प्रत्याशी समाजीकरण क्या है ? candidate socialization in hindi प्रत्याशी समाजीकरण किसे कहते है ?

प्रत्याशी समाजीकरण किसे कहते है ? candidate socialization in hindi

प्रत्याशी समाजीकरण :-
मर्टन ने गैर-सदस्यता समूह के संदर्भ में प्रत्याशी समाजीकरण की चर्चा की है। वह बहुत साधारण है। यह एक तरह से उस समूह के लिए स्वयं को तैयार करना है, जिससे वह व्यक्ति जुड़ा हुआ तो नहीं हो, किंतु उसका सदस्य बनना चाहता हो। यह किसी गैर-सदस्यता संदर्भ के मूल्यों एवं जीवन-शैली को अपनाने के समान है। मर्टन का कहना है कि प्रत्याशी सामाजीकरण से व्यक्ति विशेष को दो तरह से लाभ हो सकता है। एक तो, उसे समूह में ऊंचा उठने में मदद मिलती है। और, दूसरे, उस समूह का हिस्सा बन जाने के पश्चात् स्वयं को उसके स्वरूप में ढालना सरल हो जाता है।

एक उदाहरण से मर्टन का कथन अच्छी तरह से समझा जा सकता है। कल्पना कीजिए कि गांव के निम्न मध्यम वर्ग का एक बालक दून स्कूल के लड़कों को अपना संदर्भ समूह मानने लगता है और इसलिए प्रत्याशी समाजीकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत दून स्कूल के लड़कों जैसी तेजी तथा आन-बान की नकल करने लगता है। अब यदि वह बालक सचमुच दून स्कूल में भर्ती हो जाए तो उसका प्रत्याशी समाजीकरण प्रकार्यात्मक हो जाएगा तथा नए वातावरण के अनुसार अपने को ढालने में उसे आसानी होगी।

मर्टन ने प्रत्याशी समाजीकरण के प्रकार्यात्मक परिणामों के साथ-साथ उसके दुष्प्रकार्यात्मक परिणामों की भी चर्चा की है। यदि प्रणाली में गतिशीलता की संभावना बिल्कुल नहीं है तो निम्न मध्यम वर्ग के बालक को दून स्कूल में कभी प्रवेश नहीं मिल पाएगा (यह समाजशास्त्री को ही देखना है कि स्थिति वास्तव में ऐसी है या नहीं)। उस हालत में प्रत्याशी समाजीकरण उस बालक के लिए दुष्प्रकार्यात्मक बन जाएगा। इसके दो कारण हैं। पहला यह कि वह उस समूह का सदस्य नहीं बन पाएगा, जिसकी वह कामना करता है। और दूसरा यह कि प्रत्याशी समाजीकरण अर्थात गैर-सदस्यता समूह के मूल्यों की नकल के कारण वह अपने समूह के सदस्यों द्वारा नापसंद किया जाने लगेगा। मर्टन के अनुसार वह “सीमांत व्यक्ति‘‘ (उंतहपदंस उंद) बन कर रह जाएगा। प्रत्याशी समाजीकरण अपेक्षाकृत उदार सामाजिक संरचना में ही प्रकार्यात्मक बन सकता है, क्योंकि वहां गतिशीलता (उवइपसपजल) की संभावनाएं रहती हैं। किंतु गतिशीलता के अपेक्षाकृत अभाव वाली सामाजिक संरचना में यह दुष्प्रकार्यात्मक सिद्ध होगा।

मर्टन ने एक और दिलचस्प बात कही। गतिशीलता के अभाव वाले समाज में किसी व्यक्ति द्वारा गैर-सदस्यता समूह को संदर्भ समूह के रूप में चुने जाने की संभावनाएं बहुत कम होती हैं। यही कारण है कि गतिशीलता के अभाव वाली प्रणाली में जहां प्रत्येक स्तर के अधिकार, पूवपिक्षाएं तथा कर्तव्य आमतौर पर नैतिक रूप से सही माने जाते हैं, वहां निष्पक्ष स्थितियों के ठीक न होने के बावजूद भी व्यक्ति कम वंचित महसूस करेगा। किंतु गतिशील समाज में, जहां व्यक्ति सदैव ही अपनी स्थिति की तुलना अपेक्षाकृत अधिक संपन्न लोगों से करता रहता है, वह निरंतर अप्रसन्न एवं असंतुष्ट रहता है।

सारांश
इस इकाई के अध्ययन के बाद आपको यह जानकारी मिली कि संदर्भ समूह के आचरण का अध्ययन बहुत उपयोगी है। इसके मुख्य कारण इस प्रकार हैं
प) इससे यह समझने में सहायता मिलती है कि कब और क्यों अपनी स्थिति की तुलना दूसरों की स्थिति से की जाती है, और उसी के अनुरूप अपने आचरण, जीवन-शैली तथा भूमिका निर्वाहन को ढाला जाता है।
पप) इससे यह भी पता चलता है कि कब और कैसे सदस्यता समूह तथा गैर-सदस्यता समूह संदर्भ समूह के रूप में काम करते हैं।
पपप) इससे संदर्भ समूह के आचरण के संरचनात्मक परिणामों तथा प्रभावों को समझने के साथ-साथ यह जानने में सहायता मिलती है कि किस प्रकार अपेक्षाकृत गतिशीलता वाली सामाजिक प्रणाली में लोग गैर-सदस्यता समूहों का संदर्भ समूह के रूप में चयन करने को प्रेरित होते हैं, और इसके फलस्वरूप किस प्रकार अपने समूह के प्रति व्यक्ति की अनुरूपता न होने से उस समूह में परिवर्तन, द्वंद्व तथा प्रगति की संभावनाओं का जन्म होता है।

बोध प्रश्न 3
प) गैर-सदस्यता संदर्भ समूह के चयन के पीछे कौन-से कारक हैं? अपना उत्तर चार पंक्तियों में लिखिए।
पप) क्या यह सत्य है कि “प्रस्थिति-श्रेणी‘‘ सदैव संदर्भ समूह के रूप में काम करती है? कारणों को स्पष्ट कीजिए। अपना उत्तर लगभग चार पंक्तियों में लिखिए।

बोध प्रश्न 3 उत्तर
प) जब कोई गैर-सदस्यता समूह समाज की संस्थागत संरचना की दृष्टि से अधिक शक्ति एवं प्रतिष्ठा प्राप्त करता प्रतीत होता है तो उसका चयन संदर्भ समूह के रूप में किया जाता है। इसके अलावा, अपने सदस्यता समूहों से असंतुष्ट होने के कारण “अलग-थलग पड़े‘‘ लोग गैर-सदस्यता समूहों का चयन संदर्भ समूह के रूप में करने को प्रेरित होत हैं।
पप) नहीं, यह सही नहीं है कि ‘‘प्रस्थिति श्रेणी‘‘ सदैव संदर्भ समूह के रूप में काम करती है। मर्टन ने कहा भी है कि प्रस्थिति श्रेणी बहुत व्यापक तथा निवैयक्तिक होने के कारण अपने सदस्यों पर सीधे प्रभाव डालने में विफल रह सकती है। इसकी बजाय निरंतर सक्रिय संपर्क वाले एक उपसमूह को संदर्भ समूह के रूप में स्वीकार किए जाने की अधिक संभावना होती है।