभव

C = चालक की धारिता

चालक के विद्युत क्षेत्र में संचित ऊर्जा होती है जिसका ऊर्जा घनत्व (एकांक आयतन की ऊर्जा ) :-

dU/dV = ε0E2/2

या

माध्यम में ऊर्जा घनत्व = dU/dV = ε0εrE2/2

किसी आवेशित चालक में ऊर्जा चालक के बाहर संग्रहित होती है जबकि किसी आवेशित कुचालक (अचालक) पदार्थ में ऊर्जा अचालक के अन्दर और बाहर दोनों ओर संग्रहित होती है।